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भारत का दुश्मन चीन कभी भी हो सकता है कंगाल

Ram Gopal Jat
इसको चमत्कार कहें या संयोग, लेकिन मेादी से जो भी दुश्मनी लेता है, वह देश होता है तो बर्बाद हो जाता है, और व्यक्ति होता है तो उसका कॅरियर चौपट हो जाता है। पहले पाकिस्तान और अब भारत का सबसे बड़ा देश ड्रेगन भी बर्बादी की सीमाओं पर खड़ा हो गया है। पिछले ​तीन दशक में कारोबार और ऋण देकर छोटे देशों को अपने जाल में फंसाने वाला चीन खुद कंगाली के द्वार पर खड़ा है। ताश के पत्तों से तरह महल बनाकर दुनियाभर में विकास का डंका पीट रहा ड्रेगन कभी भी खुद की सरकार के कई विभागों को कंगाल घोषित कर सकता है। ​रीयल स्टेट में बुरी तरह से जमीन पर आ पड़े चीन का रेलवे अर्थव्यवस्था का अगला शिकार होने जा रहा है। इसके साथ ही चीन चिप बाजार भयानक घाटे में चल रहा है, जबकि सस्ते मोबाइल फोन के जरिये भारत जैसे उभरते बाजारों पर राज करने की साजिश करने बड़े पैमाने पर सब्सिडी देने वाला इलेक्ट्रोनिक मार्केट भी कंगाली की कगार पर है।
चीन में विद्रोह इस कदर फैल रहा है कि ना केवल अमीर लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं, बल्कि वैश्विक कंपनियां भी अपना कारोबार समेटकर भारत जैसा देश तलाश रही हैं। इस बीच सामने आया है कि एप्पल के लिये आईफोन बनाने वाली 2 लाख कर्मचारियों वाली फॉक्सकॉन भी भारत में शिफ्ट होने का विचार कर रही है। चीन की अर्थव्यव्था कैसे तबाह हो रही है और उसकी तबाही का सबसे बड़ा कारण क्या है, यह जानने से पहले वर्तमान में चल रहे सबसे बड़े आंदोलन को समझ लेते हैं, उसके बाद जानेंगे कि कब तक चीन अपने आप को झूठ के समंदर में खुद को सबसे बड़ा तैराक बताता रहेगा। कम्युनिस्ट शासन वाले चीन में जीरो कोविड पॉलिसी के नाम पर एक बार फिर सरकार की तानाशाही दिख रही है। इसके खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। इस जनांदोलन को ‘लोकतंत्र की मांग’ के रूप में भी देखा जा रहा है। लोकतंत्र बहाली के लिए 1989 में एक बार ऐसी ही कोशिश हुई थी। कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ बड़ा जन आंदोलन हुआ। उसकी अगुवाई की थी छात्रों और युवाओं ने। वह आंदोलन चीनी सरकार को बर्दाश्त नहीं हुआ और देश में मार्शल लॉ लगा दिया गया था। आंदोलन करने वालों पर बंंदूकों और टैंकों से गोलीबारी करवा दी, जिसमें हजारों प्रदर्शनकारियों की मौत हुई थी।
अब एक बार फिर से चीन में वैसा ही विद्रोह दिख रहा है। 33 साल बाद एक बार फिर कम्युनिस्ट शासन को चुनौती दी जा रही है। इस बार भी आंदोलन में छात्र और युवा अगुवाई करते दिख रहे हैं और इस बार भी शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट सरकार आंदोलन को दबाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। आगे बढ़ने से पहले यह समझिये कि चीन में 33 साल पहले क्या हुआ था, क्यों हुआ था, अब क्या और क्यों हो रहा है? चीन भी कभी भारत की तरह ब्रिटिश उपनिवेशवाद का हिस्सा था। जिसको लेकर कई बार संघर्ष किए, किंतु सफलता नहीं मिली। साल 1912 में सोन यात सिन की अगुवाई में क्रांति सफल हुई और वे चीन के पहले राष्ट्रपति चुने गए। लेकिन साल 1931 में फिर से चीन पर जापान का आक्रमण शुरू हो गया। माओत्से तुंग और चियान काय चेक की अगुवाई में आंंतरिक युद्ध चल रहा था तो उधर द्वितीय विश्वयुद्ध जारी था। साल 1945 में विश्वयुद्ध के अंत में जापान के हथियार डालते ही चीन-जापान युद्ध भी खत्म हो गया।
हालांकि, इसके बाद भी चीन में आंतरिक युद्ध चलता रहा और कम्युनिस्टों को जीत हासिल हुई। इसी के साथ 1949 में 1 अक्तूबर को माओ ने लोकतंत्र की स्थापना की घोषणा की, लेकिन इस देश में आज तक लोकतंत्र स्थापित नहीं हुआ। एक ही पार्टी, एक विधान, यही बची है चीन की पहचान। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का ही शासन चला रहा है। पिछले तीन साल से चीन में कोरोना कहर बरपा रहा है। आज भी जीरो काेविड पॉलिसी के नाम पर जिनपिंग सरकार जिस तरह से तानाशाही कर रही है, उसके कारण नागरिकों का सब्र जवाब दे चुका है। आक्रोशित युवा सड़कों पर हैं और चीनी सरकार को खुलकर चुनौती दे रहे हैं। हालांकि, चीन में सोशल मीडिया पर बैन है, इसलिये कुछ भी बाहर नहीं आ पा रहा है। जबकि मीडिया को उतनी ही एंट्री है, जितनी कम्यूनिस्ट पार्टी चाहती है।
इससे पूर्व 33 साल पहले 1989 में चीन में जनता महंंगाई, भ्रष्टाचार से त्रस्त थी। अप्रैल 1989 में सुधारवादी छवि के कम्युनिस्ट नेता हू याओबांग का निधन हो गया था। लोगों के बीच भविष्य को लेकर गहरी चिंताएं थीं, तब रोजगार का संकट था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी, मजबूत आर्थिक नीतियाें का अभाव था। नागरिकों के बीच सबसे बड़ी चिंता यह थी कि एक राजनीतिक पार्टी सिस्टम को कानूनी किया जा रहा था, यानी सत्ता तानाशाही की ओर बढ़ रही थी। इन तमाम मुद्दों को लेकर चीन में सरकार का विरोध शुरू हुआ। छात्रों और युवाओं की अगुवाई में जगह-जगह हो रहे विरोध प्रदर्शनों को अपार जन समर्थन मिला। 2 जून 1989 को राजधानी बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर पर एक लाख से ज्यादा प्रदर्शनकारी जमा हो गए थे। गायक हाउ डेजियन का कॉन्सर्ट चल रहा था और यहीं से लाखों युवा सरकार को खुली चुनौती दे रहे थे।
चीनी सरकार ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए मार्शल लॉ लगा दिया था। 3 और 4 जून की दरम्यान रात करीब एक बजे से चीनी सेना ने तियानमेन स्क्वायर पर गोलीबारी शुरू कर दी। अगले दिन तक बंदूकों और टैंकों से गोलीबारी जारी रही। इस दमनचक्र में हजारों छात्रों और नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। चीनी सरकार ने माैत के आंकड़े जारी नहीं किए, लेकिन विभिन्न रिपोर्ट्स में सामने आया कि उस नरसंहार में करीब 10 हजार लोगों की मौत हुई थी। उसके बाद आंदोजन खत्म हो गया। चीन में विरोध प्रदर्शन दुर्लभ हैं, लेकिन 33 साल बाद एक बार फिर व्यापक जनांदोलन दिख रहा है। कम्युनिस्ट सरकार को एक बार फिर चुनौती दी जा रही है। कोरोना के कारण चीन में लोग त्रस्त तो हैं ही, सरकार की जीरो कोविड पॉलिसी भी लोगों की जान पर भारी पड़ रही है। रोजमर्रा की जरूरत के सामानों के लिए लोगों को दो-चार होना पड़ रहा है। कई लोगों को रोजगार के अभाव में दो वक्त का खाना मुश्किल हो रहा है। पाबंदियां इतनी हैं कि दो साल से खत्म ही नहीं हो रहीं, जिसके कारण लोगों का सब्र अब जवाब दे चुका है।
डॉयचे वेले की रिपोर्ट के अनुसार सरकार की नीतियों की वजह से लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं। कोरोना के कारण लोगों ने अपने परिजनों को खोया, कारोबार बर्बाद हुआ, नौकरी गंवाई, लोग सुकून की जिंदगी नहीं जी पा रहे। जिस देश में लोग सरकार के खिलाफ नहीं बोल सकते थे, वहां अब शी जिनपिंग का खुलकर विरोध कर रहे हैं। राष्ट्रपति जिनपिंग की जीरो कोविड नीति के खिलाफ हो रहे इस विद्रोह को दबाने के लिए चीनी सरकार तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। शहरों में सादे ड्रेस में मौजूद पुलिस प्रदर्शनकारियों को अगवा कर रहे हैं। चीन की सेंसरशिप मशीन भी एक्टिव हो गई है और उरुमकी-शंघाई जैसे शब्दों को सेंशर कर दिया गया है। चीन ने आंदोलन को कुचलन के लिये किसी भी भाषा में विरोध करने वालों की निगरानी के लिये एआई को एक्टिव कर दिया है। विरोध दबाने के लिए चीनी सरकार पोर्न साइट्स तक का सहारा ले रही है। दुनियाभर में कहीं पर भी प्रोटेस्ट सर्च करने पर पोर्न से जुड़े लिंक दिख रहे हैं। इस प्रदर्शन को दुनिया से छिपाने के लिए चीन सेक्ट बॉट का सहारा ले रहा है, चहां स्पैम अकाउंट्स की बहार आ गई है।
सोशल मीडिया पर यदि आप चीन के बीजिंग या शंघाई शहर में प्रोटेस्ट सर्च करेंगे तो उससे जुड़े कंटेंट की बजायपोर्न वीडियो के लिंक दिखेंगे। कई यूजर्स को कॉल गर्ल या एस्कॉर्ट सर्विस से जुड़े बहुत सारे विज्ञापन दिखने लगेंगे। चीन में आंदोलन के व्यापक होने के बाद इस तरह के विज्ञापनों की बाढ़ आनी शुरू हो गई है। इसका मतलब यह है कि चीन किसी भी सूरत में आंदोलन को विदेशी मीडिया और दुनिया के सामने नहीं लाना चाहता है। पिछले दिनों जेंगझाउ स्थित एप्पल सिटी की फॉक्सकॉन कंपनी में हजारों लोग दीवार फांदकर भाग गये थे। तब से कंपनी में काम बंद पड़ा है। इस कंपनी में 2 लाख लोग काम करते हैं, जिनको रोकना मुश्किल हो गया है। फिर से हजारों लोगों को भर्ती किया गया है, लेकिन वो पुराने कर्मचारियों के साथ काम नहीं करना चाहते हैं। चीन की सरकार विदेशियों को भी सरकारी नौकरी देने का विज्ञापन दे रही है। जबकि अलीबाबा जैसी वैश्विक कंपनी के संस्थापक जैम मा बीते छह महीनों से जापान की राजधानी टोक्यिो में शरण लिये हुये हैं। साल 2022 बीतने में एक महीना बाकी है, लेकिन अब तक चीन के 15000 अमीर देश छोड़कर दूसरे देशों में भाग चुके हैं।
पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बंग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों को कर्ज देकर जाल में फंसाने वाले चीन के उपर इतना कर्ज हो गया है कि वह सरकारी बैंकों का कर्ज नहीं चुका पा रहा है। इस वजह से चीन का रेलवे विभाग खुद को कंगाल घोषत करने पर विचार कर रहा है। ताइवान के बाद चीन में ही सबसे अधिक सेमीकंटक्टर और चिप बनती है, जो उत्पादन ठप पड़ चुका है। चीन का रीयल स्टेट कारोबार 20 लाख करोड़ के नीचे आ चुका है, जो अब पूरी तरह से बंद हो गया है। इसी तरह से इलेक्ट्रोनिक उत्पादों के जरिये भारत जैसे बाजारों पर राज करने वाली कंपनियां कंगाली होती जा रही है। पिछले दिनों एक रिपोर्ट में सामने आया था कि सबसे अमीर आदमी एलन मस्क की टेस्ला कंपनी भी चीन छोड़ने पर विचार कर रही है। दुनिया के सामने आई यह सच्चाई हकिकत एक केवल एक फीसदी हिस्सा है, जबकि हालात बद से बदत्तर होते जा रहे हैं। चीन खुद सभी चीजों को छिपाकर दुनिया के उद्योगपतियों को रोके रखना चाहता हैख् लेकिन विदेश से चीन में जाने वाले कारोबारी जब हालात बिगडते हुये अपनी आंखों से देख रहे हैं, तब उनको भी अपना कारोबार समेटने की चिंता हो रही है।
ताइवान से टेंशन के ​बीच जब जिनपिंग ने पिपुल्स लिबरेशन आर्मी को 24 घंटे में तैयार रहने की हिदायत दी, तो दुनिया को जानकर आश्चर्य जरुर हुआ कि आर्थिक हालात खराब होने के बाद भी वह किसी युद्ध की तैयारी कैसे कर रहा है। लोगों को लग रहा है कि ताइवान पर हमले की धमकी को साकार करने जा रहा है। किंतु पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि वह ताइवान के अलावा जापान या भारत के साथ भी युद्ध कर सकता है। दरअसल, चीन को लगता है कि भारत शांति से विकास कर रहा है, जबकि कोरोना काल में उसका कारोबार कम हो रहा है। हालांकि, पिछले तीन साल में चीन के समर्थन से भारत में शाहीन बाग से लेकर किसान आंदोलन को भी हवा मिल चुकी है, लेकिन फिर भी इनका सफल नहीं होना चीन को चैन नहीं दे रहा है। आईएमएफ कहा चुका है कि अगले वित्त वर्ष में भी दुनिया में भारत की विकास दर सबसे अधिक रहने वाली है, जबकि चीन की विकास दर लगातार कम होती जा रही है।
एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की चालू वित्त वर्ष में विकास दर 4.1 फीसदी से भी कम हो सकती है। जबकि इसी दौरान भारत की विकास की रफ्तार 9 फीसदी के मध्य रहने का अनुमान जारी किया गया है। पहली तिमाही में भारत की जीडीपी रफ्तार 13.5 फीसदी रही है, जबकि इसी दौरान चीन की गति में 0.3 प्रतिशत की कमी आई है। चीन इस वक्त दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, जबकि भारत हाल ही में पाचवें नंबर पर आया है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि 2028 तक भारत तीसरे नंबर पर आ जायेगा, जबकि गौतम अडानी ने हाल ही में कहा है कि 2050 से पहले भारत विश्व की दूसरे नंबर की इकॉनोमी बन जायेगा। इसका मतलब यह है कि तब तक या तो चीन तीसरे नंबर जायेगा या फिर अमेरिका की स्थिति कमजोर होगी। अमेरिका में भी लोकतंत्र है, और वहां पर ऐसी कोई हालात बनती हुई दिखाई भी नहीं दे रही है कि विकास दर ​इतनी कमजोर हो जाये कि वह तीसरे नंबर पर चला जाये।
अपने ही नागरिकों के सरकारी विरोधी आंदोलन और भारत की बढ़ती ताकत से चिंतित चीन ने किसी भी सूरत में यह बात बर्तास्त नहीं कर पा रहा है कि वह भारत से कमजोर हो जाये, इसलिये तानाशाही कम्यूनिस्ट सरकार चीन में उठ रहे छात्र आंदोलन को कुचल देना चाहती है। कुछ महीनों पहले जब श्रीलंका कंगाल हुआ, तब उसे चीन ने कोई मदद नहीं की। भारत ने श्रीलंका को एक पड़ोसी के नाते मदद देकर उसे मुश्किल हालत से उबरने में सहायता की। इसी तरह से पाकिस्तान में भी हालात ​बेकाबू हैं, लेकिन फिर भी चीन उसको सहायता नहीं दे रहा है। बल्कि अमेरिका ने एक बार फिर उसको मदद करके घुसपेठ करने का प्रयास किया है। जबकि पाकिस्तान में चीन का अपने देश के बाहर सबसे बड़ा निवेश किया हुआ है। यहां पर चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर चीन ने करीब 46 बिलियन डॉलर का इंवेस्टमेंट किया जा रहा है। हालांकि, चीन की कमजोर आर्थिक हालत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जब पाकिस्तान बर्बादी के मुहाने पर खड़ा है, तब भी उसको मदद नहीं दे रहा है। पाकिस्तान में भी बलूचिस्तान में चीन की इस परियोजना के खिलाफ आंदोलन चल रहे हैं, जिसके कारण उसका यह प्रोजेक्ट खटाई में पड़ता नजर आ रहा है। उपर से भारत के नेताओं और सेना के अधिकारियों की पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर वापस लेने की धमकी ने चीन को परेशान कर दिया है। क्योंकि सीपैक पीओके से ही गुजरती है, इसलिये यदि भारत ने उसे वापस ले लिया तो गिलगिट बाल्टिस्तान का चीन के लिये जरुरी हिस्सा भारत का हो जायेगा, जिसके कारण उसका पूरा निवेश बर्बाद होने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
यही वजह है​ कि रक्षा विशेषज्ञों ने चीन के द्वारा भारत की सीमा पर सैनिक युद्ध की चेतावनी दी है। लद्दाख में वह भारत को युद्ध में उलझाकर अर्थव्यवस्था को कमजोर करने या भारत को पीओके के बारे में पीछे हटने के लिये प्रयास कर सकता है। हालांकि, विदेश मामलों के जानकार यह भी मानते हैं कि यहां पर अब यदि युद्ध हुआ तो भारत चीन की स्थिति लगभग बराबर रहने वाली है। किंतु अपनी खराब स्थिति से ध्यान हटाने और भारत को उलझाने के लिये चीन यहां पर सैनिक हरकत कर सकता है। इसलिये अब यह माना जा रहा है कि चीन में चल रहे आंदोलन को या तो वह 33 साल पहले की तरह खत्म कर सकता है, या फिर इससे ध्यार हटाने के लिये ताइवान या ​भारत के साथ युद्ध करने की हिमाकत कर सकता है। लेकिन फिर भी कोरोना से जूझ रहे चीन की सरकार अपनी इंडस्ट्री को बचायेगी या उससे दुनिया का ध्यान हटाने के लिये अपने किसी पडोसी देश के साथ युद्ध के मैदान में जायेगी, यह आने वाले कुछ महीनों में साफ हो जायेगा।

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