Ram Gopal Jat
भारत की टीम ने विश्वकप के पहले मैच में सबसे बड़े दुश्मन, यानी पाकिस्तान को धूल चटा दी। साफतौर पर कहा जाये तो क्रिकेट में इससे अच्छा मैच नहीं हो सकता। इस मैच को आखिर में जिसने नहीं देखा, उसने इस विश्वकप का मजा गंवा दिया। भारतीय क्रिकेट टीम में सितारों की कमी नहीं है, जो किसी भी टीम को धूल चटा सकती है, लेकिन जब जीत पाकिस्तान के खिलाफ हो तो कहना ही क्या? भारत पिछले कुछ बरसों से जीत का आदी हो चुका है। इस वक्त मोटे तौर पर देखा जाये तो विश्व क्रिकेट में भारतीय टीम के बराबर कोई टीम नहीं, जो किसी भी देश की क्रिकेट टीम को आसानी से हरा सकती है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के लिये यह जीत अपने आप में अनौखी है, क्योंकि एक दिन पहले ही बीसीसीआई को नया कप्तान मिला है, यानी रोजर बिन्नी बीसीसीआई के अध्यक्ष बने हैं। इससे पहले सौरव गांगुली अध्यक्ष थे।
सौरव गांगुली को लेकर दो बातें समान है। पहली बात यह है कि कप्तान रहते हुये गांगुली ने वर्तमान जीत की आदद डाली थी, बल्कि दबंगता से जीत की हैबिट दी। उससे पहले भारत की टीम पर कोई भरोसा नहीं करता था और टीम भी हमेशा दब्बू सी नजर आती थी। मतलब यह है कि आज जो जीत मिल रही है, उसकी नींव सौरव गांगुली ने ही लगाई थी। दूसरी बात यह है कि सौरव गांगुली ने अध्यक्ष रहते हुये विश्व क्रिकेट के नियमों में कई बदलाव किये, जिनको हमेशा याद किया जायेगा। किंतु अब सौरव गांगुली ना केवल बीसीसीआई के अध्यक्ष नहीं हैं, बल्कि यह माना जा रहा है कि उनका क्रिकेट से कॅरियर खत्म हो गया है। इससे पहले भी सौरव के लिये इस तरह की बातें होती रहती थीं, लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है। कारण यह है कि गांगुली बीसीसीआई के बॉस बनकर दुनिया के क्रिकेट पर राज कर चुके हैं। इससे आगे केवल आईसीसी चैयरमेन का पद ही बचता है, जो क्रिकेट की विश्व में सर्वोच्च संस्था है। किंतु सौरव गांगुली आईसीसी के अध्यक्ष नहीं बन पायेंगे।
इसके पीछे असली कारण अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन पिछले दिनों जब सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के संविधान में बदलाव को मंजूरी दी थी, तब माना जा रहा था कि सौरव गांगुली अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह, जो अभी सचिव हैं, इन दोरों को दूसरा कार्यकाल मिल जायेगा। मगर जय शाह को ही दूसरा कार्यकाल मिला, सौरव गांगुली क्रिकेट से बाहर हो गये। सौरव गांगुली को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि उनको आईसीसी का अध्यक्ष बनने की अनुमति दें। हालांकि, यह बात साफ नहीं है कि केंद्र सरकार ने इनकार किया है, लेकिन ममता बनर्जी ऐसा कोई मौका नहीं छोड़तीं, जो भाजपा पर हमला करने का होता है।
असल में इस कहानी की जड़ पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में छिपी है। यह बात सही है कि तब अमित शाह सौरव गांगुली के घर गये थे और खाना खाया था। तब यह माना जा रहा था कि जल्द ही सौरव गांगुली भाजपा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन ना तो गांगुली ने भाजपा जॉइन की और ना ही उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा। तब मामला रफा दफा हो गया था, लेकिन अब एक बार फिर से वही मामला उठ गया है। ममता की पार्टी का दावा है कि भाजपा ने सौरव गांगुली को उनके सामने मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर उतारने का प्रस्ताव दिया था, जिसे गांगुली ने नकार किया। यही कारण है कि सौरव को ना केवल बीसीसीआई अध्यक्ष का पद गंवाना पड़ा है, बल्कि उन्हें आईसीसी अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से भी रोक दिया गया है।
जब ममता बनर्जी ने भाजपा पर इसको लेकर हमला बोला तो भाजपा ने पलटवार करते हुये कहा कि पश्चिम बंगाल की सरकार के ब्रांड एंबेसेडर शाहरुख खान हैं, ममता बनर्जी को यदि सौरव गांगुली से इतनी ही हमदर्दी है, तो शाहरुख को हटाकर सोरव गांगुली को सरकार का ब्रांड एंबेसेडर बना दें। इसके बाद भाजपा टीएमसी के भीतर राजनीति तेज हो गई है। इस बीच सौरव ने बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन का चुनाव लड़ने का एलान किया था, लेकिन अंतिम दिन इनकार कर दिया। इसका मतलब यह है कि भले ही भाजपा टीएससी एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हो, लेकिन प्रकरण में कहीं ना कहीं सौरव गांगुली जरुर हैं, जो दोनों दलों के बीच झूल रहे हैं।
इस बीच यह भी चर्चा हुई है कि सौरव गांगुली को टीएमसी शामिल करना चाहती है, लेकिन वह अभी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। दरअसल, सौरव गांगुली के पिता बंगाल के बड़े कारोबरी हैं, जिनके ममता बनर्जी सरकार से भी अच्छे रिश्ते हैं, जबकि सौरव देशव्यापी ब्रांड हैं, जो अपने व्यक्तिव को पूरे देश के स्तर पर भुना सकते हैं। यदि गांगुली टीएमसी में शामिल होते हैं, तो वह अधिकतम मंत्री बन सकते हैं, लेकिन भाजपा में शामिल होते हैं, तो मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री बन सकते हैं। माना यह जा रहा है कि यदि वह भाजपा में शामिल हो गये, तो ममता सरकार से उनके रिश्ते खराब हो जायेंगे, जिसके बाद उनका पुस्तैनी कारोबार बिगड़ने की संभावना पैदा होती है, जबकि टीएमसी में शामिल होने पर सौरव एक राज्य तक सीमित हो जायेंगे। यही वजह है कि सौरव गांगुली यह निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि आखिर वह किस दल में शामिल हों।
अमित शाह की बात नहीं मानी तो सौरव गांगुली का कॅरियर चौपट!
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