ब्रांड मोदी ने गुजरात को ऐसे भाजपा का अभेद किला बनाया

Ram Gopal Jat
गुजरात में इस साल के दिसंबर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। हालांकि, इसी दौरान हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव हैं, लेकिन सबका ध्यान गुजरात पर है। क्योंकि इसी राज्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह आते हैं। इसलिये सबकी नजर गुजरात पर जाकर टिक गई है। गुजरात ऐसा राज्य है, जहां पर भाजपा बीते 25 साल से लगातार सत्ता में है। ऐसा क्या कारण है कि पार्टी को पिछले पांच चुनाव में कोई पार्टी सत्ता से बेदखल नहीं कर पाई है? इसको समझने से पहले यह जान लेते हैं कि भाजपा को पहली बार 1990 में सत्ता हासिल हुई थी, तब पीछे मुड़कर देखने की जरुरत नहीं पड़ी है। वर्ष 1985 से 1990 तक 149 सीटों के प्रचंड बहुमत से कांग्रेस की सरकार थी। इसके बाद साल 1990 का चुनाव गुजरात जनता दल और भाजपा ने मिलकर लड़ा। जनता दल के नेता चिमनभाई पटेल थे और भाजपा ने केशुभाई पटेल को अपना नेता घोषित किया था। भाजपा समझ चुकी थी कि दलित-मुस्लिम और क्षत्रिय मतदाता अगर कांग्रेस के साथ हैं, तो वो पटेलों को अपने साथ कर चुनाव जीत सकती है।
केशुभाई पटेल को चुनाव का पूरा नेतृत्व दिया गया और भाजपा का यह प्रयोग सफल हुआ। साल 1990 में पहली बार कांग्रेस की हार हुई। जनता दल और भाजपा की मिली-जुली सरकार बनी। हालांकि, राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा और जनता दल का साथ टूट गया, लेकिन इस दौरान भाजपा ने पटेल समुदाय पर अपना वर्चस्व हासिल कर लिया था। इसका फ़ायदा भाजपा को 1995 में मिलना शुरू हुआ। साल 1995 के चुनाव में 182 सीटों वाली विधानसभा में 121 सीटें भाजपा के पक्ष में गईं। भाजपा की जीत के बाद केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। साल 1996 में शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी तोड़कर अपनी पार्टी बनाकर मुख्यमंत्री बन गये। हालांकि, वह एक साल ही सीएम रहे और इसके चलते 1997 में मध्यावधि चुनाव हुई,​ जिसमें 115 सीटों पर जीत दर्ज कर भाजपा फिर सत्ता में पहुंच गई। केशुभाई पटेल तीसरी बार सीएम बने, लेकिन वर्ष 2001 में आए भूकंप के बाद उनकी निष्क्रियता और लगातार कई उपचुनावों में हार के बाद उन्हें हटाकर राज्य की राजनीति में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र मोदी की एंट्री हुई।
नरेंद्र मोदी राज्य के 22वें मुख्यमंत्री बने, जो लगातार 13 सालों तक इस पद पर बने रहे। चार बार सीएम और लगातार तीन कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री रहने के बाद नरेंद्र मोदी 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने और फिर गुजरात में आनंदीबेन पटेल पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। दो साल तक पद पर बने रहने के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दिया और विजय रूपाणी मुख्यमंत्री बनाए गए। वैसे तो भाजपा गुजरात में 1990 में पहली बार सत्ता में आई थी, लेकिन तब गुजरात जनता दल के साथ गठबंधन था। इसके उपरांत साल 1995 में भाजपा ने आर्थिक रूप से पिछड़ों और पटेल समुदाय को साथ लेकर सत्ता हासिल की, तब से लेकर आज तक पिछले 25 सालों से गुजरात में भाजपा की ही सरकार बनती आ रही है। यानी बीच का एक साल छोड़ दें तो भाजपा बीते 32 साल से गुजरात में सत्ताधारी पार्टी बनी हुई है। जिनमें सबसे अधिक बार नरेंद्र मोदी के नाम से चुनाव लड़ा और जीता गया है। मोदी ने पहली बार 2002 में चुनाव का सामना किया, जिसमें उनको 182 सीटों वाली विधानसभा में 127 सीटों पर जीत हासिल हुई, जो भाजपा की अबतक की सबसे अधिक सीटें हैं।
मोदी के शासन पर सबसे बड़ा दाग 2002 के दंगों को बनाने का प्रयास किया गया, लेकिन यही दाग मोदी के लिये वरदान बन गया। जो कांग्रेस 1990 में पहली बार सत्ता से बाहर हुई थी, वह आजतक सत्ता में नहीं पहुंच पाई है। भाजपा ने 2007 के चुनाव में मोदी की लीडरशिप में 10 सीटों के नुकसान के साथ 117 सीटों पर जीत दर्ज कर मोदी तीसरी बार सीएम बनने का अवसर मिला। गुजरात दंगों का दुष्प्रचार कांग्रेस कर रही थी और मोदी उसे गुजरात की अस्मिता से जोड़कर आगे बढ़ गये। इसके बाद 2012 के चुनाव में भाजपा को 2 सीटों का और नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन बहुमत आराम से मिल गया। पार्टी को 115 सीटों पर बहुमत मिला, तब तक मोदी देशभर में ब्रांड बनने लगे थे। गुजरात मॉडल को मोदी इस तरह से प्रजेंट किया कि यूपीए की भ्रष्ट सरकार से तंग देश की जनता को मोदी में एक जबरदस्त उम्मीद दिखाई देने लगी। साल 2014 में भाजपा ने मोदी की बढ़ती ताकत को पहचान लिया था, इसलिये लोकसभा चुनाव में उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया। इधर, गुजरात में भाजपा ने पहले आनंदीबेन पटेल को सीएम बनाया, लेकिन दो साल बाद ही उनको सत्ता छोड़नी पड़ी और पार्टी ने विजय रुपाणी को सीएम बनाया। साल 2017 का चुनाव पार्टी के लिये बहुत भारी रहा, जिसमें ब्रांड मोदी 13 साल बाद सीएम उम्मीदवार नहीं थे, फिर भी पार्टी ने चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ा और मामूली सीटों के बहुमत से 99 सीटों पर जीत दर्ज की।
पार्टी ने विजय रुपाणी को दूसरी बार सीएम बनाया, लेकिन करीब ढाई साल बाद उनकी जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया गया। आज गुजरात में भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री होने के कारण पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन कांग्रेस के लिये मोदी ही चुनौती हैं। कांग्रेस ने तय किया है​ कि मोदी को टारगेट किये बिना चुनाव लड़ा जायेगा, पिछले चुनाव में मोदी पर हमला करने के कारण पार्टी सत्ता से चूक गई। इस बार कांग्रेस ने निर्णय लिया है कि मोदी पर व्यक्तिगत हमलों को छोड़कर मुद्दों पर चुनाव लड़ा जायेगा। दूसरी तरफ भाजपा ने मोदी के सहारे ही चुनाव में जाने का निर्णय किया है। वैसे भी मोदी आज देश में सबसे बड़े कद के नेता बन चुके हैं, इसलिये पार्टी उनके नाम पर चुनाव लड़कर आसानी से जीत सकती है। इस बीच पटेल समुदाय को साधने के लिये पिछले दिनों हार्दिक पटेल को भी बीजेपी में शामिल किया गया है। कहने का मतलब यह है कि भाजपा किसी भी सूरत में गुजरात को नहीं खोना चाहती है।
अब यह जानना जरुरी है कि आखिर भाजपा 1990 से अब तक आखिर क्यों गुजरात को अभेद किला बना चुकी है? असल में देखा जाये तो आज भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का जलवा पूरे देश में दिखाई दे रहा हो, लेकिन पार्टी तब पहली बार सत्ता में आई थी, जब ये दोनों नेता राजनीतिक परिदृश्य में थे ही नहीं। आज मोदी—शाह की जोड़ी को गुजरात में वही ​स्थान हासिल है, जो कभी महात्मा गांधी और सरकार पटेल को था। अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि केंद्रीय सत्ता में होने के बाद भी मोदी शाह की जोड़ी गुजरात में नंबर एक बनी हुई है? असल में भाजपा पहली बार केशुभाई पटेल के नेतृत्व में सत्ता में आई थी, लेकिन इसके साथ ही पार्टी ने रणनीतिक रूप से प्रदेश के वोट बैंक की नब्ज को पकड़ा और पहली बार 1995 में पूर्ण बहुमत से सत्ता प्राप्त की। यह बात सही है कि बाद केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला की लडाई के चलते पार्टी में एक साल बाद ही टूट हो गई, जिसके बाद शंकर सिंह वाघेला ने राष्ट्रीय जनता दल के नाम से अलग दल बनाया, जिसके दम पर वह 1996 से 1997 तक मुख्यमंत्री रहे। बाद में शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस के नेता बने। भाजपा ने 1997 के चुनाव में केशुभाई पटेल के नेतुत्व में चुनाव लड़ा और सत्ता प्राप्त की, लेकिन 2001 के भूकंप और केशुभाई पटेल की निष्क्रियता के चलते उनको पद से हटा दिया गया और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र मोदी को सीएम बनाया गया।
उनके मुख्यमंत्री बनते ही कुछ दिनों बाद गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे हो गये, जिसकी आंच सीएम मोदी तक आई। साल 2004 में जब एनडीए के गठबंधन वाली भाजपा सरकार सत्ता से बाहर हो गई तो यूपीए की कांग्रेस सरकार बनी। तब गुजरात दंगों में फंसाने के लिये नरेंद्र मोदी के खिलाफ सीबीआई शुरू हुई और सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी तक गठित की गई। इस दौरान 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी जांच कर रही थी, लेकिन कांग्रेस के इस हमले ने पूरा माहौल मोदी के पक्ष में कर दिया। चुनाव परिणाम के बाद मोदी तीसरी बार सीएम बने तो उन्होंने अपने काम के दम पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया। 2012 के चुनाव में भाजपा फिर जीती और मोदी ने चौथी बार सीएम पद की शपथ ली। गुजरात के करीब पौने पांच करोड़ मतदाताओं में सबसे अधिक 40 फीसदी ओबीसी वर्ग है, जिससे मोदी खुद आते हैं। इसके साथ ही 27 फीसदी पाटीदार, जैन, बणिया, राजपूत, ब्रह्मण मतदाता हैं। इनको मुख्य रूप से भाजपा के पक्ष में माना जाता है। यही कॉम्बिनेशन भाजपा को बार बार सत्ता में ला रहा है, जिसका तोड़ कांग्रेस के पास दिखाई नहीं देता है।
2012 को चुनाव जीतने के उपंरात मोदी की देशभर में विकास पुरुष की छवि बन गई, जिसके दम पर भाजपा ने 2014 में पहली बार 282 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत की केंद्र में सरकार बनाई। मोदी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में जमकर दिनरात काम किया और दुनियाभर के देशों के साथ भारत के संबंध बनाकर साबित कर दिया कि वह विश्व लीडर हैं। यही कारण है कि 2019 के चुनाव में भाजपा पहले के मुकाबले अधिक ताकतवर बनकर उभरी और 303 सीटों पर जीत दर्ज की। एक वक्त ऐसा था, जब भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार संसद में केवल एक वोट से गिर गई थी, लेकिन आज ना तो अटल—आडवाणी का समय है और ना ही उतनी सॉफ्ट भाजपा है। आज युग बदलने के साथ ही पार्टी में मोदी—शाह की पकड़ है तो विचारधारा के लिहाज से भी पार्टी पहले के मुकाबले अधिक आक्रामक हो गई है, जिसमें चुनाव एक जंग की तरह हो गया है। पार्टी एक चुनाव जीतकर या हारकर उसकी खुशी या गम मनाने के लिये पांच साल आगे की तैयारी शुरू कर देती है। पंजाब में पिछले दिनों बुरी तरह चुनाव हारने के बाद भी पार्टी में कांग्रेस के नेताओं का शामिल होना इस बात का पुख्ता सबूत है कि भाजपा पांच साल बाद सत्ता में आने वाली है। दूसरी पार्टियां जहां चुनाव हारने के बाद प्रदेश की इकाई को भूल जाती हैं, वहीं भाजपा अधिक ताकत से तैयारी शुरू कर देती है।
शायद यही कारण है कि आज देश में मोदी से मुकाबला करने की हालात में कोई भी पार्टी दिखाई नहीं दे रही है। एक तरफ मोदी अकेले हैं, तो दूसरी तरफ तमाम विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर भी चुनाव जीतने की स्थिति में दिखाई नहीं दे रहे हैं। हालात यह हैं कि विपक्ष के पास मोदी से मुकाबला करने जैसेा कोई नेता ही दिखाई नहीं दे रहा है, तो भाजपा लगातारी तीसरी बार मोदी की अगुवाई में 2024 के चुनाव में 400 पार का लक्ष्य लेकर चल पड़ी है। 0

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