Ram Gopal Jat
मोदी सरकार ने अपने वादे के मुताबिक एक देश एक चुनाव का संकल्प कैबिनेट में पारित करके साफ कर दिया है कि भले ही सरकार को लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत नहीं मिला हो, लेकिन वह कड़े और बड़े फैसले लेने से पीछे नहीं हटेगी। मोदी कैबिनेट में वन नेशन वन इलेक्शन को मंजूरी देकर इसे शीतकालीन सत्र में ही पारित करवाने का संकल्प पूरी करने की तरफ कदम बढ़ा दिये हैं।
इस निर्णय को लेकर अपोजिशन ने विरोध किया है, जबकि सरकार ने दावा किया है कि 80 परसेंट पॉलिटिकल पार्टीज सरकार के साथ है। मोदी की तीसरी सरकार के 100 दिन पूरे होने के दूसरे ही दिन कैबिनेट ने वादे को पूरा करने की मंजूरी देकर सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि जो भी कड़े कदम देश हित में होंगे, उनको पूरा करने में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं है। अपोजिशन ने भले ही रस्म अदायगी के लिए विरोध किया हो, लेकिन इस निर्णय का पूरा देश स्वागत कर रहा है।
सरकार ने कहा है कि पहले लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे, उसके 100 दिन बाद निकाय और पंचायत चुनाव होंगे। यानी करीब 5 महीनों में देश के सभी चुनाव निपटा लिये जाएंगे। इसके बाद भी साढे चार साल बचेंगे, जब देश में कहीं पर भी चुनाव का शोर नहीं होगा। इस वीडियो में बताने वाला हूं कि देश को वन नेशन वन इलेक्शन के क्या लाभ होंगे और क्या नुकसान होगा।
ऐसा नहीं है कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन पहली बार हो रहे हैं। देश के आजाद होने के बाद 3 चुनाव वन नेशन वन इलेक्शन के माध्यम से ही हुए थे। 1951 से 1967 तक 3 चुनाव में लोकसभा, विधानसभा चुनाव एक साथ ही करवाए गये थे। उसके बाद कई राज्यों में सरकारें अल्पमत में आने के कारण गिर गईं, कुछ जगह पर सरकारों को गिरा दिया गया। बाद में 70 का वो दशक शुरू हुआ, जब देश में लोकतंत्र को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया गया।
आपातकाल से लेकर दर्जनों राज्यों की सरकारों को गिराने का काम कांग्रेस ने किया। जिसके कारण आज देश में लोकसभा, विधानसभा, निकाय, पंचायती राज चुनाव अलग—अलग समय पर होते हैं। इसके चलते देश में हालात यह हैं कि ऐसा कोई महीना नहीं बीतता, जब देश में कहीं पर चुनाव नहीं हो रहे होते हैं। इनके कारण देश को कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। चुनाव आते हैं तो नेताओं के भाषण शुरू होते हैं, जिनमें जाति, धर्म, वर्ग, क्षेत्र को लेकर जहर उगला जाता है।
तीन महीने के चुनाव में समाज को इतने भागों में बांट दिया जाता है कि अगले चुनाव तक वो दौर थमता ही नहीं है कि दूसरा चुनाव आ जाता है। नेताओं के जहरीले भाषणों के कारण समाज में नफरत भर जाती है, जो कई बार हिंसा का रुप धारण कर लेती है। नेता भाषण देकर निकल जाता है कि लेकिन उसके समर्थक हमेशा के लिए एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। जाति, धर्म के गढ़े हुए मुद्दों को बाहर निकाला जाता है, जो समाज को दो भागों में बांट देता है।
साथ ही चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल फ्री घोषणाएं करके देश—प्रदेश के खजाने को चपत लगाने का रास्ता खोल देते हैं। लोकसभा चुनाव की अलग घोषण, विधानसभा चुनाव जीतने की अलग घोषणा, निकाय चुनाव जीतने के लिए अलग से वादा, पंचायत चुनाव जीतने के लिए भी सरकारी खजाने पर बोझ डालने का काम किया जाता है।
एक प्रदेश में पांच बार चुनाव होते हैं और पांच बार आचार संहिता लगती है, जिसके कारण करीब 15 महीने तो इसी में चले जाते हैं। पूरा सरकार लवाजमा इतने महीनों तक काम नहीं कर पाता है। इसके बाद उस जिम्मेदारी से निकलकर अपनी मूल जिम्मेदारी को संभालने में काफी समय लग जाता है। कुल मिलाकर 60 में से 20 महीने तो चुनाव में खर्च हो जाते हैं।
आज की तारीख में बात करें तो 2024 में देश आम चुनाव के लिए 12 लाख पोलिंग स्टेशन बनाए गऐ थे। मतदाताओं के हिसाब से 2029 के आम चुनाव में 13 लाख 57 हजार पोलिंग स्टेशन बनाने होंगे। इसी तरह से 26 लाख 55 हजार ईवीएम चाहिए होगी। 17 लाख 78 हजार कंट्रोल यूनिट स्थापित करनी होगी। 18 लाख के करीब वीवीपैट की जरूरत होगी। इस हिसाब से करीब 8 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे।
सरकारी कर्मचारियों की बात की जाए तो अगले चुनाव में करीब 83 लाख कर्मचारियों की ड्यूटी लगानी होगी, जो गत चुनाव में 70 लाख थे। लंबे समय तक सरकारी स्कूलों, कॉलेजों के भवनों को बुक कर लिया जाता है। जहां पर ईवीएम मशीनों को सुरक्षित रखा जाता है। इसके कारण स्टूडेंट्स की पढाई बाधित होती है।
4 बार चुनाव के लिए पांच बार ही वोटिंग लिस्ट तैयार करनी पड़ती है। एक देश एक चुनाव होने पर लोकसभा, विधानसभा, निकाय, पंचायत चुनाव के लिए एक ही वोटिंग लिस्ट बनानी होगी, जिसके कारण सरकारी कर्मचारियों को इसके लिए महीनों तक काम नहीं करना होगा, उनको अपना मूल काम करने का अधिक समय मिलेगा।
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