मोदी चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग को क्यों नहीं दे रहे भाव?

Ram Gopal Jat
आपने देखा होगा कि अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के तमाम देशों के साथ अच्छे संबध बनाने के लिये भरकस प्रयास किये थे। जहां पर आजतक भारत का कोई प्रधानमंत्री नहीं गया था, उन देशों की भी मोदी ने यात्रा कर संबंधों को नई ताजगी देनी की कोशिश की। यहां त​क कि भारत के दुश्मन नंबर बने हुये चीन—पाकिस्तान से भी अपनी तरफ से आगे बढ़कर संबंध सुधारने का प्रयास किया, किंतु पाकिस्तान जहां अपनी छोटी हरकतों से बाज नहीं आया तो उसको सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक सामना करना पड़ा, जिसके बाद वी भारत की तरफ आंख उठाने की हिमाकत नहीं कर पा रहा है, तो चीन के राष्ट्रपति को भारत बुलाकर झूला झुलाने से लेकर सभी तरह की वो कोशिशें कीं, जिनसे दोनों देशों के रिलेश्न मजबूत होते, किंतु अपनी धोखोबाजी वाली सोच के चलते चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपते हुये पहले डोकलाम विवाद दिया तो उसके बाद लद्दाख में पौंगोंग झील के पास जमीन दबाने का विफल कुकर्त्य करने की कोशिश भी की।
मोदी की रणनीति को समझने वाले कहते हैं कि वह पहले अपनी ओर से संबंध सुधारने का प्रयास करते हैं और जब सामने वाला अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है, तो उसको अपने तरीके से जवाब देते हैं। यही काम मोदी शुरू से लेकर आजतक करते आये हैं। चाहे किसी राजनेता से संबंधों का मामला हो, या फिर पड़ोसी देशों से रिश्ते सुधारने का प्रयास हो। हर बार मोदी अपनी ओर से पहल करते हैं, मतलब सामने वाले के इतिहास को जानते हुये भी एक अवसर जरुर देते हैं। पहले पाकिस्तान में नवाज शरीफ के साथ संबंध सुधारने का प्रयास किया, जब नवाज की मां का जन्मदिन था, तब मोदी अचानक पाकिस्तान पहुंच गये, लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने मोदी की इस शराफत को कोई महत्व नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तानी आतंकियों ने पठानकोट पर हमला किया तो मोदी की सेना ने 18 सितंबर 2016 को पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकी कैंप तबाह किये।
इसके बाद उन्होंने 2017 में नये प्रधानमंत्री बने इमरान खान को भी साथ चलकर विकास के पथ पर अग्रसर होने का न्योता दिया, लेकिन वह भी अपनी हरकत से बाज नहीं आये। 14 फरवरी 2019 को पाकिस्तानी आतंकियों ने पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला किया, जिसमें भारत के 46 से ज्यादा जवान शहीद हो गये। भारत ने इसका बदला लेते हुये 12 दिन बाद, 26 फरवरी को पीओके के बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर आतंकी कैंप तबाह किये, जिसमें सैकड़ों आतंकी मारे गये। इन दो स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान कभी भारत के मुकाबला करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। इसके साथ ही मोदी ने पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद भी बंद करवा दी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी की अपील पर पाकिस्तान की सहायत एकदम बंद कर दी, तो वह चीन के पास चला गया। आज पाकिस्तान के पास ना खाने को कुछ है और ना पीने को चाय के पैसे हैं। कहा जाता है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का पाकिस्तान को ठिकाने लाने का लक्ष्य था, जो पूरा कर लिया गया।
दूसरे कार्यकाल में चीन को ठिकाने लाना था, क्योंकि मोदी की पहल के बाद भी चीन ने सीमा विवाद सुलझाने के बजाये उलझाने का काम किया। मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर राज्य का विघटन कर लद्दाख को अलग से केंद्र शासित प्रदेश बना दिया, जहां पर केंद्र की सत्ता चलती है। धारा 370 को हटाने व लद्दाख को कश्मीर से अलग करने के पीछे मोदी सरकार के एक तीर से चार शिकार करने थे,​ जिसमें वह कामयाब रही। चीन को इससे बेहद तकलीफ हुई। जिसके कारण वह छटपटाने लगा और लद्दाख में पैंगोंग झील के पास जमीन दबाने के के लिये सीमा विवाद खड़ा कर दिया। लेकिन भारतीय सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देते हुये चीनी सैनिकों को पीछे धकेल दिया। यहां पर आज भी चीन अपनी खोई जमीन हासिल करने का प्रयास कर रहा है।
यह तो भारत की चीन के साथ प्रत्यक्ष लड़ाई है, जबकि भारत ने दुनिया में चीन को एक्सपोज करने का भी काम किया है। भारत ने अमेरिका के जरिये चीन को सीमित करने का भी खेल किया है। आज हालात यह हैं कि चीन चाहता है कि सीमा विवाद से तंग आकर भारत आगे बढ़कर उसपर हमला कर दे, ताकि वह आसानी से अमेरिका व भारत के रिश्ते को कमजोर कर सके, तो भारत ने भी ठान रखा है कि चीन यदि ताइवान पर हमला कर दे तो इसके बहाने पीओके व गिलगिट—बाल्टिस्तान को पाकिस्तान से वापस लिया जा सके, जहां से चीन की सीपेक परियोजना मूर्त रूप ले रही है।
इस वक्त अमेरिका व चीन के बीच ताइवान को लेकर तनाव चल रहा है। इस बीच रूस ने अमेरिका को झटका देते हुये अंतरिक्ष स्टेशन से अलग होने का फैसला किया है, जिसको अमेरिका, रूस समेत 18 देश संचालित करते हैं। पृथ्वी से 400 किलोमीटर उंचाई पर स्थित इस अंतरिक्ष स्टेशन में दोनों देशों के 12 लाख करोड़ रुपया इंवेस्ट है, जिसमें हमेशा अमेरिका व रूस के 3—3 अंतरिक्ष यात्री मौजूद रहते हैं। रूस ने करार खत्म् करते हुये 2024 में इस स्टेशन से खुद को अलग करने का निर्णय लिया है। माना जा रहा है कि रूस ने चीन के दबाव में ऐसा किया है। इस समय चीन व अमेरिका के बीच विवाद के दौरान चीन ने रूस को खूब सहायता दी है। इसलिये रूस ने चीन की वन चाइना नीति को पूरी तरह से मंजूरी दे दी है।
चीन की वन चाइना नीति को वैसे तो अमेरिका भी सहमति देता है, लेकिन ताइवान के मामले में दोनों देश आमने—सामने खड़े हैं। क्वाड शिखर सम्मेलन में जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि चीन ने यदि ताइवान पर हमला किया तो वह चीन के खिलाफ आर्मी एक्शन लेगा, तब से चीन झल्लाया हुआ है। इन दिनों अमेरिका की स्पीकर नैन्सी पेलोसी का ताइवान जाने दौरा प्रस्तावित है, जिसको लेकर चीन ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि यदि ऐसा किया गया तो यह आग से खेलने जैसे होगा, और उसके बाद अमेरिका को परिणाम भुगतने को तैयार रहना चाहिये। दो दिन पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच दो घंटे तक वीडियो कॉल के जरिये फोन पर बात हुई है, जिसमें चीन ने अमेरिका को साफ शब्दों में कहा है कि उसने यदि ताइवान मामले में दखल देने का प्रयास किया तो अंजाम बहुत बुरे होंगे।
अब आप चीन—रूस के इस नये गठबंधन को समझिये, जो दशकों से चल रहा है। रूस के द्वारा पांच माह पहले यूक्रेन पर हमला किया गया तो अमेरिका और उसके मित्र देशों ने उसपर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिये। जिसके बाद भारत व चीन ने मिलकर रूस को सहारा दिया। आज रूस की पूरी अर्थव्यवस्था कच्चे तेल पर निर्भर है, जिसके सबसे बड़े खरीददार भारत व चीन ही हैं। भारत ने बकायदा युद्ध के दौरान तेल खरीद की मात्रा 2 फीसदी से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दी है। वैसे रूस से चीन, भारत से भी ज्यादा तेल खरीद रहा है। चीन व रूस पहले ही मित्र राष्ट्र हैं, लेकिन इस युद्ध में जहां अमेरिका के गुट वाले देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाया है तो चीन ने उसकी खुलकर मदद की है,​ जिसके कारण रूस अब चीन का मुरीद हो गया है।
आज अमेरिका को टक्कर देने की स्थिति में चीन ही है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और आबादी के मामले में पहले स्थान पर खड़ा चीन आज अमेरिका को वैश्विक स्तर पर कड़ी चुनौती दे रहा है, जिसके कारण अमेरिका चिंतित है। माना जा रहा है कि एक दशक में चीन हर लिहाज में अमेरिक को पीछे छोड़ देगा। यही कारण है कि अमेरिका किसी भी सूरत में चीन को रोकने का प्रयास करता रहता है। इधर, चीन व रूस मिलकर अमेरिका व नाटो देशों को मजा चखाने की योजना बना रहे हैं। यदि रूस व चीन ने मिलकर अमेरिका व नाटो के खिलाफ अभियान छेड़ दिया तो दुनिया तबाही की ओर मुड जायेगी। चीन में तानाशाही शासन है, जिसके चलते जिनपिंग को कुर्सी जाने का खतरा नहीं है, वह जीवनभर राष्ट्रपति रहेंगे, जबकि लोकतांत्रिक अमेरिका को हर बात के लिये अपनी जनता को जवाब देना होता है। चीन जब चाहे कुछ भी फैसला ले लेता है, जबकि अमरिका को हर फैसला सीनेट से पास करवाना होता है।
भारत का पक्ष यह है कि वह चीन द्वारा ताइवान पर हमला किये जाने का इंतजार कर रहा है, जिससे उसको इस बहाने पाक अधिकृत कश्मीर वापस लेने का बहाना मिल जाये। चीन कहता है कि ताइवान उसका ही एक प्रांत है। यदि चीन ने अपना अंग बताकर ताइवान पर आक्रमण किया, तो भारत के पास भी अपना अभिन्न अंग बताकर पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का मौका होगा। ऐसी स्थिति में जहां अमेरिका भी भारत के पक्ष में खड़ा होगा, तो अहसान के बोझ तेले दबा रूस इस मामले में भारत के खिलाफ नहीं जा पायेगा। चीन ने यदि ताइवान पर हमला किया तो वह भारत—पाकिस्तान के मामले में वैसे ही नहीं बोल पायेगा।
इसलिये मोदी की दूरदर्शी रणनीति को लेकर चीन काफी सतर्क है। वह ताइवान को हडपना तो चाहता है, लेकिन भारत द्वारा इस बहाने पीओके वापस लेने की संभावना के चलते रुक जाता है। क्योंकि इसी क्षेत्र से चीन की बहुउद्देश्य सीपीईसी परियोजना गुजर रही है, जिसपर पर चीन करीब 65 बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है। यदि भारत ने पीओके वापस ले लिया तो यह तय है कि चीन की यह महात्वाकांक्षी योजना लटक जायेगा, जिसके लिये चीन तैयार नहीं है। बहुत सारे लोगों को लगता है कि चीन ने पैंगोंग झील के पास भारत की जमीन दबा ली है, लेकिन हकिकत यह है कि भारतीय सैनिकों ने चीन को मार भगाया है, जिसके बाद दोनों देशों के बीच शुरू हुई सैन्य स्तर की 16 दौर की वार्ता भी कोई नतीजा नहीं निकाला है।
रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किये जाने के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग भारत आये थे, और वह मोदी से मिलना चाहते थे, लेकिन उन्हें भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से मिलकर ही लौटना पड़ा। वांग चाहते थे कि वह पहले मोदी से मिल ले, उसके बाद राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलाया जायेगा, ताकि इस मामले का समाधान हो जाये, किंतु भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि जब तक सीमा विवाद को खत्म नहीं किया जायेगा, तब तक भारत के प्रधानमंत्री ना तो चीन जायेंगे और ना ही चीन के नेताओं को भारत बुलाकर बात करेंगे। इस बीच भारत ने कारोबार के स्तर पर आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान चलाकर चीन को तगड़ा झटका दिया है। इन दोनों ही अभियानों से भारत की चीन पर आयात निर्भरता कम हुई है, जिसके कारण चीन को आर्थिक नुकसान हो रहा है। पिछले दिनों ही भारत सरकार ने चीन की वीवो और ओप्पो मोबाइल कंपनियों को भारत से बाहर कर रास्ता अपनाने को मजबूर कर दिया है, तो चीन की सबसे बड़ी वाहन निर्माता द ग्रेट वॉल मोटर कंपनी को भी भारत में आने से रोक दिया है।
बीते दो साल में भारत ने चीन के 256 से ज्यादा मोबाइल एप्प बैन करके उसे प्रतिवर्ष करोड़ों डॉलर का नुकसान किया है। इसलिये चीन के विदेश मंत्री और राष्ट्रपति भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने को उतावले हो रहे हैं। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान की हैंकड़ी निकाल दी थी, तो इस कार्यकाल में चीन को भी भारत के सामने हर मोर्चे पर मुंह की खानी पड़ रही है।

Post a Comment

Previous Post Next Post