दूध में नींबू पानी डलता है, तब जाट मुख्यमंत्री नहीं, पनीर बनता है

Ram Gopal jat
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजस्थान में जादूई रिश्ते कितने मजबूत हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। कई बार सभाओं और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में साफ हो चुका है कि मोदी की जादूगर से दोस्ती कितनी गहरी है और यही मित्रता बार बार जादू भी करती है, जिससे रॉबर्ट वाड्रा जैसा भू—कारोबारी भी जेल बच जाता है और तमाम संकटों के बाद भी जादूई सरकार नहीं गिरती है। यह बात तो हनुमान बेनीवाल भी कई बार साफ कर चुके हैं कि राजस्थान में दूध और नींबू का रस एक ही हैं। ये दोनों मिलकर जिस तरह से राजस्थान की राजनीति में बीते 25 साल से पनीर बना रहे हैं, उसी से साफ हो जाता है कि दूध और नींबू पानी का तालमेल कितना गहरा है। अब सचिन पायलट जैसे साफ सुथरी राजनीति करने वाले और रामेश्वर डूडी जैसे भोले आदमी को क्या पता कि दूध में नींबू पानी डालने से ही पनीर बन रहा है। ये दोनों नेता तो सोचते होंगे कि दूध में नींबू पानी डालते ही दूध फट जाता होगा, लेकिन इस बात को हनुमान बेनीवाल 9 साल पहले ही जान चुके थे कि दूध में नींबू पानी डालने से ही राजस्थान में सियासी पनीर बन रहा है।
यह किस्सा मैं इसलिये सुना रहा हूं, क्योंकि बीते साढे चार साल से भी दूध और नींबू पानी एक होकर ही पनीर बना रहे हैं और जब तक इनका बस चलेगा, तब तक बनाते रहेंगे। फिलहाल जिस तरह से पनीर पकोड़ों के द्वारा अचानक जाट सीएम बनाने की मांग उठी है, उससे एक बात बिलकुल साफ हो गई है कि राजस्थान में जब तक दूध और नींबू पानी को अलग नहीं किया जायेगा, तब तक जाट सीएम बनना असंभव ही है। वैसे जाट सीएम बनाने की मांग भी कांग्रेस में ही उठती है, क्योंकि बीजेपी ने तो जाट सीएम बनाना तो बहुत दूर की बात है, एक मेहनती, ईमानदार और संघ के प्रति डेड होनेस्ट सतीश पूनियां को अध्यक्ष पद से ही हटाकर उपनेता जैसे ठंडे पद पर डिमोशन कर दिया गया है। संगठन में वही एक मात्र सबसे बड़ी आबादी से आने वाले नेता थे, उनको भी चुनाव से पहले निपटा दिया गया है, फिर भाजपा से जाट सीएम बनाने की कल्पना करना तो महापाप से कम कहां है? हाल ही में राजस्थान विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष और राजस्थान कृषि उद्योग विकास बोर्ड के अध्यक्ष रामेश्वर डूडी ने एक बार फिर जाट मुख्यमंत्री बनाने और जातिगत जनगणना करवाने की मांग उठाई है। कहा है कि जाट समाज लंबे समय से मांग कर रहा है। यह मांग समाज का हक और अधिकार है। समाज अपना हक और अधिकार लेकर रहेगा। यह हक देना चाहिए। समाज अपना हक-अधिकार लेना जानता है। वह इसे लेकर रहेगा। पार्टी के अंदर भी इस मांग को रखा है। बड़े नेताओं के साथ जब भी बैठते हैं, उन्हें इससे अवगत करवाया है।
बिहार की तरह राजस्थान में भी जातिगत जनगणना करवाई जानी चाहिये। उन्होंने कहा कि जाट सीएम के साथ मांग जातिगत जनगणना की भी है, जातिगत जनगणना के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, जातिगत जनगणना से पता लग जाएगा कौन जाति समाज के कितने वोट हैं, जिसकी जितनी संख्या वह अपना हक मांग रहा है। राजस्थान में जाट सबसे बड़ा समाज है, उसकी सीएम की मांग को दूसरे समाज भी मानते हैं कि यह उसका हक है, लेकिन राजनीतिक दलों ने आज​तक ऐसा किया नहीं है। ये सारा बयान रामेश्वर डूडी का है, जो एक छोटे से सियासी नियुक्ति वाले पद पर बैठै हैं। इससे पहले आपको याद होगा रामेश्वर डूडी ने जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में 5 मार्च को हुए जाट महाकुंभ में भी जाट सीएम की मांग उठाकर सियासी बहस छेड़ दी थी। उस सामाजिक मंच पर डूडी ने ही सीएम बनाने की मांग को प्रमुखता से उठाया था। कांग्रेस की सरकार बनाने में भूमिका निभाने के बावजूद बीते चार साल से लगभग सियासी तौर पर बर्फ में लगे हुये डूडी ने पिछले सप्ताह ही बीकानरे जिले के नोखा के पास किसान सम्मेलन करवाकर ताकत दिखाने का प्रयास किया था। दरअसल, रामेश्वर डूडी के सम्मेलन में सीएम अशोक गहलोत और उनके खेमे के मंत्री-विधायकों का जमावड़ा हुआ था। डूडी और सचिन पायलट कभी एक साथ माने जाते थे, लेकिन अब दोनों के बीच दूरियां करवाई जा चुकी हैं। राजनीतिक नियुक्ति के बाद डूडी गहलोत के नजदीक जा चुके हैं।
असल बात यह है कि जाट सीएम की मांग के पीछे कांग्रेस की मौजूदा खींचतान ही है। सचिन पायलट और उनके समर्थक पायलट को सीएम बनाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में देखा जाये तो कांग्रेस में जाट सीएम की मांग पायलट विरोधियों, खासकर गहलोत खेमे के लिए सबसे सूटेबल मुद्दा है। इस समय डूडी द्वारा जाट सीएम की मांग उठाई गई है, आप उसके नेरेटिव को समझिये। गहलोत खेमे के लिए पायलट को रोकने और उन्हें सियासी रूप से बैलेंस करने के लिए जाट सीएम की मांग एक काउंटर रणनीति से अधिक कुछ नहीं है। वास्तव में देखा जाये तो तीन में से दो बार खुद गहलोत ही जाट सीएम बनने की राह में सबसे बड़ा रोडा बने हैं, आज भी वही रोडा बने हैं और जब तक वो जीवित हैं, तब तक जाट सीएम बनने का सपना कांग्रेस में देखा जा सकता है, उसके सच होने की उम्मीद करना बेइमानी है। आज से 24 साल पहले परसराम मदेरणा का सियासी हक मारने वाले गहलोत ही थे। उसके बाद 2008 में भी जब सीपी जोशी चुनाव हार गये थे और शीशराम ओला ने सीएम बनने की कोशिश की, तब भी अशोक गहलोत ही रोडा बने थे। आज जब पायलट के सीएम बनने की सबसे अधिक मांग उठ रही है, तब डूडी के कंधे पर बंदूक रखकर भी अशोक गहलोत ही चला रहे हैं। वास्तव में देखा जाये तो गहलोत की राजनीतिक चतुराई के आगे डूडी कहीं भी नहीं टिकते हैं। उनको जाट समाज के वोट के चलते भले ही 2013 में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया हो, लेकिन वो इतने भी चतुर नहीं हैं कि जादूगरी को याद रखकर 2018 में अपनी सीट बचा पाते। उनको तो पता भी नहीं चला कि जादूगरी से वो चुनाव हार गये और अब उसी जादूगरी के द्वारा यूज भी हो रहे हैं।
सियासी जानकारों को भी यही लगता है कि डूडी के द्वारा जाट सीएम की मांग उठाकर पायलट फैक्टर को बैलेंस किया जा सकता है। मौजूदा सियासी हालात के हिसाब से यह मांग सचिन पायलट विरोधियों के लिए सबसे फायदेमंद हथियार है। सबको पता है कि आगे चलकर यह मांग और तेज होती है तो कांग्रेस में सियासी समीकरण बदल भी सकते हैं। रामेश्वर डूडी ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी किसान सीएम की मांग की तरफ इशारा किया था, लेकिन जादूगरी से चुनाव हारने के कारण उस वक्त यह मांग वहीं पर दफन हो गई थी। वैसे राजस्थान में जाट सीएम का मुद्दा बीते छह दशक से चुनावों में उठता है। इस मांग के पीछे गहलोत जैसे जादूगर नेताओं के सियासी समीकरण छिपे रहते हैं। राज्य के एक बड़े वोट बैंक की इस भावनात्मक मांग को सियासी रूप से भुनाने में कई नेता आगे रहे हैं। कांग्रेस के अंदरूनी सियासी समीकरण साधने के लिए कई बार यह मांग उठती रही है। अभी चुनाव से पहले जाट सीएम के मांग के पीछे फिलहाल सचिन पायलट फैक्टर को सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। जादूगरी को बहुत अच्छे से पता है कि जाट सीएम की मांग के कारण दूसरे समाज भी सीएम बनाने की मांग करेंगे। राजनीति में जब कई जातियां, जाति के आधार पर हक मांगती हैं, तो उनको दरकिनार कर ऐसे व्यक्ति को पद दिया जाता है, जो बिलकुल छोटी जाति का हो और उसके पीछे कोई भी नहीं खड़ा हो। इसके कारण मांग करने वाली जातियां आपस में लड़कर रह जाती हैं और बंदर की तरह तीसरा नेता फायदा उठा लेता है। साल 2008 के चुनाव बाद जाट और ब्राह्मण सीएम की मांग में गहलोत फायदा उठा चुके हैं।
जाट महाकुंभ में जाट सीएम की मांग के बाद ब्राह्मण, राजपूत और दूसरी जातियों ने भी सीएम बनाने की मांग प्रमुखता से उठाई है। इस मांग के पीछे जादू ही काम कर रहा है। जादू से ही कई पंचायतें और महाकुंभ हो रहे हैं। अब जादू से ही जाट सीएम की मांग के साथ जातिगत जनगणना की मांग को भी हवा दी जा रही है। असल बात यह है कि विधानसभा चुनावों से पहले जाट सीएम की मांग जोर पकड़ती है तो कई नेताओं के सियासी समीकरण प्रभावित होंगे। इसी के कारण दूसरे समाज भी अपना सीएम बनाने की मांग को उठाएंगे। हर समाज का संगठन चुनावों से पहले मुखर होकर अपनी मांग रखेगा और यदि बाईचांस कांग्रेस की सत्ता रिपीट हो गई, वैसे तो कोई चमत्कार होता दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन दिल्ली की तरह वोटर्स मुफ्त की घोषणाओं के चपेटे में आये तो फिर सीएम पद के लिये कई बिल्लियां लड़ेंगी और अंतत: जादूगरी से एक बंदर आयेगा जो इस चुनावी रोटी को खा जायेगा। एक और जादू देखिये, रामेश्वर डूडी ने वसुंधरा राज के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई नहीं होने को लेकर सचिन पायलट के आरोपों पर सवाल उठा दिये हैं, इसको राजनीति में सियासी बैंलेंस करना कहते हैं। डूडी ने पिछले दिनों बीकानेर में किसान सम्मेलन किया था, जिसमें सचिन पायलट नहीं गए थे। अब यह माना जा रहा है कि सचिन पायलट और रामेश्वर डूडी के बीच दूरी बन चुकी है। और यह सब जादू से हुआ है। जादू से ही पहले आरसीए अध्यक्ष पद डूडी को नहीं मिला, फिर उन्होंने गहलोत को ध्रतराष्ट्र की उपाधि दी, लेकिन सत्ता से बाहर बैठकर छटपटा रहे डूडी को कृषि उद्योग विकास बोर्ड जैसा पद देकर राजी किया गया। अब डूडी से ही सचिन कैंप को बैलेंस किया जा रहा है। इस जादूगरी को डूडी नहीं समझ पायेंगे। नेता प्रतिपक्ष जैसे पद पर कोई व्यक्ति रहा हो और फिर वह एक छोटी सी राजनीतिक नियुक्ति से संतुष्ट होकर बैठ जाये, इसी से समझ आता है कि डूडी में राजनीतिक समझ कितनी गहरी होगी।
पिछली वसुंधरा सरकार के समय सचिन पायलट कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे और रामेश्वर डूडी नेता प्रतिपक्ष थे। तब तक दोनों के सियासी रिश्ते अच्छे थे, लेकिन बाद में डूडी चुनाव हारकर सीएम की रेस से बाहर हो गये, तब से वह करीब चार बरस राजनीतिक वनवास भोग रहे थे, लेकिन जब से उनको सियासी नियुक्ति मिली है, तब से वह गहलोत के खास हो गये हैं। इसी वजह से अब डूडी और पायलट के बीच सियासी दूरियां बन चुकी हैं। इस वक्त पायलट के कारण कांग्रेस और गहलोत पूरी तरह से दबाव में हैं। इसलिये डूडी के द्वारा जादूगरी से बार बार जाट सीएम की मांग उठवाई जा रही है, ताकि कांग्रेस के सामने यह साबित किया जा सके कि अनेक जातियां सीएम की मांग कर रही हैं, लेकिन इनमें कोई भी सर्वमान्य नेता नहीं है, जो कांग्रेस की पांच साल सरकार चला सके, जिसके साथ सभी जातियों के विधायक खड़े हो सकें। पायलट को भी जातिगत नेता की श्रेणी में डालने का बीते 9 साल से प्रयास जारी है। याद रखने वाली बात यह भी है कि अशोक गहलोत बीते चार साल में माली जाति का एक विधायक और वह भी तीन बार सीएम बनने का चमत्कार होने की बातें दोहरा चुके हैं, वही सबसे अधिक बार कहते हैं कि वह माली जाति के हैं, और एक ही हैं, फिर भी सीएम बन जाते हैं, बाकी अन्य कोई भी विधायक नहीं कहता है कि वह फंला जाति का है, और इस वजह से उसको सीएम बनाया जाये या बनाया नहीं गया है। इससे समझ सकते हैं कि जातिवाद कौन करता है और जातिवाद नेता कौन है, किंतु यह बात कांग्रेस आलाकमान कभी नहीं समझ पाया है।
एक दिन पहले ही भरतपुर में माली जाति का चल रहा आरक्षण आंदोलन खत्म हुआ है। इस आंदोलन के शुरू होने और खत्म होने की टाइमिंग को आप समझेंगे तो पायेंगे कि ये सब भी जादू से ही हो रहा था। पायलट ने जब अनशन किया, गहलोत पर वसुंधरा के भ्रष्टाचारों की जांच नहीं करवाने को लेकर दबाव बनाया तो अचानक से भरतपुर में सड़क जाम कर दी गई और आरक्षण की आग लग गई। अभी ऐसा कोई वादा या काम नहीं किया गया है कि आंदोलन करने वालों की मांग पूरी हो गई हो, लेकिन आंदोलन खत्म हो गया। इससे पहले 2008 के कार्यकाल में भी अंतिम दिनों में एक बहुत बड़ा जादू हुआ था, जिसके कारण मदेरणा परिवार की राजनीति को दफन कर दिया गया था। उस जादू को भी राजस्थान याद रखता है। इस तरह के जादू कांग्रेस की सरकार होती है और सरकार पर संकट आता है, तब समय समय पर होते रहते हैं। आलाकमान की मजबूरी यह है कि वह अपने दामाद को जेल जाने से बचाये या पायलट को सीएम बनाये। इसी में पूरे साढे चार साल बीते चुके हैं और बचे हुये महीने भी बीत जायेंगे। जिस तरह का केस है, उसे साफ है कि रॉर्बट वाड्रा को एक दिन जेल तो जाना होगा, लेकिन अभी जादू बरकरार है और यह जादू तब तक चलेगा, जब तक कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार है।
डूडी को तो यह भी पता नहीं है कि जाति के आधार पर सीएम बनाने का काम राजस्थान में आजतक किसी दल ने किया ही नहीं। वरना वैश्य, ब्राह्मण, माली, राजपूत और मुसलमान जैसी जातियों के नेता सीएम बने हैं, लेकिन सबसे बड़ी कौम होने के बाद भी जाट आज तक अपनी जाति से सीएम नहीं बना पाये। उनको तो यह भी पता नहीं है कि राजस्थान की राजनीति का दूध कौन हैं और नींबू पानी कौन बनकर पनीर कौन बना रहा है? डूडी जैसे भोले लोग जब राजनीति में आते हैं तो वो या तो किसी की जादूगरी का टूल बनते हैं या फिर शिकार होकर जेल में पहुंच जाते हैं।

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