चुनाव वाले 9 राज्यों के बजाये भाजपा का ध्यान यहां क्यों है?

Ram Gopal Jat
इस साल देश के कम से कम 9 राज्यों में चुनाव हैं, इसके अलावा यदि जम्मू कश्मीर में स्थितियां सामान्य रहेंगी तो 10 राज्यों में चुनाव होने हैं। किंतु भाजपा का पूरा फॉकस अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिका हुआ है। आखिर ऐसा क्या कारण है कि 9 राज्यों की सत्ता के बजाये पार्टी लोकसभा चुनाव पर अधिक ध्यान दे रही है? ऐसी क्या वजह है कि भाजपा राज्यों की सत्ता से अधिक केंद्र की सत्ता पर फॉकस कर रही है? कई ऐसे कारण हैं, जो भाजपा को केंद्र में तीसरी बार सत्ता प्राप्ति के लिये प्रेरित कर रहे हैं। आइए आज इन्हीं कारणों पर चर्चा करते हैं, लेकिन उससे पहले यह समझ लेते हैं कि भाजपा 2024 की तैयारी को लेकर क्या कुछ कर रही है? भारतीय जनता पार्टी ने अगले साल होने जा रहे आम चुनावों के लिए अपनी तैयारियों का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। पार्टी ने दक्षिण राज्यों, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की 60 सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल के अंत में कम से कम 100 रैलियां करेंगे और उन राज्यों में बड़ी परियोजनाओं की घोषणा करेंगे, जहां पार्टी अपनी पहुंच बढ़ाना चाहती है। 2024 के आम चुनावों के लिए भाजपा का खाका लगभग तैयार है।
प्रधानमंत्री मोदी साल के अंत तक नए कार्यक्रमों को लॉन्च करने और परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए रैलियों को संबोधित करेंगे। केंद्र सरकार उन राज्यों में मेगा परियोजनाओं और व्यय की घोषणा करेगी, जहां भाजपा अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही है। भाजपा ने देशभर की 160 सीटों का चुनाव किया है, जहां पर पार्टी कमजोर पड़ रही है, जहां पर पहले या तो चुनाव जीत नहीं पाई है या फिर आने वाले आम चुनाव में कमजोर दिखाई दे रही है। भाजपा ने पहले ही महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। जहां महिला मोर्चा को महिला लाभाथियों तक पहुंचने और उनके लिए केंद्रीय योजनाओं पर आक्रामक रूप से अभियान चलाने का काम सौंपा गया है। अल्पसंख्यक मोर्चा ने 10 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में लगभग 60 लोकसभा क्षेत्रों की सूची तैयार की है, जहां अल्पसंख्यकों की संख्या आबादी का 30 फीसद है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लोकसभा चुनाव की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए एक समिति का गठन किया है। सुनील बंसल, विनोद तावड़े और तरुण चुघ का तीन सदस्यीय पैनल विभिन्न मोर्चों और विधायकों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की निगरानी करेगा। समिति इस बात पर भी ध्यान देगी कि अगर कार्यक्रमों में कुछ बदलाव की जरूरत है, तो उसके लिए सुझाव दिए जाएंगे। यह समिति समग्र पर्यवेक्षण के प्रभारी होंगे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों को अलग-अलग राज्यों का प्रभार दिया जाएगा। तैयारियों की विभिन्न स्तरों पर निगरानी की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी बिंदू पर अनदेखी ना हो। दक्षिणी राज्यों, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
भाजपा मध्य प्रदेश जैसे राज्य में अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जहां मजबूत पार्टी संरचना से चुनावी प्रभुत्व सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है, तेलंगाना के लिए पार्टी की रणनीति अलग रही है। पार्टी नेतृत्व तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल में अधिक सीटें जीतने के लिए प्रतिबद्ध है। ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों में भाजपा को लोकसभा चुनावों में अपने लाभ का विस्तार करना है, यहां रणनीति अलग होगी। केरल के लिए पार्टी की एक अलग रणनीति होगी। वाम और कांग्रेस को हराने के लिए मंत्रियों सहित केंद्रीय नेताओं द्वारा सार्वजनिक कार्यक्रमों की संख्या बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। केंद्र सरकार केरल में नई परियोजनाओं की घोषणा कर सकती है।
त्रिपुरा और नगालैंड में जीत के बाद पिछले सप्ताह भाजपा मुख्यालय में विजय रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि पूर्वोत्तर में भाजपा की बार-बार जीत ने पार्टी के ईसाई विरोधी होने के आरोपों को खारिज कर दिया है। भाजपा गठबंधन केरल में सत्ता में आएगा, जब लोगों को यह एहसास होगा कि वामपंथी और कांग्रेस ने राज्य को लूटन के लिए हाथ मिलाया है। अब यह समझना जरुरी है कि आखिर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के बजाये भाजपा का पूरा ध्यान आम चुनाव पर क्यों जा टिका है? असल बात यह है कि भाजपा देशव्यापी अभियान लेकर चलती है। इस अभियान में यदि किसी राज्य की सत्ता से उसको बाहर भी होना पड़ता है, तो वह अधिक परवाह नहीं करती है। भाजपा ने पश्चिमी बंगाल, पंजाब जैसे राज्यों में खूब मेहनत की, लेकिन जब इन राज्यों में सत्ता नहीं प्राप्त कर पाई तो उसने बिना कोई दुख मनाये अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। यहां तक कि अगले पांच साल पर फॉकस कर दिया। हिमाचल प्रदेश में सत्ता से बेदखल हुई, लेकिन उसने इसका पश्चाताप नहीं किया, बल्कि पांच साल बाद फिर से सत्ता प्राप्त करने के मिशन में जुट गई।
अन्य दलों के नेता जहां चुनाव हारने के बाद एक दूसरे को कोसने लगते हैं, तो जीत के बाद खुद की पीठ थपथपाने लगते हैं, वहीं भाजपा इससे तुरंत बाहर निकलकर आगे की तैयारी में जुट जाती है। भाजपा चुनाव की निगरानी के लिये ही तीन स्तर की कमेटियां गठित करती है। एक संगठन की, दूसरी सत्ता और तीसरी संघ की बाहरी समिति होती है, जो निष्पक्ष राय रखती है। भाजपा यह बात अच्छे से जानती है कि उसको यदि अपने भविष्य के अभियानों को जमीन पर उतारना है तो केंद्र की सत्ता में रहना बेहद जरुरी है। इसी वजह से पार्टी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। दूसरी बात यह है कि अब जिस तरह की आक्रामक राजनीति चल रही है, उससे कहीं ना कहीं यह मैसेज भी जा रहा है कि यदि भाजपा सत्ता से बाहर हुई, तो उसके नेताओं को सत्ता में आने वाला विपक्ष ईडी, सीबीआई जैसी एजेंसियों के जरिये डराने और बदला लेने का काम करेगा। इस कारण भी पार्टी को लंबे समय तक सत्ता में रहना जरुरी है, ताकि देश में परिस्थितियों को अधिक से अधिक अनुकूल किया जा सके।
तीसरा कारण है मोदी सरकार की योजनाओं को पूरा करना, ताकि देश का विकास रुके नहीं। भाजपा जानती है कि कोई भी परियोजना तभी पूरी तरह से लागू हो पाती है, जब उसको पूरी तरह से जमीन पर उतार दिया जाता है। कुछ योजनाएं ऐसी होती हैं, जो पांच से दस, पंद्रह, या बीस साल में पूरी तरह से अपना असर दिखा पाती हैं और फिर उनका लाभ मिलने लगता है। मोदी की पहली और दूसरी सरकार ने जो बड़ी योजनाएं शुरू कर रखी हैं, उनको पूरी से देश के लिये लाभकारी बनाने के लिये केंद्र की सत्ता बरकरार रखना आवश्यक है। चौथा बड़ा कारण यह है कि जब केंद्र की सत्ता होती है, जो राज्यों की सरकारें आसानी से काम कर पाती हैं। जब जब भी राज्यों में भाजपा की सरकारें रही हैं, और केंद्र में यूपीए की सरकार रही है, तब तब भाजपा शासित राज्यों में विकास की गति रुकी है। यही वजह है कि भाजपा डबल इंजन की सरकार बनाकर रखना चाहती है।
पांचवा कारण है भाजपा का कैडर, जिसमें मोदी के बाद अमित शाह, फिर योगी आदित्यनाथ और इसी तरह से नीचे एक लंबी कतार इस बात का इंतजार कर रही है कि कब उनको अवसर मिले और वो अपने दम पर सत्ता में बैठकर देश के विकास में भागीदार बन सकें। विपक्ष के पास जहां ना तो कैडर है और ना ही ऐसे दमदार नेता हैं, जिनकी सोच ऐसी दिखाई देती हो कि देश की जनता उनपर भरोसा कर पाये। इस वजह से भी केंद्र की सत्ता लंबे समय तक अपने पास रखने का प्रयास किया जा रहा है।
छठा कारण यह है कि भाजपा अब तक देश की सभी सीटों में से 160 सीटों पर या तो जीत नहीं पाई है या फिर कमजोर दिखाई दे रही है। इस वजह से इन सीटों पर भाजपा विशेष ध्यान दे रही है। इस तरह की सीटें भी हैं, जहां पर भाजपा कभी नहीं जीत पाई है, या फिर ऐसी भी सीटें हैं, जहां पर अभी सांसद तो भाजपा के हैं, लेकिन अगले चुनाव में हार की संभावना बन रही है। इन लोकसभा सीटों में राजस्थान की नागौर और करोली—सवाईमाधोपुर भी है, जहां पर भाजपा ने लगातार दो चुनाव जीता है। नागौर में पिछला चुनाव भाजपा—रालोपा के गठबंधन ने जीता था।

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