मोदी के सामने युद्ध रोकने की अपील करता अमेरिका

Ram Gopal Jat
समय बदलते समय नहीं लगता। यदि आप ईमानदारी से अपना कर्म कर रहे हो, तो एक दिन दुनिया आपका लोहा मानने लगेगी। एक समय ऐसा था, तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और वहां पर साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। उस दौरान नरेंद्र मोदी को अमेरिका का वीजा नहीं देने के लिये 12 गैर भाजपा दलों के 65 सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिखकर भेजा था। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिखने वालों में राज्यसभा के 25 और लोकसभा के 40 सदस्य थे।
हालांकि, नरेंद्र मोदी ने ना तो कभी अमेरिका जाने के लिये वीजा एप्लाई किया था और ना ही बराक ओबामा को मोदी ने गुजरात न्योता दिया था, लेकिन मोदी को आगे बढ़ने से रोकने के लिये भारत से अमेरिका तक साजिश हो रही थी। समय बदला और नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बन गये। जिन सांसदों ने पत्र लिखा था, उनमें से अधिकांश आज घर बैठे हैं, तो अमेरिका समय के आगे आज इतना लाचार हो गया है कि वह खुद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रूस यूक्रेन युद्ध रोकने की अपील कर रहा है। अमेरिका यहां तक कह रहा है कि दुनिया में सिर्फ मोदी ही हैं, जो इस भयानक युद्ध को रोक सकते हैं।
अमेरिका ने कहा है कि वह चाहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस-यूक्रेन जंग को खत्म करने की अपनी तरफ से आगे बढ़कर पहल करें। अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी से शुक्रवार को व्हाइट हाउस में युद्ध को लेकर सवाल पूछा गया था, जिसके जवाब में उन्होंने कहा है कि भारत ही है, जो इस युद्ध को रोक सकता है, प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति पुतिन से बात कर इस युद्ध को बंद करवा सकते हैं।
इसके साथ ही किर्बी को लगता है कि पुतिन अभी भी युद्ध को रोक सकते हैं। इसके लिए मोदी जो भी कोशिश करना चाहते हैं, वो उन्हें करना चाहिए। अमेरिका ऐसी किसी भी पहल का स्वागत करेगा, जिससे युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो सके और दोनों देशों की दुश्मनी खत्म हो जाए।
किर्बी ने नरेंद्र मोदी के उस बयान का जिक्र भी किया, जिसमें मोदी ने पुतिन से युद्ध रोकने के संबंध में बात की थी। दरअसल, उजबेक्तिान के समरकंद में मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत के दौरान कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है, बल्कि डायलोग, डिप्लोमेसी और डेमोक्रेसी का है। अमेरिकी व्हाइट हाउस के प्रवक्ता किर्बी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी का बयान सिद्धांतों वाला बयान था और अमेरिका ने उनके बयान का स्वागत किया था। साथ ही यूरोप ने भी इसे सकारात्मक तरीके से स्वीकार किया था।
असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की मुलाकात 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में एससीओ की मीटिंग के इतर हुई थी। मोदी—पुतिन की वो बैठक करीब 50 मिनट चली। इस दौरान मोदी ने पुतिन से यूक्रेन युद्ध को लेकर कहा था कि 'आज का युग जंग का नहीं है, हमने फोन पर कई बार इस बारे में बात भी की है कि यह युग लोकतंत्र, कूटनीति और संवाद से चलता है। हम पिछले कई दशकों से हर पल एक-दूसरे के साथ रहे हैं।
अमेरिका ने कहा है कि यूक्रेनी लोगों के साथ जो हो रहा है, उसके लिए एकमात्र व्यक्ति जिम्मेदार है, वो पुतिन हैं और वही इसे अभी रोक सकते हैं। युद्ध रोकने के बजाये पुतिन आज यूक्रेन के पावर प्लांट पर क्रूज मिसाइलें दाग रहें हैं। इससे लोगों के लिये जरुरी बिजली जा रही है, लोग परेशान हो रहे हैं और ज्यादा प्रताड़ित हो रहे हैं।
जो बाइडन के प्रवक्ता किर्बी ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे विनाशकारी युद्ध को खत्म करने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रयासों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि बाइडेन ने ये बातें दर्जनों बार कही हैं, हमें लगता है कि यह युद्ध आज खत्म हो सकता है, खत्म होना भी चाहिए, लेकिन रूस के राष्ट्रपति पुतिन युद्ध खत्म करने को तैयार नहीं हैं। इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम युद्ध के मैदान में यूक्रेन को सफल होने में मदद कर सकें।
इससे पहले अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने जनवरी में कहा था कि हम रूस-यूक्रेन की लड़ाई के मसले पर अपने सभी सहयोगियों के संपर्क में हैं, जिनमें भारत भी शामिल है। मोदी कई बार जंग खत्म करने के लिए बातचीत और कूटनीति के रास्ते पर लौटने की जरूरत पर जोर दे चुके हैं।
इस बीच रूस ने शुक्रवार को एक घंटे में यूक्रेन में 17 मिसाइलें दागीं हैं। ये हमला सुबह 4 बजे यूक्रेन के जपोरिजिया इलाके में किया गया। द कीव इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक जंग की शुरुआत के बाद ये पहला ऐसा हमला, जिसमें एक साथ इतनी मिसाइलें दागीं गई।
दअरसल, अब इस बात को पूरी दुनिया जान चुकी है कि यदि विश्व में इस वक्त किसी के कहने से रूस इस युद्ध से पीछे हट सकता है, तो वो केवल भारत है। इसके कई कारण हैं। जिनमें मुख्य कारण भारत और रूस की दोस्ती है। युद्ध को ऐसा देश ही खत्म करवा सकता है, जो दोनों देशों की भलाई चाहता हो। बड़ा देश तो चीन भी है, लेकिन वह अमेरिका या यूक्रेन के भले के लिये कभी रूस को युद्ध रोकने के लिये नहीं कहता है। भारत और रूस के बीच आज दोस्ती तो है ही, उसके साथ ही भारत आज रूस के साथ चीन के बाद सबसे बड़ा कारोबारी बन चुका है।
जिस प्रकार से रूस के हमले के बाद अमेरिका और यूरोप ने उसपर प्रतिबंध लगाये हैं, उससे सहज ही समझ सकते है कि रूस किसी भी सूरत में अमेरिका या यूरोप पर विश्वास नहीं कर सकता है। अमेरिका के मित्र देश भी इस मामले में रूस के खिलाफ हैं। हालांकि, चीन ने रूस को मदद की है, लेकिन वह अमेरिका के फायदे का काम नहीं करना चाहेगा। युद्ध को एक साल हो चुका है, लेकिन अभी तक इसका समाधान नहीं निकलना पूरे विश्व के लिये चिंता का विषय है।
सवाल यह उठता है कि अमेरिका जैसी महाशक्ति और चीन जैसा शक्तिशाली देश भी युद्ध क्यों नहीं बंद करा पा रहे हैं, जबकि अमेरिका भी इस वॉर को बंद कराने के लिये मोदी से अपील कर रहा है? इसका जवाब जाने उससे पहले यह भी याद कीजिये कि इस युद्ध के शुरू होने का क्या कारण है? असल में यूक्रेन ने नाटो गठबंधन में शामिल होने के लिये आवेदन किया है। उसको ऐसा करने से रोकने के लिये रूस ने पहले यूक्रेन को खूब चेतावनी दी थी, लेकिन वह नहीं माना तो रूस ने उसपर हमला कर दिया। इस एक साल में हजारों लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। दोनों देशों को अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है, फिर भी ना तो यूक्रेन झुक रहा है और ना ही रूस पीछे हट रहा है।
रूस का मानना है कि यूक्रेन यदि नाटो देशों में शामिल हो गया तो गठबंधन की शर्तों के अनुसार कोई भी देश उसमें अपना सैनिक अड्डा स्थापित कर सकता है। अमेरिका के खौफनाक इरादों से पुतिन अच्छे से वाकिफ हैं। रूस को पता है कि यूक्रेन के नाटो मैम्बर बनते ही सबसे पहले अमेरिका वहां ऐसी जगह पर अपना सैनिक अड्डा बनायेगा, जहां से रूस को सहज ही टारगेट किया जा सके। अमेरिका यहीं से रूस को डराने और दबाव में लेने का काम करेगा। इस वजह से रूस नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने।
दूसरी तरफ इस युद्ध में यूक्रेन की हार अमेरिका की ही हार होगी। इस हार से अमेरिका की दुनिया में दादागिरी कम होगी, छोटे देश जो अभी अमेरिका के नाम से डरते हैं, उनमें डर कम हो जायेगा। दूसरी ओर यदि रूस जीत से पहले पीछे हट जाता है, तो उसका मकसद हल नहीं होगा। इसलिये दोनों ही जीत के लिये अड़े हुये हैं। अमेरिका भारत को बार बार युद्ध बंद कराने की अपील इसलिये कर रहा है, क्योंकि यदि भारत ने दबाव बनाया तो रूस युद्ध से पीछे हट जायेगा। उसे यह बात अच्छे से पता है कि रूस की अर्थव्यव्था का इस वक्त बड़ा आधार भारत को होने वाला निर्यात ही है।
इस वजह से अमेरिका को पूरा विश्वास है कि यदि मोदी कहेंगे तो पुतिन युद्ध रोकने को तैयार हो सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि भारत इस युद्ध को खत्म कराने का प्रयास नहीं कर रहा होगा। भारत ने कई स्तर पर रूस और यूक्रेन से बात की है, लेकिन रूस को जहां अपना मकसद हल करना है, तो यूक्रेन के लेकर फैसला अमेरिका को लेना है। इसलिये कहें कि यह युद्ध अमेरिका व रूस के बीच हो रहा है और मैदान बनी हुई है यूक्रेन देश की धरती।

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