श्रीलंका—पाकिस्तान को बर्बादी से बचायेगा भारत

Ram Gopal Jat
श्रीलंका की हालत किसी से छिपी नहीं है, वहां जो कुछ हो रहा है, वह मीडिया और सोशल मीडिया के द्वारा पूरा विश्व देख रहा है। और ऐसे में मोदी सरकार के आलोचक भविष्य में भारत के भी यही हालात होने का दावा कर रहे हैं। कांग्रेस ने तो बकायदा एक आंकड़ा जारी कर कहा है कि साल 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तब केवल 57 लाख करोड़ का कर्ज था, लेकिन वर्तमान में 139 लाख करोड़ रुपये का विदेशी कर्जा है। हालांकि, कांग्रेस ने स्पष्ट नहीं किया कि यह कर्जा राज्यों का भी है, ना कि केवल केंद्र सरकार का। दूसरी बात कांग्रेस ने यह भी नहीं बताया कि 2014 से अब तक कितना विदेश मुद्रा भंडार बढ़ा है। मोदी ने जब सत्ता संभाली थी, तब देश का विदेशी मुद्रा भंडार 409 अरब डॉलर था। जबकि आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 537 अरब डॉलर है।
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों ही बर्बादी की तरफ बढ़ रहे हैं। दोनों देशों में यह समानता है कि इन्हें कर्ज देकर आदत बिगाड़ने वाला कोई और नहीं, बल्कि चीन है। पाकिस्तान में डीजल-पेट्रोल की लगातार बढ़ती कीमतें, किराना की दुकानों के बाहर लंबी कतारें, सरकार के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन उस विनाशकारी अशांति की तरफ इशारा कर रहे हैं, जिसके पाकिस्तान श्रीलंका की तरह प्रभावित होने वाला है। श्रीलंका तो पहले से ही अराजकता में डूबा हुआ है। पिछले चार महीने से प्रदर्शन कर रहे लोगों ने राष्ट्रपति भवन पर ही कब्जा कर लिया। उन्होंने प्रधानमंत्री के निजी निवास में भी आग लगा दी। राजधानी कोलंबों में राजनेताओं और धनवान कारोबारियों को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं, जब पाकिस्तान में भी ऐसे हालात देखने को मिलें। पाकिस्तान भी कर्ज के जाल में बुरी तरह से उलझा हुआ है। हालात इतने खराब हैं कि उसे पुराने कर्जों को चुकाने के लिए नया कर्ज लेना पड़ रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कर्ज देने वाले देशों की यात्रा कर किश्तों को चुकाने के लिए और अधिक समय सीमा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। इस बीच विदेश नीति पर पैनी नजर रखने वाले पत्रकारों और राजनेताओं ने सुझाव दिया है कि भारत को अपने दोनों पड़ोसी देशों पाकिस्तान और श्रीलंका की मदद के लिए आगे आना चाहिए।
पाकिस्तान ने अपने विदेशी मुद्रा संकट से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 6 बिलियन डॉलर के कर्ज के लिए बातचीत कर रहा है। हालांकि, आईएमएफ ने कर्ज देने के लिए पाकिस्तान के सामने कुछ शर्तें रखी हैं, जिनमें ईंधन और बिजली की दरें बढ़ाना और भ्रष्टाचार को खत्म करने की गारंटी के लिए एक तंत्र स्थापित करना शामिल है। पाकिस्तानी सरकार ने इनमें से पहली शर्त का तो तुरंत पालन कर दिया, लेकिन दूसरे को लेकर असमंजस में है। क्योंकि भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ही घिरे हुये हैं।
आरोप लगते हैं कि भ्रष्टाचार तो पाकिस्तान के राजनेताओं के खून में मिला हुआ है। चंद महीने पहले ही पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश की बर्बादी के लिए पहले के भ्रष्ट नेताओं को जिम्मेदार ठहराया था। इमरान का आरोप है कि शरीफ खानदान और भुट्टो खानदान ने पाकिस्तान को जमकर लूटा है। इस पर जवाब देते हुए पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री राणा सनाउल्लाह ने कहा कि इमरान खान दौर में एक अक्षम भीड़ सरकार चलाती थी। खुद मरियम नवाज आरोप लगा चुकी हैं कि इमरान खान ब्लैकमेलिंग रैकेट चलाते थे।
पाकिस्तान और श्रीलंका के इस हालात का कारण चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर अत्याधिक निर्भरता है। इस परियोजना में शामिल होते ही ये दोनों देश चीन के कर्ज की जाल में बुरी तरह से फंस गए। चीन ने 2015 में पाकिस्तान को विवादास्पद बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने की पेशकश की थी। तब पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकार थी। अरबों डॉलर के लालच में पाकिस्तान अपनी मर्जी से पीओके में भारतीय क्षेत्र के बड़े हिस्से को हथियाने और हिंद महासागर तक पहुंच के लिए ग्वादर बंदरगाह तक ऑल वेदर सड़क बनाने के चीन के रणनीतिक गेमप्लान में एक मोहरा बन गया। जबकि, भ्रष्टाचार और पाकिस्तान के दिवालिएपन को देखते हुए चीन ने सीपीईसी में निवेश को सीमित कर दिया है, जिसके बाद से ही पाकिस्तान में हालात खराब होते चले जा रहे हैं। यह पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान गहरे आर्थिक संकट में फंस गया है। एक बड़ा संकट उस समय आया था, जब अमेरिका ने मई 1998 में अपने परमाणु परीक्षणों के मद्देनजर उस पर प्रतिबंध लगा दिए थे। तब भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डंवाडोल हो गई थी। भले ही पाकिस्तान इस मुश्किल से खुद को बाहर निकालने में कामयाब रहा, लेकिन यह 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की चपेट में आ गया। 2009 में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो गया था। तब पाकिस्तान का कोई भी मित्र देश मदद के लिए आगे नहीं आया। दावा किया जाता है कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तब पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक में 500 मिलियन डॉलर जमा करने की पेशकश की थी।
पिछले अनुभवों और भारत-पाकिस्तान संबंधों में ठहराव को देखते हुए भारत को अपने कदमों पर सावधानी से विचार करना होगा। अगर भारत इस क्षेत्र में सामने आ रहे आर्थिक संकट का जवाब देना चाहता है तो उसे अपने पड़ोसियों की मदद करनी होगी। एक दिवालिया पड़ोसी न केवल राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता को आमंत्रित करेगा, बल्कि पाकिस्तान को चीनी कर्ज के जाल में और भी धकेल देगा। बीजिंग पहले से ही ब्रिक्स सदस्यता को व्यापक बनाने की योजना तैयार कर रहा है, जिसमें शामिल होने लिए पाकिस्तान, ईरान और अर्जेंटीना बेचैन हैं। चीन ब्रिक्स के अध्यक्ष के रूप में दक्षिण एशिया के उन देशों को शामिल करने की कोशिश कर सकता है, जो न्यू डेवलपमेंट बैंक के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था में पैसे को लगा चुके हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए मौजूदा प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर सकती है। छोटी दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाएं चीन के कर्ज के जाल के दबाव में झुक सकती हैं। ऐसे में उभरती हुई स्थिति भारत के लिए भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र में एक नया अध्याय लिखने के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों है।
अब यह भारत सरकार के उपर है कि पाकिस्तान जैसे अविश्वसनीय देश को सहायता देकर बाहर निकालता है, या फिर उसको चीन के आर्थिक गुलामी के जाल में फंसने देता है। वैसे तो भारत

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