सतीश पूनिया बंद कर रहे हैं वसुंधरा राजे के सियासी रास्ते

Ram Gopal Jat
राजस्थान में अगले 17 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. उसके लिये कांग्रेस से लेकर भाजपा दोनों ही पार्टियां चुनावी मोड में आ गई हैं. अब तक संगठन को संगठित करने का काम करने वाले भाजपा अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां अब जमीन पर पैदल यात्रा भी करने लगे हैं. यानी कि भाजपा कार्यकर्ताओं—पदाधिकारियों और संगठन से इतर आमजन के बीच भी जाने लगे हैं. सतीश पूनिया अब 41 किलोमीटर की पैदल यात्रा वागड़ की धरती पर निकाल रहे हैं. हालांकि, भाजपा के नेताओं का कहना है कि यात्रा आदिवासी समाज से द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर आभार जताने को लेकर की जा रही है. लेकिन साहब यह राजनीति है और इसमें कोई भी काम बिना किसी उद्देश्य के नहीं होता है. राजस्थान की राजनीति में बड़े बड़े नेताओं द्वारा यात्रा निकालने का सिलसिला पुराना रहा है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तो हर बार किसी ना किसी बहाने से यात्रा निकालते रहती हैं. चाहे वह विपक्ष में रहते परिवर्तन यात्रा हो, सत्ता में रहते सुराज संकल्प और जन आशीर्वाद यात्रा हो या फिर देव दर्शन यात्रा.
आपको बता दें कि सतीश पूनिया का भी पद यात्रा निकालने का पुराना इतिहास रहा है.....करीब दो दशक पहले भी सतीश पूनिया महाराणा प्रताप की जन्मस्थली से लेकर जाट महाराजा सूरजमल की तपोभूमि भरतपुर तक एक यात्रा निकाल चुके हैं. अगर सियासी तौर पर इस बात को समझने की कोशिश करें तो अब तक सतीश पूनिया अपनी ही पार्टी के नेताओं—कार्यकर्ताओं से संगठन के नाते से मिल रहे थे. पहली बार इस तरीके के किसी बड़े कार्यक्रम में वह पहुंच रहे हैं, जिसके जरिए वह आमजन से जुड़ेंगे और आपने आमतौर पर देखा होगा सचिन पायलट अमूमन इसी तरीके की रणनीति के तहत काम करते हैं, प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में जाते हैं, लोगों से सीधे जुड़ते हैं. सीधे बात करते हैं तो कई बार ऐसी अनौपचारिक बातें आपके सामने आती हैं, जो बातें कार्यकर्ता आपके राजधानी के बंगलों और कार्यालय तक आकर नहीं कह पाते. इसके साथ ही आप धरातल पर क्या कुछ चल रहा है, इसको भी भांप पाते हैं. और आगे किस रणनीति के तहत काम करना है, यह भी आप तय कर पाते हैं या रणनीति तय कर पाने में आसानी होती है.
सियासी जानकारों का कहना है की साधारण किसान परिवार से आने वाले सतीश पूनिया लो प्रोफाइल नेता हैं. यानी अपने कार्यकर्ताओं से जल्दी घुलमिल जाते हैं. अब पूनिया आगे बढ़ते समय के साथ खुद का दायरा बढ़ाना चाहते हैं और आमजन के बीच अपनी आसान पहुंच बढ़ाना चाहते. हालांकि, कुछ जानकार इसे वसुंधरा राजे की यात्राओं और उसके शक्ति प्रदर्शन का काउंटर भी मान रहे हैं. गौरतलब है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में वागड़ में बीजेपी को 9 में से महज तीन सीटों पर जीत मिली थी, जिसके बाद इस यात्रा के मायने और बढ़ जाते हैं. आपको बता दें कि वागड़ अंचल में मुख्य तौर पर बांसवाड़ा और डूंगरपुर ज़िले आते हैं, जहां बांसवाड़ा में पांच और डूंगरपुर में चार विधानसभा सीटें हैं. पिछली बार विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने बांसवाड़ा में गढ़ी और घाटोल की सीट जीती थी और डूंगरपुर जिले के आसपुर से गोपीचंद मीणा पार्टी के एकमात्र विधायक बने थे.
इसके साथ ही वागड़ क्षेत्र में पिछले चुनाव में उभरी बीटीपी को रोकना भी भाजपा और कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है. मालूम हो कि पिछले चुनाव में बीटीपी ने डूंगरपुर ज़िले की दो सीटों पर जीत दर्ज की थी, जहां चौरासी सीट से राजकुमार रोत और सागवाड़ा से रामप्रसाद जीते थे और डूंगरपुर मुख्यालय की सीट कांग्रेस के विधायक और यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश घोघरा के खाते में गई थी. वहीं बांसवाड़ा में बागीदौरा, कांग्रेस तो कुशलगढ़ निर्दलीय रमिला खड़िया के खाते में गई. इसके अलावा पड़ोसी ज़िले प्रतापगढ़ में दोनों सीटें भी कांग्रेस के पास हैं.
हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बीटीपी के विधायक राजकुमार रोत ने पारिवारिक कारणों के चलते वोट नहीं डालने की बात कही थी. इस मुद्दे को लेकर भी भाजपा हमलावर है. स्थानीय नेता लगातार बीटीपी के लिए कह रहे हैं कि आदिवासी समाज को ठगने का काम किया है और जरूरत पड़ने पर वोट नहीं डाल कर ठेंगा दिखा दिया हैं. कुल मिलाकर इस इलाके में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए पहले हथियार के तौर पर द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के भावनात्मक जुड़ाव के जरिए आदिवासी वोट बैंक को अपने साथ साधने की कोशिश करना है.
दूसरा, डूंगरपुर और बांसवाड़ा की सीमा पर स्थित बेणेश्वर धाम पर यात्रा का समापन होगा, जहां सतीश पूनिया आदिवासी समाज के बीच बैठकर द्रोपदी मुर्मू का शपथ ग्रहण का कार्यक्रम देखेंगे. क्योंकि इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी भी नजर आएंगे और यह इलाका गुजरात से सटा है, इस बात का फायदा भी भाजपा उठाना चाहेगी. इसी साल के आखिर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके बाद 2023 के आखिर में राजस्थान में..... अब देखते हैं चुनावी जीत में नेताओं के दौरे यात्राएं और पदयात्रा कितनी काम आती है.

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