करीब तीन साल पहले नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर से खत्म की गई धारा 370 और 35ए को लेकर अब तक भी विवाद थमा नहीं है। हालांकि, तब केंद्र सरकार ने सूझबूझ दिखाते हुए पूरे मामले शांतिपूर्वक को निपटाने का काम किया था। बाद में सरकार विरोधी लोगों के द्वारा आर्टिकल 370 पर केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस मामले पर देश की सबसे बड़ी अदालत 2 अगस्त से नियमित सुनवाई शुरू करेगी।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ समेत 5 जजों की पीठ इस मामले में दोनों पक्षों की बहस सुनेगी। अदालत दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आखिर में फैसला सुनायेगी। इसकी विशेष रूप से सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 23 पक्ष—विपक्ष वाली याचिकाओं को एक किया है। इनमें से 13 याचिकाएं धारा 370 वापस बहाल करने के पक्ष में है, जबकि 10 याचिकाएं धारा 370, 35ए हटाए जाने के पक्ष में हैं।
हटाने के खिलाफ याचिकाएं दायर करने वालों में एडवोकेट एमएल शर्मा, शोएब कुरैशी, मुजफ्फर इकबाल खान, रिफत आरा बट, शाकिर शब्बीर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोकसभा सांसद मोहम्मद अकबर लोन, हसनैन मसूदी, सीपीआईएम के नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी, कश्मीरी कलाकार इंद्रजीत टिक्कू और पत्रकार सतीश जैकब शामिल हैं। इसी तरह से पूर्व एयर चीफ मार्शल कपिल काक, पूर्व आईएएस हिंडाल हैदर तैयबजी, सेवानिवृत्त मेजर जनरल अशोक मेहता और अमिताभ पांडे के साथ ही गोपाल पिल्लई शामिल हैं। धारा 370 हटाने के पक्ष में जिनकी याचिकाएं दायर करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय जैसे नामी लोग शामिल हैं।
इन याचिकाओं को लेकर 11 जुलाई को एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। मामले को लेकर 2 अगस्त से नियमित सुनवाई शुरू होने वाली है। उसके बाद फैसला होगा कि सरकार ने जम्मू कश्मीर का विघटन और धारा 370 हटाने का जो कदम उठाया था, वह सही था या संविधान के खिलाफ था। इस वीडियो में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि धारा 370 और 35ए का मामला क्या है और इसको हटाया जाना संविधान सम्मत था या संविधान के खिलाफ, किंतु उससे पहले केंद्र सरकार के इस अति महत्वपूर्ण निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में क्या कुछ हो चुका है, उसके बारे में जान लेते हैं।
दरअसल, 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से जुड़ी धारा 370 हटाने के बाद विवाद शुरू हुआ था। इस मामले को लेकर आईएएस शाह फैसल समेत दो दर्जन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसे लेकर मार्च 2020 में पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के निर्णय की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को लेकर 7 न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था। इसके बाद अक्टूबर 2020 से सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 खत्म करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हो रही है।
17 दिसंबर 2014 को मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने एक बार फिर से 5 जजों की पीठ बनाकर सुनवाई की बात कही। 11 जुलाई 2023 को डीवाई चंद्रचूड़ ने 2 अगस्त से 5 जजों की पीठ के सामने नियमित सुनवाई करने की बात कही है। इस बेंच में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई, सूर्यकांत शामिल हैं।
जिन लोगों ने धारा 370 हटाने के खिलाफ याचिकाएं दायर की थीं, उनमें से कुछ लोगों ने अपनी अपील वापस भी ले ली हैं। 3 जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने एक नोटिस जारी कर बताया कि जम्मू कश्मीर के IAS शाह फैसल ने आर्टिकल 370 पर सरकार के खिलाफ अपनी पिटीशन वापस ले ली है। 4 जुलाई को शाह फैसल ने ट्वीट कर कहा कि मेरे जैसे कई कश्मीरियों के लिए 370 अतीत की बात है। झेलम और गंगा का पानी हिंद महासागर में मिल चुका है। अब पीछे नहीं जाना केवल आगे बढ़ना है। असल बात यह है कि शाह फैसल ने धारा 370 हटाने के बाद आईएएस पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक दल बना लिया था, लेकिन पिछले साल उन्होंने वापस नौकरी ज्वाइन कर ली थी। अभी वह केंद्र सचिवालय में काम कर रहे हैं।
इसी तरह जेएनयू की पूर्व छात्र नेता शेहला रशीद ने भी धारा 370, 35ए पर दायर की गई अपनी याचिका को वापस ले ली है। हालांकि, यह नहीं बताया गया है कि शेहला रशीद ने अपनी पिटिशन वापस क्यों ली है। इन दोनों की अपील पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर कोई याचिकाकर्ता अपना नाम वापस लेना चाहता है, तो उन्हें कोई कठिनाई नहीं है। इसके बाद बेंच ने नाम वापसी की अनुमति दे दी थी। कानून के जानकारों का मानना है कि इन दोनों के याचिका वापस लेने से इस केस के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
धारा 370 हटाने को लेकर कुछ अंतर्विरोध हैं, जिनको समझे बिना पूरे मामले को समझना कठिन है। संविधान में वर्णित धारा 370 (3) के मुताबिक भारत के राष्ट्रपति भी जम्मू कश्मीर विधानसभा की सहमति के बिना आर्टिकल 370 में संशोधन की इजाजत नहीं दे सकते हैं। हालांकि, 5 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति ने बिना राज्य के विधानसभा से अनुमति लिए दो आदेश के जरिए जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 खत्म कर दिया। दरअसल, मोदी सरकार ने जब धारा 370 को हटाया, तब जो प्रक्रिया अपनाई गई, वह वास्तव में बेहद रोचक थी।
सरकार ने कहा कि जब विधानसभा कार्य नहीं कर रही होती है, तब संसद ही विधानसभा के रूप में काम कर सकती है। इसलिए सरकार ने पहले संसद से अनुषंसा करवा ली और उसकी अनुमति के लिए राष्ट्रपति के पास याचिका भेज दी। राष्ट्रपति ने बिना देरी किये सरकार को अनुमति दे दी, जिसके बाद सरकार ने संसद के दोनों सदनों में इसका बिल पेश कर दिया। दोनों सदनों से बिल को पास करवाकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर कर दिए और इस तरह से रास्ता निकालकर संवैधानिक तरीके से धारा 370 को खत्म किया गया। ऐसे में में विरोधियों का कहना है कि आर्टिकल 370 को खत्म करने का तरीका असंवैधानिक है।
याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि संविधान के आर्टिकल-3 के तहत संसद किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में नहीं बदल सकती है और न ही राज्य की विधानसभा में चुने जाने वाले प्रतिनिधियों की संख्या कम कर सकती है। ऐसे में संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को दो हिस्से में बांटना पूरी तरह से असंवैधानिक है।
साथ ही यह भी तर्क देते हैं कि संविधान के पार्ट 3 में फेडरल डेमोक्रेसी की बात कही गई है। इसके मुताबिक हर राज्यों के पास अपने अधिकार होते हैं। सही से कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी राज्य की शक्तियों को कम नहीं किया जा सकता है। ऐसे में केंद्र का यह फैसला संविधान के खिलाफ है।
जम्मू-कश्मीर से जुड़े आर्टिकल 370 खत्म किए जाने से पहले राज्य के लोगों और लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रतिनिधियों से सलाह नहीं ली गई। 5 अगस्त 2019 को यह फैसला लेने के समय रातों-रात लोगों के मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता खत्म कर दी गई। यह राज्य में रहने वाले लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
दूसरी ओर केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 खत्म करने के पक्ष में अपने तर्क दिए हैं। सरकार ने 10 जुलाई 2023 को एक हलफनामे के जरिए आर्टिकल 370 को खत्म करने के अपने फैसले को सही बताया है। केंद्र सरकार ने अपने 20 पेज के जवाब में आर्टिकल 370 को खत्म करने के पक्ष में 3 तर्क दिए हैं।
सरकार का कहना है कि धारा 370 खत्म होने के बाद जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का नेटवर्क तबाह हो गया है। पत्थरबाजी और हिंसा जैसी चीजें अब खत्म हो गई हैं। इससे राज्य में रिकॉर्ड 1.88 करोड़ पर्यटक आए और पर्यटन के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
पथराव की घटनाएं, जो 2018 में 1,767 तक पहुंच गईं थीं, अब 2023 में पूरी तरह से बंद हो गई हैं। साफ है कि पत्थरबाजी की घटनाओं में 65% से ज्यादा की कमी आई है। इसी तरह से 2018 में जम्मू कश्मीर में 199 युवा आतंकवादी बने थे, ये संख्या 2023 में घटकर 12 रह गई है।
जम्मू कश्मीर में बीते 3 दशक की उथल-पुथल के बाद आम लोग सामान्य रूप से जीवन जी रहे हैं। आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद राज्य में शांति और विकास को लोग महसूस कर रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 370 पर सरकार के फैसले को पलट सकता है? कानून के जानकारों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में जब कोई मामला जाता है तो यह निश्चित है कि फैसला ही होगा। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो आर्टिकल 370 पर सरकार का फैसला पलटने की क्षमता है। हालांकि, बहस खत्म होने से पहले कोई भी कयास लगाना सही नहीं है। यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि आर्टिकल 370 पर सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ताओं के वकील क्या पक्ष रखते हैं और सरकारी वकील फैसले के बचाव में क्या तर्क देते हैं।
संविधान एक्सपर्ट्स के मुताबिक केंद्र सरकार ने कई मौकों पर आर्टिकल 370 को टेंपरेरी बताया है। इस कानून को खत्म करने के पीछे भी यही तर्क दिया जाता रहा है, लेकिन ये कितना सही है? इस बात को समझने के लिए आर्टिकल 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 1959 के फैसले को जानना होगा।
दरअसल, 2 मार्च 1959 को प्रेमनाथ कौल बनाम जम्मू कश्मीर के मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। इस बेंच ने अपने फैसले में कहा कि संविधान सभा ने कहा कि जम्मू कश्मीर और केंद्र सरकार के बीच जो संबंध है, उसमें आर्टिकल 370 को लेकर अंतिम फैसला वहां की संविधान सभा करे। जब तक राज्य की संविधान सभा खुद को भंग करके आर्टिकल 370 पर फाइनल फैसला नहीं लेती है, तब तक ये अस्थाई है।
बाद में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने खुद को भंग कर भारत के साथ आर्टिकल 370 के रिलेशन को लागू कर दिया। इस तरह ये कानून स्थाई हो गया। इस तरह सरकार के समर्थकों का ये कहना कि आर्टिकल 370 अस्थाई था, सही नहीं है। ऐसे ही कई तर्क हैं, जो सुप्रीम कोर्ट में सरकार के पक्ष को कमजोर कर सकते हैं।
इस मामले में 370 हटाने के पक्ष में याचिका दायर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि जो फैसला सरकार ने लिया है, वह बिलकुल संविधान के अनुकूल है। दरअसल, संसद ने तब अपने अधिकारों का पालन किया है, तब जम्मू कश्मीर में विधानसभा नहीं थी, यानी राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद ने विधानसभा का काम करते हुए राष्ट्रपति से अनुमति लेकर बिल पेश किया और उसका कानून बनाकर काम किया।
दूसरी बात यह है कि केंद्र सरकार जब चाहे, तब संसद में कानून बनाकर किसी भी राज्य का विघटन कर सकती है, या दो राज्यों का विलय कर सकती है। जब संविधान सभा के अनुसार देश में राज्य बने थे। आजादी के बाद भाषा, सभ्यता—संस्कृति, क्षेत्रीय भौगोलिक और जाति—वर्ग के आधार पर राज्यों का गठन हुआ था। जम्मू कश्मीर राज्य में लद्दाख क्षेत्र भी आता है। इस क्षेत्र की भाषा और संस्कृति अलग होने के कारण केंद्र सरकार इसे अलग राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बना सकती है।
हालांकि, पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में है, और इसपर 2 अगस्त से प्रतिदिन सुनवाई होगी, उसके बाद फैसला होगा। सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों के फैसलों का पुनर्मूल्यांकन कर सकती है, किंतु यह माना जा रहा है कि जम्मू कश्मीर मामले में देश अब बहुत आगे बढ़ चुका है, जिसको देखते हुए संविधान के अनुसार नहीं होने पर भी संसद के खिलाफ निर्णय सुनाया जाना नामुमकिन है। फिर भी यदि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 370 हटाने के खिलाफ फैसला सुनाया तो देशभर में उस फैसले के खिलाफ बहुत बड़ा माहौल बन सकता है, जिसे संभाल पाना कोर्ट के लिए भी कठिन हो जायेगा।
मोदी सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट करेगा इतना बड़ा फैसला?
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