गुजरात चुनाव में मोदी शाह की जोड़ी को फिर से प्रचंड बहुमत

Ram Gopal Jat
गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 के लिए प्रचार जोरों पर चल रहा है। दो चरण के लिये होने वाले मतदान का पहला फेज एक दिसंबर है, और पांच दिसंबर को दूसरे चरण का मतदान किया जायेगा। चुनाव का परिणाम 8 दिसंबर को आयेगा। सत्ताधरी भाजपा समेत सभी विपक्षी पार्टियां अपनी सियासी चालों से एक दूसरे को पटखनी देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, गुजरात चुनाव और दिलचस्प होता जा रहा है। यहां की 182 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान में कौन किसको टक्कर दे रहा है? कौन पहले नंबर पर है, क्यों है? किस पार्टी को नुकसान हो रहा है? किस दल के नेता चुनाव के हीरो हैं और किस पार्टी का आलाकमान चुनाव से दूर है? कौन नेता चुनाव से पहले ही चुनाव हार चुका है, तो कौनसी पार्टी को यहां से राष्ट्रीय स्तर के द्वार खोलने हैं? यह सब जानने से पहले एक नजर डालते हैं कि राज्य में पिछले तीन दशकों में किस तरह मतदान हुआ है? आखिर क्या वजह है कि बीते 27 साल से भाजपा यहां पर अजेय बनी हुई है?
बीते तीन दशक की बात करें तो 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रिकॉर्ड सीटें जीती थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को 55.55 फीसदी वोट मिले थे, इसके साथ ही पार्टी को 149 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यह आज भी किसी एक पार्टी को गुजरात में मिली सबसे ज्यादा सीटों की संख्या है। बीजेपी उस चुनाव में कांग्रेस से बहुत पीछे थी। बीजेपी को 14.96 फीसदी वोट मिले थे, जबकि उसे महज 11 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाली जेएनपी 14 सीटें जीती थी, जबकि 8 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे। इसके पांच साल राज्य में 1990 के विधानसभा चुनाव हुए। यह राम मंदिर आंदोलन का दौर था, जिसकी वजह से बीजेपी को गुजरात में भारी फायदा हुआ। इस चुनाव में जनता दल और बीजेपी मिलकर लड़े थे। बीजेपी ने 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से उसके 67 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे, पार्टी को 26.69 फीसदी वोट मिले। जबकि जनता दल के 70 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे, जनता दल का वोट शेयर 29.36 फीसदी था। यह चुनाव भाजपा के लिये संजीवनी बूटी की तरह था, जिसके बाद पार्टी आगे बढ़ती चली गई।
इस चुनाव में कांग्रेस ने 181 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारे, जिसमें से उसके 33 विधायक ही जीत सके थे, जबकि वोट शेयर 55.55 प्रतिशत से गिरकर 30.74 फीसदी पर आ गया। साल 1990 में बीजेपी और जनता दल ने मिलकर गुजरात में सरकार बनाई थी। इसके बाद कांग्रेस गुजरात में कभी सत्ता प्राप्त नहीं कर पाई। हालांकि, साल 1995 में राम मंदिर के मुद्दे पर जनता दल और बीजेपी का गठबंधन टूट गया, लेकिन केशुभाई पटेल के नेतृत्व में बीजेपी ने 121 सीटों पर जीत हासिल करके गुजरात में पार्टी ने फिर से सरकार बनाई। इस चुनाव में कांग्रेस को 45 सीटों से संतोष करना पड़ा था, जबकि पिछले चुनाव में 70 सीट जीतने वाली जनता दल को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी।
हालांकि, केवल तीन साल चलने के बाद साल 1998 में केशुभाई पटेल की सरकार गिर गई, जिसके बाद राज्य में दोबारा हुए। इस चुनाव में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 117 सीटें जीतीं। बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 44.82 फीसदी पर आ गया, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर घटने लगा। साल 1998 के चुनाव में कांग्रेस को 8 सीटों के फायदे के साथ 53 सीटें मिली। और पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली जनता दल को 4 सीटों पर जीत मिली। इसके साथ ही एआईआरजेपी को 4, समाजवादी पार्टी को 1 के अलावा 3 निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे। साल 2001 में गुजरात में बड़ा भूकंप आया, जिसके बाद मुख्यमंत्री केशुभाई निष्क्रिय हो गए और कई उपचुनावों में हार गए। बीजेपी नेतृत्व ने केशुभाई पटेल से राज्य का नेतृत्व लेकर तत्कालीन महासचिव नरेंद्र मोदी के हाथ में सौंप दिया। इस साल से ही गुजरात में मोदी युग की शुरूआत हुई। साल 2001 अंत में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 127 सीटों पर जीत मिली, कांग्रेस ने उम्मीदवार 51 सीटों पर जीते। बीजेपी ने सरकार बनाई और नरेंद्र मोदी गुजरात के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।
हालांकि, गुजरात में चुनाव के अगले ही साल साम्प्रदायिक दंगे हो गये, जिसमें विपक्षी दल कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी को दंगों का दोषी साबित करने के लिये अपनी पूरी मशीनरी झौंक दी। राज्य में अगला विधानसभा चुनाव पांच साल बाद साल 2007 में हुआ। उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह की यूपीए की पहली सरकार थी। गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल करते हुए 117 सीटों प्राप्त की और राज्य में सरकार बनाई। इस साल कांग्रेस को 59 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि एनसीपी को 3 और जेडीयू को 1 सीट मिली। नरेंद्र मोदी ने पांच साल के शासन में अपनी छवि और राज्य को भी चमकाने का काम किया। इसके चलते साल 2012 के विधानसभा में बीजेपी को लगातार चौथी बार जीत हासिल हुई। राज्य में पूर्ण बहुमत आने के बाद नरेंद्र मोदी चौथी बार मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में बीजेपी ने 115 सीटों पर जीत हासिल करके सरकार बनाई। कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता से दूर केवल 61 सीटें मिलीं।
इसके बाद मोदी का चेहरा पूरे देश में बिकने लगा। यूपीए की दूसरी सरकार में भ्रष्टाचार को लेकर जो हवा बनी, उसके कारण पूरे देश से आवाज आने लगी कि यूपीए की भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फैंकने के लिये केंद्र में नरेंद्र मोदी का आना जरुरी है। यह वह दौर था, जब देश में सोशल मीडिया की शुरुआत हुई थी। मोदी ने इसका जमकर फायदा उठाया और कम से कम बजट में ही अपनी ब्रांडिंग कर डाली। जिसके चलते 2013 के अंत में भाजपा ने उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया। मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। इसके बाद साल 2017 में पहली बार मोदी की अनुपस्थिति में विधानसभा के चुनाव हुए। मोदी के गुजरात में नहीं होने के कारण इस चुनाव से कांग्रेस को काफी उम्मीदें थीं, क्योंकि कुछ हद तक बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी थी और युवा नेता हार्दिक पटेल की अगुवाई में पाटीदार आंदोलन अपने चरम पर था। दूसरी तरफ जिग्नेश मेवाणी दलितों के लिए आंदोलन कर रहे थे तो अल्पेश ठाकोर ने ओबीसी के लिए आंदोलन करके बीजेपी के खिलाफ माहौल बना दिया था।
विधानसभा चुनाव के जब नतीजे आए तो बीजेपी को नुकसान जरूर हुआ, लेकिन सत्ता बरकरार रही। इस चुनाव में कांग्रेस ने साल 1985 के बाद सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हुए 77 सीटों पर हासिल की, जबकि बीजेपी 99 सीटों पर सिमट गई। हालांकि, बीजेपी बहुमत के आंकडे़ से उपर आ गई थी, जिसके बाद राज्य में बीजेपी ने विजय रूपाणी के नेतृत्व में सरकार बनाई। करीब दो साल पहले विजय रुपाणी को हटाकर भुपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। इस बार भाजपा के पास कांग्रेस की कमजोरी के अलावा हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर भी हैं, जो पिछले चुनाव में भाजपा के खिलाफ थे। गुजरात चुनाव में सभी पार्टियों ने चुनाव प्रचार और प्रबंधन में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। बीजेपी की तरफ से खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है। कांग्रेस भी 27 साल के बाद सत्ता में वापसी करने की हरसंभव कोशिश कर रही है, लेकिन इस बार उसका मुकाबला के केवल भाजपा से नहीं है, बल्कि आम आदमी पार्टी भी अपना दमखम दिखा रही है। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल गुजरात के लगातार दौरे कर रहे हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के बीच गुजरात में केवल दो ​रैलियों को संबोधित करेंगे। यहां पर भाजपा जिस ताकत से चुनाव प्रचार कर रही है, वह लोकसभा चुनाव की तरह नजर आ रहा है। भाजपा के सभी बड़े नेता गुजरात में गली गली चुनाव प्रचार कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह को छोड़कर सभी नेताओं को पर्चा देने की जिम्मेदारी भी दी गई है। अब बात यदि तीन प्रमुख दलों की स्थिति में तुलना करें तो साफतौर पर भाजपा अब तक की सर्वाधिक सीटों की तरफ जा रही है। इस बार विपक्षी दलों के पास केवल सत्ता विरोधी लहर के अलावा कोई सहारा नहीं है। भाजपा ने मोदी और शाह की विश्व प्रसिद्ध जोडी के अलावा योगी आदित्यनाथ जैसे फायर ब्रांड नेता को भी मैदान में उतार दिया है। योगी के मैदान में होने से सुशासन का मुद्दा भाजपा के लिये मजबूती बन गया है। जबकि कांग्रेस के पास राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी का नहीं होना बड़ी कमी है। कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव से लगभग दूर हैं, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने चुनावी सर्वे को ही चुनाव परिणाम मान लिया है।
कांग्रेस यह तो कह रही है कि भाजपा ने 27 साल में गुजरात का नाश कर दिया, लेकिन यह नहीं बता पा रही है कि किया क्या है? इस वजह से लोगों को कांग्रेस पर भरोसा कम दिखाई दे रहा है। उपर से आम आदमी पार्टी ने भी अपनी जगह बनाने के लिये जोरदार प्रचार कर रखा है। असल बात यह है कि आम आदमी पार्टी का टारगेट इस बार सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि कम से कम 6 फीसदी वोट हासिल करना है, ताकि उसको राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाये। पार्टी इससे पहले दिल्ली और पजांब से कांग्रेस को विदा करके सत्ता में बैठी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है​ कि आम आदमी पार्टी जितना नुकसान सत्तारूढ भाजपा को करेगी, उससे कहीं अधिक कांग्रेस के लिये घातक साबित हो रही है। कांग्रेस के नेताओं ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है​ कि कहीं उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर नहीं चली जाये।
भाजपा के लिये यह चुनाव केवल सत्ता प्राप्त करने के लिये जरुरी नहीं है, बल्कि मोदी शाह का गृह राज्य होने के कारण पूरे देश में संदेश देने का भी चुनाव है। भाजपा यदि यहां पर हार जाती है, तो ब्रांड मोदी की विश्वव्यापी छवि धवस्त होने का खतरा है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिये बहुत बड़ा धक्का तो विपक्ष के लिये संजीवनी बूटी साबित​ हो सकता है। यही वजह है कि भाजपा इस चुनाव को आम चुनाव की तरह पूरी ताकत से लड़ रही है। कांग्रेस जिस तरह से हथियार डाल चुकी है, उससे ऐसा लग रहा है कि भाजपा की कमजोरी और कांग्रेस के उम्मीदवारों की व्यक्तिगत ताकत ही उनको सीटों दिला सकती है।
आम आदमी पार्टी ने भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा तक घोषित कर दिया हो, लेकिन फिर भी उसको इस बात का पता है कि जो चुनावी सर्वे सामने आये हैं, उससे अधिक उसको उम्मीद भी नहीं है। हालांकि, फ्री घोषणाओं के जरिये वह अधिक से अधिक वोट हासिल कर राष्ट्रीय दल का दर्जा पाने में कामयाब हो सकती है। असदुदीन ओवैशी की पार्टी मुस्लिम बहुल इलाकों में वोट कटवा पार्टी साबित हो रही है।

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