Ram Gopal Jat
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में करीब 10 महीने का समय बाकी है, लेकिन चुनावी गहमागहमी तेज हो गई है। विपक्षी पार्टी भाजपा जहां जन आक्रोश यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 28 तारीख को भीलवाड़ा में प्रस्तावित भगवान देवनारायण मंदिर की यात्रा पर फोकस कर रही है, तो हनुमान बेनीवाल की रालोपा भी सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन शुरू कर चुकी है। भाजपा के सांसद किरोडीलाल मीणा अलग तरह से विधानसभा घेराव कर युवाओं की आवाज बुलंद कर रहे हैं। इधर, भाजपा की तरह ही सरकार के खिलाफ विपक्ष की आवाज बुलंद करने वाले कांग्रेस के विधायक सचिन पायलट अब पूरी तरह से चुनावी मोड़ में आ चुके हैं।
पायलट पिछले चार दिन से प्रदेश के विभिन्न जिलों में दौरों पर हैं। पहले नागौर, फिर हनुमानगढ़, सीकर, पाली के बाद शुक्रवार को जयपुर के महाराजा कॉलेज में सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार को फिर से आड़े हाथों लिया। पायलट अपनी सभाओं में बहाना केंद्र सरकार पर एमएसपी का कानून बनाने का दबाव बनाने का ले रहे हैं, लेकिन नागौर में पेपर माफिया पर कार्यवाही नहीं करने, हनुमानगढ़ में जादू से तिजोरी से पेपर गायब होने, सीकर में बिजली—पानी के मामले में सरकार की असफलता बताने, पाली में वसुंधरा सरकार पर लगाये आरोपों की जांच नहीं कराने की मांग की। लेकिन जयपुर के महाराजा कॉलेज में सचिन पायलट ने अशोक गहलोत सरकार की जमकर खाल उधेड दी। पायलट ने अशोक गहलोत द्वारा उनको नाकारा, निक्कमा और कोरोना कहे जाने को लेकर जमकर तंज कसा। पायलट ने गजलोत की सरकार पर अपराध की विफलता को लेकर गंभीर आरोप लगाये। यह बात सही है कि पांच दिन से जारी पायलट के हमलों से अशोक गहलोत सरकार अंदर तक हिल गई है, क्योंकि इस तरह से अपने वादों को पूरा नहीं करने की हिम्मत गहलोत सरकार में दिखाई नहीं दे रही है।
यह बात सही है कि इन पांच दिनों की रैलियों में सचिन पायलट ने केंद्र सरकार से एमएसपी कानून बनाने और अग्निवीर योजना को लेकर आरोप लगाये हैं, लेकिन जितने गंभीर आरोप लगाये हैं और पायलट ने गहलोत सरकार पर तंज कसे हैं, वह अपने आप में सोचने का विषय है। पायलट ने कांग्रेस और गांधी परिवार का बचाव किया, लेकिन अशोक गहलोत सरकार को कहीं पर छोड़ने का अवसर नहीं दिया।
सबसे चौंकाने वाली सचिन पायलट के नारे रहे, जो एक बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं। सचिन पायलट ने जहां नागौर की सभा में तीन बार जय हिंद का नारा दिया, तो हनुमानगढ़ में जय जवान, जय किसान का नारा बुलंद किया। इसी तरह से जयपुर में युवाओं के सामने पायलट ने भारत माता की जय के नारे दिये। ये तीन नारे अक्सर कांग्रेस के नेता नहीं देते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या सचिन पायलट के दिमाग में कोई बदलाव चल रहा है? क्या सचिन पायलट किसी नई विचारधारा से प्रेरित हो रहे हैं? आज इसी विषय पर बात करेंगे कि क्या सचिन पायलट किसी बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं, जो आने वाले समय में होने वाला है?
आपको याद होगा सचिन पायलट को जनवरी 2014 में तब पीसीसी अध्यक्ष बनाया गया था, जब अशोक गहलोत की सरकार 21 सीटों के साथ सत्ता से बेदखल हो गई थी। उसके बाद सचिन पायलट ने पूरी कांग्रेस को अपने तरीके से हैंडल किया और युवाओं को अवसर दिया। सदन से सड़क तक पायलट के साथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खूब मेहनत की। नतीजा यह हुआ कि जो कांग्रेस गहलोत के कारण 21 सीटों पर चली गई थी, वह पायलट की लीडरशिप में 101 पर पहुंच गई। लेकिन जब मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो अशोक गहलोत की जादूगरी चली और गांधी परिवार ने अपने पुराने वफादार को मुख्मयंत्री बना दिया। पायलट को आश्वासन दिया गया कि यदि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन नहीं किया तो गहलोत को हटाकर उनको सीएम बना दिया जायेगा, लेकिन एक साल तक भी ऐसा नहीं हुआ तो मजबूरन सचिन पायलट 11 जुलाई 2020 को बगावत कर दी। बाद में पायलट को वापस मनाया गया और फिर से आश्वासन दिया गया, लेकिन वादे अब तक भी पूरे नहीं हुये।
राहुल गांधी की भारत जोडो यात्रा के बाद प्रदेश में बदलाव की उम्मीद थी, लेकिन अशोक गहलोत अपना आखिरी बजट 8 फरवरी को पेश करेंगे, जिसकी तैयारी चल रही है। मतलब यह है कि चुनाव में 10 महीने बचे हैं, जबकि दो माह बजट सत्र में निकल जायेंगे, फिर बचेंगे 8 महीने। यदि उसके बाद भी सचिन पायलट को सीएम बनाया जाता है, तो आखिरी दो माह आचार संहिता में निकल जायेंगे और काम करने के लिये अधिकतम 6 माह का समय बचेगा। आपको याद होगा पंजाब में कैसे चुनाव आचार संहिता से पहले सीएम बदला गया था। बाद में 111 दिन के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी बने और कांग्रेस बुरी तरह से चुनाव हार गई थी। लगभग वही हालत राजस्थान में हो सकती है।
इस स्थिति को भांपते हुये सचिन पायलट पहले ही जनता के बीच निकल पड़े हैं। पायलट जनता के सामने ना केवल केंद्र सरकार को लेकर हमला बोल रहे हैं, बल्कि अपनी फैन फॉलोइंग को यह भी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि राज्य की अशोक गहलोत सरकार कोई काम नहीं कर रही है। पेपर लीक से लेकर किसानों को बैंक के चक्कर काटने और किसानों को बिजली नहीं मिलने की समस्या से लेकर वसुंधरा राजे सरकार के काले कारनमों की जांच के वादे याद दिला रहे हैं। पायलट यह भी बता रहे हैं कि जनता तभी विश्वास करती है, जब उससे किये वादों को पूरो किया जाता है, केवल वादे करने और आश्वासन देने से काम नहीं चलता है।
कम ही लोगों ने इस बात को नोटिस किया होगा कि पायलट का रवैया विपक्षी नेता की तरह दिखाई दे रहा है, लेकिन वह अपनी संयमित भाषा में बात रख रहे हैं। इस दौरान वह यह भी जानना चाह रहे हैं कि क्या राज्य की जनता उनको पसंद करती है या नहीं? क्योंकि चार साल पहले जब कांग्रेस ने वादे किये थे, तब वही पीसीसी चीफ थे और घोषणा पत्र उनकी देखरेख में ही बनाया गया था। लेकिन सत्ता में नहीं होने के कारण वह अपने ही किये वादे पूरे नहीं कर पाये हैं। इस वजह से वह जनता की नब्ज भी जानना चाहते हैं कि जनता उनपर अब भी भरोसा करती है या नहीं?
इस बीच राजनीति में चर्चा चल पड़ी है कि सचिन पायलट नई पार्टी भी बना सकते हैं, किसी दूसरी पार्टी में जा सकते हैं या फिर अपनी ही सरकार के खिलाफ एक बार फिर से बगावत भी कर सकते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या पायलट नई पार्टी बना सकते हैं? और यदि बनायेंगे, तो कितने सीटों पर जीत दिला सकते हैं? क्या वह अपने दम पर भाजपा कांग्रेस को सत्ता से बाहर बिठा सकते हैं? और यदि वह किसी दूसरे दल में जायेंगे तो क्या वह आरएलपी का दामन थाम सकते हैं? क्या आरएलपी में जाकर पायलट अपने सपने को पूरा कर सकते हैं? क्या आरएलपी में जाने से पायलट—बेनीवाल के बीच बड़े नेता की जंग नहीं होगी?
सवाल यह उठता है कि पिछले दिनों बेनीवाल ने किरोडीलाल और पायलट को उनके साथ आने का प्रस्ताव दिया था, और यह दावा भी किया था कि यदि ये दोनों नेता उनके साथ आ जायें तो 140 सीटों पर जीत सकते हैं। ऐसे में क्या पर्दे के पीछे ऐसा कोई प्लान चल रहा है, जिसकी शुरुआत पालयट ने इन किसान सम्मेलनों के माध्यम से की है।
यह बात सही है कि राजनीति में कौन, कब, किसके साथ चला जाये, इसकी हमेशा संभावना बनी रहती है। इसलिये यदि कांग्रेस ने पायलट को उचित मान सम्मान नहीं दिया तो वह नई पार्टी भी बना सकते हैं और भाजपा या आरएलपी में भी अपने समर्थकों के साथ जा सकते हैं, लेकिन क्या भाजपा में उनको सीएम बनाने का अवसर रहेगा? पायलट यदि नई पार्टी बनाते हैं, तो निश्चित रुप में से बड़े जनाधार वाले नेता होने के कारण राज्य की राजनीति में भूचाल आ जायेगा, लेकिन इस बात की संभावना नहीं है कि वह अपने दम पर नई पार्टी को जिता सकते हैं। यह बात सही है कि वह कांग्रेस को पूरी तरह से खत्म करने का काम तो कर सकते हैं और भाजपा को भी पूर्ण बहुमत से दूर रख सकते हैं, लेकिन वह खुद बहुमत की सरकार बना लेंगे, यह काम इतना आसान भी नहीं है।
यह बात सही है कि आरएलपी में इन तीनों नेताओं के एक होने से भाजपा—कांग्रेस को सत्ता से बाहर बिठाया जा सकता है। क्योंकि इन तीनों ही नेताओं को व्यक्तिगत जनाधार काफी है। पूर्वी राजस्थान में किरोड़ी, पश्चिम में बेनीवाल और बाकी में सचिन पायलट के दम पर भाजपा—कांग्रेस की जीत का गणित बिगाड़ना अधिक कठिन नहीं है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या उसके बाद सरकार बन सकती है? असल बात यह है कि उसके बाद भी बहुमत मिलने की गांरटी अभी नहीं मिल सकती है। इस वजह से सचिन पायलट जनता का मूड जानने का प्रयास कर रहे हैं और शायद उसके बाद ही कांग्रेस की गतिविधि और जनता की राय के बाद कोई निर्णय करेंगे।
सचिन पायलट पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुके हैं
Siyasi Bharat
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