अमित शाह ने सचिन पायलट को दिया निमंत्रण

Ram Gopal Jat
विधानसभा चुनाव के लिये जैसे जैसे महीने कम हो रहे हैं, वैसे वैसे नेताओं के बयानों का तीखापन बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस अपनी सरकार के अंतिम महीनों में जहां सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच वर्चस्व की जंग में उलझी हुई है, तो भाजपा अपनी रणनीति के तहत ग्रांउड पर तेजी से आगे बढ़ रही है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्र गृहमंत्री अमित शाह ने भरतपुर में बूथ अध्यक्षों का सम्मेलन बुलाकर राज्य के हालात पर बात की। पूर्व अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां द्वारा बनाये गये बूथों के 24 हजार अध्यक्ष—महासचिव भरतपुर सम्मेलन में पहुंचे, जहां पर अमित शाह ने भाजपा को जीत का मंत्र दिया। इसी अवसर पर अमित शाह ने ऐसा कुछ कहा, जिसके बाद राज्य की अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में आने की संभावना दिखाई देने लगी है। मोदी के नंबर एक अमित शाह ने सचिन पायलट को सलाह दी कि वो कितने भी अनशन कर लें, लेकिन उनका सीएम पद पर नंबर नहीं आयेगा, क्योंकि पायलट जनता के नेता हैं, वह जमीन पर मेहनत कर सकते हैं, लेकिन जहां से सीएम बनाया जाता है, वहां पर अशोक गहलोत का पलड़ा भारी है, इसलिये पायलट का सीएम बनने में कभी नंबर नहीं आयेगा, वह कांग्रेस में कभी सीएम नहीं बन पायेंगे।
इसका साफ मतलब है कि भाजपा सचिन पायलट को अपनी ओर मिलाने का प्रयास कर रही है। एक तरह से अमित शाह ने सचिन पायलट को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने का न्यो​ता दे दिया है। इससे पहले जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी कहा था कि यदि सचिन पायलट भाजपा की विचारधारा को स्वीकार करते हैं तो उनका स्वागत किया जायेगा। अब अमित शाह के परोक्ष निमंत्रण से समझा जा सकता है कि भाजपा सचिन पायलट पर भरपूर डोरे डाल रही है। आखिर क्या वजह है कि एक विधायक को भाजपा इतना भाव दे रही है? आखिर क्यों भाजपा आलाकमान भी चाहता है कि सचिन पायलट बीजेपी में शामिल हो जायें? क्यों भाजपा इस समय सचिन पायलट को लेकर बार बार बयान देकर कांग्रेस की अंदरुनी कलह को हवा दे रही है? अमित शाह का यह कहना अपने आप में बहुत बड़ी बात है कि सचिन पायलट का नंबर कभी नहीं आएगा, भले ही वे जमीनी स्तर पर बहुत सक्रिय हैं, लेकिन कांग्रेस के खजाने में गहलोत की भागीदारी बड़ी है। माना जाता रहा है कि अशोक गहलोत की ओर से गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के खर्चे चलाने में बड़ा योगदान रहता है। साथ ही रोबर्ट वाड्रा को जेल जाने से बचाने में भी अशोक गहलोत के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। अमित शाह ने साफ—साफ कह दिया है​ कि कांग्रेस के खजाने में अशोक गहलोत की भागीदारी बड़ी है, इसका अर्थ यही है कि गांधी परिवार की नजर में गहलोत ही सबसे बड़े और सबसे अधिक काम के नेता हैं, भले ही जनता के बीच सचिन पायलट बड़े हों और सत्ता भी उनके नाम पर मिली हो। अमित शाह ने उस बात पर मुहर लगा दी है, जो चार साल से राज्य की जनता कह रही है कि सचिन पायलट को सीएम बनाने के लिये वोट दिया था और गांधी परिवार ने अपने चहेते अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाकर लोगों के वोट का अपमान किया गया है।
सवाल यह उठता है कि क्या सचिन पायलट की अमित शाह से बात चली रही है? पिछले दिनों एक टीवी से बात करते हुये अमित शाह ने पायलट से संबंधित सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया था। अतित शाह से पूछा गया था कि क्या पायलट से उनकी बातचीत चल रही है? तब अमित शाह ने कहा था कि तीनों राज्यों भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार बनायेगी, जबकि सवाल सचिन पायलट को लेकर पूछा गया था। अमित शाह ने पूरा सवाल ही टालकर यह सा​बित किया कि पायलट को लेकर उनकी पार्टी क्या सोचती है और उनकी बात पायलट से होती है या नहीं, यह बात वह जनता के सामने नहीं लाना चाहते हैं। आपको याद होगा जब जुलाई 2020 में कांग्रेस सरकार पर संकट खड़ा हो गया था, गहलोत की पूरी सरकार 34 दिन तक होटलों में कैद थी, तब अशोक गहलोत ने दावा किया था कि सचिन पायलट भाजपा के इशारों पर सरकार गिराने का षड्यंत्र कर रहे हैं। इसके साथ ही विधायकों को भाजपा द्वारा 35—35 करोड़ में खरीदे जाने का भी आरोप गहलोत ने लगाया था।
गहलोत कैंप हमेशा से ही यह दावा करता रहा है कि सचिन पायलट और उनके साथी विधायक भाजपा के संपर्क में हैं और सरकार गिराने का प्रयास करते रहते हैं। गहलोत के बयानों और अमित शाह द्वारा कही गई बातों से साफ होता है​ कि भाजपा सचिन पायलट को अपने पाले में लेने का प्रयास तो कर ही रही है। अब समझने वाली बात यह है​ कि आखिर क्यों भाजपा सचिन पायलट को लेना चाहती है? क्या वजह है कि कांग्रेस के 108 विधायकों में से सचिन पायलट पर ही भाजपा की नजर है? इसके पीछे सबसे बड़ा कारण तो यही है कि पायलट के दम पर भाजपा 2018 में सत्ता से बेदखल हो चुकी है। यह बात प्रदेश का बच्चा बच्चा जानता है कि अशोक गहलोत के सीएम रहते जनता ने कांग्रेस को 2013 में 21 सीटों पर समेट दिया था। इसके बाद 2018 में सचिन पायलट के रुप में नये सीएम और नई उम्मीद के सहारे जनता के कांग्रेस को वोट दिया था। इसलिये भाजपा को पता है कि पायलट के पास जनता की ताकत है और इस ताकत को नवंबर दिसंबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में भुनाया जा सकता है।
दूसरी बात यह है कि पायलट का कद केवल राजस्थान तक सीमित नहीं है, वह जिस राज्य में भी चुनाव प्रचार के लिये सभाएं करते हैं, वहां उनके नाम से भीड़ जुट जाती है। कांग्रेस के अन्य नेताओं की तरह जनता को बुलाने की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है। यानी भाजपा को इस बात का भरोसा है कि पायलट के नाम से कई राज्यों में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी बड़ा फायदा मिलेगा। भाजपा के टॉप नेताओं को विधानसभा से अधिक लोकसभा चुनाव की चिंता है। राज्य के चुनाव तो वह सत्ता प्राप्त करने के लिये लड़ ही रही है, जहां उसे अशोक गहलोत सरकार की नाकामियों के कारण वोट मिल ही जायेगा, लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 400 सीटों का लक्ष्य लेकर अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान में राजस्थान, हरियाणा, यूपी, एमपी, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, गुजरात समेत कई राज्यों में सचिन पायलट एक महत्वपूर्ण नेता साबित होंगे।
राजस्थान के हिसाबत से बात की जाये तो 2018 में भरतपुर संभाग में भाजपा को 19 में से केवल एक सीट पर जीत मिली थी, जबकि 2013 में यहां पर भाजपा ने यहां के चार जिलों में 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। पूर्वी राजस्थान 8 जिलों की 58 सीटों में से भाजपा के पास आज की तारीख में केवल 11 सीट हैं, जबकि 2013 में पार्टी ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीते दो दशक में भाजपा की पूर्वी राजस्थान में इतनी बुरी हार कभी नहीं हुई। माना जाता है कि इन सीटों पर गुर्जर—मीणा बाहुल्य में हैं, जो सचिन पायलट के सर्मथक माने जाते हैं। सचिन पायलट के सीएम बनने की उम्मीद में पिछले चुनाव के दौरान इन दोनों समुदायों ने भाजपा को छोड़कर कांग्रेस को वोट दिया था। पार्टी राजस्थान के इसी क्षेत्र में अपने आप को सबसे कमजोर मान रही है। इसी तरह से पूर्वी राजस्था की 8 लोकसभा सीटों पर पायलट की वजह से भाजपा को फायदा मिल सकता है। यही वजह है कि भाजपा के टॉप—2 लीडर अमित शाह से लेकर वसुंधरा राजे को छोड़कर राज्य के सभी नेता भी सचिन पायलट को भाजपा में शामिल कराने के लिये डोरे डाल रहे हैं। अमित शाह हर एक सीट का अपना गणित लेकर चलते हैं। उनको राज्य का विधानसभा चुनाव तो जीतने ही हैं, इसके साथ ही भाजपा का मैन फॉकस लोकसभा चुनाव पर है, जहां राजस्थान में भाजपा ने बीते दो चुनाव में सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की है।
अब यदि सचिन पायलट को कांग्रेस निकाल देती है तो वह अपना भविष्य भाजपा के साथ देख सकते हैं। दूसरी कोई भी पार्टी उनके कैडर के मुताबिक दिखाई नहीं देती है। इसके अलावा दूसरा विकल्प वह खुद की पार्टी बनाने का अपना सकते हैं, लेकिन उसके लिये काफी पैसे की जरुरत होगी। साथ ही राज्य के सियासी मूड के हिसाब से सचिन पायलट अपनी पार्टी के दम पर सत्ता प्राप्त कर सकते हैं, इसमें भी संशय बना हुआ है। सियासी जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट की भाजपा के साथ डील चल रही है, इंतजार इस बात का किया जा रहा है कि कांग्रेस आगे क्या निर्णय लेती है। कांग्रेस यदि सचिन पायलट को निकाल देती है तो उनके लिये 'सोने पर सुहागा होगा' और यदि मुख्यमंत्री भी नहीं बनाती है, तो यह माना जा रहा है कि वह खुद ही अंत समय में पार्टी छोड़ देंगे।
इस बीच कांग्रेस ने सीएम अशोक गहलोत, प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को तीन दिन तक कांग्रेस विधायकों से वन टू वन मुलाकात करने और उनका मन टटोलने को कहा गया है। यह कार्यक्रम एक तरह से सीएलपी मीटिंग की तरह ही है, लेकिन इसके बाद विधायकों की राय लेकर रंधावा दिल्ली जायेंगे और रिपोर्ट अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को देंगे। फिर सचिन पायलट को लेकर निर्णय लिया जायेगा। यदि कांग्रेस विधायकों की राय मानकर पायलट को अब भी सीएम बना देती और चुनाव में सीएम का चेहरा घोषित भी कर देती है, तो फिर सियासी समीकरण बदल सकते हैं। उस स्थिति में भाजपा को कड़ी टक्कर मिलेगी, लेकिन अशोक गहलोत उनको ना तो आराम से बचे हुये कार्यकाल में काम करने देंगे और ना ही उनके नाम पर सत्ता रिपीट कराने के लिये मेहनत करेंगे। पिछले ​चुनाव में भी पायलट ने जिन 30 कांग्रेसी नेताओं के टिकट काटकर नये उम्मीदवारों को अवसर दिया था, वहां पर गहलोत कैंप ने अपने समर्थक नेताओं को निर्दलीय उतार दिया था, जिनमें से 12 विधायक जीतकर आये, ये सभी विधायक अशोक गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे हैं, जो इस बात का पक्का सबूत है​ कि इनकी जीत के पीछे गहलोत वाली कांग्रेस की काम कर रही थी। इसलिये पायलट को लीडरशिप मिली तो गहलोत समर्थक कार्यकर्ता फिर से ऐसा कर सकते हैं।
कुल मिलाकर भाजपा के लिये आने वाला विधानसभा चुनाव दोनों ही तरह से जीत के द्वार खोल रहा है। जबकि अशोक गहलोत को अपनी फ्री घोषणाओं के जरिये सत्ता रिपीट होने का भरोसा है। दोनों ओर बहुत कुछ हो गया है और काफी कुछ होना शेष है, लेकिन सबकी नजरें पायलट के अगले कदम को लेकर है, जो आने दिनों कुछ दिनों में उठाया जा सकता है।

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