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भारत के ये 5 राज्य कंगाली के द्वार पर

Ram Gopal Jat
भारत के दक्षिण में स्थित खूबसूरत तटीय देश श्रीलंका की आर्थिक स्थिति किसी से छिपी नहीं है। वित्तीय स्थिति खराब होने के कारण वहां के लोग पेट्रोल से लेकर खाने की चीजों तक के लिए महोताज हैं। प्रदर्शन कर रहे लोगों को ना पुलिस का डर है और ना ही फौज डरा पा रही है। ऐसे में हजारों लोग राष्ट्रपति भवन में घुस गये तो प्रधानमंत्री के घर को आग लगा दी। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने ​इस्तीफा दे दिया है, जबकि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने 13 तारीख को इस्तीफा देने की घोषणा की है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे सरकार निवास छोड़कर भाग गये हैं, वह इस वक्त कहां है, इस बात की जानकारी किसी को नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि वह देश छोड़कर भाग गये हैं। श्रीलंका की इस हालत के पीछे का कारण सरकार के द्वारा अपनी आय और खर्चों में संतुलन नहीं रखना है, जिसके कारण आज उनके देश पर करीब 6 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हो गया है। सरकार पिछले 7—8 साल से चुनाव जीतने के लिये करों में कटौती कर दी, जबकि मुफ्त योजनाओं के सहारे वोट हासिल करती रही।
अब श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया है, जिसके कारण आयात बंद हो गये। उसको आईएमएफ समेत सभी प्रमुख आर्थिक संस्थाओं ने कर्जा देने से इनकार कर दिया है। भारत जैसे देश मदद कर रहे हैं, लेकिन यह मदद नाकाफी साबित हो रही है। श्रीलंका को भारत ने पिछले चार माह में करीब 3 बिलियन डॉलर की मदद की है, लेकिन उसको इस संकट से निकलने के लिये अब भी 6 बिलियन डॉलर की जरुरत है। भारत में भी कई ऐसे राज्य हैं, जिनपर श्रीलंका के बराबर कर्ज है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत के कुछ राज्य ऐसे हैं, जो अधिक कर्ज के बोझ के तले इतने दबे हुए हैं, कि कर्जा चुकाने के लिये भी कर्जा ले रहे हैं। कर्ज के मामले में भारत के सबसे अग्रणी माने जाने वाले राज्य सबसे ऊपर हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार तमिलनाडु पर सबसे अधिक 6.6 लाख करोड़ रुपए का कर्जा है। मतलब श्रीलंका से भी ज्यादा कर्जा है। इसी तरह से दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जिसपर श्रीलंका के बराबर 6 लाख करोड़ रुपए का ऋण है। इस सूची में तीसरे नंबर पर ममता बनर्जी की सत्ता वाला पश्चिम बंगाल है, जिसपर 5.6 लाख करोड़ रुपए लोन बकाया है। इसी तरह से चौथे नंबर पर कांग्रेस शासित राजस्थान है, जिसपर भी 4.7 लाख करोड़ रुपए और पांचवे नंबर पर पंजाब जैसे छोटे से राज्य का स्थान है, जिसपर इस वक्त 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।
हाल ही में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र के बड़े अधिकारियों के बीच हुई बैठक हुई थी। इसमें अधिकारियों ने चुनावों के दौरान कई राज्यों में हुए लोकलुभावने वादों को लेकर चिंता जताई थी। अधिकारियों का कहना था कि ऐसे वादों के कारण राज्य सरकारों के खजानों पर अधिक बोझ पड़ सकता है और देश के कई राज्यों की स्थिति भी श्रीलंका जैसी हो सकती है। आपको याद होगा दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार केवल मुफ्त की घोषणाओं के कारण तीसरी बार बन गई है, जबकि दिल्ली को लोग पढ़े लिखे और समझदार लोगों का शहर मानते हैं।
आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि विभिन्न राज्यों के बजट अनुमानों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में सभी राज्यों का कर्ज का कुल बोझ 15 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। राज्यों का औसत कर्ज उनकी जीडीपी के 31.3 फीसदी पर पहुंच गया है, यानी अगर राजस्थान की जीडीपी करीब 12 लाख करोड़ रुपये है, जबकि कर्जा 4.7 लाख करोड़ है। इसका मतलब यह है कि इस राज्य पर कर्जा जीडीपी का करीब 40 फीसदी कर्जा है। इसी तरह सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा 4.2 फीसदी के साथ 17 वर्ष के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2021-22 में कर्ज और जीएसडीपी, यानी ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट का अनुपात सबसे ज्यादा पंजाब का 53.3 फीसदी रहा।
इसका मतलब यह है कि पंजाब का जितना जीडीपी है, उसका करीब 53.3 फीसदी हिस्सा कर्ज है। इसी तरह राजस्थान का अनुपात 39.8 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल का 38.8 फीसदी, केरल का 38.3 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 37.6 फीसदी है। इन सभी राज्यों को राजस्व घाटे का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्यों पर भी कर्ज का बोझ कम नहीं है। गुजरात का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी तो महाराष्ट्र का 20 फीसदी है।
इसका तात्पर्य यह है कि इन राज्यों में निवेश की संभावना कम होती जा रही है, जबकि इनको बाजार से ऋण मिलने में भी काफी दिक्कतें आ रही हैं। जब किसी राज्य या देश का कर्जा उसके जीडीपी के बराबार या अधिक हो जाता है, तब उसको कर्जा मिलना बंद हो जाता है और ऐसी स्थिति में वह अपने दैनिक खर्च चलाने लायक नहीं रहता है। नतीजन वह खुद को दिवालिया घोषित कर देता है, जिससे उसको कर्ज वापस नहीं चुकाना पड़ता है, लेकिन इसी कंगाली के कारण उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हो जाती है।
दिवालिया होने पर देश के साथ सबसे बड़ा नुकसान ये होता है कि बाजार में उसकी साख खत्म हो जाती है। उसके देश में विकास के नाम पर कोई भी देश पैसे लगाने से डरता है। यहां तक कि इंटरनेशनल बैंक भी उधार देने से पहले कई तरह की छानबीन करते हैं। पैसे लौटाने की मियाद भी घटा दी जाती है, क्योंकि डर रहता है कि एक बार कंगाली में पहुंच चुका देश कहीं फिर पैसे खत्म न कर दे। भारत के इन राज्या के पास आय के जितने स्रोत हैं, उससे अधिक कर्जा ले रहे हैं। नतीजा यह हो रहा है कि कर्जा चुकाने के लिये भी कर्जा लेना पड़ रहा है। कई बार राज्यों की सरकारें आने वाली सरकारों पर इतना कर्जा छोड़ जाती हैं, कि नई सरकार विकास नहीं कर पाती है और इसी कारण से अगले चुनाव में उस दल की सरकार सत्ता से बाहर हो जाती है, जबकि कर्जा करने वाला ही फिर से सत्ता में आ जाता है। इसलिये सरकारों की नीयत पर बहुत कुछ निर्भर करता है।
इस वक्त पंजाब पर जीडीपी के मुकाबले सबसे अधिक कर्जा है, लेकिन फिर भी आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार द्वारा मु्फ्त बिजली की घोषणा करके अपने राज्य को कर्जजाल में फंसाने का काम किया जा रहा है। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण आय के स्रोत अधिक हैं और खर्चे कम हैं, जिसके कारण यह राज्य फ्री बिजली और फ्री पानी देकर भी कर्जे में नहीं है। इसी का फायदा आम आदमी पार्टी को मिल रहा है। लेकिन यह ट्रेंड दूसरे राज्यों में नहीं चल सकता है। जिसके कारण सरकार गठन के तुरंत बाद भगवंत मान से प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर प्रतिवर्ष 50 हजार करोड़ रुपये का अनुदान देने की मांग की थी, ताकि सरकार चलाई जा सके।
ऐसे ही श्रीलंका चीन के कर्जजाल में ऐसा फंसा कि उसे खुद को कंगाल घोषित करना पड़ा। असल में साल 2017 में श्रीलंका ने अपना हंबनटोटा पोर्ट चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया था, जिससे उसको मोटा पैसा मिला। उसको लगा कि दूसरे पोर्ट लेने के लिये भारत जैसे देश प्रयास करेंगे और उसके पास खूब पैसा होगा। इसलिये राजपक्षे बंदूओं की सरकार ने लोगों को मुफ्त योजनाओं का लालच दे दिया। लेकिन श्रीलंका के पास दूसरा कोई देश पोर्ट खरीदने नहीं पहुंचा। नतीजा यह हुआ कि जो फ्री की योजनायें चल रही थीं, जनता के गुस्से के डर से सरकार उनको बंद नहीं कर सकी। और आज देश आर्थिक रुप से लगभग खत्म हो चुका है।

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