पायलट—गहलोत की जंग में उतरे मंत्री—विधायक, कांग्रेस ही कांग्रेस को हरायेगी

Ram Gopal Jat
राजस्थान में चुनाव नवंबर दिसंबर में प्रस्तावित हैं, लेकिन सरकार बनाने, सत्ता पाने, टिकट का जुगाड़ करने और चुनाव जीतने की मारामारी तेज हो गई है। स्थितियां यहां तक पहुंच चुकी हैं कि सत्तापक्ष में बैठे हुये लोग ही आपस में झगड़ रहे हैं। राज्य में बीते करीब सवा चार साल से गहलोत—पायल की जंग का अंत नहीं हुआ है, और अब इस जंग के चरम पर पहुंचने की संभावना प्रबल हो रही हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जहां सचिन पायलट को सीएम पद तक पहुंचने से रोकने के लिये शपथ लेकर बैठे हैं, तो अब पायलट कैंप के नेताओं ने मान लिया है कि इस कार्यकाल में सचिन पायलट संभवत: सीएम नहीं बन पायेंगे। दोनों ओर से आरोप—प्रत्यारोप का दौर धीरे धीरे तेज हो रहा है। प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा दावा तो कर रहे हैं कि कांग्रेस एक होकर चुनाव लड़ेगी, लेकिन हकिकत कुछ और ही है। इस सियासी कबड्डी में राजस्व मंत्री रामलाल जाट जहां अशोक गहलोत की ओर से पाला दे रहे हैं, तो पायलट की तरफ से वनमंत्री हेमाराम चौधरी ने मोर्चा संभाल रखा है। दोनों तरफ से गुटबाजी को हवा दी जा रही है। इस बीच अध्यक्ष होने के बाद भी गोविंद सिंह डोटासरा बिलकुल असर नहीं छोड़ पा रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि जो नेता धरने प्रदर्शनों में नहीं आयेंगे, उनको पार्टी से बाहर किर दिया जायेगा, लेकिन यह बात स​ब जानते हैं कि डोटासरा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिये मंत्री आपस में बयान देकर पार्टी के दावों की हवा निकाल रहे हैं।
हाल ही में राजस्व मंत्री रामलाल जाट ने कहा था कि जिन लोगों ने बगावत की थी, उनके उपर कार्यवाही होनी चाहिये और अशोक गहलोत के दम पर ही पार्टी फिर से सत्ता में लौट सकती है। राजस्व मंत्री जाट ने सचिन पायलट एवं उनके समर्थकों का नाम लिए बगैर तीन दिन पहले कहा था कि कुल लोग सरकार की बुराई करते हैं और फिर आलाकमान को खुश करने के लिए दो बात राहुल गांधी के पक्ष में बोल देते हैं। यह दोगलापन अच्छी बात नहीं है। उन्होंने आरएएस एवं भाजपा को अनुशासित संगठन बताते हुए कहा था कि वे अनुशासित होने के कारण चुनाव जीत जाते हैं। कांग्रेस पार्टी में अनुशासन की कमी आई है और ऐसे लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए। इस मामले में मंत्री हेमाराम चौधरी ने पलटवार करते हुए कहा था कि किसी से दोयम दर्जे का व्यवहार और छूआछूत अच्छी बात नहीं है। कांग्रेस में रहना या नहीं रहना यह रामलाल जाट तय नहीं करेंगे। इसके बाद रामलाल जाट ने कहा कि मैंने किसी नेता के लिए व्यक्तिगत रूप से नहीं कहा। निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले हाे या जाे अनुशासन में नहीं रहते हैं उनके लिए कहा है। जहां चुनाव हाेते हैं वहां अनुशासित रहेंगे तभी ताे पार्टी काे जीत दिला पाएंगे।
इधर, अशोक गहलोत सरकार के तीसरी बार नंबर वन मंत्री शांति धारीवाल पर विधायकों ने तीखा हमला किया है। एक दिन पहले जयपुर में एक मंच पर बैठे चार विधायकों ने मंत्री को आड़े हाथों लिया। विधायक अमीन कागजी ने आरोप लगाये हैं कि मंत्री सारे जेईएन, एक्सीएन समेत सभी इंजिनियर्स को कोटा ले गये हैं, क्या सरकार कोटा ही बन जायेगी। जयपुर में कोई विकास नहीं हो रहा है, मंत्री दोगलापन कर रहे हैं। धारीवाल प्रभारी मंत्री हैं, लेकिन अभी तक एक भी मीटिंग जयपुर में विधायकों और निगम अधिकारियों के साथ नहीं की। इसी तरह से मंत्री प्रताप सिंह खाचरिवास अधिकारियों पर बरस रहे थे। उन्होंने अपनी ही पार्टी के जयपुर हैरिटेज मैयर मुनेश गुर्जर को अपनी हद में रहने की हिदायत तक दी। दरअसल, हैरिटेज निगम में अभी तक कमेटियां नहीं बनी हैं,जिसको लेकर मंत्री—विधायक भी नाराज हैं। यूडीएच मंत्री होने के कारण शांति धारीवाल कमेटियां नहीं बनने दे रहे हैं।
इसी तरह से पिछले दिनों एक मीटिंग में खेलमंत्री अशोक चांदना ने अधिकारी को एक झटक में खत्म करने तक की धमकी दे डाली थी। दूसरी ओर सैनिक कल्याण राज्यंत्री राजेंद्र गुढ़ा पर अपहरण का केस दर्ज होने के बाद मामला अलग धारा में चला गया है, वह पिछले काफी दिनों से पायलट के पक्ष में बयान दे रहे थे। वैसे ये चीजों कोई नई बात नहीं है। अशोक गहलोत के तीनों ही कार्यकालों में मंत्री, विधायक और अधिकारी बेलगाम रहते हैं। सरकार के अंतिम महीने चल रहे हैं और अब इन बयानवीरों के तीखे बयान आने बाकी हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष नहीं हैं, जिसके कारण पुराने जिलाध्यक्ष अपनी मनमर्जी कर रहे हैं, लेकिन उनके हाथ में कुछ भी नहीं है। यहां तक कि प्रदर्शनों में भीड़ भी नहीं जुट पा रही है। जहां पायलट जाते हैं, वहां भीड़ हो जाती है, लेकिन जहां पर अशोक गहलोत और डोटासरा होते हैं, वहां पर लोग इकट्ठे ही नहीं होते हैं। नतीजा यह निकलता है कि कांग्रेस का प्रदर्शन निष्प्रभावी हो जाता है। यह बात भी गौर करने वाली है कि कांग्रेस को इस बार कम से कम 19 सीटों पर कांग्रेस ही कांग्रेस को हराने का काम करने को तैयार है। इनमें से 13 सीटों पर निर्दलीय हैं, जो कांग्रेस को समर्थन दे रदे हैं, जबकि 6 विधायक बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये थे। इन 13 निर्दलीयों में से 12 विधायक अशोक गहलोत के खास माने जाते हैं, जबकि बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये 6 विधायकों को भी कांग्रेस से ही टिकट का भरोसा है। कांग्रेस के सामने संकट यह माने वाला है कि जिन 13 हारे हुये कांग्रेसी प्रत्याशियों को दुबारा टिकट दिया जाये या सरकार बचाने वाले निर्दलीयों को टिकट दे। इसी तरह से बसपा से आये 6 विधायकों को टिकट दिया जायेगा या फिर जिनको ये लोग हराकर आये हैं, उनको फिर से टिकट दिया जायेगा। कांग्रेस ने यदि इन 19 को दिया तो कांग्रेस प्रत्याशी रहे लोग बगावत कर चुनाव लड़ेंगे और उनको टिकट दिया गया तो ये लोग ​बागी होकर कांग्रेस को हरायेंगे।
इधर, भाजपा में भी चुनाव को लेकर चौसर बिछाई जा चुकी है। भाजपा ने अध्यक्ष बदलने के बाद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को पार्टी के साथ लेकर जिम्मेदारी देने पर मंथन किया जा रहा है। वैसे तो अध्यक्ष बदलने के बाद वसुंधरा का गुट काफी खुश है, लेकिन पार्टी नहीं चाहती है कि चुनाव से पहले वसुंधरा निष्क्रिय रहें, इस वजह से उनको नई जिम्मेदारी देकर पार्टी चुनाव में उनके अनुभव का लाभ लेने के लिये काम कर रही है। जिम्मेदारी के हिसाब से अब राज्य में केवल एक ही पद बचा है, जो चुनावी है। माना जा रहा है कि चुनाव प्रचार समिति का जिम्मा वसुंधरा को देकर उनको सक्रिय किया जायेगा। इसके साथ ही कुछ लोगों का मानना है कि जल्द ही केंद्रीय मंत्रीमंडल में बदलाव होने जा रहा है, उसमें वसुंधरा राजे को कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। राज्य से वसुंधरा राजे को मंत्रीमंडल में लेने का निर्णय इस बात का पुख्ता संकेत होगा कि अब राज्य की राजनीति से वसुंधरा का दौर समाप्त हो चुका है। कुछ लोग उनको राज्यपाल बनाने की भी चर्चा कर रहे हैं, लेकिन केवल एक ही पद पर उनको लगाया जा सकता है और वह है चुनाव प्रचार समिति अध्यक्ष।
भाजपा इसके साथ ही उपचुनाव में नुकसान उठाने और राज्य के अपने विचार वोट को फिर से साथ जोड़ने पर भी विचार कर रही है। राष्ट्रीय लोकतांत्रित पार्टी के कारण भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में कम से कम 25 सीटों पर हार देखनी पड़ी थी। इन ​सीटों पर हनुमान बेनीवाल की पार्टी दूसरे या तीसरे स्थान पर रही थी। जहां पर भाजपा 3 हजार से कम मतों से हारी थी, वहां पर रालोपा के उम्मीदवार काफी वोट ले गये थे। इसी तरह से बीते चार साल में 9 जगह हुये उपचुनाव में भाजपा 8 चुनाव हारी, जिसको श्रेय भी रालोपा को जाता है। आमतौर पर यही माना जाता है कि रालोपा का वही वोटबैंक है, जो भाजपा का है। लोकसभा चुनाव में इसका परिणाम देखने को भी मिला, जहां पर रालोपा भाजपा ने गठबंधन करके कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था। वैसे हनुमान बेनीवाल का राजनीतिक उदय भाजपा से ही है, जो 2008 में पहली बार विधायक जीते थे। बाद में वसुंधरा राजे से अनबन के बाद उनको पार्टी से बाहर कर दिया गया था। वह 2013 और 2018 में भी विधायक बने और 2019 में सांसद बने।
इन सभी समीकरणों को भांपने के बाद भाजपा ने फिर से रालोपा के साथ गठबंधन करने पर मंथन शुरू कर दिया है। अभी भाजपा चुनाव के दौरान रालोपा को डेढ दर्जन सीटें देने का तैयार बताई जा रही है, लेकिन हनुमान बेनीवाल तीन दर्जन पर अड़े हुये हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि रालोपा ने भाजपा को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की भी चेतावनी दी है। हालांकि, सार्वजनिक तौर पर रालोपा का कहना है कि राज्य की 150 सीटों पर चुनाव लड़कर सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखेगी, लेकिन यह सबको पता है कि यदि रालोपा ने 150 सीटों पर चुनाव लड़ा तो भाजपा का सत्ता में आना बेहद कठिन हो जायेगा। अशोक गहलोत भी यही चाहते होंगे कि भाजपा—रालोपा का गठबंधन नहीं हो और इसका लाभ उनको मिल जाये। कांग्रेस ने पिछली बार भी हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन करके लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रयास किया था, जिसका सबूत खुद गहलोत का नागौर में दिया गया बयान है। हालांकि, सीटों की संख्या और मोदी लहर के चलते हनुमान ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और नागौर से खुद सांसद बने थे।
अब जिस तरह के समीकरण बन रहे हैं, उससे साफ है कि भाजपा और रालोपा के बीच करीब दो दर्जन सीटों पर समझौता होगा, जहां रालोपा के उम्मीदवार उतारे जायेंगे। बाकी सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी मैदान में होंगे। यह गठबंधन रालोपा को नया जीवन देगा तो भाजपा को सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचने में मदद करेगा। हालांकि, यदि वसुंधरा राजे अड़ी रहीं, तो थोड़ा मुश्किल है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के अनुभव को देखते हुये वसुंधरा के विरोध का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। राजनीति में कोई स्थाई दोस्त और स्थाई दुश्मन नहीं होता है। पिछले कार्यकाल में सीएम रहते वसुंधरा राजे का भाजपा के विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने पांच साल विरोध किया, उसके बाद उन्होंने पार्टी तक छोड़ दी, लेकिन जमान नहीं बचा पाये। बाद में सतीश पूनियां के सहयोग से वापस भाजपा में शामिल हुये और उनको पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया। जब वह राज्यभा का चुनाव लड़ रहे थे, तब वसुंधरा राजे और घनश्याम तिवाड़​ फिर से एक हो गये। इसलिये यह तय है कि चुनाव में सत्ता पाने के लिये वसुंधरा राजे भी हनुमान बेनीवाल क्या किसी से भी गठबंधन करने को तैयार हो जायेंगी।
भाजपा—रालोपा में गठबंधन होने और कांग्रेस का सिरफुटव्वल पार्टी को सत्ता से बेदखल करने में सोने पर सुहागा जैसा काम करेगा। कांग्रेस आज जब सत्ता में तभी मंत्री—विधायक आपस में सिर फोड़ रहे हैं, तो जब टिकट बंटावारा होगा, तब हालात क्या होंगे, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। खुद कांग्रेस के विधायक और मंत्री कह चुके हैं कि यदि सचिन पायलट को कमान नहीं सौंपी गई तो कांग्रेस एक कार में बैठकर सवारी करने जितनी सीटें ही जीत पायेगी। इससे आप समझ सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी के अंदरुनी हालात क्या होंगे? भाजपा और दूसरे दल कांग्रेस को हराने में कितना दमखम लगायेंगे यह कह नहीं सकते, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि यदि समय रहते पायलट गहलोत कैंप की खींचतान खत्म नहीं की गई, तो कांग्रेस ही कांग्रेस को हरायेगी।

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