सतीश पूनियां के हटने से वसुंधरा खेमा गदगद है

Ram Gopal Jat
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा आलाकमान का पूरा फोकस राजस्थान में चल रही खींचतान को खत्म करने पर है। सीपी जोशी को प्रदेशाध्यक्ष, राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष और पूर्व अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया को उपनेता प्रतिपक्ष के पद पर नियुक्ति के बाद भाजपा पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को भी सेट करने में जुट गई है। हालांकि, अब भी भाजपा आलाकमान के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बड़ी चुनौती हैं। भाजपा नेताओं का दावा है कि केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव से पहले वसुंधरा राजे को एक ऐसी जिम्मेदारी देना चाहता है। पार्टी हाईकमान को इस बात का पता है कि वसुंधरा राजे के बिना विधानसभा चुनाव में राह आसान नहीं होगी। वसुंधरा के प्रभाव को देखते हुए उन्हें इलेक्शन कैंपेनिंग कमेटी में अध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद देकर भाजपा चुनाव में उतर सकती है। माना जा रहा है कि आने वाले 10-15 दिन में वसुंधरा राजे को लेकर पार्टी फैसला कर लेगी। संसद सत्र की समाप्ति के बाद उनको दिल्ली बुलायाकर वसुंधरा का सम्मान बनाए रखते हुये चुनाव में उन्हें पूरी तरह से सक्रिय रखने का काम किया जाएगा। इसके साथ ही राज्यसभा सदस्य डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को ST वर्ग और पूर्वी राजस्थान में उनके प्रभाव को देखते हुये केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने की पूरी संभावना है।
वसुंधरा राजे और राजेंद्र राठौड़ में सियासी दूरियां इतनी बढ़ चुकी थीं कि उनमें लंबे समय से कोई मुलाकात नहीं हुई थी। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद खुद राजेंद्र राठौड़ ने वसुंधरा के घर पहुंचकर दूरियां घटाने का प्रयास किया है। उससे पहले प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह, प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी ने भी वसुंधरा राजे से मुलाकात कर गुटबाजी खत्म होने का दावा किया है। वसुंधरा भी सतीश पूनियां को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद खुद को सुरक्षित महसूस कर रही हैं। उन्होंने पार्टी कार्यालय में भी अपनी चहलकदमी बढ़ा दी है। इससे एक बात बिलकुल साफ हो गई है कि सतीश पूनियां के अध्यक्ष रहते कई नेता खुद को असुरक्षित मान रहे थे, जिनमें वसुंधरा राजे का गुट पूरी तरह से यह मानकर बैठा था कि यदि सतीश पूनियां को नहीं हटाया गया तो चुनाव परिणाम के बाद सीएम की रेस में वसुंधरा राजे काफी कमजोर रहेंगी। सतीश पूनियां की जगह सीपी जोशी को अध्यक्ष बनाने के बाद पार्टी के अनैक नेता खुश हैं। जो नेता चुप रहकर सतीश पूनियां को समर्थन नहीं कर रहे थे, वो भी अब सीपी जोशी के नाम बेहद प्रसन्न नजर आ रहे हैं।
पार्टी ने हालांकि, सतीश पूनियां को उपनेता बनाकर सम्मान देने का प्रयास जरुर किया है, लेकिन उनके समर्थक इससे कतई खुश नहीं हैं। सतीश पूनियां ने भले ही 'संगठन सर्वोपरी' का संदेश दिया हो, लेकिन इसके पीछे की मंशा को कई तरह से देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सतीश पूनियां कमजोर करने या सीएम की रेस से बाहर करने के लिये जो एक बड़ी लॉबी काम कर रही थी, वो सफल हो चुकी है। चुनाव परिणाम के बाद सीएम कौन होगा, यह अभी किसी को पता नहीं है, लेकिन सतीश पूूनियां के विरोधियों की खुशी उनके चेहरों पर साफ देखी जा सकती है।
समझने वाले बात यह है कि पांच बार की सांसद, पांच बार की विधायक, दो बार सीएम, दो बार नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे सतीश पूनियां के नाम से इतनी चिढ़ती क्यों हैं और उनसे इतनी असुरक्षित क्यों हैं? दरअसल, पहली बात तो यह है कि वसुंधरा राजे आज से नहीं, बल्कि 2003 में राजस्थान आई थीं, तभी से वो सतीश पूनियां को पसंद नहीं करती हैं। इसी वजह से जब तक वह पॉवर में रहीं, तब तक सतीश पूनियां का टिकट काटा, उनको गलत जगह से टिकट दिया और चुनाव हरवाने में भी उनकी टीम ने काम किया था। संभवत: वसुंधरा राजे को सतीश पूनियां के रुप में जाट समाज से बड़े नेता के उभरने की संभावना की चुनौती दिखाई दे रही हों। इसके साथ ही सतीश पूनियां को जब अध्यक्ष बनाया गया, तब वसुंधरा राजे सख्त खिलाफ थीं, इसके बावजूद भी संघ ने एक नाम के रुप में सतीश पूनियां को पसंद किया और अध्यक्ष बनाया गया। यह बात सर्वविदित है कि संघ वसुंधरा राजे को पसंद नहीं करता है, खासकर जब पिछले कार्यकाल में वसुंधरा सरकार ने जयपुर में दर्जनों मंदिर तोड़े थे, तब संघ की छवि को नुकसान पहुंचा था। वसुंधरा बीते तीन साल से सतीश पूनियां को अध्यक्ष पद से हटाने के लिये प्रयास कर रही थीं, जो संघ के वीटो के कारण सफल नहीं हो पा रही थीं।
इस वजह से भी वसुंधरा राजे को लगता था कि यदि चुनाव तक अध्यक्ष रहे और भाजपा उनकी लीडरशिप में जीत गई तो सीएम के वह सबसे बड़े दावेदार हो जायेंगे। वसुंधरा यह बात अच्छे से जानती हैं कि संघ सतीश पूनियां को पसंद करता है और चुनाव जीतने के बाद वह इतने ताकतवर हो जायेंगे कि मुकाबला करना कठिन हो जायेगा। इस कारण वह चुनाव से पहले पहले ही सतीश पूनियां को हटाने पर जोर दे रही थीं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि राजस्थान में पार्टी की ओर से किसी भी नेता को CM के चेहरे के रूप में घोषित नहीं किया जाएगा। ऐसे में यह साफ है कि वसुंधरा राजे को भले ही CM फेस घोषित न किया जाए। इस वजह ने भी वसुंधरा राजे को को आशंकित कर रखा था। केंद्रीय नेतृत्व की ओर से यह तय किया जा चुका है कि चुनाव में सबको साथ लेकर पार्टी मैदान में उतरे। CM के नाम पर चुनाव के बाद ही घोषणा होगी। किंतु वसुंधरा को इस बात का पक्का पता है कि भाजपा यदि सतीश पूनियां के अध्यक्ष रहते सत्ता में आई तो सीएम पद पर उनकी दावेदारी पहले नंबर पर होगी। यही वजह है कि वसुंधरा खेमे ने पूरे तीन साल तक संगठन से दूरी बनाकर गुटबाजी दिखाने का पूरा प्रयास किया, ताकि आलाकमान तक यह मैसेज जा सके कि सतीश पूनियां संगठन को संभाल नहीं पा रहे हैं, उनमें सबको साथ लेकर चलने की योग्यता नहीं है। वसुंधरा राजे और किरोड़ीलाल मीणा की नजदीकियां किसी से छुपी नहीं हैं। इसी का परिणाम था कि वसुंधरा कभी किरोड़ी के धरनों में नहीं गईं, लेकिन फिर भी उन्होंने कभी उनकी अलोचना नहीं की, जबकि सतीश पूनियां किरोड़ी के धरने में भी गये और उनके चोट लगी तो प्रदर्शन भी किया, फिर भी किरोड़ी ने सतीश पूनियां के खिलाफ बयान देकर गुटबाजी को बढ़ाने और उनके खिलाफ माहोल बनाने का काम किया। किरोड़ी के बयानों ने साफ कर दिया कि वह वसुंधरा राजे के कैंप में हैं, ना कि संगठन के साथ चलने वाले हैं। अध्यक्ष बदलने के बाद किरोड़ीलाल मीणा को अब कुछ मिले या नहीं मिले, लेकिन उनकी फेवरिट सीएम वसुंधरा राजे को राहत जरूर मिली है। सतीश पूनियां से किरोड़ीलाल मीणा की नफरत के अंदाजे को राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष बनाने और सतीश पूनियां को उपनेता प्रतिपक्ष बनाने के बाद उनके ट्वीट की भाषा से लगाया जा सकता है। अलबत्ता तो एक साथ नियुक्ति् के बावजूद किरोड़ी ने सतीश पूनियां को बधाई ही नहीं दी, लेकिन जब सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगे तो रस्मअदायगी करने के लिये विधायक सतीश पूनियां लिखकर कद छोटा करने का भरपूर प्रयास किया, जबकि राजेंद्र राठौड़ की शान में कसीदे पढ़कर सतीश पूनियां से नफरत वाली खुद मानसिकता उजागर कर दी।
सतीश पूनियां के कार्यकाल के अंतिम दिनों में वसुंधरा, किरोड़ी, ओम माथुर जैसे नेताओं द्वारा बयानबाजी की होड़ के चलते पार्टी में बिखराव और गुटबाजी दिखने लगी थी। वसुंधरा, किरोड़ी, माथुर जैसे बहुत से नेताओं ने सतीश पूनियां के खिलाफ एक साजिश के तहत पार्टी के कार्यक्रमों और गतिविधियों से खुद को दूर कर लिया था। यहां तक कि वसुंधरा राजे कैंप के पूरे नेता सतीश पूनियां के कार्यक्रमों में शामिल ही नहीं होते थे। कुल मिलाकर बात यही है कि अकेले सतीश पूनियां को हटाने के लिये उनके खिलाफ भाजपा का एक बहुत बड़ा धड़ा दिनरात काम कर रहा था। और वसुंधरा राजे भी इनमें सबसे प्रमुख थीं। वह अपने निजी कार्यक्रमों में तो हमेशा सक्रिय दिखाई देती थीं, लेकिन सतीश पूनियां के अध्यक्ष रहते पार्टी के कार्यक्रमों से पूरी तरह दूर चलती थीं। पार्टी के भीतर प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक लगातार बन रहे इस तरह के हालात से निपटने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने सतीश पूनियां की जगह सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इसके जरिये पार्टी के आम कार्यकर्ताओं तक यह मैसेज दिया गया कि सीपी जोशी का चयन आलाकमान का खुद का है और पार्टी को एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा।
प्रदेश अध्यक्ष पद पर सीपी जोशी की नियुक्ति के साथ ही वसुंधरा कैंप के किरोड़ीलाल जैसे नेताओं ने राजस्थान भाजपा में एकजुटता दिखाने के मैसेज देना शुरू कर दिया है। वंसुधरा कैंप नेताओं ने सीपी जोशी के पदभार ग्रहण कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने के साथ ही सक्रिय रुप से शामिल होकर अपनी खुशी जाहिर की, जो इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि सतीश पूनियां के हटने से इन नेताओं को कितनी खुशी मिली है। जोशी के पदभार ग्रहण कार्यक्रम में वसुंधरा को छोड़कर उनके गुट का ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं था, जो मौजूद नहीं था। वसुंधरा समर्थक नेताओं की उपस्थिति और समर्थन में नारेबाजी सतीश पूनियां के हटने की खुशी का बड़ा उदाहरण है। उससे पहले 4 मार्च को जो नेता अध्यक्ष रहते सतीश पूनियां की ओर से पार्टी के घोषित आंदोलन में पहुंचने के बजाय वसुंधरा राजे के सालासर में मनाए गए जन्मदिन कार्यक्रम में पहुंच कर पार्टी की गुटबाजी को खुलेआम प्रदर्शित कर रहे थे, वो तमाम नेता सीपी जोशी के पदभार ग्रहण वाले दिन जयपुर में मौजूद रहे।
अध्यक्ष बदले जाने और उपनेता जैसा बिना किसी अर्थ का पद दिये जाने के बाद भी सतीश पूनियां ने भले ही हमेशा की तरह संगठन के प्रति अपनी वफादारी साबित की हो, लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में उनको हटाने को लेकर अभी तक भी मिल रही प्रतिक्रिया को पार्टी नकारा नहीं जा सकता। 'पूनियां में क्या कमी थी' से लेकर 'प्रदेश के पहले अग्निवीर को कंडक्टर की नौकरी' जैसे ट्रोल ने भाजपा को सकते में तो डाल दिया है और संभवत: संघ इस बात को समझ भी रहा है कि पार्टी ने ये बड़ी गलती कि है, लेकिन पार्टी के कुछ बुद्धिजीवी लोग यह भी कह रहे हैं कि चुनाव बाद सतीश पूनियां का वो दौर आयेगा, जो कभी नहीं आया। फिलहाल सतीश पूनियां को उस दौर में प्रवेश करने के लिये अपनी सीट बचानी बेहद जरुरी है, जहां पर एक बार फिर उनको वसुंधरा, किरोड़ी, राज्यवर्धन जैसों के टीमों से चुनौती मिलने वाली है। क्योंकि यदि सतीश पूनियां अपनी सीट नहीं जीत पाये तो यह भी तय है कि संघ, उनके समर्थक नेता और पार्टी के बुद्धिजीवी लोग भी उनकी दावेदारी के लिये नहीं लड़ पायेंगे।
सतीश पूनियां को कमजोर करने से जितना खुश वसुंधरा खेमा है, उतनी ही खुशी कांग्रेस—रालोपा में है। दरअसल, जब से सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाया गया था, तब से प्रदेश के किसान वर्ग में भाजपा मजबूत होती जा रही थी, जिसका सीधा नुकसान इन्हीं दोनों दलों को रहा था। सोशल मीडिया पर यह दिखाने का प्रयास जारी है कि भाजपा किसान विरोधी है और इसको 2023 में फिर से हराना जरुरी है। रालोपा का कोर वोट किसान कौम है, जबकि कांग्रेस को इस वोट से हमेशा सत्ता मिली है। दोनों ही दल भाजपा को अब किसान विरोधी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। गोविदं सिंह डोटासरा के बयानों से लेकर महेंद्र चौधरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह साबित करने का पूरा प्रयास किया गया है कि किसान वर्ग से आने वाले सतीश पूनियां से तीन साल मेहनत करवाई और अब, जबकि सत्ता के करीब पहुंच चुके हैं, तब उनको साइड लाइन कर दिया गया है। इधर, रालोपा के समर्थक भी यही कह रहे हैं कि भाजपा कभी किसानों का भला करने वाली पार्टी नहींं हो सकती है। इस वजह से विपक्ष में मेहनत करने के लिये किसान वर्ग के नेता सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन जब मलाई खाने की बारी आ रही है तो ब्राह्मण सीपी जोशी के सिर पर ताज पहना दिया है।
कांग्रेस नेता महेंद्र चौधरी ने यह कहकर कांग्रेस की रणनीति भी साफ कर दी है कि सतीश पूनियां को हटाकर राज्य की 70 फीसदी किसान कौम के साथ भाजपा ने धोखा दिया है। इसलिये समय रहते यदि भाजपा इस डैमेज को कंट्रोल नहीं कर पाई तो चुनाव में पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। खासकर पश्चिमी राजस्थान और शेखावाटी में भाजपा को होने वाले नुकसान की कल्पना करना भी कठिन है। इस मामले में अभी हनुमान बेनीवाल की रैलियों में उनके भाषण से भाजपा के लिये निपटना बड़ी चुनौती है, जो चुनाव से पहले किसान कौम के नेता को भाजपा द्वारा अध्यक्ष पद से हटाने का बड़ा मुद्दा बनाने वाले हैं और भाजपा के पास इस मुद्दे से निपटने का केवल एक ही उपाय है, जो हैं नरेंद्र मोदी।

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