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भाजपा पीसीसी चीफ डोटासरा की लक्ष्मणगढ़ में ही घेराबन्दी कर रही है



राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही सियासी दलों ने बाहें चढ़ाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सीकर की एक ही सीट से तीसरी बार विधायक हैं। डोटासरा की लगातार जीत के कारण भाजपा इस सीट का तोड़ निकालने का पूरा प्रयास कर रही है। यहां पर भाजपा के पास दमदार उम्मीवार नहीं होने के कारण तीन बार हार का सामना करना पड़ा है।

राजस्थान में अब तक हुए विधानसभा चुनावों में लक्ष्मणगढ़ सीट पर लगभग कांग्रेस पार्टी का ही दबदबा रहा है। वर्ष 1951 से लेकर 2013 तक कांग्रेस के प्रत्याशियों ने नौ बार जीत हासिल की है। साल 1951 में जब पहली बार चुनाव हुए तो लक्ष्मणगढ़ व फतेहपुर एक ही विधानसभा क्षेत्र था। वर्ष 1957 में अलग अलग विधानसभा क्षेत्र बनने के बाद कांग्रेस के किशनसिंह लक्ष्मणगढ़ से पहले विधायक चुने गए।साल 1962 के दूसरे चुनावों में भी किशनसिंह ही विजयी रहे।

इसी तरह से वर्ष 1967 और 1972 में स्वतंत्र पार्टी ने जीत हासिल की, लेकिन फिर भी दबदबा कांग्रेस का ही रहा। कांग्रेस के परसराम मोरदिया सर्वाधिक पांच बार विधायक चुने गए। भाजपा का खाता साल 2003 में खुला, जब पार्टी के केशरदेव बाबर ने कद्दावर नेता परसराम मोरदिया को पटखनी दी। परिसीमन के बाद वर्ष 2008 में लक्ष्मणगढ़ सीट कांग्रेस पार्टी के लिए सुरक्षित से सामान्य में तब्दील हो गई। फिलहाल गोविंद सिंह डोटासरा लगातार तीन बार से यहाँ के विधायक हैं।

इसलिए भाजपा इस बार गोविन्द डोटासरा को उन्हीं के क्षेत्र में घेराबन्दी करने की जुगत में लगी हुई है। इसके लिए बीजेपी नए चहेरे को जोड़ने के साथ साथ नेताओं की घर वापसी पर ज़्यादा ज़ोर देती नजर आ रही। पिछले दिनों भाजपा के प्रदेश कार्यालय में कई पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने पार्टी की सदस्यता ली। 

इन कई नामों में से एक थे सीकर से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया, जो वर्ष 2016 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे और इसके चलते वो साल 2018 में गोविन्द डोटासरा के लिए प्रचार कर रहे थे। सुभाष महरिया ने वर्ष 2014 में निर्दलीय एवं 2019 में कांग्रेस पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिनमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। कभी गोविन्द डोटासरा के लिए चुनावी अभियान के सारथी रहे सुभाष महरिया ने पिछले दिनों फिर से भाजपा का दामन थाम लिया है।

ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि महरिया लक्ष्मणगढ़ से चुनाव लड़ सकते हैं। परन्तु जब से वह भाजपा में शामिल हुए हैं, तब से अंदरखाने उनका भारी विरोध हो रहा है। दो बार निर्दलीय और पिछली बार भाजपा से चुनाव लड़ चुके दिनेश जोशी ने भी अब इनका खुलकर विरोध शुरू कर दिया है। स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं को भी महरिया की घर वापसी रास नहीं आ रही है।

इन सब समीकरणों के अलावा पिछली बार भाजपा से प्रत्याशी रहे दिनेश जोशी भी इस बार फिर से मैदान में होंगे। जोशी ने 2018 लक्ष्मणगढ़ विधानसभा चुनाव बीजेपी से लड़ा, परन्तु डोटासरा से हार का सामना करना करना पड़ा था। इन पर ऐसे आरोप भी लगते रहे हैं कि ये कांग्रेस की मदद करते है। ऐसे में भाजपा भी नई रणनीति पर काम करना शुरू कर चुकी है।

इस बार भाजपा एक ऐसे चेहरे को उतार सकती है, जो भाजपा कार्यकताओं की नाराज़गी दूर कर सके साथ ही जनता से भी जुड़ा हो। ऐसे में जो एक नाम सामने आ रहा है, वो हैं युवा चेहरे डॉ. रामदेव चौधरी का। डॉ. रामदेव पेशे से चिकित्सिक हैं और संघ से भी जुड़ाव रखते हैं। ऐसे में इनकी दावेदारी और भी मजबूत हो जाती है। अब देखना दिलचस्प होगा की तीन बार से विधायक का चुनाव जीत रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा को भाजपा कैसे चुनौती देती है?

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