भारत को रूस से फिर होगा करोड़ों डॉलर का फायदा

Ram Gopal Jat
चीन बीते 4 दशक से विश्व की सप्लाई चेन का केंद्र रहा है, लेकिन अब भारत समेत पांच देश उसका विकल्प बन रहे हैं। भारत के साथ इन 5 देशों में वियतनाम, मलेशिया, बांग्लादेश और थाईलैंड शामिल हैं। खासकर भारत चीन को ऐसी कड़ी चुनौती दे रहा है, जिसके बारे में शायद ड्रेगन ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। जनसंख्या के अनुसार भारत इस समय चीन के कुछ ही कदम दूर है, जो अगले साल मिट जायेगी। जनसंख्या अधिक होने के कारण भारत में श्रमिकों की भारी तादाद के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग का अनुभव भी है। भारत की केंद्र सरकार भी उद्योगों को तेजी से बढ़ाने के पक्ष में है, जिसके लिये कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत के लिये 21 लाख करोड़ का विशेष पैकेज भी जारी किया गया था, ताकि देश की मांग के अनुसार आपूर्ति के साथ ही निर्यात करना भी आसान हो सके। साल 2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन से व्यापार युद्ध शुरू किया था। इसके बाद से ही चीन सप्लाई चेन के मामले में पिछड़ता जा रहा है। अमेरिका ने ही पहले चीन को विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनाया था, लेकिन माना जाता है कि चीन ने अमेरिका की अपेक्षाओं को पूरा करने के बजाये अधिक तानाशाही हो गया है, जिसके कारण अमेरिका को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ रहा है। असल में डब्ल्यूटीओ का सदस्य बनते समय चीन ने वादा किया था कि जैसे जैसे विकास होगा, वैसे ही चीन लोकतांत्रित प्रक्रिया की तरफ कदम बढ़ायेगा, लेकिन हुआ उससे बिलकुल उलट। जैसे जैसे चीन की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है, वैसे वैसे चीन में तानाशाही भी बढ़ती जा रही है।
इसके चलते ट्रंप प्रशासन ने तय किया था कि चीन को कंट्रोल करने के लिये उसकी सप्ताई चैन को बाधित करना होगा, जिसके लिये चीन से आयात कम करके भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों से आयात बढ़ाना होगा। यही वजह रही है कि भारत का अमेरिका को निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, जबकि चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात में बड़े पैमाने पर कमी आई है। इसके साथ अमेरिका के मित्र देश माने जाने वाले यूरोपीयन यूनियन के देशों को भी चीन से आयात घट रहा है। मार्केट रिसर्च फर्म फॉरेस्टर के शोध में कहा गया है कि अमेरिका जितना चीन का नुकसान नहीं कर पाया, उससे कहीं अधिक नुकसान कोरोना से हुआ है। ट्रम्प ने चीन पर भारी टैरिफ लागू किए थे और इसके बाद नये राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी छूट नहीं दी। इसके बाद अमेरिकी प्रशासन ने अब चीन से आयात होने वाली गाड़ियों की भी जांच के आदेश दिए हैं। इसका मतलब यही है कि अमेरिका किसी भी सूरत में चीन को मनमर्जी करने के लिये छोड़ना नहीं चाहता है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि अमेरिका ने अंदरुनी तौर पर एक पॉलिसी बनाई है, जो लोकतांत्रिक देशों के साथ व्यापार बढ़ाने का काम किया जायेगा और चीन, रूस, उत्तरी कोरिया जैसे तानाशाही देशों को कमजोर किया जाये।
इसी तरह से जो देश आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, या ऐसे देशों को बचाने का काम करते हैं, उनको नियंत्रित करने के लिये अमेरिका ने पॉलिसी बनाकर सहयोग न्यूनतम करने का काम किया है, जिसके परिणामस्परुप पाकिस्तान सरीखे देशों को अमेरिका ने फंडिंग कम कर दी है। हालांकि, यूक्रेन में रुस के अतिक्रमण के बाद से अमेरिका ने भारत को अपने पाले में लेकर रुस पर दबाव बनाने का प्रयाया था, लेकिन भारत ने खुद के हितों को प्रथम रखते हुये आगे बढ़ने का काम किया, जिसके बाद कुछ समय के लिये अमेरिका ने भारत से नाराजगी जरुर जताई थी, लेकिन पिछले दिनों सीआईए के प्रमुख ने यह कहकर अमेरिकी पक्ष का जाहिर कर दिया कि रुस के परमाणु हमले को रोकने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत बड़ा कदम उठाया है। अमेरिका ने पिछले दिनों ही जी7 के माध्यम से रुस पर और कड़े प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिय है, जिसके तहत रुस के कच्चे तेल पर मार्केट कैप लगाते हुये 60 डॉलर प्रति बैरल निर्धारित करने का निर्णय किया गया है। इस निर्णय के बाद रुस का कच्चा तेल जी7 के सभी देशों समेत पश्चिमी देशों को इससे अधिक महंगा तेल नहीं बेचा जा सकेगा। अमेरिका का मानना है कि इससे रुस की आर्थिक हालात खराब होगी और वह यूक्रेन खाली करने के लिये मजबूर होगा। इसका असर देखने को मिलता भी, लेकिन उससे पहले ही रुस ने तय किया है कि यूरोप को निर्यात की जा रही गैस और कच्चे तेल की आपूर्ति बंद की जायेगी।
यूक्रेन से टकराव के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने यूरोपीय संघ को लेकर बड़ा फैसला लिया है। पुतिन ने यूरोपीय संघ के देशों को तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जो मूल्य सीमा, यानी प्राइस कैप निर्धारित करते हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने कहा कि रूस उन यूरोपीय संघ के देशों को तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगा, जो उसके तेल पर प्राइस कैप लगाते हैं। उनको तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के एक डिक्री पर राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने हस्ताक्षर किए हैं। डिक्री के अनुसार यह प्रतिबंध 1 फरवरी 2023 से लागू होगा और 1 जुलाई 2023 तक प्रभावी रहेगा। हालांकि, डिक्री में एक यह विकल्‍प भी शामिल है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन विशेष मामलों में प्रतिबंध को खत्म करने लिये स्वतंत्र हैं। इसके अलावा डिक्री में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को यह अधिकार दिया गया है कि वह इसमें कभी भी कोई भी संसोधन कर सकते हैं। जुलाई के बाद भी यदि युद्ध जारी रहता है तो फिर उसे आगे बढ़ाने का काम किया जा सकता है, अन्यथा उस वक्त की परिस्थितियों के अनुरुप निर्णय किया जायेगा। दरअसल, यूरोप की कुल एनर्जी का करीब 40 फीसदी आपूर्ति अकेला रूस ही करता है। सर्दियों के मौसम में यूरोप में कड़ाके की ठंड के कारण एनर्जी की डिमांड बढ़ जाती है और ऐसे में यदि रूस ने गैस तेल आपूर्ति बंद कर ​दी तो यूरोप की हालत खराब हो जायेगी।
जिस तरह से रूस के कच्चे तेल पर प्राइस कैप लगाकर जी7 ने उसको आर्थिक चोट पहुंचाने का कदम उठाया है, ठीक उसी के जवाब में रूस ने भी यूरोप और अमेरिका को सबक सिखाने के लिये तेल गैस आपूर्ति बंद करने का निर्णय लिया है। इधर, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलादोमोर जैलेंस्की ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करके एक बार फिर से धन्यवाद के साथ रूस को वार्ता के लिये तैयार करने का आग्रह किया है, तो साथ ही यूएन से भी दोनों देशों के बीच वार्ता के लिये मध्यथता करने की अपील की है। यूक्रेन को इस बात का पूरा भरोसा है कि भारत ने यदि रूस को कहा तो वह वार्ता करने को तैयार हो जायेगा। इस युद्धकाल में पूरी दुनिया में यह मैसेज गया है​ कि नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच गहरी दोस्ती है, जिसके कारण दोनों देश एक दूसरे को खुलकर मदद कर रहे हैं।
यही वजह है कि अमेरिका भी भारत से रूस को समझाने और युद्ध बंद करने की पहल करने को कह रहा है। अमेरिका ने पहले भी कहा है कि भारत यदि चाहे तो रूस युद्धभूमि से पीछे हट सकता है। हालांकि, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन से कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं है, बल्कि डायलॉग, डिप्लोमेसी और डेमोक्रेसी का है। पिछले दिनों जब पुतिन ने परमाणु हमले की धमकी दी थी, तब भी मोदी ने पुतिन को फोन कर परमाणु हमला नहीं किये जाने को कहा था। इस बात को रूस मान भी गया है, जिसके बाद अमेरिका को भी यह विश्वास हो गया है कि भारत चाहे तो रूस इस युद्ध को खत्म भी कर सकता है। यूक्रेन को भी अब यही भरोसा है। रूस के आक्रमण की बात करें तो उसका सीधा सा टारगेट यूक्रेन को नाटो गठबंधन में जाने से रोकना है। पुतिन कह चुके हैं कि यदि यूक्रेन उनकी बात मान लेता है, तो दो मिनट में युद्ध खत्म हो जायेगा। हालांकि, यूक्रेन इस जिद्द पर अड़ा है कि चाहे कुछ भी हो जाये, लेकिन वह नाटो सदस्य नहीं बनकर रहेगा और रूस के दबाव में काम नहीं करेगा। विदेश मामलों के जानकार कहते हैं कि रूस को इस बात की चिंता सता रही है​ कि जिस दिन यूक्रेन नाटो का सदस्य बन जायेगा, उस दिन अमेरिका सीधे तौर पर उसकी सीमाओं तक पहुंच जायेगा, जहां से रूस पर दबाव बनाने का काम किया जा सकेगा।
नाटो सदस्य देशों के बीच एक ऐसा एग्रीमेंट होता है, जिसके तहत किसी भी एक देश पर हमला सभी देशों पर हमला माना जाता है और फिर ये सभी देश मिलकर उससे मुकाबला करते हैं। यूक्रेन को लगता है कि रूस उसको वापस मिलाने का कदम उठा सकता है, जिससे बचने के लिये वह अमेरिका की शरण में जाना चाहता है। जबकि नाटो सदस्य बनने पर अमेरिका समेत कोई भी सदस्य देश यूक्रेन में अपना सैनिक अड्डा बना सकता है। रूस को पता है कि यूक्रेन यदि सदस्य बना तो अमेरिका सबसे पहले यूक्रेन में अपना सैनिक अड्डा रूस की सीमाओं के पास स्थापित करेगा, जो भविष्य में उसपर खतरा उत्पन्न कर सकता है। अब रूस के द्वारा यूरोप को तेल गैस निर्यात बंद करने की धमकी के बाद नया संकट खड़ा हो जायेगा, जिससे पूरे यूरोप को सामना करना होगा। गर्मी के समय बढ़ते तापमान और अभी महंगाई की मार से जूझ रहे यूरोप के लिये यह संकट किसी युद्ध के कम नहीं है। हालांकि, यह बात रूस पर भी लागू होती है कि वह अपना तेल गैस कहां पर खपायेगा?
ऐसे में भारत जैसे देशों के लिये नये रास्ते खुलते हैं। कच्चा तेल बाजार दर से करीब 35 फीसदी सस्ता मिलने के कारण भारत ने वैसे तो मार्च से अब तक रूस से तेल आयात की मात्रा को अपने कुल आयात का 2 फीसदी से बढ़ाकर 22 प्रतिशत तक ले गया है, और अब जबकि रूस ने यूरोप पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया है, तब यह माना जा रहा है कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने के लिये भारत और चीन जैसे मित्र देशों को सस्ते तेल की सप्लाई अधिक बढ़ा सकता है। आज की तारीख में भारत को रूस से 68000 बैरल प्रतिदिन तेल मिल रहा है, जिसको बढ़ाकर एक लाख बैरल तक ले जाया जा सकता है। हालांकि, इस बीच अमेरिका समेत यूरोप का एक बार फिर से भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया जायेगा, लेकिन अमेरिका को एशिया में भारत से अच्छा पॉवरफुल और रिलायबल पार्टनर नहीं मिलने के कारण वह भारत को रूस से कच्चा तेल आयात कम करने के लिये ज्यादा फोर्स भी नहीं करेगा। ऐसे में रूस का यूरोप को सप्लाई नहीं करना भारत के लिये वरदान साबित होगा, जिसमें भारत करोड़ों डॉलर की बचत कर पायेगा।
इससे भी मजेदार बात यह है कि भारत के पास दुनिया की सबसे अत्याधुनिक और अधिक बड़ी तेल रिफायनरियां हैं, जहां पर कच्चा तेल रिफाइन करके अमेरिका समेत यूरोप को बेचा जाता है। जब रूस यूरोप को तेल देना बंद करेगा, तब भारत को रूस से कच्चा तेल आयात होगा और वही तेल तैयार करके भारत की कंपनियां अमेरिका व यूरोप जैसे बाजारों में बेचकर मुनाफा कमा सकेंगी। इसलिये आने वाला समय इस मामले में भारत के लिये फायदेमंद दिखाई दे रहा है। भारत को कच्चा तेल निर्यात करने में इस समय रूस और इराक के बीच होड मची हुई है। भारतीय मांग के अनुसार दोनों देशों से मिलाकर करीब 50 फीसदी तेल की आपूर्ति होती है। गैस आयात भी बढ़ाने के प्रयास जारी हैं, जिसके बाद देश में पेट्रोल डीजल और गैस की दरों में कमी आ सकती है। यदि इनकी रेट कम हुई तो भारत में भी महंगाई कम होने की पूरी संभावना है। इस बीच चीन की सप्लाई चैन कमजोर होती जा रही है, जिससे भारत अनाज, एनर्जी समेत सभी सेक्टर्स में पांचों महाद्वीपों के लिये एक महत्वपूर्ण देश बनता दिखाई दे रहा है। एक साल के लिये भारत के पास जी20 की अध्यक्षता भी है, जिसका फायदा उठाते हुये नरेंद्र मोदी सरकार दुनिया में अपना सिक्का जमाने का प्रयास जरुर करेगी, जिसकी तैयारी के लिये विदेश मंत्री डॉ. सु​ब्रम्ण्यम जयशंकर को जिम्मेदारी मिली हुई है।

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