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अदाणी—पाकिस्तान की बर्बादी के बीच मोदी ने किया धमाका

Ram Gopal Jat
आज दुनिया में दो ही बातों पर चर्चा हो रही है। पहली तो एशिया के नंबर एक अमीर रहे कारोबारी गौतम अडानी के डूबते—उबरते साम्राज्य पर और दूसरा पाकिस्तान की कंगाल होती अर्थव्यवस्था पर। कहने को तो दोनों में डायरेक्ट और इनडाइरेक्ट मोदी का ही हाथ है, क्योंकि पाकिस्तान की हालत तब से खराब होनी शुरू हो गई थी, जब केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार का गठन हुआ था और उसके बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिये सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की गई थी। फिर
भारत ने कश्मीर से धारा 370 हटाई तो पाकिस्तान ने भारत से कारोबार बंद करने की धमकी दी, तो भारत ने भी आयात शुल्क 200 फीसदी बढ़ा दिया। परिणाम यह हुआ कि भारत—पाकिस्तान का कारोबार ही बंद हो गया। तभी से पाकिस्तान व्यापार घाटे में चला जा रहा है। दूसरी तरफ गौतम अडानी को लेकर एक आरोप रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद अडानी ग्रुप के शेयर गिरते जा रहे हैं। गौतम अडानी को भी मोदी से जोडकर देखा जाता है। कांग्रेस लगातार कहती रहती है कि अडानी को बडा कारोबारी बनाने में मोदी का ही हाथ है। जब से केंद्र में मोदी आये हैं, तब से अडानी ग्रुप बहुत तेजी से बढ़ा है। अब एक सप्ताह में करीब 100 अरब डॉलर के नुकसान के बाद अडानी ग्रुप के दिन फिर से बदलने लगे हैं, लेकिन फिलहाल पाकिस्तान के सितारे तो गर्दिश में ही दिखाई दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से बड़ा धमाका कर दिया है। पीएम मोदी लगातार दुनिया में सबसे अधिक लोकप्रिय नेता हैं। विश्व के सभी नेताओं से कहीं अधिक 78 फीसदी लोगों ने मोदी को पसंद किया है। यह लगातार तीसरा साल है, जब मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता बने हैं। मजेदार बात यह कि विश्व की महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति इस सूची में सातवें नंबर हैं। अमेरिकी डेटा इंटेलिजेंस फर्म 'द मॉर्निंग कंसल्ट' के सर्वे के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रूवल रेटिंग में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के PM ऋषि सुनक समेत दुनिया के 22 देशों के नेताओं को पीछे छोड़ दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी की अप्रूवल रेटिंग मई 2020 में सबसे ज्यादा 84% पर थी। तब भारत कोरोना महामारी से बाहर निकल रहा था। इसी साल जून में जारी हुई अप्रूवल रेटिंग की तुलना में इस बार प्रधानमंत्री मोदी की अप्रूवल रेटिंग बेहतर हुई है। जून में PM मोदी की अप्रूवल रेटिंग 66% थी। मोदी की अप्रूवल रेटिंग में सुधार हुआ है। द मॉर्निंग कंसल्ट अप्रूवल और डिसअप्रूवल रेटिंग 7 दिनों के मूविंग एवरेज के आधार पर निकालती है। इस कैलकुलेशन में 1 से 3 प्रतिशत तक का प्लस-माइनस मार्जिन होता है, यानी अप्रूवल और डिसअप्रूवल रेटिंग में 1 से 3 प्रतिशत तक की कमी या वृद्धि हो सकती है।
बात अगर भारत के सबसे अमीर घराने रहे अडाणी समूह की करें तो एक सप्ताह तक लोवर सर्किट लगने के बाद अडानी ग्रुप के शेयर फिर से बढ़ने लगे हैं। अडाणी एंटरप्राइजेज और अडाणी पोर्ट्स समेत समूह की चार कंपनियों के शेयर शुक्रवार को तेजी के साथ बंद हुए। इससे पहले पिछले छह दिनों से अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट हुई थी। अडाणी एंटरप्राइजेज का शेयर बीएसई पर 1.25 प्रतिशत की बढ़त के साथ 1,584 रुपये प्रति शेयर के भाव पर बंद हुआ। दिन के कारोबार में यह अपने एक साल के निचले स्तर 1,017 तक गिर गया था। अडाणी पोर्ट्स का शेयर वापसी करते हुए 7.98 फीसदी बढ़कर 499 रुपये प्रति शेयर के भाव पर पहुंच गया। दिन के कारोबार के दौरान यह 14.51 प्रतिशत तक की गिरावट के साथ अपने एक साल के निचले स्तर 395 रुपये पर पहुंच गया था। अंबुजा सीमेंट ने 6.03 प्रतिशत और एसीसी ने 4.39 प्रतिशत की तेजी दर्ज की। फ्रांसीसी बिजली कंपनी टोटल एनर्जीज का बयान आने के बाद बाजार में सकारात्मक धारणा बनने से अडाणी समूह के कुछ शेयरों में तेजी देखी गई।
हालांकि, अडाणी ट्रांसमिशन में 10 फीसदी, अडाणी ग्रीन एनर्जी में 10 फीसदी, अडाणी पावर में पांच फीसदी, अडाणी टोटल गैस में पांच फीसदी, अडाणी विल्मर में 4.99 फीसदी और एनडीटीवी में 4.98 फीसदी की गिरावट हुई। अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने 25 जनवरी को उद्योगपति गौतम अडाणी की अगुवाई वाले समूह पर ‘शेयरों में गड़बड़ी करने और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल होने का आरोप लगाया था। इसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में लगातार गिराावट आ रही है। अडाणी समूह ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लगाए आरोपों को खारिज किया है। अमेरिकी रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने शुक्रवार को अडाणी पोर्ट्स और अडाणी इलेक्ट्रिसटी की साख को बरकरार रखते हुए दोनों कंपनियों के परिदृश्य को स्थिर से नकारात्मक कर दिया। इधर, फिच ने भी सकारात्मक रैटिंग दी, जिसके कारण अडानी ग्रुप के शेयरों में तेजी आने की संभावना है। दस दिन पहले तक गौतम अडानी दुनिया में तीसरा सबसे अमीर थे, लेकिन आज वह 22वें नंबर पर पहुंच गये हैं।
दूसरी ओर पाकिस्तान की हालात बद से बदत्तर होते जा रहे हैं। पाकिस्तान के पास खाने पीने की चीजें खरीदने का भी पैसा नहीं बचा है, जबकि डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया पौने तीन सौ से भी अधिक पहुंच गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने माना है कि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने 1.2 अरब डॉलर के कर्ज की तीसरी किश्त देने के लिए बेहद सख्त शर्तें रखी हैं। IMF ने जो शर्तें रखी हैं वो पाकिस्तान की सोच से भी ज्यादा सख्त और खतरनाक हैं, लेकिन पाकिस्तान अब क्या करे? उसके पास कोई और चारा भी तो नहीं है। शाहबाज शरीफ के बयान की गहराई में जाने से पहले पाकिस्तान की बेहद बदहाल इकोनॉमी को समझना जरूरी है। पाकिस्तान के पास अब फॉरेक्स रिजर्व, यानी विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 3.1 अरब डॉलर बचा है। इसमें से 3 अरब डॉलर सऊदी अरब डॉलर और UAE के हैं, जो गारंटी डिपॉजिट हैं, यानी इन्हें खर्च नहीं किया जा सकता।
पाक में महंगाई दर 30 फीसदी के पास पहुंच हो गई। सितंबर 2022 में विदेशी कर्ज 130 अरब डॉलर था। इसके बाद पाकिस्तान ने डेटा जारी नहीं किया है। पाकिस्तान में प्जाज 220 रुपये, चिकन 383 रुपये, दाल 228 रुपये, नमक 49 रुपये, चावल 220 रुपये, सरसों का तेल 532 रुपये, ब्रेड का पैकेट 89 रुपये और दूध 149 रुपये लीटर है। शाहबाज शरीफ ने एक टीवी चैनल पर बात करते हुये कहा कि 'मैं डीटेल्स तो नहीं बता सकता, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि हमारी इकोनॉमी के जो हालात हैं, वो आपकी कल्पना से परे है। IMF ने हमें कर्ज देने के लिए बेहद बेरहम शर्तें रखी हैं, लेकिन हमारे पास इन्हें मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है।'
शरीफ के इस बयान की टाइमिंग भी अहम है, क्योंकि 31 जनवरी को IMF की टीम इस्लामाबाद पहुंची है, जो 9 फरवरी तक वहीं रहेगी। कर्ज की किश्त जारी करने से पहले IMF पाकिस्तानी शासन से कई शर्तें मनवाना चाहता है। IMF ने कर्जे के लिये पाकिस्तान के सामने बेहद सख्त शर्तें रखी हैं, साथ ही उसने इन तमाम शर्तों को पूरा करने के लिए पॉलिटिकल गारंटी भी मांगी है। IMF चाहता है कि पाकिस्तान सरकार बिजली और इधंन 60% महंगा करे। टैक्स कलेक्शन दोगुना करने को कहा गया है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि 9 फरवरी को जब IMF और शाहबाज सरकार की बातचीत खत्म होगी, तब अगर सरकार यह शर्तें मान लेती है तो महंगाई अभी से करीब-करीब दोगुनी, यानी 54 से 55% तक हो जाएगी।
इससे भी आसान भाषा में कहें तो महंगाई दोगुनी हुई तो पाकिस्तान की जनता सड़कों पर उतर आएगी और प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की कुर्सी जाना तय हो जाएगा। दूसरी ओर पूर्व पीएम इमरान खान इसी मौके का इंतजार कर रहे हैं। जबकि, देश को इस बदहाली तक लाने में इमरान खान का ही सबसे बड़ा हाथ है, जिनके करीब 4 साल के कार्यकाल में पाकिस्तान का विदेशी कर्ज दोगुना हो गया था। एक साल पहले जनवरी 2022 में महंगाई दर 13% थी। इसका मतलब यह है कि महज एक साल में महंगाई दर दोगुने से ज्यादा हो गई। यह आंकड़ा पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स, यानी PBS ने बुधवार दोपहर जारी किया था। PBS के मुताबिक 1975 के बाद महंगाई सबसे ज्यादा है। उस वक्त यह आंकड़ा 27.77% था।
सरकार के लिए एक बहुत बड़ी परेशानी या कहें शर्मिंदगी की बात यह है कि इस वक्त कराची पोर्ट पर करीब 6 हजार कंटेनर्स खड़े हैं। इन्हें अनलोड सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सका, क्योंकि बैंकों के पास डॉलर नहीं हैं और इस वजह से पेमेंट नहीं हो रहा है। इसलिये देश में रोजमर्रा की चीजों की किल्लत बढ़ती जा रही है। इससे कारोबारियों को तो तगड़ा नुकसान हो ही रहा है, इससे बड़ी परेशानी आम लोगों के लिए है, क्योंकि इन कंटेनर्स में रोजमर्रा की जरूरतों का सामान जैसे फल, सब्जियां, अनाज, तेल, साबुन जैसे सामान भी हैं। लंबे समय से पड़े रहने के कारण ये करीब-करीब खराब हो चुके होंगे। अब तो यह हालात हो चुके हैं कि पोर्ट पर नए कंटेनर्स के खड़े होने की जगह तक नहीं बची है। बढ़ती महंगाई के कारण अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया भी तेजी से गिरता जा रहा है। गुरुवार को डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी करेंसी वैल्यू 278 रुपए हो गई, जबकि पिछले साल इसी वक्त यह 127 रुपए थी।
दो महीने पहले तक पाकिस्तान के वित्तमंत्री रहे मिफ्ताह इस्माइल ने कहा है कि पाकिस्तान अब किसी भी वक्त कंगाल घोषित हो सकता है। एक टीवी शो के दौरान उन्होंने कहा कि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी IMF पाकिस्तान को नए कर्ज की किश्त देने को तैयार नहीं है। पूर्व पीएम इमरान खान के दौर में पाकिस्तानी की इकोनॉमी की जो तबाही शुरू हुई, उससे देश उबर ही नहीं सका है। शाहबाज शरीफ सरकार के पहले वित्तमंत्री मिफ्ताह इस्माइल को सच बोलने वाला नेता माना जाता है। यही वजह है कि उनकी जगह इशहाक डार को वित्तमंत्री बनाया गया है। वो तरह-तरह के दावे कर रहे हैं और IMF को धमकी देते रहते हैं। डार को उम्मीद है कि चीन और सऊदी अरब मिलकर पाकिस्तान को दिवालिया होने से बचा लेंगे।
पाकिस्तान के बड़े अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की एक स्पेशल रिपोर्ट में IMF की एक ऐसी शर्त के बारे में जानकारी दी गई है, जिसे पूरा कर पाना फिलहाल मुमकिन नहीं लगता। इस रिपोर्ट के अनुसार IMF ने कहा है कि वो 1.2 अरब डॉलर की किश्त तभी जारी करेगा, जब पाकिस्तान सरकार इसके लिए बाकी शर्तों के साथ पॉलिटिकल गारंटी भी देगी। पॉलिटिकल गारंटी का सीधा मतलब ये है कि अगर कोई दूसरी पार्टी, जैसे कि इमरान खान की पार्टी ही सत्ता में आती है तो वो किसी वादे से पीछे नहीं हटेगी। दिक्कत ये है कि इमरान खान किसी दूसरी पॉलिटिकल पार्टी के किए वादों को नहीं मानेंगे, तब IMF क्या करेगा? ऐसे में यह माना जा रहा है कि सरकार संसद में एक अध्यादेश लाकर यह शर्त पूरी करेगी। हालांकि, ऐसा कर पाना भी बहुत मुश्किल है। जिसकी दो वजह हैं। पहली बात तो यह कि संसद में विपक्ष है ही नहीं। दूसरी बात यह है कि 6 महीने बाद ऑर्डिनेंस खत्म हो जाएगा, फिर उस अध्यादेश का क्या होगा?
दरअसल, अब देखने वाली बात यही है कि 9 फरवरी को IMF और शाहबाज सरकार के बीच आखिरकार क्या तय होता है और इससे पाकिस्तान दिवालिया होने से कितने दिनों तक बचेगा? इस वक्त सरकार के पास सिर्फ 3.6 अरब डॉलर बचे हैं, जो भी UAE और सऊदी अरब के हैं। इससे पहले मई 2022 में सऊदी अरब गए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को सऊदी से कुल 8 अरब डॉलर का राहत पैकेज लेने में कामयाबी हासिल हुई थी। इस समय सऊदी अरब ने पाकिस्तान को तेल के लिए दी जाने वाली वित्तीय राहत को भी दोगुना करने का वादा किया था। अगस्त 2018 में इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद पहले ही महीने वह सऊदी अरब के दौरे पर गए थे। इमरान खान ने करीब 4 साल के कार्यकाल में कुल 32 विदेश यात्राएं कीं, इनमें 8 बार वो सऊदी अरब गए थे।
पाकिस्तान के पास इस वक्त सिर्फ 3.1 अरब डॉलर का फॉरेन रिजर्व है, जबकि पुराने कर्जे की किश्तें भी नहीं भरी जा सकती हैं। फाइनेंस मिनिस्टर इशहाक डार ने नवंबर में कहा था कि चीन और सऊदी अरब पाकिस्तान को बहुत जल्द 13 अरब डॉलर का नया कर्ज देंगे, लेकिन आज तक यह नहीं मिला और दोनों देश अब तक चुप हैं। दूसरी तरफ आईएमएफ ने भी कर्ज की तीसरी किश्त रोक दी। ऐसे में अब जनवरी से मार्च के पहले क्वॉर्टर में विदेशी कर्ज चुकाने और आयात के लिए फंड्स कहां से आएंगे, इस पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लग गया है। पाकिस्तान के अखबार ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक फाइनेंस मिनिस्टर भले ही सऊदी अरब और चीन से 13 अरब डॉलर के नए लोन मिलने का दावा कर रहे हों, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। नवंबर की शुरुआत में दोनों देशों से बातचीत हुई थी और अब तक इनकी तरफ से कोई पैसा मिलना तो दूर, वादा भी नहीं किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक चीन तो इनसे भी एक कदम आगे निकल गया है। उसने पाकिस्तान से 1.3 अरब डॉलर की किश्त मांग ली। पाकिस्तान सरकार ने चीन की इस हरकत पर अब तक कुछ नहीं कहा है। डार अब दावा कर रहे हैं कि सऊदी अरब से बातचीत जारी है और उम्मीद है कि जल्द ही वहां से 3 अरब डॉलर मिल जाएंगे। दूसरी तरफ सऊदी अरब ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। इधर, चीन के पीछे हटते ही पाकिस्तान ने भी सीपैक में लगे चीनी कर्मचारियों को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है। पाकिस्तान ने कहा है कि चीन अपने कर्मचारियों की सुरक्षा करना चाहता है तो वह निजी कंपनी के सुरक्षा गार्ड्स लगाकर उनको अपनी जेब से सेलेरी दे। इसके बाद चीन का रवैया और सख्त होने की संभावना है। असल बात यह है कि चीन ने दो महीने पहले ही पाकिस्तान सरकार को कहा था कि यदि वह सुरक्षा नहीं दे सकती तो परियोजना को बंद कर दिया जायेगा। जिसके बाद शाहबाज सरकार ने चीनी कर्मचारियों को बुलैट प्रुफ गाड़ियों से सैनिक सुरक्षा देने का ऐलान किया था।
दूसरी बात यह भी है कि चीन के पास अब पाकिस्तान को मदद करने के लिये अधिक फंड नहीं बचा है। क्योंकि चीन में कोरोना के कारण उद्योग चौपट हो गये हैं और निर्यात पर ​विपरीत असर पड़ा है। चीन अपनी सीपैक पर 60 अरब डॉलर खर्च करने वाला था, लेकिन भारत द्वारा बार—बार पीओके वापस लेने की चेतावनी के कारण वह भी पीछे हटता हुआ दिखाई दे रहा है। चीन के निवेश से पाकिस्तान की हालत सुधरने की संभावना थी, लेकिन इतनी बिगड़ गई है कि उसको कुछ सूझ नहीं रहा है।
शाहबाज शरीफ सरकार इमरान खान की गलतियों को ढो रही है। पाकिस्तान में पिछले साल सत्ता तो बदल गई, लेकिन सहायता नहीं मिलने के कारण देश में हालात नहीं बदले। अब सरकार के पास आईएमएफ ही एकमात्र उम्मीद है, जिसकी शर्तों को पूरा करते ही पाकिस्तान में आम आवाम महंगाई से बदहाल होने वाली है।

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