कांग्रेस के 50 विधायकों का भविष्य सचिन पायलट के हाथ में

Ram Gopal Jat
राजस्थान में भले ही चुनाव होने में करीब सवा साल का समय बाकी हो, लेकिन राजनीति का पारा धीरे धीरे सातवें आसमान की ओर जा रहा है। जिस तेजी से राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव कड़ाके की सर्दी में भी सियासी आग लगाने वाले होंगे। राजस्थान के इन बदलते राजनीतिक समीकरणों में राहुल गांधी के द्वारा पिछले दिनों सचिन पायलट के धैर्य की तारीफ करना कितना संकेत है? साथ ही यह भी समझना है कि एक दिन पहले राहुल गांधी के द्वारा राजस्थान सरकार की मुफ्त दवा योजना की तारीफ कर सचिन पायलट, अशोक गहलोत, राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल की फोटो पोस्ट करना भी राजस्थान कांग्रेस के नेताओं के लिये बहुत बड़ा और साफ संदेश है कि आने वाले ​चुनाव में पार्टी उसी एकजुटता से चुनाव लड़ेगी, जैसे 2018 में लड़ा था।
इस पोस्ट में छिपा हुआ संदेश यह भी है कि सचिन पायलट को पार्टी किसी मुख्य भूमिका में लाने का मन बना चुकी है। क्योंकि पिछले दिनों महाराष्ट्र में बदली राजनीति और देश में कई नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने को भी कांग्रेस आलाकमान ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था। इसलिये राजस्थान में सचिन पायलट को पार्टी छोड़ने को मजबूर नहीं करके उनको बड़ी जिम्मेदारी दी जायेगी, ताकि पार्टी एकजुट रहे और सत्ता रिपीट कराने के पायलट के बयान को मूर्तरूप दिया जा सके। राजस्थान में वैसे तो मुख्यत: कांग्रेस और भाजपा के रूप में दो ही मुख्य दल हैं, लेकिन हनुमान बेनीवाल की आरएलपी भी टक्कर में आती जा रही है, तो कांग्रेस में ही दो दल बन गये हैं, जो आपस में टकराने को तैयार हैं। भले ही कांग्रेस आलाकमान सामान्य तौर पर ऐसा कहे कि कांग्रेस में अब किसी तरह की फूट नहीं है, लेकिन छोटी छोटी बातों से पता चलता है कि पार्टी में अंदरखाने भयंकर शीतयुद्ध चल रहा है। सचिन पायलट कैंप के नेताओं को अशोक गहलोत खेमा फूटी आंख नहीं सुहाता है, यह बात तो जग जाहिर हो ही चुकी है, किंतु अब चुनाव का समय नजदीक आने के साथ ही यह लड़ाई खुलेआम शुरू हो गई है।
एक दिन पहले ही अशोक गहलोत के खास दूदू से निर्दलीय विधायक बाबूलाल नागर सिविल लाइंस स्थित सचिन पायलट के बंग्ले पर मिलने गये थे। उसके बाद सोशल मीडिया पर कांग्रेस में जो वार और प्रहार चले, उससे साफ हो गया है कि पायलट कैंप के नेता गहलोत खेमे को इस बार बर्दास्त करने वाले नहीं हैं। जैसे ही इस बात का पता चला कि बाबूलाल नागर सचिन पायलट से मिलने पहुंचे हैं, वैसे ही कांग्रेस की राजनीति में हलचल पैदा हो गई। यह बात तो सही है कि बाबूलाल नागर किसी भी सूरत में अशोक गहलोत से पूछे बिना यह कदम नहीं उठा सकते, किंतु सवाल यह उठता है कि आखिर गहलोत ने नागर को पायलट से मिलने क्यों भेजा होगा?
जैसे जैसे बात सोशल मीडिया से कार्यकर्ताओं तक पहुंची, तो पायलट कैंप आग बबूला हो गया। सबसे अधिक गुस्सा आया दूदू विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले रितेश बैरख को, जो बाबूलाल नागर के सामने चुनाव हार गये थे। जिस सख्त लहजे में रितेश बैरवा ने सचिन पायलट को सोशल मीडिया पर पत्र लिखकर स्पष्टीकरण जारी करने को कहा है, उससे साफ है कि उनके मन में बाबूलाल नागर के लिये एक जरा भी इज्जत नहीं बची है। रितेश ने लिखा कि, सचिन पायलट साहब मैं रितेश बैरवा कांग्रेस का दूदू विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी व दूदू विधानसभा क्षेत्र का हर आम कार्यकर्ता आपसे यह जानना चाहता है कि इस बाबूलाल नागर को, जो कुछ समय पहले आपके प्रति बहुत ही गलत शब्दों का प्रयोग किया था, जिसके खिलाफ मैं और दूदू विधानसभा का हर कार्यकर्ता ने बाबूलाल नागर के अपशब्द वाले बयान का विरोध व कड़ी निंदा भी करी। सचिन पायलट साहब आज ये बाबूलाल नागर आपसे यहां निवास पर मिलने आया था या आपने इसको बुलाया था? आप इस बाबूलाल नागर को गले लगाकर उन हजारों कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रहे हैं, जिन्होंने हर जगह आपके स्वागत सम्मान व जयकारों में कभी कमी नहीं होने दी। ये बाबूलाल नागर इन हजारों कार्यकर्ताओं का शोषण करता आया है। दूदू में कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा आपके जयकारे लगाने पर उनको गिरफ्तार करवा दिया था। दूदू विधानसभा क्षेत्र का हर कार्यकर्ता आपका समर्थक है, जो यह चाहता है कि आप इस आस्तीन के सांप से दूर रहें तो ही अच्छा है, वरना ये कार्यकर्ता आपको छोड़कर चला जायेगा।
नागर को लेकर जो गुस्सा रितेश बैरवा ने जाहिर किया है, उसी से साफ है कि पायलट समर्थक कोई भी नेता अब अशोक गहलोत कैंप के किसी भी नेता को माफ करने के मूड में नहीं है। इससे पहले चाकसू में वैदप्रकाश सोलंकी द्वारा आयोजित जनसभा में निवाई से कांग्रेस विधायक प्रशांत बैरवा के शामिल होने पर भी जोरदार विरोध हुआ था। माना जाता है कि सचिन पायलट समर्थक किसी भी सूरत में उन लोगों को पायलट के करीब नहीं आने देना चाहते हैं, जिन्होंने टिकट तो अध्यक्ष रहते हुये सचिन पायलट से लिये और जीतने के बाद अशोक गहलोत खेमे में चले गये। प्रदेश में इस वक्त कम से कम 50 विधायक ऐसे बताये जाते हैं, जिनको ना केवल टिकट भी सचिन पायलट ने दिया, बल्कि उनकी जीत भी पायलट के कारण हुई। ऐसे विधायक बगावत के समय पायलट का साथ छोड़कर अशोक गहलोत के पास होटलों में चले गये थे।
आज 13 निर्दलीय विधायक हैं, जहां पर सचिन पायलट ने टिकट दिये थे, लेकिन वो कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी हार गये और जीते हुये निर्दलीय विधायक अशोक गहलोत के खास हो गये। इसलिये कांग्रेस के कार्यकर्ता उनको कतई पसंद नहीं करते हैं, यही कारण है कि अशोक गहलोत द्वारा जब उनको इज्जत दी जाती है, तो कांग्रेस में बवाल उठ जाता है। बाबूलाल नागर भी निर्दलीय विधायक हैं, जो एक समय अशोक गहलोत को खुद का भगवान तक कह चुके हैं। करीब डेढ़ साल पहले बाबूलाल नागर ने सचिन पायलट को लेकर एक विवादित बयान जारी किया था, उसके बाद रितेश बैरवा और उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर नागर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
असल बात तो यह है कि कांग्रेस के वर्तमान 101 विधायकों में से कम से कम 50 विधायक ऐसे हैं, जिनको अगले चुनाव में जाने के लिये सचिन पायलट की जरुरत पड़ेगी, अन्यथा ये लोग चुनाव हार जायेंगे। इनमें बाबूलाल नागर भी एक हैं। नागर का क्षेत्र अजमेर लोकसभा क्षेत्र में आता है, जहां से सचिन पायलट सांसद रह चुके हैं,​ जहां पर पायलट समर्थकों की बड़ी संख्या बताई जाती है। इनको इस बात का पक्का पता है कि वर्तमान हालात में ना तो अशोक गहलोत के दम पर सत्ता रिपीट हो सकती और ना ही राज्य सरकार का ऐसा कोई कार्य है, जिसके दम पर खुद वोट मांगकर चुनाव जीत सकें। इसलिये जैसे जैसे चुनाव का माहौल बनने लगा है, ये लोग वैसे वैसे सचिन पायलट से मेल—जोल बढ़ा रहे हैं। यही मेल—जोल सचिन पायलट के समर्थकों को पसंद नहीं आ रहा है।
सियासी हवा के बदलते रुख को भांपते हुये ना केवल कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को लेकर गंभीर दिखाई दे रहा है, बल्कि कांग्रेस के विधायकों ने इसका अंदाजा लगा लिया है कि आने वाले चुनाव में जीत के लिये सचिन पायलट का होना जीत की गांरटी होगा, अन्यथा भाजपा की हवा के सामने ढेर होते समय नहीं लगेगा। पिछले दिनों प्रशांत बैरवा खुलकर सचिन पायलट के पक्ष में आ चुके हैं, तो पायलट ने भी उनका गुनाह माफ कर उनके घर जाकर कार्यकर्ताओं को आने वाले वक्त का सकारात्मक संदेश दिया है। असल में जहां पर पायलट ने टिकट देकर नये कार्यकर्ताओं को मौका दिया था, वहां पर यदि पार्टी ने दुबारा उनको टिकट नहीं दिया तो बड़ी बगावत होना तय है, इसलिय ये नेता टिकट के जुगाड़ और जीत की गारंटी के लिये सचिन पायलट का सहारा ढूंढ़ने लगे हैं।

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