मोदी—जयशंकर के जाल में फंस गया चीन

Ram Gopal Jat
ओस्ट्रेलिया के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि जब भारत का उदय होगा, तब चीन उसके साथ बराबर वाला बर्ताव करने लगेगा और भारत के साथ तालमेल बिठाने के लिये वह कई तरह की छूट भी देने लगेगा। शायद अब वह समय आ गया है, जब चीन को भारत की ताकत का अहसास होने लगा है। यही वजह है कि चीन ने भारत के साथ संबंध मधुर करने की तरफ अपनी ओर से कदम बढ़ा दिये हैं। दुनिया की दूसरी महाशक्ति और भारत का बीते 75 साल से दुश्मन नंबर एक बना हुआ चीन अब भारत की बढ़ती ताकत को मानने लगा है। चीन को अब यह बात समझ आ चुकी है कि उसको यदि इस युग में डटे रहना है या फिर अमेरिका जैसी पश्चिमी महाशक्तियों से मुकाबला करना है तो भारत के साथ दुश्मनी रखनी महंगी साबित हो सकती है। आखिर चीन क्यों भारत के साथ रिश्ते सुधारना चाहता है और क्या भारत सरकार चीन के इस आगे बढ़कर दिये गये प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगी? इसकी कितनी संभावना है कि चीन जो कह रहा है, वही करेगा, बल्कि पूर्व की भांति पीठ में छुरा घोंपने का काम नहीं करेगा? क्या राहुल गांधी के कहे अनुसार चीन की भारत के खिलाफ युद्ध की तैयारी बंद हो चुकी है? क्या चीन से भारत को भी संबंध सुधार लेने चाहिये? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जाने का प्रयास करेंगे, लेकिन उससे पहले यह जान लिजिये कि चीन ने क्या कहा है और द्विपक्षीय संबंध सुधारने के क्या प्रस्ताव भारत को दिये हैं? तवांग में 9 दिसंबर को भारत चीन की सेनाएं आमने सामने आ गई थीं, उस झड़प भारतीय सेना के कुछ जवानों को हल्की चौटें आई थीं, जबकि चीन के कई सैनिक बुरी तरह से जख्मी हो गये थे। राहुल गांधी ने जयपुर में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुये दावा किया था कि चीन के सैनिक भारतीय जवानों को पीट रहे हैं, जबकि खुद चीन ने स्वीकार किया है​ कि भारतीय जवानों ने उनके सैनिकों को बुरी तरह से पीटा है। उस घटना के 15 दिन बाद चीन अब भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रविवार को मीडिया से बात करते हुए बताया कि चीन ने भारत के साथ रणनीतिक और उच्च सैन्य अधिकारियों के जरिए बातचीत जारी रखी है। ड्रेगन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि दोनों देश बॉर्डर वाले इलाकों में शांति स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। तवांग में हुई झड़प पर उन्होंने कहा कि पश्चिमी सेक्टर में शांति और सुरक्षा के लिए दोनों देशों में बातचीत जारी है। यहां पर 17वीं सैन्य कमांडर लेवल की मीटिंग का क्या नतीजा निकला है, अभी इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है। हांलांकि, दोनों देशों ने सीमा पर तनाव को नियंत्रित करने की कोशिश करने की बात कही है। चीनी विदेश मंत्रालय ने तवांग में झड़प के बाद बयान जारी कर बताया था कि भारत और चीन के बीच चुशुल-मोलडो सीमा पर 20 दिसंबर को सैन्य कमांडर लेवल की 17वीं बैठक हुई थी। इसमें दोनों देशों ने बॉर्डर पर शांति कायम करने के लिए सहमति जताई थी। उन्होंने भारत के साथ शांति कायम रखने की बता कही है। तवांग के यांग्त्से में 9 दिसंबर को 600 चीनी सैनिकों ने जैसे ही टेम्परेरी वॉल पर लगी तारबंदी को तोड़कर भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की, तो वहां पर पहले से ही मुस्तैद भारतीय सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देते हुये चीनी सैनिकों को मारपीट कर भगा दिया था। तवांग में भारत और चीन के सैनिकों की झड़प के बाद इंडियन एयरफोर्स ने अरुणाचल सीमा पर कॉम्बैट एयर पेट्रोलिंग, यानी जंगी जहाजों की उड़ानें शुरू कर दी थीं। तवांग में हुई झड़प से पहले भी चीन ने अरुणाचल सीमा में अपने ड्रोन भेजने की कोशिश की थी। इसके बाद इंडियन एयर फोर्स ने तुरंत अपने लड़ाकू विमान अरुणाचल सीमा पर तैनात किए थे। फिलहाल वहां पर मामला शांति से निपटाने के लिये बातचीत के जरिये प्रयास किये जा रहे हैं। इधर, साल 2008 में भारत की कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के बीच सूचनाओं के आदान प्रदान हेतु किये गये कथित एमओयू को लेकर सवालों में घिरे हुये कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भारतीय सेना को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिसको लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने उनको खूब भला बुरा कहा है। भाजपा के नेताओं ने राहुल गांधी को मानसिक रुप से डिस्ट्रब तक कहा है। हालांकि, राहुल गांधी के बयान को सेना के उपर कही गई सबसे बुरी बातों में से एक माना गया है, लेकिन फिर भी राहुल गांधी को इस बात का कोई अफसोस नहीं है, शायद यही कारण है कि देशभर में उनके बयान का कड़ा विरोध होने पर भी उन्होंने अभी तक माफी नहीं मांगी है। अब बात करते हैं चीन के बदलते हुये रवैये की। आखिर क्या कारण हैं कि चीन यूं अचानक से बदलकर भारत के साथ शांति स्थापित करना चाहता है। जबकि वह लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में जमीन हड़पने के लिये वह माओत्से तुंग की नीति का अनुसरण कर रहा है। माओ की नीति थी कि पहले तिब्बत को अपने कब्जे में लो और फिर उसके बाद पांच अंगुलियों के समान लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, नेपाल जैसे क्षेत्रों को मुट्ठी में कर लिया जाये। चीन की यह नीति पांच दशक पुरानी है, जिसको आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग। हालांकि, जिनपिंग का सपना 46 बिलियन डॉलर की सीपैक परियोजना है, लेकिन धन के अभाव में यह परियोजना अब ठंडे बस्ते में जाती दिखाई दे रही है। चीन दो दशक पहले अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को अपने झांसे में लेकर विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना था और जब उसकी अर्थव्यवस्था दूसरे सबसे बड़ी बन चुकी है, तब वह उन्हीं देशों को ठेंगा दिखा रहा है। दुनिया में ड्रेगन ही ऐसा देश है, जो शुरू से ही विस्तारवादी नीति पर काम करता आया है। उसका मंगोलिया और भारत के शियाचिन की जमीन पड़पने से लेकर जापान और ताइवान के साथ जमीन का झगड़ा जारी है। भारत के साथ वह 1949 से ही सीमा विवाद करता रहा है। इसके बाद जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू शांति के कबूतरों के साथ हिंदी चीनी भाई भाई का नारा बुलंद कर रहे थे, तब 20 अक्टूबर से 21 नवंबर 1962 तक उसने भारत पर आक्रमण किया और भारत की शियाचिन में 38000 वर्गकिलोमीटर जमीन हड़प ली थी। इसी तरह से वह पूरे तिब्बत देश को ही निगल चुका है। जहां पर कहने को तो कोई सरकार है, लेकिन सबकुछ चीन के नियंत्रण में है, चीन इसको अपना ही एक प्रांत बोलता है, जैसे ताइवान को अपना प्रदेश कहता है। ऐसा नहीं है कि चीन की नीति भारत के प्रति एक ही दिन में बदल गई है। उसने साल 2016 में डोकलाम विवाद किया। इसके बाद वर्ष 2020 में गलवान घाटी में दुस्साहस दिखाया और अब उसने तवांग में भी सीमा पर जमीन दबाने का असफल प्रयास किया है। इसका मतलब यह है कि उसकी भारत के प्रति सोच बदली नहीं है। किंतु फिर भी वह भारत के साथ शांति क्यों चाहता है? असल में भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत, सैनिक स्तर पर भारतीय सेनाओं द्वारा बचाव की मुद्रा छोड़कर आक्रामक होकर चीन को जवाब देना और बीते तीन चार वर्षों में अर्थव्यस्था का बर्बादी की ओर चले जाना प्रमुख कारण माने जा रहे हैं। सबसे पहले यदि भारत की बढ़ती इकॉनोमिक पॉवर की बात की जाये तो पिछले साल ही ब्रिटेन को पीछे छोड़कर भारत विश्व का पांचवा सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बना है। विश्व व्यापार संगठन समेत तमाम वैश्विक ऐजेंसियों ने दावा किया है कि भारत अगले 5 साल में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन जायेगा। इसके साथ ही यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक अर्थव्यस्था के स्तर पर भारत दुनिया का दूसरा सबसे पॉवरफुल देश होगा। जीडीपी के लिहाज से इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा देश अमेरिका है, उसके बाद दूसरे नंबर पर चीन आता है, तीसरे नंबर पर जापान और चौथे स्थान पर जर्मनी है। जापान और जर्मनी पांच साल में भारत से पीछे छूट जायेंगे। इसके बाद लड़ाई होगी दूसरे नंबर की, जहां पर अभी चीन काबिज है। हालांकि, कोरोना से पहले चीन को जल्द ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बनने का दावा किया जा रहा था, लेकिन इन तीन वर्षों में उसकी इकॉनोमी गड़बड़ा गई है। यही वजह है कि अब वह काफी समय तक दूसरे नंबर पर ही रहेगा। जिसके कारण अगले 25 साल तक भारत की ड्रेगन के साथ आर्थिक होड़ रहेगी। भारत का इस समय सबसे अधिक कारोबार चीन और अमेरिका के साथ है। बीते साल भारत ने सबसे अधिक द्विपक्षीय व्यापार अमेरिका के साथ किया है। पिछले कुछ बरसों से भारत का चीन के साथ सबसे अधिक व्यापार था, लेकिन 2017 से 2019 तक और 2021 में भारत और अमेरिका सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार बने हैं। चीन चाहता है कि भारत को वह सबसे अधिक निर्यात करे, इ​स​के लिये वह महंगी से महंगी और सस्ती से सस्ती वस्तुएं का भारत को निर्यात करता है। किंतु भारत सरकार की 2014 के बाद बदली रणनीति का परिणाम अब दिखाई देने लगा है। भारत ने अपने घरेलू कारोबार को बढ़ावा दिया है। इसके लिये मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे बड़े अभियान चलाये हैं। इनके कारण कई वैश्विक कंपनियां चीन छोड़कर भारत पहुंच रही हैं। पिछले चार साल से भारत एफडीआई प्राप्त करने के मामले में नये रिकॉर्ड बनाने वाला देश बना हुआ है। एफडीआई को लेकर चीन कई बरसों से नंबर एक पर कायम है। चीन को डर है कि कहीं उसके यहां पर काम करने वाली विदेशी कंपनियों ने भारत को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी तो उत्पादन के मामले में वह पिछड़ जायेगा, जिससे उसका निर्यात कम हो जायेगा और इसके परिणामस्वरुप उसका दूसरा स्थान खोने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। साथ ही यदि उसके भारत से रिश्ते खराब रहे तो भारत में चल रहे चीनी सामान के बहिष्कार जैसे अभियान उसकी हालत खराब कर सकते हैं। यदि भारत में चीनी सामनों के बहिष्कार का अभियान बड़े पैमाने पर और लंबे समय तक चल पड़ा तो करीब 125 अरब डॉलर का चीन का निर्यात बाजार खत्म होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। डोकलाम के बाद गलवान और तवांग में चीनी हरकतों के बाद भारत में चीन के सामानों की होली जलाई गई है। साथ ही सोशल मीडिया पर भी अभियान चले हैं, जिसके चलते भारत में जागरुकता आई है और लोग चीन के बजाये भारत के बने सामानों को खरीदने में प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि चीन से भारत को होने वाले निर्यात की गति कम हो रही है। यही वजह हे कि चीन अब भारत के साथ संबंध सुधारना चाहता है, ताकि भारत में चीनी सामानों का बहिष्कार नहीं हो। साफ तौर पर कहें तो वह अब भारत में चीनी सामानों के बहिष्कार से डर गया है। दूसरा कारण है भारतीय सेनाओं का बदला हुआ तरीका। पहले भारत की सेना बचाव की मुद्रा में काम करती थी। केंद्र सरकार के स्तर पर सेनाओं को छूट नहीं मिली हुई थी, जिसके कारण ना केवल चीन, बल्कि पाकिस्तान जैसे पिद्दी से देश की कायर सेना भी मारकर चली जाती थी। साल 2014 में केंद्रीय सत्ता बदलने के साथ ही सेनाओं को भी छूट मिल गई। अब भारत की सेना बचाव की मुद्रा छोड़कर आक्रमण की मुद्रा में काम करती है। पाकिस्तान ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के जरिये इसका मजा चख लिया। जबकि चीन को भी डोकलाम, गलवान और अब तवांग में इसका अहसास हो गया है कि भारतीय सेनाओं अब बचाव में काम नहीं करती हैं, बल्कि आगे बढ़कर बदला देने के लिये तैयार रहती हैं। पहले सेना को गोली चलाने से पहले दिल्ली की तरफ देखना पड़ता था, जबकि अब सेनाओं को अपने स्तर पर निर्णय लेने का अधिकार मिल गया है। चीन अब इस बात को जान चुका है कि वह पहले की तरह एकतरफा कार्यवाही करके जीत नहीं पायेगा। पिछले कुछ बरसों में भारत की वायुसेना में कई अत्याधुनिक युद्धक विमान शामिल हुये हैं, तो नेवी में भी युद्धपोत दुनिया को चौंका रहे हैं। भारतीय थलसेना अब बुलेटप्रुफ जैकेट पहनती है, तो असॉल्ट जैसी रायफल्स के जरिये दुश्मन को मार भगाती है। भारतीय सेनाओं की बढ़ती ताकत से भी चीन सोचने को मजबूर हुआ है। भारत अब चीन पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करता है, बल्कि हर कदम सोचकर उठाता है। यही वजह है कि भारत ने गलवान घाटी विवाद के बाद चीन से सभी राजनैतिक संबंध तोड़ रखे हैं। चीन की ओर से भारत के साथ मित्रता की दुहाई देने का तीसरा कारण खुद ड्रेगन की बिगड़ती हालात भी जिम्मेदार है। कोरोना का कई देशों ने चीन को ही जिम्मेदार माना है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुलेआम कहा था कि यह वायरस चीन ने ही अपनी वुहान लैब में बनाया है। अमेरिका ने तब चीन को सीधे तौर पर कोरोना के लिये जिम्मेदार कहा था। इसके बाद कई अन्य पश्चिमी देशों ने भी अमेरिका की बात को सही बताया था। दुनिया तो अब कोरोना से उभर चुकी है, लेकिन चीन इस वक्त सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। यही वजह है कि चीन पूरा का पूरा लॉकडाउन की स्थिति में आ गया है। वहां पर टेस्ला से लेकर आईफोन बनाने वाली फॉक्सकॉन पर उत्पादन नहीं कर पा रही है। चीन में उत्पादन बंद होने के कारण निर्यात घट रहा है। जिसके चलते विदेशी आय कम हो गई है। चीन की जीडीपी रफ्तार 3 फीसदी से भी नीचे आ गई है, जबकि भारत की जीडीपी रफ्तार 11 फीसदी तक चल रही है। कोरोना के कारण चीन में उत्पादन पूरी तरह से ठप हो गया और यह हालात लंबे समय तक रहते हैं, तो उसका निर्यात बंद होने की कगार पर आ सकता है,​ जिससे जीडीपी की गति जीरो या माइनस में जा सकती है। इधर, भारत की बढ़ती जीडीपी रफ्तार ताकत बन रही है। इसलिये भारत 2050 तक दूसरे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना पहले ही साकार हो सकता है, इस बात को चीन जानता है। इसलिये वह सैन्य खर्च में कमी लाने के लिये अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति के लिये कदम बढ़ा सकता है। मोदी ने सत्ता में आते ही अपने पड़ोसियों से संबंध सुधारने की नीति पर काम किया। इसके चलते मोदी बिना बुलाये ही पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मां के जन्मदिन पर कराची पहुंच गये। मोदी ने पाकिस्तान को साथ मिलकर चलने और विकास करने का प्रस्ताव दिया, किंतु फिर भी पाकिस्तान बाज नहीं आया। उसने पठानकोट और पुलवामा जैसा घाव दिया, तो मोदी की पहली सरकार ने पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के रुप में सबक सिखाये और उसके बाद उससे रिश्ते खत्म कर लिये, अब पाकिस्तान चाहकर भी भारत के साथ मित्रता नहीं कर पा रहा है। मोदी की दूसरी सरकार मई 2019 में गठित हुई तो विदेश मंत्री बनाया गये डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर, वह विदेश सेवा का लंबा अनुभव रखते हैं। कहा जाता है कि यह उनकी ही रणनीति थी, जो चीन के साथ डोकलाम विवाद के बाद संबंधों को ठंडे बस्ते में डालने का काम शुरू किया गया। उसके बाद गलवान विवाद के बाद भारत ने चीन से संबंध बिलकुल ही बंद कर दिये। उससे पहले आपको याद होगा, जब 2014 में मोदी सरकार बनी थी, तब कैसे नरेंद्र मोदी ने शी जिनपिंग को भारत के विभिन्न स्थानों पर झूला ​झूलाया था और दोनों देशों के संबंधों को मधुर करने का अपनी ओर से प्रयास किया था। अब यह बात तय मानकर चलिये कि भारत सरकार के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की जोड़ी ने रिश्तों के मामले में पाकिस्तान के बाद चीन को भी घुटनों पर ला दिया है, जहां से उनको ही आगे बढ़कर भारत से बात करनी होगी, अन्यथा भारत अपनी सीमाओं की रक्षा सुरक्षा करते हुये आगे बढ़ने की ताकत खुद रखता है।

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