विदेश मंत्री जयशंकर ने कर दी अमेरिका पर मुद्रा स्ट्राइक

Ram Gopal Jat
यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार में रुपये की​ गिरती ​कीमतों को लेकर नरेंद्र मोदी खूब बयानबाजी करते थे, लेकिन जब से केंद्र में मोदी सरकार के गठन हुआ है, उसके बाद भी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट थमी नहीं है। आज की तारीख में एक डॉलर 82 रुपये के बराबर है, जिसके कारण भारत को विदेशी व्यापार में नुकसान हो रहा है। राजनीतिक बयानबाजी से इतर अर्थव्यवस्था के स्तर पर जानकारों का मानना है कि जब तक डॉलर का विकल्प नहीं तलाशा जायेगा, तब तक यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। इसलिये भारत सरकार ने बीते आठ साल में ऐसे प्रयास किये हैं कि दुनिया के कई देशों के साथ भारत का आयात—निर्यात रुपये में किया जाने लगा है। कहते हैं जो शक्तिशाली होता है, उसी के नाम का सिक्का पूरे विश्व में बोलता है। इस कहावत को अमेरिका ने कभी सच कर दिखाया था। अमेरिकी डॉलर ने 1970 के दशक की शुरुआत में सऊदी अरब के समृद्ध तेल साम्राज्य के साथ डॉलर में वैश्विक ऊर्जा व्यापार करने के लिए एक समझौते के साथ अपनी स्थिति को सील कर दिया। ब्रिटेन वुड्स प्रणाली के पतन से डॉलर की स्थिति में सुधार हुआ। इसने अनिवार्य रूप से अन्य विकसित बाजार मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर को खड़ा कर दिया। इन घटनाओं ने अमेरिकी डॉलर को जिस सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाया, वहीं से डॉलर ने ऊंचाइयों को छुआ।
किंतु कहते हैं कि जो जितना ऊंचा उड़ता है, उतना ही नीचे भी गिरता है। वैसे ही अमेरिकी डॉलर की उड़ान के दिन भी अब खत्म हो चुके हैं या यूं कहें कि तेजी से उड़ते डॉलर के पंख अब भारत—चीन ने काटने की शुरुआत कर दी है और इसका पुख्ता प्रमाण भी मिलने लगा है। यह बात तो आप जानते ही होंगे कि जब—जब कोई स्थान रिक्त होता है, उसे भरने के क्रम में कोई न कोई अवश्य आता है। इसी क्रम में तेजी से उपर बढ़ने के कारण भीष्म की तरह मृत्यु—शय्या पर लेटे हुए अमेरिकी डॉलर के स्थान पर भारतीय रुपया विश्व-व्यापार में अपनी ठसक जमाने के लिए तैयार है। हाल ही में भारत ने दुनिया के 35 देशों के साथ रुपये और उनकी स्थानीय मुद्रा में आयात—निर्यात का रास्ता निकाला है। इसी क्रम में भारत और ईरान ने रुपए-रियाल में कारोबार करने का फैसला किया है, जो भारतीय रुपए का बढ़ता हुआ वर्चस्व इसका सूचक है। दरअसल, रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने की शुरुआत वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से हुई। मोदी सरकार की सरल व्यापारिक नीति और सुलभ ऑनलाइन भुगतान व्यवस्था ने रुपए को एक नई पहचान दिलाई।
वैसे तो भारत काफी समय से नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय समझौते के तहत रुपए एवं संबंधित देशों की मुद्रा में व्यापार करता था, किंतु रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने के लिये रूस-यूक्रेन युद्ध मील का पत्थर साबित हुआ। इस युद्धकाल के दौरान पिछले साल मार्च में रूस, पश्चिमी देशों द्वारा लगाए आर्थिक प्रतिबंधों से परेशान हो चुका था। अपनी गिरती हुई अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये उसने अन्य देशों को सस्ते क़ीमतों पर तेल बेचना प्रारम्भ किया। इस अवसर का लाभ उठाया भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर ने, जिनकी सफल कूटनीति के कारण रूस और भारत ने समझौता करते हुए रुपए-रूबल में तेल व्यापार करने पर सहमत हुये। जिसे रुपये को एक नई उड़ान दिलाने के रुप में बड़ा कदम कहा गया। इससे रूस की आर्थिक व्यवस्था तो सुदृढ़ हुई ही, साथ ही साथ भारतीय रुपए का क़द भी बढ़ा। भारत के साथ इस प्रकार का व्यापार करने के सिलसिले में रूस को जो लाभ हुआ, उससे ईरान की आंखें और बुद्धि, दोनों खुल गईं। ईरान भी अमेरिका के प्रतिबंध के बोझ तले दबा हुआ है, उसकी आर्थिक स्थिति भी बदहाल है। ऐसे में अपनी अर्थव्यवस्था को जीवनदान देने के लिए उसने भारत से सहयोग मांगा।
यह जयशंकर की सफल रणनीति ही है कि एक समय भारत के द्वारा ईरान को दिये गए रुपए-रियाल समझौते के प्रस्ताव को मना कर दिया था, लेकिन वही ईरान आज खुद भारत से रुपए-रियाल को लेकर एक भुगतान प्रणाली विकसित करने का अनुरोध कर रहा है। ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने भारत से सहायता मांगते हुए कहा है कि भारत ईरान के साथ भी रुपए-रूबल जैसे भुगतान प्रणाली विकसित करे। इसी तरह ईरान का धुर विरोधी सऊदी अरब के साथ मिलकर भारत, रुपए-रियाल व्यापार सम्भावनाओं के हर आयाम को तलाश रहा है। भारत और सऊदी अरब ने रुपए-रियाल व्यापार को संस्थागत बनाने एवं वहां UPI और RuPay कार्ड को शुरु करने को लेकर सहमति हुई। भारत-सऊदी अरब सामरिक भागीदारी परिषद की मंत्रीस्तरीय बैठक में भारत के वित्तमंत्री ने पियुष गोयल ने सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने इसपर अपनी सहमति प्रदान की।
ध्यान देने वाली बात है कि मोदी सरकार घरेलू मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की अपनी रणनीति के एक हिस्से के रूप में क्यूबा के साथ द्विपक्षीय व्यापार और रुपये में इसके भुगतान पर भी काम कर रही है। इसके लिये क्यूबा के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों भारत सरकार के अधिकारियों और बैंक अधिकारियों से मुलाकात की और द्विपक्षीय व्यापार तथा भारतीय रिजर्व बैंक के भुगतान तंत्र का उपयोग करने को लेकर सेटलमेंट पर हस्ताक्षर किये हैं। एक ओर जहां भारतीय रुपया भारत के विदेश मंत्री की जयशंकर की रणनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जहां विश्वपटल पर ठसक दिखने को तैयार है, तो दूसरी ओर आईएमएफ के आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़ों के अनुसार विभिन्न देश अपने आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर मूल्य वर्ग की संपत्ति को कम कर रहे हैं। यानी अपने विदेशी मुद्रा भंडार में भी अब भारत का रुपया पहुंच रहा है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले साल जुलाई में विश्व के कई देशों को विदेशी व्यापार सेटलमेंट का प्रस्ताव दिया था, जिसको वैश्विक स्तर पर जोरदार समर्थन मिला है। भारत के पड़ोसी श्रीलंका सहित दुनिया के 35 देशों ने भारत के साथ रुपये में आयात—निर्यात पर सहमति जताई है। इसके दोहरे फायदे होंगे, यानी आयात—निर्यात के साथ ही इन सभी देशों की डॉलर के प्रति निर्भरता कम होगी। भारत और रूस के साथ पिछले साल ही रुपये—रुबल में व्यापार का समझौता हुआ है। आज भारत व रूस के बीच कच्चे तेल से लेकर उर्वरक और स्टील आयात—निर्यात भी अपनी मुद्रा में हो रहा है। डॉलर की बादशाहत को खत्म करने के लिये ही यूरोपीयन संघ ने यूरो में कारोबार करने का फैसला किया था, लेकिन इससे डॉलर का वर्चस्व टूटा नहीं है। अब भारत ने रुपये में और चीन ने यूआन में कारोबार को बढ़ाया है, जिसके कारण डॉलर पर निर्भरता कम होती जा रही है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत से पहले किसी देश ने डॉलर का वर्चस्व तोड़ने का प्रयास किसी ने किया ही नहीं था। इससे पूर्व चीन व रूस भी प्रयास कर चुके हैं। किंतु मजबूत रणनीतिक व भौगोलिक सहयोग के बिना उनके प्रयास सफल नहीं हो पाये। चीन ने भी भारत की तरह कई देशों के साथ युआन में करार कर रखा है। हाल ही में उसने पाकिस्तान में भी युआन शुरू कर दिया है, जिससे पाकिस्तानी रुपये की हालत और खस्ता हो गई है।
भारत और चीन जैसे देशों के इस प्रयास का परिणाम यह हुआ है कि वैश्विक आवंटित विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा मार्च 2022 में घटकर 58.8 प्रतिशत रह गया है, जो 1995 के बाद सबसे कम है। एक समय यह 80 फीसदी पहुंच गया था, जबकि दो साल पहले तक 70 प्रतिशत हुआ करता था। मोदी सरकार का शुरुआत से यह लक्ष्य रहा है कि भारत का गौरव विश्व पटल पर बढ़े। ऐसे में भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण जिस स्तर पर हो रहा है, अगर भारत इसी तरह से आगे बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब डॉलर पर निर्भरता कम होने के कारण अमेरिकी डॉलर पूरी तरह से रसातल में पहुंच जाएगा और यदि भारत की रणनीति पूरी तरह से सफल रही तो सम्पूर्ण विश्व डॉलर के बजाये रुपए के पीछे भागेगा।

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