अशोक गहलोत मॉडल ने कॉलेज शिक्षा को ठेके पर सौंप दिया!



सीएम अशोक गहलोत इन दिनों अपनी घोषणाओं का ढिंढोरा पीटने के लिए राजस्थान के सभी जिलों का दौरा कर रहे हैं। महंगाई राहत शिविरों के जरिए लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं, कि 75 साल में जितना हुआ, उससे कहीं अधिक उन्होंने पांच साल में कर दिया है। 


अशोक गहलोत का यह डायलॉग बिलकुल वैसा ही है, जैसे दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल कहते थे कि दिल्ली को लंदन, सिंगापुर जैसा स्वर्ग बना दिया, लेकिन दिल्ली लगातार नरक बनती जा रही है, देश में लोगों के रहने की सबसे बैकार जगह दिल्ली ही साबित होती जा रही है।


गहलोत ने दावा किया है​ कि बीते 75 साल में प्रदेश में केवल 250 कॉलेज खोले गये, लेकिन उन्होंने पांच साल में 300 कॉलेज खोल दिए, जिनमें से 193 कॉलेज केवल लड़कियों के हैं। हो सकता है​ गहलोत का यह दावा कांग्रेसियों की नजर में सच हो, लेकिन इसकी पोल तब खुलती है, जब ग्रांउड पर कॉलेजों की जगह कुछ और ही नजर आता है। 

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दरअसल, आज की तरीख में राज्य की 35 फीसदी कॉलेजों के पास खुद के भवन ही नहीं हैं। जबकि सभी कॉलेजों में 46 फीसदी से अधिक में शिक्षक ही नहीं हैं। प्रदेश की 545 में से 42 कॉलेजों में प्राचार्य हैं। यह आंकड़ा तो मोटा—मोटा है। इसके अलावा 503 कॉलेज बिना प्राचार्य के संचालित हो रहे हैं। कॉलेज में स्वीकृत 4746 पद हैं, जिनमें से 2187 पद खाली पड़े हैं, जबकि नये कॉलेजों का शिक्षा ढांचा सोसाइटी एक्ट में बनाया जा रहा है, जहां पर सभी 100 प्रतिशत पद रिक्त हैं। भवन तो किसी महाविद्यालय के पास नहीं हैं।


गहलोत का दावा है कि साल 2020, 21 और 22 राज्य में 300 कॉलेज खोले गये हैं। सरकार ने क्या जोरदार खेल खेला है? कॉलेज खोलने का दावा करने वाले गहलोत कभी यह नहीं कहते कि नये कॉलेज प्राइवेट स्कूलों की तरह खोले गये हैं। दरअसल, सरकार ने नये कॉलेजों के संचालन के लिये उनकी अपनी सोसाइटी बना दी हैं। इन कॉलेजों में जितने भी पदों पर भर्ती होगी, वह सोसाइटी एक्ट के तहत होगी। जिस तरह से प्राइवेट कॉलेज और स्कूल करते हैं, बिलकुल वैसे ही। इसको अंजाम देने के लिये सरकार ने साल 2021 में विद्या संबल योजना शुरू की।


इस योजना के तहत कॉलेजों में गेस्ट टीचर लगाने का प्रावधान किया गया, जो प्रति कालांश के हिसाब से भुगतान किए जाते हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर को 800 रुपये प्रतिदिन या अधिकतम 45000 रुपये महीना, एसोसिएट को 1000 रुपये या अधिकतम 52000 रुपये महीना और प्रोफेसर को 1200 रुपये प्रतिदिन या अधिकतम 60000 रुपये महीने का भुगतान किया जाना तय किया गया।


जो शिक्षक भर्ती किए जायेंगे, उनकी नियुक्ति में तो यूजीसी के पूरे नियम लागू होंगे, लेकिन जब उनको हटाना होगा तो दो मिनट भी नहीं लगेंगे। यानी उनका भविष्य कतई सुरक्षित नहीं है। किसी को डेपुटेशन या ट्रांसफर से किसी कॉलेज में भेज दिया जाए तो वहां पर लगे शिक्षक नौकरी से बाहर कर दिया जाता है। यानी जो शिक्षक, नेट, पीएचडी करने के बाद पूरे प्रोसेस से शिक्षक बनता है, उसको एक मिनट में कॉलेज से बाहर कर दिया जाता है।


मजेदार बात यह है कि डेपुटेशन पर आने वाला व्यक्ति दोनों सीटों को प्रभावित करता है। यानी पुरानी सीट पर भी वही है और नई सीट भी खा जाता है। आज की बात की जाये तो 100 प्रतिशत नये कॉलेज विद्या संबल के भरोसे हैं। सरकार ने कॉलेज बनाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन साल 2020 से पहले की कॉलेजों में भी 1952 पद खाली पड़े हैं। 


अशोक गहलोत की इन नई कॉलेजों की एक और खास बात है। पुरानी कॉलेज के शिक्षक जहां आरपीएससी भर्ती करती है, वहीं इन नये महाविद्यालयों में संबंधित कॉलेज की सोसाइटी 3 उम्मीदवारों का सलेक्शन करती है। उसके बाद तीन नाम कॉलेज आयुक्तालय भेजती है और उनमें से एक का सलेक्शन किया जाता है।


इसी तरह का विद्या संबल स्कूलों में भी लागू करने का प्रावधान किया गया था, लेकिन मामला कोर्ट में अटकने के कारण योजना भी अधर में रह गई। स्कूलों में 25000 रुपये महीना देने का प्रावधान किया गया था। जहां पर भी बीए, बीएड होना जरुरी था।


गहलोत मॉडल की इन नई कॉलेजों की एक और खास बात है। इनमें सलेक्शन तो यूजीसी नियमों से सोसाइटी करती है, लेकिन उनकी नौकरी से हाथ धोने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है। यदि किस्मत अच्छी हो और सेशन के बीच में नहीं हटाया गया तो नया सेशन के साथ सभी शिक्षकों को हटा दिया जाता है। सभी को एग्जाम डेट आने के 15 दिन पहले ही मुक्त कर दिया जाता है। हालांकि, इसी तरह की स्कीम हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश में हैं, लेकिन वहां पर शिक्षक को एक साल से पहले नहीं हटाया जा सकता है।

 


अशोक गहलोत के इस नये कॉलेज मॉडल से अभी हाल ही में राज्य के करीब 1800 शिक्षक एक झटके में बाहर हुए हैं।  इन नई कॉलेजों में 3 साल में कोई नियम ही नहीं हैं, बजट जरुर कॉलेज आयुक्तालय देता है, लेकिन वह वित्त विभाग से ही आता है। इन कॉलेजों में सभी पदों पर भर्ती संविदा पर होती है। ऐसा नहीं है कि यह योजना केवल नई कॉलेजों में ही चल रही है, बल्कि पुराने विवि, पुरानी कॉलेज, नई कॉलेज, सभी में यह योजना शुरू कर दी गई है, जिनके लिए कोई नियम निर्धारण नहीं है।


गहलोत सरकार ने जब तीन साल पहले यह स्कीम शुरू की, तब स्थायित्व की आस में प्राइवेट कॉलेजों में बरसों से काम करने वाले शिक्षक भी आये, लेकिन बाद में पता चला कि यहां तो प्राइवेट से भी पहले नौकरी से निकाला जाता है। आज की तारीख में इन कॉलेजों में 40, 45, 50 साल के शिक्षक भी हैं, जो मिनटों में बेरोजगार हो गये हैं। सरकार ने इसके साथ ही इन कॉलेजों में आरक्षण भी समाप्त कर दिया है। एक विषय का एक ही शिक्षक लिया जाता है, जिसके कारण आरक्षण का नियम ही लागू नहीं हो पाता और पता चलता है, जो खास हैं वो ही नियुक्त हो पाते हैं।


गहलोत का यह मॉडल नया नहीं है, बल्कि अपने दूसरे कार्यकाल में भी स्कूलों में करीब 34000 विद्यार्थी मित्र भर्ती किये थे, जिनका वसुंधरा राजे सरकार में खूब आंदोलन चला था, बाद में सरकार ने उनको पंचायती सहायक बना दिए और मामला अपनों तक निपटा दिया था। गहलोत ने इस कार्यकाल में राज्य की करीब दो हजार स्कूलों को महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम बना दिये हैं, लेकिन अंग्रेजी के शिक्षकों की भर्ती नहीं की है, जिसके कारण इन स्कूलों में भी हिंदी माध्यम शिक्षकों से ही काम चलाना पड़ रहा है। यानी केवल नाम बदले गये हैं, बाकी सबकुछ पुराना ही है। 

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