विदेश मंत्री जयशंकर की चाल में फंस गये यूरोप-अमेरिका

Ram Gopal Jat
रूस का यूक्रेन पर आक्रमण किये 14 महीने बीते चुके हैं, लेकिन अभी तक भी दोनों देशों के बीच सुलह का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा है। दोनों ओर से हजारों सैनिक मारे जा चुके हैं, अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है। अमेरिका और रूस की जिद ने विकसित देश यूक्रेन को सीरिया बना दिया है। यूक्रेन को उकसाकर रूस से हमला करवाने वाला अमेरिका अब फंस गया है। वह हमेशा अपनी दादागिरी से दुनिया को फंसाता आया था, लेकिन यह पहला युद्ध है, जब खुद अमेरिका ही भारत के जाल में ट्रेप हो गया है। पहल भले ही नाटो ने की हो, लेकिन अमेरिका को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि युद्ध के दौरान भारत के जाल में फंस जायेगा। अमेरिका—यूरोपा की गलती के कारण हालात ये हो गये हैं कि भारत तैयार तेल का सबसे बड़ा निर्यातक बनने की स्थिति में खड़ा हो गया है। करीब डेढ साल पहले तक भारत की स्थिति बहुत खराब थी, लेकिन नाटो देशों की चाल ने भारत को बड़ा फायदा पहुंचाया है। आज की तारीख में अमेरिका और यूरोप के कई देश भारत के सामने तेल लेने को हाथ फैलाकर खड़े हैं, वो देश, जो कुछ महीनों पहले तक रूस के उपर प्रतिबंध लगाकर दुनिया में अपनी धाक जमाने का दावा कर रहे थे।
यूक्रेन पर हमले काे लेकर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर कई तरह के कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं। इन देशों ने रूस से कच्चा तेल और गैस खरीदने पर रोक लगाई हुई है। इन देशों ने भारत को भी तेल आयात बंद करने का दबाव बनाया था, लेकिन भारत की मोदी सरकार और इसके विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इन बड़े देशों की परवाह किये बिना ना केवल तेल आयात जारी रखा, बल्कि उसको कई गुणा बढ़ा दिया। रूस को भी इस मौके पर भारत जैसा उपभोक्ता देश चाहिये था, इसलिये भारत को उसने 30 फीसदी सस्ता तेल और गैस निर्यात करने की डील कर ली। अब इन 14 महीनों में भारत ने अरबों डॉलर का कच्चा तेल आयात किया है और करोड़ों डॉलर बचाने के साथ ही तैयार तेल निर्यात कर लाखों डॉलर कमाये भी हैं। युद्ध के बाद भारत ने अमेरिका और यूरोप की तमाम धमकियों काे दरकिनार कर रूस से सस्ता अधिक मात्रा में कच्चा तेल खरीदने का फैसला किया और अब स्थितियां यह हो गई हैं कि उसी रूसी तेल काे यूरोपीय देश भारत से रिफाइंड ईंधन के रूप में ज्यादा कीमत देकर खरीद रहे हैं।
हाल के महीनों में भारतीय तेल कंपनियों ने यूरोप के बड़े मार्केट पर कब्जा कर लिया है। तेल कंपनियो के ताजा आंकड़ों से साफ है कि यूरोप और अमेरिका अब भारत के जरिए रिकॉर्ड मात्रा में रिफाइन किया हुआ रूसी ईंधन खरीद रहे हैं? जिसके बदले ये देश भारत को भारी मात्रा में भुगतान कर रहे हैं। इस वजह से अमेरिकी—यूरोपीयन आम लाेगाें काे ईंधन पर टैक्स के रूप में भारत सहन करना पड़ रहा है। हद तो यह है कि जिस रुसी तेल को इन देशों ने आयात करना बंद किया था, तमाम प्रतिबंधों के बावजूद वही रूसी तेल यूरोप में वापस पहुंच रहा है। भारत का ईंधन निर्यात में बड़ी तेजी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इसलिए भारत लगातार रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है। पिछले साल अगस्त में सामने आया था कि यूरोपीय देश और अमेरिका चीन से जिस एलएनजी काे खरीद रहे हैं, वह रूस का ही है, जिसे चीन सस्ते में खरीदकर ज्यादा दाम पर यूरोप में बेच रहा है। चीन की तरह पेट्रोल, डीजल, गैस में ऐसा ही भारत भी कर रहा है। ब्लूमबर्ग ने अपनी एक विस्तारित रिपोर्ट में लिखा है कि रूसी तेल अभी भी यूरोप में खपत हो रहा है। केवल मार्ग बदला है, पहले रूस से सीधा जा रहा था, अब भारत की मदद से यूरोप की ऊर्जा से जुड़ी जरूरतें पूरी कर रहा है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत से यूरोपीयन देशों को प्रतिदिन 3.60 लाख बैरल निर्यात हाे रहा है। भारत में रूसी कच्चे तेल का आयात अप्रैल के महीने में हर रोज 200 करोड़ बैरल से अधिक हो सकती है, जो भारत के कुल तेल आयात का 44% से भी अधिक है। जबकि युद्ध शुरू होने से पहले भारत केवल एक प्रतिशत से भी कम तेल आयात कर रहा था। आज की तारीख में भारत के लिये रूस सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश बन गया है, जबकि युद्ध के पहले इराक सबसे अधिक तेल निर्यात कर रहा था। इस युद्ध से पहले भारत और यूरोपीय देशों के बीच 1.54 लाख बैरल रोजाना जेट ईंधन और डीजल का निर्यात होता था, जो अब 2 लाख बैरल से भी ज्यादा हाे गया है। इससे पहले पिछले साल दिसंबर में यूरोपीय संघ ने रूस से कच्चे तेल के आयात पर पूर्णतया रोक लगाई। यूरोपीयन संघ के ये प्रतिबंध भारत जैसे देशों को रूस से सस्ता कच्चा तेल को खरीदने और उसको डीजल जैसे ईंधन में बदलकर यूरोपीय देशों काे वापस बेचने से नहीं रोकता है। रूसी डीजल अवैध रूप से यूरोप में जा रहा है, जबकि यूरोप के प्रतिबंधों को यदि प्रभावकारी बनाना है तो इसे रोके जाने की जरूरत है। असल बात यह है कि यूरोप के पास दूसरे विकल्प है ही नहीं। उसने रूस को सीधा नुकसान करने के लिये प्रतिबंध तो लगा दिये, लेकिन ये प्रतिबंध तब तक कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं, जब तक किसी भी माध्यम से वह रूस का तेल आयात करे ही नहीं। यदि यूरोप ऐसा करता है तो उसकी उर्जा जरुरतों को पूरा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यूरोप में ईंधन की सबसे अधिक जरुरत सर्दी से बचाव के लिये किया जाता है। यूरोपीयन देशों में सालभर सर्दी पड़ती है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर गैस और तेल की खपत होती है।
इधर, भारत के हिसाब से देखा जाये तो यूरोप के प्रतिबंध एक अवसर लेकर आये हैं, जो यूरोप और अमेरिका के साथ कारोबारी घाटे को फायदे में बदलने का काम कर रहे हैं। बीते साल ही भारत ने अमेरिका को आयात से अधिक धनराशि का निर्यात किया है। भारत लंबे समय से अमेरिका व यूरोप से आयात घाटा झेलता आया है। हालांकि, सबसे अधिक घाटा भारत को चीन से हो रहा है, जिसके विकल्पों पर काम किया जा रहा है। चीन के साथ भारत का जो व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा था, उसपर अंकुश तो लगा है, लेकिन इसको पाटने में अभी लंबा समय लगेगा। यूरोप के साथ भारत का लग्जरी आईटम्स का व्यापार घाटा है, जिसमें आवश्यता से अधिक विलासिता की वस्तुएं शामिल हैं। चीन से भारत अधिकांश वो सामान खरीदता है, जो जरुरी होती हैं, इस वजह से भी भारत का व्यापार घाटा चल रहा है। अब अमेरिका और यूरोप के भले ही रूस पर कितने भी कड़े प्रतिबंध लगायें, लेकिन उसकी उर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिये उसे भारत जैसे दशों से ईंधन आयात करना ही होता है। रूस से भारत और चीन ही सबसे अधिक कच्चा तेल खरीद करते हैं। भारत के पास दुनिया की सबसे अधिक रिफायनरियां हैं, जहां पर बड़े पैमाने पर कच्चा तेल शोधित कर निर्यात किया जा रहा है। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बजाये निजी क्षेत्र की कं​पनियां अधिक फायदा उठा रही हैं, जिनके पास बड़ी रिफायनरियां हैं।
वैसे देखा जाये तो ये पूरा मामला रूस यूक्रेन युद्ध के कारण बनता हुआ दिखाई दे रहा है, लेकिन युद्ध के बाद की परिस्थितियों पर गौर करोगो तो पता चलेगा कि भारत ने कैसे आपदा में अवसर ढूंढ​ निकाला है। जब युद्ध हुआ तो भारत के सामने दो विकल्प थे। पहला वह अमेरिका के साथ खड़ा हो जाता, जैसे हमेशा करता आया है और रूस को दुश्मन बना लेता। दूसरा यह था कि रूस के साथ खड़ा होकर अमेरिका जैसे देश से दुश्मनी कर लेता, जिसकी भारत के पास ताकत अभी तक नहीं है। किंतु भारत ने चुना तीसरा मार्ग, जो ना अमेरिका जाता है और ना ही रूस की तरफ। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विदेश मंत्री जयशंकर के साथ इस मामले पर लंबा मंथन किया। जयशंकर विदेश मंत्री बनने से पहले कई देशों में राजदूत रह चुके हैं, इसलिये उनके पास रूस, अमेरिका और यूरोप के अधिकांश देशों की जानकारी है, उनकी पॉलिसी और कमजोरियों को अच्छे से जानते हैं। जयशंकर ने मोदी से कहा कि अमेरिका को नाराज नहीं करना है, उसकी खिलाफत नहीं करनी और यूएन में वोटिंग में हिस्सा नहीं लेना, जिससे रूस को परोक्ष रुप से फायदा भी हो जायेगा और तेल खरीद भी जारी रखनी है। इसके बाद अमेरिका ने कई तरह से भारत पर ना केवल दबाव बनाया, बल्कि धमकियां भी दीं कि कल को चीन उसपर आक्रमण करेगा तो रूस नहीं आयेगा बचाने के लिये। भारत ने अमेरिका की तमाम धमकियों को दरकिनार कर अपने नागरिकों के हितों में बताते हुये रूस से आयात जारी रखा। इसके बाद भारत ने लगातार तेल आयात को बढ़ाने का काम किया।
सवाल यह उठता है कि आखिर अमेरिका ने भारत को ऐसा करने से रोका क्यों नहीं? असल बात यह है कि भारत को आज जितनी जरुरत अमेरिका की है, उससे अधिक अमेरिका को भारत की जरुरत है। एशिया में पाकिस्तान कभी अमेरिका के लिये अनुकूल देश हुआ करता था, जब वह भारत को कंट्रेाल करने का काम करता था, लेकिन आज विश्व में परिस्थितयां बदल गई हैं। अब अमेरिका के सामने रूस से बड़ी चुनौती चीन बन गया है, जिसको कंट्रोल करने के लिये पाकिस्तान किसी काम का नहीं है। यही वजह है कि एशिया में शक्ति संतुलन बनाये रखने और भविष्य में चीन से टकराव होने पर अमेरिका के लिये भारत सबसे मजबूत पार्टनर देश साबित होगा। इसी कारण अमेरिका ने भारत के उपर कोई दबाव या प्रतिबंध नहीं लगाये, जबकि उसकी बात नहीं मानने वाले दुनिया के कई देशों पर प्रतिबंध लगा दिये हैं। इससे पहले मोदी की पहली सरकार के समय अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाये, तब भारत ने भी ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था, जबकि भारत और ईरान के अच्छे संबंध थे। उसके बाद से आजतक भारत ने ईरान से तेल आयात शुरू नहीं किया है। तब में और अब में फर्क सिर्फ इतना था कि भारत के विदेश मंत्री तब एस जयशंकर के बजाये सुषमा स्वराज थीं।
रूस से कच्चा तेल आयात कर अमेरिका—यूरोप को निर्यात किये जाने वाले तेल पर भारत मोटा पैसा कमा रहा है। क्योंकि एक तरफ तो रूस से 30 फीसदी सस्ता तेल मिल रहा है, दूसरी तरफ मांग बढ़ने के कारण अमेरिका व यूरोप से अधिक दाम वसूल रहा है। इस नये समीकरण का भारत को दोहरा फायदा मिला है। रूस से सस्ता तेल आयात हो रहा है और इस बात को खाड़ी देश भी जानते हैं। इसके कारण उनको भी भारत में तेल खपाने के लिये दाम कम करने पड़ रहे हैं। कुछ बरसों पहले तक भारत की जो तेल कंपनियां घाटे में चल रही थीं, वो अब बड़ा मुनाफा कमा रही हैं। भारत का पैस बच रहा है और कमाई भी हो रही है। इस कमाई को भारत अपने यहां पर विकास कार्यों में खर्च कर रहा है। भारत अपनी जरुरत का केवल 15 प्रतिशत तेल ही उत्पादन कर पा रहा है, बाकी 85 फीसदी उसे आयात करना होता है, किंतु भारत ना केवल अपनी आवश्यकता के लिये आयात कर रहा है, बल्कि निर्यात करके मोटा मुनाफा भी कमा रहा है। फिलहाल यूरोपीयन देशों के पास भारत से तेल आयात करने के लिये दूसरा विकल्प नहीं है, और जब तक विकल्प नहीं बनेगा, तब तक भारत कई बरसों की आर्थिक कसर निकाल चुका होगा।

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