जेल तो जायेगा बृजभूषण पर मोदी सरकार पर कौन भरोसा करेगा?

Ram Gopal Jat
भारत वही देश है, जहां पर दुर्गा माता को पूजा जाता है, काली के आगे सारे पापी ढेर हो जाते हैं और माता सीता को अपना सतित्व साबित करने के लिये अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है। यह वही धरती है जहां पर पांच मर्द मिलकर एक पत्नि द्रौपति को जुआ में दावं पर लगा देते हैं। यह वही धरती है, जहां पर मीरा जैसी कृष्ण भक्त को मारने के लिये षड्यंत्र किये जाते हैं, तो सड़क पर गुजरती अकेली लड़की को शिकार बनाने के बाद उसको नौचा जाता है, टुकड़े टुकड़े तक कर दिये जाते हैं, निर्भया को न्याय दिलाने के लिये जब पूरा देश एक होता है, तब कानून में बदलाव किया जाता है। अंग्रेजों के बनाये कानून ढोने वाला देश अपनी बहन बेटियों को न्याय नहीं दिला सकता है, तो समझो सत्ता भले ही गौरे अंग्रेजों से काले अंग्रेजों के पास आ गई हो, लेकिन सिस्टम अभी भी वही है, जो अंग्रेजों ने अपनी सहूलियत के लिये बनाया था।
यहां गरीब पर आरोप लगते ही पुलिस का एक अदना सा सिपाही बेगुनाह को घर से उठा लाता है, उसे सलाखों के पीछे डाल देता है, जबकि सैंकड़ों अपराधों का आरोपी संसद की शोभा बढ़ाता है। जो आज की तारीख में सबसे बड़े डकैत हैं, वो ही कानून बनाने का काम करते हैं, तब सहज ही समझा लगा सकते हैं कि अबला नारी को न्याय कहां से मिलेगा? गरीब, निर्बल, कमजोर, दलित को इंसाफ नाम का शब्द याद ही नहीं रखना चाहिये। जिस देश में रावण के पुजारी हो सकते हैं जहां पर दुर्योधन के पक्ष में लड़ने वाले राजा भी हो सकते हैं, उस देश में महिलाओं को न्याय मिलेगा, इसकी कल्पना करना ही भी अपने आप में पाप ही है। जहां एक दरिंदे रावण और दुर्योधन के लिये सेना बनकर हजारों लोग मरने मारने को तैयार हों, वहां पर बेटियों को न्याय की कल्पना करना भी अपराध है। जहां बेटियों को जन्म से पहले ही कोंख में मार दिया जाता हो और बालिग होने से पहले शादी कर ससुराल की भट्टी में झोंक दिया जाता हो, जहां पर अपना हक मांगने वाली लड़की को मारकर तंदूर में जला दिया जाता हो, जहां पर रेपिस्ट से बचाने की मुख्यमंत्री तक से अपील करने वाली भंवरी देवी को ईंटों के भट्टे में जला दिया जाता हो, जहां पर भंवरीदेवी को दबंगों के द्वारा गैंगरेप कर बरसों तक प्रत्याडित किया जाता हो, लेकिन न्याय नहीं मिला हो, वहां पर नारी के सम्मान की बातें करना और 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा कोरी बेईमानी से अधिक कुछ नहीं हो सकता।
बरसों तक कांग्रेस ने राज किया और उसके पापों का घड़ा इतना भर गया कि 9 साल पहले सत्ता से साफ हो गई, बल्कि देश से गायब होने की कगार पर पहुंच गई है, आज उसके पास ठीक से बोल पाने वाला नेता नहीं बचा है। जो पार्टी अंतिम सांसें गिन रही है, उससे जनता के हकों की लड़ाई लड़ने की कल्पना कौन करेगा? किंतु पार्टी विद डिफरेंस का नारा दे सत्ता में आने वाली भाजपा किस मुंह से अपने वोटर्स से वोट मांगने जायेगी, जिसका विधायक कुलदीप सेंगर रेप के मामले में ही जेल में सजा काट रहा है। जिसके नेताओं ने एक होटल रिसेपनिस्ट को मारकर नहर में फैंक दिया हो, जिसके सांसद बृजभूषण सिंह पर 84 मुकदमें दर्ज हो, लेकिन फिर भी वह शान की जिंदगी जी रहा हो, उसको सरकार ने अपना दामाद बना रखा हो, जिसको फांसी के फंदे पर होना चाहिये था, वह खेल संघ का अध्यक्ष बना हुआ है और उपर से उसको बचाने के लिये जातिवादियों से लेकर भाजपा की आईटी सेल पूरी ताकत से लगी हुई है।
भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और यौन शोषण के आरोप में केस दर्ज हुआ। यह कार्रवाई एक नाबालिग समेत 7 महिला रेसलर्स की शिकायत पर हुई। इस आरोप पर बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि मेरे खिलाफ जो आरोप लगाए हैं वो बेबुनियाद हैं। जैसा कि हर अपराधी बोलता है कि सारे मामले झूठे हैं और उसको फंसाने की विपक्ष की साजिश है, उसके खिलाफ फंला नेता लगा हुआ है, जिसका यह स्वार्थ है। इसी तरह के बहाने बनाना हर अपराधी का राज धर्म हो गया है। जेल जाने से पहले, गिरफ्तारी से पहले कोई भी अपराधी तमाम तरह के बहाने बनाता है और खुद को दुनिया का सबसे अच्छा आदमी बताने का काम करता है। यही काम आजकल आरोपी बृजभूषण सिंह कर रहा है। बृजभूषण का कहना है कि कांग्रेस और कुछ कारोबारी मिलकर उसके साथ ऐसा कर रहे हैं, ये आरोप बिलकुल वैसे ही है जैसे एक आतंकवादी बम फोड़कर भी कहता है कि बम उसने नहीं बनाया था, उसको तो बस एक पत्थर बोलकर फैंकाने को कहा था, वह फट गया, इसका उसको पता भी नहीं था कि बम है, अब लोग उसको आतंकी बता रहे हैं, जो उससे ईर्ष्या रखते हैं।
प्रश्न यह उठता है​ कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जो केस दर्ज हुए हैं, उसमें गिरफ्तारी के लिये भारत के कानून में क्या नियम हैं? बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और सेक्सुअल हैरेसमेंट के केस दर्ज हुए हैं। बच्चों से होने वाले सेक्सुअल हैरेसमेंट को रोकने के लिए पॉक्सो एक्ट कानून बना है। वैसे तो ये कानून काफी सख्त है। इस केस में आरोपी को पुलिस बेल नहीं दे सकती है। पुलिस सबसे पहले आरोपी को गिरफ्तार करती है और उसके बाद जांच आगे बढ़ाती है। कानून के जानकार कहते हैं कि पुलिस गिरफ्तारी से पहले आरोप की सत्यता की जांच कर सकती है। प्राइमरी जांच में पुलिस को आरोप सही लगता है तो आरोपी को गिरफ्तार होने से कोई नहीं रोक सकता है। पॉक्सो कानून में केस दर्ज होने के बाद अपराधों की जांच और उनके ट्रायल के लिए विशेष व्यवस्था बनी है। ऐसे मामलों में गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलने में भी मुश्किल होती है। एफआईआर और गिरफ्तारी के लिए CrPC में कानूनी व्यवस्था बनाई गई है।
केस दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में अरनेश कुमार और बिहार सरकार के मामले में गाइडलाइन बनाई थीं, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह के मामले में उनका पालन नहीं हो रहा है, मतलब सत्ताधारी दल का सांसद है, इसलिये वह कानून से उपर हो गया है। महिला पहलवानों के सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। सीआरपीसी की धारा-41 और 42 के तहत पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। हालांकि, कई दिन बाद भी ऐसा नहीं किया गया है, जो सरकार की नीयत पर सवाल उठता है, पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्न खड़े करता है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि वह बचा ही रहेगा, असल बात यह है कि आरोप की सत्यता की जांच करने के बाद पुलिस कभी भी बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार कर सकती है। यदि उपर वालों का सिस्टम उसके पक्ष में नहीं रहा तो, अन्यथा महिला पहलवानों को न्याय की उम्मीद केवल भगवन से ही करी जा सकती है। हमारे कानून में यह लूप पॉइंट है कि पुलिस के पास गिरफ्तारी के लिये खिलाफ जब तक कोई मजबूत वजह नहीं हो तब तक गिरफ्तारी टाली नहीं जा सकती है। रेप, मर्डर, किडनैपिंग और डकैती जैसे मामलों में शामिल लोगों की गिरफ्तारी जरूर होती है, जिससे की समाज को और अपराधों से बचाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक खतरनाक और संगीन अपराध में गिरफ्तारी जरुरी होती है। इसके साथ ही शातिर अपराधी से समाज को खतरा, सबूत और गवाहों को खतरा, अपराधी के भागने का खतरा होता है, तब उसकी गिरफ्तारी अति आवश्यक हो जाती है। पहलवानों के मामले में पुलिस ने लंबे समय तक एफआईआर दर्ज नहीं की थी। जिसके कारण सरकार की नीयत और दिल्ली पुलिस पर भी कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। अमित शाह खुद गृहमंत्री हैं, जिनके उपर भी सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में शीर्ष अदालत के दबाव के बाद ही गिरफ्तारी होने की संभावना है। प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी पद पर होने की वजह से बृजभूषण अभी गिरफ्तार नहीं होगा? दरअसल, आपराधिक कानून के मामले में संविधान के अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल को विशेष सुरक्षा मिली है और अन्य सभी लोग कानून के सामने बराबर हैं। संसद सत्र के दौरान यदि किसी सांसद की गिरफ्तारी होती है तो स्पीकर को सूचित करने का नियम और प्रोटोकॉल हैं, लेकिन भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और सांसद होने के नाते बृजभूषण को विशेष कानूनी कवच नहीं मिला है।
बृजभूषण के खिलाफ महिला की लज्जा भंग करने के आरोप में आईपीसी की धारा 354, 354(A), 354(D) के तहत केस दर्ज किया गया है। इस मामले में अगर वो दोषी पाया जाता है तो उसे अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है। एक केस पॉक्सो एक्ट में भी दर्ज किया गया है। पॉक्सो एक गैर-जमानती अपराध है। इसमें दोषी पाए जाने पर कम से कम 7 साल की जेल और अधिकतम उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। देश में एक तिहाई विधायक और सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। बृजभूषण के खिलाफ पहले भी कई आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। सरकारी अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर हो जाए तो उन्हें तुरंत नौकरी से निलंबित कर दिया जाता है, लेकिन ऐसे मामलों में सांसदों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस मामले की जांच के बाद चार्जशीट फाइल होगी या फिर पुलिस क्लोजर रिपोर्ट भी फाइल कर सकती है। लोकसभा की अवधि एक साल के भीतर समाप्त हो रही है, इसलिए बृजभूषण की वर्तमान सांसदी में कोई संकट नहीं दिखता है। अदालत में लंबे ट्रायल के बाद यदि उसे दो साल से ज्यादा की सजा हुई तो अयोग्य होने के कारण भविष्य में वह 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएगा। साल 2012 में निर्भया कांड की वजह से यौन अपराधों के मामले में जांच के लिए वर्मा कमीशन बना। 2013 में इस कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद कई कानूनों में बदलाव हुए। यौन अपराध को लेकर कानून पहले से ज्यादा मजबूत हुए हैं, लेकिन ये कानून एक सांसद के उपर लागू नहीं हो पा रहे हैं।
यौन अपराध के मामले में सही से कार्रवाई नहीं करने पर IPC की धारा 166A के तहत पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है, किंतु एफआईआर दर्ज नहीं होने पर भी किसी पुलिस अधिकारी पर कार्यवाही की गई है, यही वो सिस्टम है, जिसके कारण बृजभूषण जैसे आरोपी बच जाते हैं। कानून के अनुसार उचित कार्रवाई नहीं करने वाले अधिकारियों को अपराधी माना जाएगा और उन्हें 6 महीने की जेल हो सकती है। सेक्शुअल हैरेसमेंट के केस में CrPC के तहत 90 दिनों के अंदर जांच पूरी होनी चाहिए, लेकिन अरेस्ट के लिए कोई तय समय नहीं होता है। हालांकि, पॉक्सो में अरेस्ट का ही नियम है और बेल का कोई प्रावधान नहीं है। बृजभूषण सिंह के खिलाफ विदेश में यौन उत्पीड़न करने के आरोप लगे हैं। ऐसे मामलों की जांच में क्षेत्राधिकार का सवाल खड़ा हो सकता है। मामले बहुत पुराने होने की वजह से सबूतों को जुटाना भी मुश्किल होगा। यानी भारत के कानून में ही अपराधी को बचाने के भी प्रावधान किये गये हैं। जनप्रतिनिधि के नाम पर कानून नहीं बनाया गया है, जबकि सर्वाधिक मामले इन्हीं सांसदों और विधायकों पर दर्ज हैं, जिनमें से कई संगीन मामले भी दर्ज हैं। राजनीतिक स्तर की बात की जाये तो पार्टी विद डिफरेंस वाली भाजपा भी अन्य दलों की तरह हो गई है, जहां कोई भी सांसद—विधायक पर आरोप लगने के बाद हर संभव मदद कर उसको बचाने का अंतिम प्रयास चलता रहता है। जिस तरह से भाजपा की एक लॉबी लगी हुई है और पूरे मामले को सत्ता बनाम विपक्ष बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जातिगत मामला बनाने का प्रयास जारी है, उससे यही प्रतीत हो रहा है कि सरकार की नीयत में ही खोट है, अन्यथा सांसद को पार्टी से बर्खास्त कर एक सकारात्मक संदेश दिया जा सकता था, लेकिन वोटबैंक की राजनीति में फंसे दलों से कोई उम्मीद कैसे कर सकता है?
कारोबारी, माफियागिरी और नेतागिरी के सिस्टम के द्वारा जनता पर टिकट देकर थोपे हुये जनप्रतिनिधियों को बचाने के लिये क्या कुछ नहीं किया जाता, इसका जीता जागता उदाहरण यही है। जिस सिस्टम ने जनता की भावनाओं को लूटा, अपराध किया, उसको जातिवाद से तोला जा रहा है, इसके संगीन अपराधों को महिला पहलवानों की उम्र से तोला जा रहा है, इस मामले को पार्टीबाजी के तराजू से तोला जा रहा है, इसे आरोपी की सियासी और धार्मिक ताकत से तोला रहा है। पार्टी से लेकर जाति और अब धर्म के चश्मे से आरोपी का बचाव किया जा रहा है। भाजपा का पूरा इकोसिस्टम लगा हुआ है बचाव करने के ​लिये। जिस समाज में महिलाओं को हमेशा शंका की दृष्टि से देखा जाता है, उस समाज सिस्टम से महिलाओं के साथ न्याय की उम्मीद कहां तक की जा सकती है? मन की बात करना आसान है, लेकिन लोकतंत्र होने के बाद भी जनता की बात करने वाला मिलना आसान कहां है? कहां है कोई स्त्री की आवाज उठाने वाला कन्हैया? कहां है द्रौपति के चीर हरण को रोकने वाला कृष्ण? इस रावण रूपी सिस्टम से लड़ने के लिये राम मिलना बहुत दुभर है। कौरवों की भरी सभा में चीर हरण रोकने देखने वाले भीष्मपितामह से लेकर गुरु द्रोण और महाबली भीम से लेकर महान धनुर्धर अर्जन होने के बाद भी एक अबला की अस्मत लूटने का महापाप किया गया था। ऐसे में स्त्री को खुद की रक्षा करने के लिये खुद ही राम और अर्जन बनना होगा। लोकतंत्र रुपी भीड़तंत्र के इस सिस्टम से इज्जत बचाने की उम्मीद करना भी एक पाप ही है।
चाय पर चर्चा कर लो, मन की बात कर लो, जब मेडल जीतकर आये तो सियासी फायदे के लिये डिनर पर चर्चा कर लो, लेकिन जब इन्हीं चैंपियंस की इज्जत पर बन आये तो कोई चर्चा नहीं करनी। यही तो इको सिस्टम है, जिसकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार बार बात करते हैं। प्रधाानमंत्री को यह तो याद है कि कांग्रेस ने उनको 91 बार गाली दी गई, लेकिन उनको यह याद नहीं है कि जिन खिलाड़ियों के जीतने पर चाय के साथ मन की बात कर रहे थे, वो न्याय के लिये कई दिनों से जंतर मंतर पर धरना देकर बैठी हैं, उनके तन से किये गये खिलवाड़ के की बात कब होगी?

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