Ram Gopal Jat
मंगलवार से देश के सभी बैंकों में एक साथ 2000 के नोट की बदली शुरू हो चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को एक बार में 10 नोट, यानी 20,000 रुपये बदलवाने की छूट होगी। हालांकि, यह नहीं कहा है कि एक दिन में कितनी बार 20 हजार बदलने की छूट है? मतलब कोई व्यक्ति दिन में कितनी बार भी 20—20 हजार के हिसाब से चाहे जितने नोट बदलना चाहे, बदल सकता है। इसके लिये किसी को बैंक खाता, आधार कार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड या कोई भी कागज की जरूरत नहीं होगी। ना ही बैंक में यह रिकॉर्ड रखा जायेगा कि किस व्यक्ति से कितना पैसा आया? और ना ही किसी का फोन नंबर या आधार नंबर लिया जायेगा। इसका तात्पर्य यह है कि कोई अलगाववादी, आतंकवादी, भ्रष्टाचारी, जमाखोर, काला करोबारी, रिश्वखोर व्यक्ति चाहे जितने रुपये लेकर सीधा बैंक जायेगा और बैंकर तुरंत नोट बदलकर दे देंगे। बैंककर्मी उससे कुछ भी पूछने वाले नहीं हैं। नवंबर 2016 में जब मोदी सरकार ने पहली नोटबंदी की थी, तब नोट बदलने पर कई तरह के प्रतिबंध थे, लेकिन इस बार तो पूरी तरह से छूट दे दी गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार और आरबीआई ने यह मान लिया है कि दो हजार के जितने भी नोट मार्केट में चलन में हैं, वो सभी सफेद धन का हिस्सा हैं।
2016 की एतिहासिक नोटबंदी के दौरान देश ने क्या—क्या नहीं देखा, जब लोग कई घंटों तक कतारों में खड़े रहे थे। पीएम मोदी ने देश को आश्वास्त किया था कि 50 दिन में सबकुछ ठीक हो जायेगा, लेकिन हुआ या नहीं, यह बात जनता ही जानती है। अबकी बार भले ही पीएम मोदी ने टीवी पर आकर देश को संबोधित नहीं किया हो, लेकिन यह फैसला पक्के तौर पर सरकार का ही माना जाता है। यह बात सही है कि पिछली बार आरबीआई के क्षेत्र में सरकार के हस्तक्षेप के आरोप लगे थे और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। शायद यही वजह है कि इस बार इस घोषणा से पीएम को दूर रखा गया है। आरबीआई ने मान लिया है कि 2017 में 2 हजार के नोट के 6.73 लाख करोड़ रुपये थे, आज उनमें से 3.11 लाख करोड़ रुपये चलन में ही नहीं हैं, तब कैसे माना जा सकता है कि सारा पैसा व्हाइट मनी है? यदि व्हाइट मनी नहीं है तो फिर बिना कागजात के नोट बदली क्यों की जा रही है? आखिर 3.11 लाख करोड़ को बाहर निकालना ही एक मात्र उद्देश्य रहा है तो फिर 2 हजार का नोट छापने की जरूरत ही कहां थी? इतनी बड़ी नोटबंदी और नोट बदली के बाद भी यदि कालाधन बाहर नहीं आयेगा तो फिर इस नोट को बंद करने का अर्थ ही क्या रह जायेगा। पहले भी कालाधन जमा था, आगे भी रहेगा। फर्क केवल इतना होगा कि अबतक 2 हजार का नोट था, और आगे 500, 200, 100 के नोटों की शक्ल में होगा।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय इस मामले को लेकर कोर्ट में भी गये हैं, लेकिन वहां पर आरबीआई के एडवोकेट ने बैंक की पॉलिसी का मैटर बताकर पल्ला झाड़ लिया है। अश्विनी उपाध्याय के एक भी तर्क का आरबीआई के वकील ने जवाब नहीं दिया। इसका अर्थ यह है कि जमाखोरों, मिलावटखोरों, कालाबाजारी करने वालों, नक्सलवादियों, माओवादियों, आतंकवादियों, सफेदपोशों, भ्रष्टाचारियों, डकैतों, माफियाओं, अपहरणकर्ताओं के पास जो भी कालेधन के रूप में 2 हजार के नोटों का जखीरा जमा है, वह एक झटके में सफेद हो जायेगा। उसके उपर किसी तरह का प्रतिबंध ही नहीं है, उसके लिये कोई पूछने वाला ही नहीं है, उसकी कहीं पर बैंक में एंट्री ही नहीं होगी। नोट बदलने वाले का ना पैन नंबर होगा, ना आधार नंबर होगा, ना बैंक खाते की डिटैल होगी, ना नाम, पता या उसका कोई पहचान पत्र लिया जायेगा, तब कैसे पता चलेगा कि 3.11 लाख करोड़ रुपये कहां जमा थे? क्या सरकार और आरबीआई द्वारा जानबूझकर यह लूप पॉइंट छोड़ा गया है, ताकि 'मित्रों' और चहेतों का पूरा कालाधन सफेद में बदल जाये? लोग पहले ही आरोप लगाते हैं कि मोदी सरकार की पहली नोटबंदी दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है, जब बैंकर्स ने 20 प्रतिशत तक कमिशन लेकर नोट बदल डाले थे और अब कहने लगे हैं कि 'मित्रों' का बचा हुआ कालाधन सफेद करने के लिये 2 हजार का नोटबंद किया गया है, उसको बिना किसी रोक टोक के बदलने की सहूलियत दी गई है।
प्रश्न यह भी उठता है कि सरकार ने नवंबर 2016 में 2 हजार को नोट शुरू क्यों किया और अब केवल साढे 6 साल में ही उसको बंद क्यों कर दिया? आरबीआई के अनुसार 2 हजार रुपए का एक नोट छापने में 4.18 रुपये का खर्च आता है। आरबीआई ने 19 मई की प्रेस रिलीज में बताया था कि मार्च 2018 के दौरान कुल 6.73 लाख करोड़ मूल्य के 2000 नोट मार्केट में मौजूद थे, उसके बाद इस नोट की छपाई बंद कर दी गई थी। इसका मतलब सरकार ने 2 हजार का नोट शुरू किया तब केवल इसकी छपाई पर ही करीब 33650 करोड़ रुपये खर्च हुये थे। इसके अलावा उसको बैंकों तक पहुंचाने और वितरण का खर्चा अलग से हुआ। अब उसको केवल साढ़े 6 साल में ही बंद कर जनता को फिर से लाइनों में लगाने का काम किया जा रहा है, जो समझ से परे है। आखिर क्या वजह है कि आरबीआई ने इस नोट को बदलने की पूरी तरह से छूट दे दी है, जबकि बैंक का मानना है कि 3.11 लाख करोड़ रुपये जमाखोरों के पास पड़े हैं, फिर भी उस कालेधन को सफेद करने की मनमानी छूट दे दी है। इसका कोई हिसाब—किताब रखने से आरबीआई ने किनारा क्यों किया है, यह बात समझ से परे है।
देश की करीब 140 करोड़ जनसंख्या बताई जाती है, जिसमें 5 करोड़ वो रोहिंग्या—बंग्लादेशी भी शामिल हैं, जिनके आधार कार्ड जैसे कागजात बनाये जा चुके हैं। इनके दस्तावेज केवल रिश्वत लेकर ही बनाये गये होंगे, क्योंकि इनके पास भारत की नागरिकता नहीं होने के बाद भी ये लोग भारत के नागरिक बना दिये गये हैं। सरकार का कहना है कि 48 करोड़ जनधन खाते खोले गये थे और अब गरीब से गरीब व्यक्ति का भी बैंक में खाता है, जिनको उज्जवला, किसान कल्याण निधि, बीपीएल का लाभ, फ्री राशन जैसी सुविधाएं मिल रही हैं। आरबीआई के अनुसार देश में 225 करोड़ बैंक खाते हैं, जिनमें करंट अकाउंट से लेकर सेविंग अकाउंट और दूसरी सभी प्रकार के बैंक खाते हैं। साथ ही देश के 130 करोड़ से अधिक लोगों के पास आधार कार्ड हैं। ऐसे में आरबीआई ने 2 हजार का नोट बदलने के बजाये उसको बैंक खातों में डालने का आदेश क्यों नहीं निकाला? आखिर जब सभी के पास बैंक खाते हैं, आधार कार्ड हैं, तो फिर इस तरह से खुली छूट देकर एक और एतिहासिक भ्रष्टाचार की इबादत क्यों लिखी जा रही है? कर्नाटक चुनाव की हार से खीजकर नोटबंद करने जैसे विपक्ष के आरोप निराधार हो सकते हैं, लेकिन आम आदमी के मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि आखिर सरकार ने इस बार नोट बदलने में इतनी रियायत किसके लिये दी, जबकि 2 हजार का नोट आम आदमी और गरीब के पास तो मिलना ही लगभग असंभव है। इसका अर्थ यही लगाया जा सकता है कि जमाखोरों, भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों, माओवादियों, नक्सलवादियों और आतंकवादियों का कालाधन सफेद करने की छूट दे दी गई है।
ऐसे लोगों को बैंकों से 2000 रुपये के बदले अब 500, 200, 100 रुपये जैसे नोट मिलेंगे, जिनको ये लोग फिर से जमा कर लेंगे, जिससे मार्केट में नकदी की कमी आयेगी। इसके बाद आरबीआई को या तो अधिक नोट छापने पड़ेंगे या फिर उनकी भी नोटबंदी करनी होगी। इसका मतलब यह है कि आरबीआई ने अब 500, 200, 100 के नोटों की कालाबाजारी, जमाखोरी कराने का मन बना लिया है। बल्कि होना यह चाहिये था कि सभी नोट अपने—अपने बैंक खातों में जमा कराएं या जिनके बैंक में खाते नहीं हैं, वो आधार कार्ड, पैन कार्ड या पहचान पत्र दिखाकर नोट बदल ले, ताकि उसका बैंक के पास रिकॉर्ड रहे, लेकिन नोट बदली के सभी तरह के बैरीकेड्स हटाकर आरबीआई ने साबित कर दिया है कि देश में मौजूद कालेधन को सफेद करने की सार्वजनिक अनुमति दे दी गई है।
कालेधन को सफेद करने की नोट बदली
Siyasi Bharat
0
Tags
national
Post a Comment