भारत ने कमाल कर दिया, अमेरिका—चीन की हालत जरजर

Ram Gopal Jat
कुछ समय पहले तक भारत की तुलना किसी विकसित देश से करना बेमानी माना जाता था। अमेरिका और चीन आज भी पहले और दूसरे नंबर पर काबिज हैं। हाल ही में भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। उम्मीद की जा रही है कि अगले तीन से चार साल में भारत अर्थव्यवस्था में तीसरा सबसे बड़ा देश होगा। इस बीच आई एक रिपोर्ट ने अमेरिका, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली जैसे विकसित देशों के होश उड़ा दिये हैं। अमेरिका में एक और बैंक डूब गया है। पिछले दो महीने में देश में तीन बड़े बैंक डूब गए हैं। बैंकिंग संकट के साथ-साथ देश में नकदी संकट का भी खतरा पैदा हो गया है। अगले कुछ दिनों में अमेरिका के 10 बैंक और डूबने की आशंका जताई गई है। वित्त मंत्री ने चेतावनी दी है कि अगर एक जून तक डेट सीलिंग यानी कर्ज की सीमा नहीं बढ़ाई गई तो अमेरिका अपने इतिहास में पहली बार डिफॉल्ट कर जाएगा। इससे देश में मंदी की आशंका और बढ़ गई है। अमेरिका ही नहीं यूरोप के कई बड़े देश भी मंदी की आशंका में जी रहे हैं। इनमें फ्रांस, कनाडा, इटली, जर्मनी और फ्रांस शामिल हैं। इसके अलावा कनाडा, साउथ अफ्रीका, जापान, साउथ कोरिया, रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी मंदी की आशंका बढ़ गई है। सवाल यह है कि आखिर भारत में मंदी को लेकर क्या पूर्वानुमान है?
World of Statistics के मुताबिक भारत में मंदी की कोई आशंका नहीं है। भारत बड़े देशों में एकमात्र देश है, जहां मंदी की जीरो परसेंट संभावना है। हाल में आए आंकड़ों से इस बात का पता चलता है कि भारत की इकॉनमी जोर पकड़ रही है। आईएमएफ के मुताबिक इस साल भी भारत की इकॉनमी दुनिया में सबसे तेजी से ग्रोथ करने वाली इकॉनमी होगी। अप्रैल में जीएसटी कलेक्शन के सारे रेकॉर्ड टूट गए हैं। साथ ही मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई भी चार महीने के टॉप पर पहुंच गया है। अधिकांश ऑटो कंपनियों की अप्रैल में बिक्री दमदार रही। ये सारे फैक्टर्स इस बात का संकेत है कि जहां दुनिया मंदी की आशंका में जी रही है, वहीं भारत की इकॉनोमी तेजी से बढ़ रही है। दुनिया में मंदी की सबसे ज्यादा 75 फीसदी आशंका यूके में जताई गई है। हाल में यूके की इकॉनमी में पाकिस्तान की तरह काफी उथल—पुथल देखने को मिली है। ब्रिटेन में महंगाई कई दशक के चरम पर पहुंच गई है। पाकिस्तान की तरह सब्जियां तक मिलनी कठिन हो गई हैं। लोगों को लिमिटेड खाने पीने की चीजें खरीदने की हिदायत सरकार दे रही हैं। इस लिस्ट में न्यूजीलैंड दूसरे नंबर पर है। वहां इस साल मंदी आने की 70 परसेंट आशंका है। दुनिया का सबसे पॉवरफुल माना जाने वाला अमेरिका 65 फीसदी आशंका के साथ इस सूची में तीसरे नंबर पर है। देश में बैंकिंग संकट और नकदी संकट की आशंका से मंदी आने की संभावना कई गुना बढ़ गई है। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी है और यदि वह मंदी की चपेट में आती है, तो इसके दुनियाभर में भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनमी जर्मनी, इटली और कनाडा में मंदी आने की आशंका 60 फीसदी है। इसी तरह फ्रांस में यह 50 प्रतिशत मानी जा रही है। साउथ अफ्रीका में मंदी की संभावना 45 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया में 40 फीसदी, रूस में 37.5 फीसदी, जापान में 35 प्रतिशत, साउथ कोरिया में 30 फीसदी और मेक्सिको में 27.5 परसेंट मंदी आने की संभावना है। स्पेन के मामले में यह 25 फीसदी, स्विट्जरलैंड में 20 प्रतिशत और ब्राजील में 15 फीसदी है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी चीन में इस साल मंदी आने की आशंका 12.5 परसेंट है, जबकि सऊदी अरब में पांच परसेंट और इंडोनेशिया में दो प्रतिशत मानी जा रही है। इस वक्त दुनिया में आर्थिक मंदी चल रही है और इसके साल के अंत तक अधिक बढ़ने की संभावना जताई गई है। कई विकसित देशों पर इसका असर भी दिख रहा है। इसी बीच अमेरिका की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने सोमवार को राष्ट्रपति जो बाइडेन की नेतृत्व वाली मौजूदा अमेरिकी कांग्रेस सरकार को चेतावनी भरी चिठ्ठी लिखी है। जेनेट येलेन ने चिट्ठी के माध्यम से ये जानकारी दी कि अगले महीने कि 1 जून की शुरुआत तक डिपॉल्ट हो सकता है, क्योंकि उनके पास बिलों के भुगतान करने लायक पैसें नहीं बच पाएंगें।
अमेरिका की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन के तरफ से चेतावनी भरी चिठ्ठी मिलने के बाद जो बाइडेन ने तुरंत कांग्रेस के चार सदस्यों के साथ मीटिंग बुलानी पड़ गई। इसके बाद से अमेरिकी कांग्रेस सदस्यों ने समस्या से उबरने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। अमेरिका की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन के पत्र में उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि अमेरिका को तुरंत डिफॉल्ट से बचने के लिए 31.4 ट्रिलियन डॉलर, यानी 31.4 लाख डॉलर का भुगतान करना होगा। अमेरिका ने अपने लोन टाइम से सीखा है कि लोन पीरियड को बढ़ाने से बिजनेस पर बुरा असर पड़ता है। चेतावनी दी गई है कि देश के लोगों को कर्ज लेना पड़ सकता है, जिसे अमेरिका के क्रेडिट रेटिंग पर नेगेटिव असर पड़ेगा। कांग्रेस के बजट कार्यालय ने भी सोमवार को चेतावनी दी थी कि कम टैक्स मिलने की स्थिति में फंड खत्म हो सकते है। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने इस साल अप्रैल से जून तिमाही के दौरान 726 बिलियन डॉलर उधार लेने की योजना बनाई है। इससे पहले अमेरिका ने जनवरी में 449 बिलियन डॉलर उधार लेने की योजना बनाई थी, जो अभी के मुकाबले बेहद कम थी। अमेरिका के डिफॉल्ट होने के पीछे यूक्रेन को लगातार अंतराल पर दिए जाने वाली आर्थिक मदद भी एक वजह बन कर सामने आयी है।
इसको लेकर भी ट्रेजरी अधिकारियों ने सरकार को आगाह करने की कोशिश की है। एसोसिएट प्रेस समाचार एजेंसी के एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर अमेरिका जल्द-से-जल्द वित्त मंत्री के कहे अनुसार एक्शन नहीं लेगा तो मई के आखिरी महीने या जून के शुरुआत तक दिवालिया घोषित हो जाएगा। असल में अमेरिका ने बीते 14 महीनों में यूक्रेन को बड़े स्तर पर फंडिंग की है, जिसके कारण उसके खुद के लोन नहीं चुक पा रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि अमेरिका अपने लिये हुये लोन की किश्ते नहीं चुका पा रहा है। अमेरिका ने रणनीति बनाई थी कि यूक्रेन के पीछे यदि वह खड़ा होगा तो रूस थक हारकर पीछे हट जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और युद्ध लंबा चल गया। रूस को भारत और चीन से मदद मिल गई, लेकिन अमेरिका को ही अब मंदी ने अपने चपेटे में ले लिया है। पहले अमेरिका ने सोचा था कि आर्थिक प्रतिबंध लगाने के कारण रूस की स्थिति खराब हो जायेगी और इसके चलते वह यूक्रेन से बाहर चला जायेगा, लेकिन भारत द्वारा रूस से आयात बढ़ाने के कारण उसको बड़ी मदद मिली है, जबकि चीन ने भी रूस से आयात को अधिक कर दिया है।
इसके साथ ही रूस ने डॉलर के बजाये भारत के रुपये और चीन के यूवान में कारोबार शुरू कर दिया है। इसी तरह से मित्र देशों के साथ उनकी मुद्रा में कारोबार करने के कारण उसकी अर्थव्यवस्था स्थिर रही है। दरअसल, अमेरिका व रूस दोनों ही सैनिक दृष्टि से काफी मजबूत माने जाते हैं। दोनों के पास ही हथियारों की कमी नहीं है, लेकिन यूक्रेन को दोनों देशों की जिद ने तबाह कर दिया है। यूक्रेन आज की तारीख में पूरी तरह से नाटो देशों के उपर निर्भर हो गया है। उसके पास खुद का कुछ भी नहीं बचा है। वह नाटो देशों की मदद नहीं लेता है तो रूस उसको हडप जायेगा, जबकि वह अपने दम पर कुछ भी कर पाने की हालात में दिखाई नहीं दे रहा है। नाटो में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, यूनान, स्पेन, कनाड़ा, तुर्की जैसे 30 देश शामिल हैं। इन सभी देशों में मंदी की मार पड़ रही है। इनमें से कई देश रूस के खिलाफ यूक्रेन की मदद कर रहे हैं, लेकिन अब जबकि इनमें ही मंदी शुरू हो गई है, तब ये देश भी हाथ खींचने लगे हैं। अमेरिका की मजबूरी यह है कि करोड़ों डॉलर की मदद करने के बाद भी रूस को नहीं हरा पाया है, जिसके कारण वह दोराहे पर खड़ा है। एक तरफ तो वह रूस नहीं हारने के कारण नैतिक दबाव बढ़ रहा है, दूसरी बात यह है कि यूक्रेन को अकेला छोड़ते ही रूस उसपर कब्जा करेगा, जबकि खुद अमेरिका मंदी की मार की चपेट में आ चुका है। अमेरिका के सामने दो ही विकल्प बचे हैं। या तो वह अपने देश को बचाये या फिर यूक्रेन को। इसलिये यह वर्ष अमेरिका के निर्णय के कारण चर्चा में रहने वाला है।
इधर, सबसे अधिक चर्चा भारत पर मंदी का असर नहीं होने को लेकर हो रही है। दुनिया के दुश्मन देश ही नहीं, बल्कि भारत में बैठे मोदी सरकार के विरोधी भी यह आस लगाये बैठे थे कि मंदी शुरू होगी तो सरकार को घेरने का काम करना आसान होगा, लेकिन भारत को संभावति मंदी से पूरी तरह से बाहर किया गया है, जो यह भी साबित करता है कि वर्तमान मोदी सरकार अपने सही निर्णयों के कारण देश को संकट से बचाने में सफल रही है। देश बहुत तेजी से निर्माण कार्यों पर पैसा खर्च कर रहा है। इस समय जितना निर्माण कार्य हो रहा है, उतने बड़े स्तर पर किसी देश में नहीं हो रहा है। भारत अपने रोड़, रेल, हवाई निर्माण के साथ ही बांधों और भवनों के निर्माण पर भी अथाह मात्रा में पैसा निवेश कर रहा है।
मंदी आने का कारण होता है धन का प्रवाह रुक जाना। जब किसी देश में विकास के मार्ग बंद हो जाते हैं, तब धन का प्रवाह यानी संचलन कम हो जाता है। अथवा जहां पर धन का अभाव होता है, वहां पर लोग जमा करने लगते हैं तो धन का संचलन बंद हो जाता है। जैसे जैसे धन के चलन की गति कम होती है, वैसे ही मंदी आने लगती है। जहां पर उत्पादन कम होता है, वहां पर भी मंदी की संभावना बन जाती है। वैसे मंदी का आना या तेजी का आना यकायक होने वाली प्रक्रिया नहीं है। किसी भी देश में तेजी और मंदी, दोनों ही लंबे समय के लक्षण होते हैं। जिस देश में मंदी होती है, वहां पर बीते चार—पांच साल से धन का संचलन कम होने के कारण होता है। इसी तरह से जहां पर विकास के काम तेज होते हैं, वहां पर अगले दो तीन साल में जाकर तेजी आने लगती है। चूंकि भारत में बीते 9 साल में विकास के कार्यों में तेजी आई है और इसके कारण धन का संचलन तेज हुआ है। हालांकि, तीन साल कोरोना के कारण बीच में पूरी दुनिया ही जाम हो गई थी, इसलिये भारत में भी विकास कार्य ठप हो गये थे। यही वजह रही कि जीडीपी की रफ्तार पर कम हो गई। बाद में भारत का निर्माण कार्य तेज गति से चल रहा है, जिसके कारण रुपये का प्रवाह तेज हो रहा है। इसी तेज प्रवाह के कारण भारत में मंदी की संभावना नहीं के बराबर बताई गई है।

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