यहां टुकड़ों में टूटी पड़ी है कांग्रेस, कैसे जोड़ेंगे राहुल गांधी?

Ram Gopal Jat
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ने के लिये निकले हुये हैं। करीब 85 दिन पूरे हो चुके हैं, इस दौरान उन्होंने 2200 किलोमीटर पैदल चलकर भौगोलिक रुप से यात्रा को काफी हद तक सफल बना दिया है। यात्रा की राजनीतिक या सामाजिक सफलता कितनी हुई, यह एक अलग और गहन शोध का विषय है, जिसपर शायद कभी कोई शोध करेगा भी नहीं। किंतु भारत जोड़ने निकले राहुल गांधी या किसी भी कांग्रेसी नेता ने स्पष्ट रूप से कभी यह नहीं बताया है कि भारत कहां से टूटा हुआ है? कब से टूटा हुआ? कैसे टूटा हुआ है? किसके द्वारा तोड़ा हुआ है? कितनी जगह से टूटा हुआ है और उसको कैसे जोड़ा जा सकता है या जोड़ा जा रहा है।
यह बात सही है कि राहुल गांधी एक बड़े आधुनिक राजपरिवार से आते हैं, जिनको देखने के लिये उनके नाम से हजारों लोग एकत्रित हो सकते हैं। और जब लोगों को यह पता चलता है कि राहुल गांधी उनके क्षेत्र से पैदल गुजर रहे हैं, तो देखने वालों की भीड़ इकट्ठी होना लाजमी है। आजाद भारत के इतिहास में इस तरह की यह अनूठी यात्रा तो है ही, लेकिन इसके उद्देश्य और परिणाम अब तक किसी को समझ ही नहीं आये हैं। कन्याकुमारी से कश्मीर तक करीब 3500 किलोमीटर की इस यात्रा को पूरा करने के बाद क्या कांग्रेस यह बतायेगी कि इस यात्रा से देश को, कांग्रेस को, राहुल गांधी को या कांग्रेस के कितने नेताओं को क्या फायदा हुआ? कितनी जगह से, कहां और कब कब भारत को जोड़ा गया? जोड़ने का तरीका क्या था और क्या राहुल गांधी भारत जोड़ने में सफल हो गये हैं?
संभवत यह सब तो नहीं होगा, लेकिन इस यात्रा से एक चीज जरुरी हो गई है और वह सोशल मीडिया के लिये मसाला वीडियोज की भरमार। इन वीडियो में से अच्छे वीडियो को कांग्रेस राहुल गांधी की इमैज बनाने में काम ले रही है, तो भाजपा की आईटी सेल मीम्स बनाने में ले रही है। राहुल गांधी की या तो किस्मत ही ऐसी है कि उनके साथ हमेशा कुछ ना कुछ उल्टा सीधा हो ही जाता है, या फिर उनके लिये विशेष टीम बनाकर ऐसे फोटो, वीडियो छांट लिये जाते हैं, जो हंसाने के लिये खूब काम आते हैं। चाहे तीर चलकर खुदके उपर आ जाना हो या फिर आरएसएस से मुकाबला करने के लिये राहुल गांधी द्वारा कांग्रेसियों को समझाने का नायाब तरीका हो, हर बार विपक्षी दलों के लिये राहुल गांधी मजेदार मसाला छोड़ जाते हैं।
पहले ही दिन से राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के नेता यात्रा में चलने के लिये होड़ मचाये हुये हैं। जहां कांग्रेस की सत्ता नहीं है, वहां से भी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के साथ चलने का प्रयास कर रहे हैं, तो राजस्थान में जहां कांग्रेस सत्ता में, वहां से भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यंत्री सचिन पायलट के बीच इस यात्रा में शामिल कर चलने की होड़ मची हुई है। बाकी नेता भी अपने अपने हिसाब से इस यात्रा के बहाने राहुल गांधी के करीबी हो जाना चाहते हैं। चाहे पंजाब के प्रभारी और पूर्व मंत्री हरीश चौधरी हों, या औसियां से विधायक दिव्या मदेरणा की हों, सब इसी प्रयास में हैं कि अधिक से अधिक फोटो और वीडियो राहुल गांधी के साथ बन जाये, जिससे उनकी प्रोफाइल में मजबूती मिले। दिव्या मदेरणा ने पिछले दिनों राहुल गांधी के कंधे से कंधा मिलाकर यात्रा को परवान चढ़ाने का प्रयास किया ही है। उनकी राहुल गांधी के साथ यात्रा के दौरान नजदीकियां सोशल मीडिया पर एक नई बहस का कारण भी बन चुकी है। राहुल गांधी और दिव्या मदेरणा की एक फोटो को ट्वीट करने वाले भाजपा नेता अरूण यादव को दिव्या ने जिस तरह से सिलसिलेवार ट्वीट्स के जरिये आइना दिखाया, वह भी जनता ने अच्छे से देखा है।
अब यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर रही है, तो राज्य की सरकार ने जो तैयारी की है, वह अपने आप में बेमिशाल है। भारत जोड़ने को निकले राहुल गांधी चार साल से राजस्थान में टूटी पड़ी कांग्रेस को नहीं जोड़ पा रहे हैं। यहां पर एक टुकड़ा गहलोत का है, तो दूसरा पायलट का, जो चार साल से जुड़ नहीं पा रहे हैं। इसी साल 25 सितंबर को इन ​दो टुकड़ों के बीच जंग का नया दौर शुरू हुआ, तो भी राहुल गांधी इनको जोड़ने का प्रयास करते नहीं दिख रहे हैं। उस दिन तक सभी लोग यह मान रहे थे कि अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे और सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन जिस सियासी ड्रामे से कांग्रेस के टुकड़े टुकड़े हुये और उसके अंश अभी तक भी विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के पास पड़े हैं, क्या राहुल गांधी उन टुकड़ों को एक करके कांग्रेस को जोड़ पायेंगे? यह भी एक गंभीर और अनुत्तरित प्रश्न है।
भारत को किसने तोड़ा और क्यों तोड़ा यह एक गहन रिसर्च का सब्जेक्ट तो है ही, लेकिन बात राजस्थान की करें तो राहुल गांधी और कांग्रेस के पास केवल एक साल बचा है, जिसमें उनको कांग्रेस को फिर से जोड़ना भी है, और किसान कर्जमाफी के 10 दिन वाले प्रोमिज की तरह प्रचंड वादे कर चुनाव जीतना भी है। पिछले दिनों जब अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को गद्दार कहकर यह कहा कि एक गद्दार को कोई स्वीकार नहीं करेगा, तब यह बात तो समझ आ चुकी थी कि अब राजस्थान कांग्रेस इतने टुकड़ों में बंट चुकी है कि उसको कोई नहीं जोड़ पायेगा, लेकिन फिर भी राहुल गांधी राजस्थान में प्रवेश कर रहे हैं, तो उनसे इन टूटे हुये टुकड़ों को जोड़ने की उम्मीद कर सकते हैं। ऐसा कोई प्रयास भी राहुल गांधी करेंगे, क्योंकि पायलट गहलोत को फिर से एकसाथ देखने के लिये कांग्रेसियों की आंखें तरस रही हैं?
पुन: सवाल यही है कि राजस्थान के 7 जिलों से 521 किलोमीटर तक गुजरने वाली इस यात्रा के निकल जाने के बाद क्या प्रदेश कांग्रेस का बगावती जिन्न फिर बोतल से बाहर आ जायेगा? यात्रा को सफल बनाने के लिये मीटिंग्स का दौर चल रहा है, जिसमें राज्य के नेताओं से लेकर केंद्र से भी नेता जयपुर पहुंच रहे हैं। राजस्थान का पूरा मंत्रीमंडल इसकी तैयारी में लगा हुआ है। मजेदार बात यह भी है कि एक ओर कांग्रेस दावा भी कर रही है कि लोगों मिलकर राहुल देश का मूड जान रहे हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेसियों को मिलने के लिये आवेदन करने पड़ रहे हैं, जिनमें से एक तिहाई ही राहुल गांधी के साथ यात्रा में चल पायेंगे। जब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को ही राहुल गांधी से मिलने के लिये इंटरव्यू देने पड़ रहे हैं, तो फिर कल्पना कीजिये कि इस यात्रा में आम लोग उनसे कैसे मिल पाते होंगे? राहुल से मिलने के लिये राजस्थान के 1500 लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है, जिसमें से 500 लोग उनके साथ यात्रा में चलेंगे। ये कैसे लोग होंगे, इसके लिये भी चयन से पहले इंटरव्यू लिया जा रहा है। कल्पना कीजिये कि जिस यात्रा के लिये नेता के साथ चलने के लिये भी लोगों को इंटरव्यू की प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा हो, उनका भारत जोड़ने का मिशन कैसा चल रहा होगा?
इन सबसे इतर भाजपा भी जन आक्रोश यात्रा शुरू कर चुकी है, जो एक करोड़ लोगों के पास जाने का दावा कर रही है। भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इस यात्रा को हरी झंडी दिखाने के लिये राजस्थान का दौरा किया है। भाजपा सभी 200 विधानसभा सीटों पर 51 रथों के द्वारा जा रही है और कांग्रेस सरकार के खिलाफ माहोल बनाने का दावा कर रही है। भाजपा का यह दावा कितना काम करेगा, यह तो आने वाले दिनों में देखने वाली बात है, किंतु फिर भी राहुल गांधी की यात्रा के बाद तैयार की गई जन आक्रोश यात्रा की शुरुआत से पहले ही भाजपा की कलई भी खुलकर सामने आ गई है। भाजपा ने जब यात्रा से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस की, तब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मौजूद नहीं थीं, जो काफी चर्चा में रहा, लेकिन जब इसके बारे में पार्टी अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां से पूछा गया, तो वह इसका वाजिब जवाब देने के बजाये यह कहते नजर आये कि शामिल होना या नहीं होगा, यह उनका व्यक्तिगत मामला है। जब पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री प्रदेश में मौजूद हों, और इतना बड़ा कार्यक्रम आयोजित हो रहा हो, तब पार्टी अध्यक्ष द्वारा उसको व्यक्तिगत मामला बताना कहां तक उचित है, यह एक बड़ा प्रश्न भी है। भाजपा के नेता चाहे कि कितने ही दावे करें, लेकिन हकिकत यह है कि इस दल में भी सिर फुटव्वल शुरू होने में अधिक दिन शेष नहीं रह गये हैं।
इस बीच यदि यह कहें कि बीते तीन साल में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर सतीश पूनियां ने जो अपनी एक विशेष जगह बनाई है, वह काबिले तारीफ है। क्योंकि पार्टी ने जब 2003 में वसुंधरा राजे को लॉन्च किया था, तब से लेकर तीन साल पहले तक वही भाजपा थीं, मगर अध्यक्ष बनने के बाद सतीश पूनियां ने पार्टी को पुनगर्ठित किया ही है, साथ ही इस भगवा दल को वसुंधरा राजे की छत्रछाया से भी बाहर निकाल दिया है। आज ऐसा प्रतीत होता है कि वसुंधरा राजे को अपना स्थान बनाने के लिये सतीश पूनियां से एक उच्च स्तरीय जंग लड़नी पड़ रही है।
भले ही वसुंधरा के समर्थक इस उम्मीद में हों, किन पूर्व मुख्यमंत्री एक बार फिर से चमत्कार करके मुख्यमंत्री बन जायेंगे, किंतु यह बात सच है कि अब ना तो पार्टी अध्यक्ष ओम माथुर हैं, जिनको हमेशा इगोस्टिक माना जाता रहा है, और ना ही अरूण चतुर्वेदी हैं, जो अवसर मिलने के बाद भी खुद को और पार्टी को वसुंधरा राजे की छाया से बाहर ही नहीं निकाल पाये। और ना ही अशोक परनामी हैं, जो वसुंधरा की रबड स्टांप से अधिक कुछ भी नहीं थे। इस समय भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनियां हैं, जो ना केवल बीते करीब 19 साल में चार—पांच बार वसुंधरा से लोहा लेते हुये दिखे हैं, बल्कि गलत जगह से टिकट देने पर उसे वापस लौटाने जैसा दम भी दिखा चुके हैं। इस कारण यह भी तय है कि भाजपा में अब उसी धारा से बना रहना वसुंधरा के लिये बहुत कठिन चुनौती है।
किंतु बात यदि राजस्थान में राहुल गांधी की यात्रा की करें, तो उनकी यात्रा से पहले जो कांटे यहां के नेताओं ने बिछा रखे हैं, उनके उपर से चलते हुये बिना कांटे चुभाये राहुल गांधी क्या राजस्थान की धरा को पार कर सहज भाव से हरियाणा की धरती पर प्रवेश कर पायेंगे, यह सवाल बहुत बड़ा होता जा रहा है। जिस क्षेत्र को राहुल गांधी की यात्रा के लिये चुना है, वह अभी कांग्रेस का गढ़ है, लेकिन इसी गढ में इतनी चुनौतियां भी हैं, जो कांग्रेस के युवराज को परेशान तो जरुर करेगी। राहुल की यात्रा राज्य में 4 दिसंबर को प्रवेश कर रही है, और उसके साथ ही कांग्रेस की तैयारियों से लेकर चुनौतियों के कारण कलई खुलती नजर आ रही हैं। यात्रा के क्षेत्र में पग पग पर कांग्रेस के नेता धड़ों में बंटे हुये हैं, जिनको एकजुट करने के लिये पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल पिछले दिनों जयपुर पहुंचे थे।
राहुल गांधी इस यात्रा को तपस्या कह चुके हैं और इस तपस्य में कोई विघ्न नहीं पड़े, इसके लिये वेणुगोपाल ने कहा था कि एक शब्द आपको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा सकता है। इस चेतावनी के बाद पार्टी में शांति तो छाई है, लेकिन सवाल यह उठता है कि यह शांति कितनी स्थाई होगी। क्योंकि हरीश चौधरी से लेकर मंत्री राजेंद्र गुढ़ा और दिव्या मदेरणा के बगावती शुरू कभी भी फूट सकते हैं। यात्रा राज्य के झालावाड़ जिले से प्रवेश कर रही है, जो 1989 से अब तक वसुंधरा राजे का गढ़ रहा है। यह वह जिला है, जहां पर 89 से 2003 तक वसुंधरा राजे सांसद रही हैं, तो उसके बाद से उनके बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं। यहां पर राहुल गांधी को भाजपा से मुकाबला करने से पहले खुद की पार्टी में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के खेमों से दो चार होना पड़ेगा। यहां पर जो पोस्टर बैनर लगाये गये हैं, उनमें सचिन पायलट गायब हैं, जबकि उसके आगे कोटा है, जो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला का क्षेत्र है। वहां भी राहुल गांधी को समस्याओं से दो चार होना पडेगा।
इसके आगे चलते ही टोंक है, जो चार साल से मुख्यमंत्री पद के इंतजार में टिकटकी लगाये देख रहा है। टोंक, बूंदी, सवाई माधोपुर, दौसा, अलवर में पायलट का इतना असर है, कि यहां पर यदि सचिन पायलट एक इशारा कर दे, तो यात्रा निकालना असंभव हो जाये। हालांकि, वह ऐसा ना तो करेंगे और ना ही इस तरह की बात उनके समर्थक सोच रहे हैं। किंतु सवाई माधोपुर में चार सीटों पर कांग्रेस होने के बाद भी यहां से निकलना कांग्रेस को पसीने छुड़ा सकता है। दौसा में परसादी लाल मीणा गहलोत कैंप के हैं, तो दूसरे मंत्री मुरारी लाल मीणा पायलट खेमे के हैं। यहां पर दोनों के बीच चल रही वर्चस्व की जंग से भी कांग्रेस को पार पाना चुनौती है। अलवर में कांग्रेस और बसपा का प्रभाव है, जहां से बसपा के टिक पर दो विधायक जीतकर कांग्रेस में शामिल हुये थे, लेकिन दोनों ही इधर, उधर होते नजर आ रहे हैं। इस सात जिलों वाली 521 किलोमीटर की यात्रा में राहुल गांधी के सामने रुकावटें खूब आने वाली हैं, लेकिन जैसे ही वह हरियाणा में प्रवेश करेंगे, वैसे ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने को आतुर जिन्न बोतल से बाहर आ जायेगा, जिसको फिर से पकड़कर बोतल में बंद करना आलाकमान के लिये आने वाले समय की सबसे बड़ी लड़ाई माना जा रहा है।
कुल मिलाकर राहुल गांधी की अब तक की सबसे कठिन दौर से गुजरने वाली यात्रा का आरंभ दो दिन में होने वाला है। अब तक कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को एक साथ चलाकर शांत भाव से आगे बढ़ने में सफल रहे राहुल गांधी के लिये राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत को साथ लेकर चलना और उसके बाद राज्य में किसी तरह की सियासी उठापटक को आराम से निपटा लेना राहुल गांधी की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगी। यदि राहुल इस परीक्षा में पास हुये तो कांग्रेस के लिये अगला चुनाव लड़ना थोड़ा आसान होगा, अन्यथा, दो साल से सत्ता की ताक में बैठी भाजपा उसका बहुत आसानी से शिकार कर लेगी।
चलते चलते एक जानकारी और जान लिजिये। राजस्थान में अपनी यात्रा के दौरान राहुल का नाइट स्टे, यानी रात्रि ठहराव दो ऐसी जगह होगा, जिनका निर्माण विरोधी दल भाजपा के नेताओं ने करवाया है। यात्रा के पहले ही दिन झालावाड़ में राहुल गांधी जिस खेल संकुल में रुकेंगे, उसका नाम विजयाराजे सिंधिया खेल संकुल है। इसे पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने बनवाया था। इसी तरह जब राहुल गांधी की यात्रा दौसा पहुंचेगी, तो उन्हें मीणा हाईकोर्ट में रुकवाया जाएगा। मीणा हाईकोर्ट बनाने का श्रेय बीजेपी सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा को जाता है। जहां हाईकोर्ट के एंट्री गेट पर ही किरोड़ीलाल मीणा की एक बड़ी तस्वीर लगी है। मतलब राजस्थान में राहुल गांधी को भाजपा का सहारा भी लेना पड़ेगा।

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