जयशंकर रूस में पढ़ायेंगे भारत के 20 हजार मेडिकल छात्रों को

Ram Gopal Jat
भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर का जलवा विदेशों में जमकर बिखर रहा है। जयशंकर चीन से अमेरिका को अपनी खास मासूम शैली में करारा जवाब दे रहे हैं, तो साथ ही रूस जैसे शक्तिशाली देश को अपनी शर्तों पर मनाने में सफल भी हो रहे हैं। लंबे समय तक विदेशों में भारत के राजदूत रहे जयशंकर के ही प्रयास थे, जो रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किये जाने के बावजूद भारत के 21500 लोगों को 90 फ्लाइट्स में भारत लाने में सफलता मिली। भारत सरकार का यह मिशन इतना सक्सेजफुल था कि यूक्रेन में फंसे हुये लोगों को निकालने के लिये भारत के कहने पर रूस—यूक्रेन ने युद्ध तक बंद कर दिया था। यूक्रेन से अपने नागरिक निकालने के लिये दोनों देशों ने केवल भारत के लिये ही युद्ध बंद किया, अन्य किसी देश के लिये युद्ध को नहीं रोका गया। उस वक्त भी विदेश मंत्री जयशंकर की चतुराई और बुद्धिमानी के कारण सबकुछ संभव हो पाया। उसके बाद तो जयशंकर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकदम ​फ्रीहैंड दे दिया। अमेरिका जहां भारत पर रूस के साथ संबंध तोड़ने के लिये दबाव बनाता रहा, तो उसी के मंचों पर जयशंकर ने अमेरिका व यूरोप को ऐसे करारे जवाब दिये, जिससे उन सबकी बोलती बंद हो गई। भारत आजतक रूस के साथ कारोबार भी कर रहा है और अमेरिका यूरोप भारत का कुछ बिगाड़ भी नहीं पा रहे हैं।
जयशंकर के प्रयासों से उस वक्त भारत के जिन 22 हजार लोगों को यूक्रेन से निकाला गया था, उनमें लगभलग 20 हजार मेडिकल स्टूडेंट्स थे, जिनकी पढ़ाई अभी तक भी अधर में लटकी हुई है। किसी की मेडिकल पढ़ाई का पहला वर्ष है, किसी के दो साल पूरे हो चुके हैं, किसी स्टूडेंट को आखिरी साल की पढ़ाई कंपलीट कर एमबीबीएस की डिग्री लेकर देश लौटना था, लेकिन युद्ध के चलते सभी की पढ़ाई बीते 9 महीनों से बंद पड़ी हुई है। किसी को यह पता नहीं है कि उनकी पढ़ाई का क्या होगा? उनकी डिग्री का क्या होगा? उनकी भरी हुई भारी भरकम फीस का क्या होगा? और सबसे बड़ी बात यह है कि उनको अपना भविष्य ही अधर में लटका हुआ दिखाइ दे रहा है। इस बीच इस विद्यार्थियों के लिये एक बार फिर से उम्मीद की किरण बनकर सामने आये हैं भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर, जो दो दिन पहले ही रूस का दौरा करके लौटे हैं।
भारत सरकार को पता है कि रूस और यूक्रेन में जारी युद्ध से भारत के मेडिकल स्टूडेंट्स को काफी नुकसान पहुंचा है, जिसकी शिकायतें केंद्र सरकार को मिल रही थीं। फरवरी 2022 के आखिर में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो कई भारतीय छात्रों को यूक्रेन से वापस भारत लाया गया। इन छात्रों की पढ़ाई को पूरा कराने के लिए यूक्रेन के पास ना तो संसाधन हैं, और ना ही वहां ऐसी शांति है कि फिर से पढ़ाई करने जाया जा सके। ऐसे में भारत के इन हजारों छात्रों की आगे की पढाई पूरी करने के लिये रूस ने अपने देश में आने का ऑफर दिया है। एक दिन पहले ही चेन्नई में आए रूस के महावाणिज्य दूत ओलेग अवदीव ने कहा कि यूक्रेन छोड़ने वाले भारतीय छात्र रूस में अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं, क्योंकि दोनों देशों में मेडिकल कोर्स एक जैसा है। साथ ही वह रूस के लोगों की भाषा भी समझ सकेंगे, क्योंकि यूक्रेन में भी भारी संख्या में लोग रूसी बोलते हैं। मतलब यह है कि रूस व यूक्रेन में काफी समानाताएं होने के कारण भारत के स्टूडेंट्स को कोई दिक्कत नहीं होगी।
ओलेग अवदीव ने बताया कि भारत समेत कई देशों से काफी संख्या में लोग पढ़ाई के लिए रूस जाते हैं। रूस में ज्यादा से ज्यादा छात्र स्कॉलरशिप के लिए आवेदन कर रहे हैं। हर साल, कई भारतीय छात्र मेडिकल और कई अन्य कोर्स की पढ़ाई करने के लिए यूक्रेन और रूस दोनों देशों का रुख करते हैं। युद्ध के चलते छात्र पढ़ाई पूरी करने के लिए यूक्रेन वापसी नहीं कर पा रहे हैं। असल में भारत से कई छात्र हर साल यूक्रेन में पढ़ाई करने जाते रहे हैं। भारत के मुकाबले यूक्रेन में एमबीबीएस से लेकर अन्य मेडिकल शिक्षा पाना काफी सस्ता है। भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस करने के लिए जहां करीब 80 लाख रुपये देने होते हैं, वहीं यूक्रेन में यह करीब 25 लाख रुपये में हो जाती है। इस वजह से जिनका एडमिशन भारत में नहीं होता है या इतनी मोटी रकम वहन नहीं कर पाते हैं, ऐसे स्टूडेंट्स यूक्रेन में पढ़ाई करके डॉक्टर बनने का सपना पूरा करते हैं।
रूस का कहने के बाद यूक्रेन से भारत लौटे अधिकांश स्टूडेंट्स खुश है, लेकिन उनके सामने समस्या यह है कि जिनका कोर्स आधा या अधिक हो चुका है, वे आगे की पढ़ाई कैसे पूरी कर पायेंगे? क्या उनको शुरू से पढ़ाई आरंभ करनी होगी? क्या उनकी पहले हो चुकी पढ़ाई को रूस मान्यता देगा? क्या उनकी फीस जो यूक्रेन की कॉलेजों में जमा हो चुकी है, उनकी भरपाई हो पायेगी? ऐसे ही कई सवाल हैं, जो स्टूडेंट्स और उनके परिजनों के मन में उठ रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही सवाल यह भी उठता है कि इन स्टूडेंट्स की बाकी पढ़ाई भारत में क्यों नहीं हो सकती? असल बात यह है कि भारत में फीस बहुत अधिक है, दूसरी बात यह है कि भारत की यूनिवर्सिटीज में इतने सीटें खाली है ही नहीं। तीसरी और महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के कड़े कानूनों के कारण पूरा मामला कोर्ट में जाकर लंबे समय तक अटक सकता है, जिसे निपटाने के लिये भारत सरकार को कानूनों में संशोधन करने के लिये संसद सत्र का इंतजार करना पड़ता है। साथ ही इतने छात्रों के लिये मेडिकल कॉलेजों में संसांधन जुटाना काफी मुश्किल काम है।
ऐसे में रूस ने इसका समाधान करते हुये बताया कि जिनकी, जितनी पढ़ाई हो चुकी है, उससे आगे की पढ़ाई करवाइ जायेगी, मतलब यह है कि यदि किसी विद्यार्थी की दो साल का कोर्स हो चुका है, तो आगे का कोर्स रूस में कर सकता है। जो स्टूडेंट एक साल पढ़ चुका है, उको बचे हुये तीन साल ही पढ़ने होंगे। इसके साथ ही फीस भी वहीं देनी होगी, जो बचे हुये कोर्स की बनेगी। मतलब यदि किसी की फीस 20 लाख है और उसकी दो साल की पढ़ाई हो चुकी है, तो उसको रूस में केवल 10 लाख रुपये ही देने होंगे। इसके साथ ही डिग्री भी उसी यूनिवर्सिटी की मिलेगी, जहां वह अपना कोर्स पूरा करेगा।
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि आधा कोर्स एक देश में और बाकी कोर्स दूसरे देश में किया जाये, लेकिन इस मिशन को भी अंजाम तक पहुंचाने का काम किया है भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के प्रयासों ने। आपको याद हो चार दिन पहले मंगलवार को जयशंकर रूस की यात्रा पर गये थे। उसी दौरान उन्होंने रूस की सरकार से इस समस्या के बारे में बात की। भारत के हजारों विद्यार्थियों के भविष्य की चिंता से रूसी सरकार को अवगत करवाया, जिसके बाद यह बात रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के माध्यम से राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन तक पहुंची तो उनकी ओर से सभी यूनिवर्सिटीज को भारत के ​इन विद्यार्थियों के लिये अपने दरवाजे खोलने का निर्देश दिया। साथ ही अपने महावाण्जिय दूत ओलेव अवदीव को यह संदेश लेकर भारत भेजा।
इससे एक बात साफ हो चुकी है, भारत की केंद्र सरकार एक ओर तो अपने नागरिकों की जान बचाने के लिये विश्वभर में मोदी के मित्र नेताओं से मदद लेने का काम करती है, तो साथ ही हजारों विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर लगा होने पर उनके लिये दूसरे अरेंजमेंट भी करती है। दोनों ही मामलों में जयशंकर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। यही कारण है कि आज मोदी मंत्रिमण्डल में विदेश मंत्री सुब्रम्ण्यम जयशंकर टॉप पांच मंत्रियों में शुमार हो चुके हैं।

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