भारत की रणनीति में बुरी तरह फंस चुके हैं चीन—पाकिस्तान

Ram Gopal Jat
विदेश मामलों में सटीक रणनीति का सबसे बड़ा अहम रोल होता है। जिस देश की ​विदेश नीति कमजोर होती है, वह बर्बाद भी हो जाता है। भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका और पाकिस्तान इसके सबसे बड़े सबूत हैं। पाकिस्तान कभी अमेरिका का पिटठू था, फिर अमेरिका ने उसको दुत्कार दिया तो आज वह चीन का आर्थिक गुलाम बनने की हालत में पहुंच गया है। भले ही भारत और पाकिस्तान 75 साल पहले एक साथ आजाद हुये हों, लेकिन दोनों की आजादी में बहुत बड़ा फर्क है, जिसको आज दुनिया जान रही है और मान भी रही है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान कई बार कह चुके हैं कि पाकिस्तान को भारत की तरह आजाद विदेश नीति पर चलना होगा, नहीं तो बड़े देश उसको गुलाम बना लेंगे। इमरान खान का इशारा अमेरिका की तरफ है, लेकिन इमरान खान खुद भी तो चीन के पिटठू हैं। इसलिये पाकिस्तान कभी भारत की राह पर नहीं चल सकता।
भारत आजादी से लेकर आज तक, हमेशा गुट निरपेक्ष नीति का पालन करता रहा है। यही कारण है कि अमेरिका व यूएसएसआर के बीच चले लंबे शीतयुद्ध के बाद 1991 के समय सोवियत विघटन से लेकर वर्तमान में रूस के यूक्रेन पर हमले तक अमेरिका जैसी महाशक्ति के प्रयास के बाद भी भारत ने रूस का खुलकर विरोध कर अपनी मित्रता खराब नहीं की। इसी बात से अमेरिका अधिक चिंतित है, तो दूसरी तरफ चीन भी रूस से अपनी मित्रता मजबूत कर भारत को दबाव में रखना चाहता है। भारत इस बात को जानता है कि चीन की विस्तारवादी नीति बेहद खतरनाक है। इसलिये भारत ने रणनीति के तहत चीन के साथ प्लानिंग करके केलक्युलेटेड तरीके से संबंध बनाये हैं।
भारत भले ही चीन से सीधा नहीं टकराना चाहता हो, लेकिन बीच बीच में चीन को इस बात का अहसास भी करवाया जाता है कि चीन खुद को सर्वेसर्वा नहीं समझे। इसी कड़ी में भारत इस बार G-20 शिखर सम्मेलन को लद्दाख में आयोजित करने की तैयारी कर रहा है। भारत के इस प्रस्ताव को जहां विश्व समुदाय प्रधानमंत्री मोदी का मास्टरस्ट्रोक बता रहा है, तो वैश्विक मीडिया की खबरों के अनुसार मोदी के इस प्रस्ताव से पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान को मिर्ची लग गई है। भारत सरकार ने इस बार G—20 सम्मेलन को लद्दाख में आयोजित करने का मन बनाया है। भारत सरकार ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी है। मोदी सरकार के इस फैसले को लेकर चीन बैचेन हो गया है। इससे पहले मई 2020 से लगातार चीन और भारत लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर एक दूसरे के आमने सामने हैं।
ऐसे में भारत सरकार का ये फैसला चीन को भयंकर पीड़ा दे रहा है। चीन ने भारत सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध कर दिया है और कहा है कि कोई भी पक्ष एकतरफा यथास्थिति को नहीं बदले। कहा जा रहा हे कि इससे पहले भारत सरकार G—20 सम्मेलन को जम्मू कश्मीर में आयोजित करने जा रही थी, लेकिन रणनीतिक तरीके से इसका स्थान बदल दिया गया है। कश्मीर के प्रस्ताव की खबर आने पर भी चीन और पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था।
भारत के विदेश मंत्री डॉ सुब्रम्ण्यम जयशंकर G20 विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने एक दिन पहले ही बाली गये थे, जहां पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की मुलाकात चीनी विदेश मंत्री वांग से हुई। सामने आया है कि उन्होंने सीमा विवाद का मामला उठाया। भारत के विदेश मंत्री से मांग करते हुये चीन के विदेश मंत्री ने चीन सीमा से पूरी तरह से अपनी फौज वापस बुलाने की मांग दोहराई। भारत ने लद्दाख या कश्मीर में जी20 सम्मेलन आयोजित कर एक तीर से दो शिकार करने का प्लान बना लिया है। असल में चीन भी G20 का अहम हिस्सा है, लिहाज़ा भारतीय प्रस्ताव के विरोध के बावजूद भी चीन G20 बैठक का बहिष्कार भी नहीं कर सकता है। इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिये चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का लद्दाख या जम्मू कश्मीर पहुंचना उनकी मजबूरी हो जाएगी। भारत को G20 की अध्यक्षता 1 दिसंबर से मिलने वाली है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने और लद्दाख को अलग यूनियन टेरिटरी बनाए जाने के बाद ये पहला बड़ा सम्मेलन होगा और इसे चीन को भारत के सबक के तौर पर देखा जा रहा है।
चीन इस सम्मेलन में पहुंचेगा तो लद्दाख और कश्मीर को भारत की मान्यता पुख्ता हो जायेगी, जिसके कई हिस्सों पर चीन और पाकिस्तान अधिकार बताते आये हैं। यदि इस सम्मेलन में चीन शामिल नहीं होता है, तो फिर यह सम्मेलन होने अर्थ ही खत्म हो जायेगा, जिसके लिये चीन कतई तैयार नहीं है। इसलिये भारत के लिये यह सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण होने वाला है, तो चीन की नींद उड़ी हुई, जबकि पाकिस्तान बुरी तरह से बोखला गया है। भारत सरकार की इस रणनीति का चीन को अंदाजा नहीं था, इसलिये वह पाकिस्तान को भी इस सम्मेलन में बुलाना चाहता था, लेकिन भारत के मना करने के कारण उसके मंसूबे धरे के धरे रह गये। चीन को पता है कि भारत इस तरह के वैश्विक मंचों के जरिये अपनी ताकत बढ़ा रहा है, तो साथ ही विश्व को यह संदेश भी दे रहा है कि ना तो वो किसी का पिछलग्गू है और ना ही डरने वाला है।
इससे पहले रूस् के खिलाफ बयान दिलाने के लिये दबाव बनाने में जुटा अमेरिका भी भारत को चीन के नाम पर डराने का प्रयास कर चुका है। अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह ने भारत में आकर धमकी दी थी कि यदि भविष्य में चीन ने भारत के खिलाफ सीमा विवाद किया तो रूस उसके साथ खड़ा नहीं होगा। असल में अमेरिका का कहने का मतलब यह है कि जिस रूस के साथ भारत आज परोक्ष रुप से खड़ा है, वही रूस, भारत और चीन के बीच होने वाले विवाद के समय भारत के बजाये, चीन का साथ देगा। भारत ने अमेरिका को साफ शब्दों में कहा कि ना तो उसको चीन का डर है, और ना ही उसको अमेरिका ने पहले कभी सहायता दी है।
अमेरिका को कभी भारत से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी, क्योंकि उसे लगता है कि चीन व भारत के बीच चल रहे सीमा विवाद के कारण वह चीन पर दबाव बनाने के लिये अमेरिका के साथ खड़ा होगा, किंतु भारत ने किसी देश के साथ चलने के बजाये निरगुट रहने का निर्णय लिया है। अब चीन को जिस तरह से भारत ने जी20 सम्मेलन के माध्यम से घेरने का काम किया है, उसका अंदाजा ना तो कभी अमेरिका को रहा है और ना ही इसका अहसास कभी चीन को रहा होगा। इसी नीति के कारण भारत इस वक्त दुनिया के लिये बहुत बड़ा रणनीतिक देश बन गया है। आने वाले समय में भारत की विदेश नीति के कारण कई देश अमेरिका व चीन का पिछलग्गू की राह छोड़कर भारत की तरह स्वतंत्र विदेश नीति अपना सकते हैं।
चीन भारत के खिलाफ वह हर हथियार आजमा रहा है, जो उसको फायदा और भारत को नुकसान पहुंचा सकता है। चीन केवल भारत की सीमाओं पर कब्जा करने की कोशिश नहीं कर रहा, बल्कि भारत को राजनीतिक और आर्थिक नुकसान पहुंचाने की कोशिशें भी लिप्त है। चीन की प्रमुख मोबाइल निर्माता कंपनी ने भारत का अवैध रुप से 62 हजार करोड़ रुपया चीन भेज दिया है। इसका खुलासा होने के बाद से चीन बैकफुट पर आ गया है। भारत की केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने गुरुवार को कहा कि चीनी स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरर कंपनी वीवो की भारतीय इकाई ने यहां पर टैक्स देनदारी से बचने के लिए अपने कुल कारोबार का लगभग 50 फीसदी हिस्सा, यानी 62,476 करोड़ रुपये विदेशों में भेज दिए हैं।
ईडी ने कहा कि वीवो इंडिया ने भारत में टैक्स देने से बचाने के लिए अपने रेवेन्यू का बड़ा हिस्सा चीन एवं कुछ अन्य देशों में भेज दिया। विदेशों में भेजी गई राशि 62,476 करोड़ रुपये है, जो उसके कारोबार का लगभग आधा हिस्सा है। यानी चीन की कंपनी कैसे भी भारत से रकम चोरी कर उसका दूसरे देशों में फायदा उठाना चाहती है। ईडी ने कहा कि वीवो मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और इसकी 23 एसोसिएटेड कंपनियों के खिलाफ बुधवार को चलाए गए सघन तलाशी अभियान के बाद 119 बैंक अकाउंट्स में जमा 465 करोड़ रुपये की राशि जब्त की गई हैै इसके अलावा 73 लाख रुपये की नकदी और दो किलोग्राम सोने की छड़ें भी जब्त की गई हैं। वीवो के पूर्व निदेशक बिन लाऊ ने भारत में कई कंपनियां बनाने के बाद वर्ष 2018 में देश छोड़ दिया था। अब इन कंपनियों के वित्तीय ब्योरों पर जांच एजेंसी की नजरें हैं। जांच एजेंसी ने यह आरोप भी लगाया है कि वीवो इंडिया के कर्मचारियों ने उसकी तलाशी अभियान के दौरान सहयोग नहीं किया और भागने एवं डिजिटल उपकरणों को छिपाने की कोशिश भी की। हालांकि, एजेंसी की तलाशी टीमें इन डिजिटल सूचनाओं को हासिल करने में सफल रहीं।
असल बात तो यह है कि चीन की कंपनियां इस तरह की गतिविधियों में लिप्त पाई जाती रही हैं। भारत में नरम कानूनों का फायदा उठाने के लिये चीन की कई कंपनियां इस तरह के कृत्य करने के लिये कुख्यात रही हैं। चीन में तानाशाही शासन है, इसलिये वहां की कोई भी कंपनी सरकार बंधन से मुक्त नहीं हैं। वीवो मोबाइल के द्वारा किये गये इस फ्रॉड को भी कहीं ना कहीं चीन की सरकार का संरक्षण मिला हुआ है। अन्यथा इनती बड़ी कंपनी भारत में इस तरह का कृत्य करके भाग नहीं सकती।
देखने वाली बात यह है कि क्या चीन की कंपनियों को भारत में प्रवेश के समय कानूनों में बदलाव किया जायेगा। वैसे तो पिछले साल ही भारत सरकार ने पड़ोसी देशों के भारत में निवेश से पहले उनकी सख्त स्क्रूटनी करने का आदेश जारी किया था। जिसके बाद से चीन की कुछ कंपनियों के भारत में निवेश के रास्ते बंद हो गये हैं। चीनी कंपनियों पर भारत की सख्त निगरानी के चलते ही पिछले दिनों ही चीन की ग्रेट वॉल मोटर वाहन निर्माता कंपनी ने भारत में निवेश का प्रस्ताव रद्द करना पड़ा है।

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