सचिन पायलट जो नहीं कर सके वो राजेंद्र गुढ़ा ने कर दिखाया

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार में राज्यमंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा को शुक्रवार रात अचानक मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया है। राजेंद्र सिंह गुढ़ा पिछले लंबे समय से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस की सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सिफारिश को राज्यपाल कलराज मिश्र में मंजूरी देते हुए गुढ़ा को मंत्री पद से मुक्त कर दिया है। इसके नफे और नुकसान की बात अलग है, लेकिन चर्चा है कि जो काम सचिन पायलट बीते तीन साल में नहीं कर पाये, वो राजेंद्र गुढ़ा ने तीन महीने में कर दिया है। गुढ़ा ने ऐसा क्या किया, जो पायलट नहीं कर पाये, इस विषय पर बाद में बात करेंगे, किंतु उससे पहले राज्य विधानसभा में सबसे लंबे कद के विधायक गुढ़ा के सियासी करियर पर बात कर लेते हैं।
राजस्थान विधानसभा में गुढ़ा एकमात्र ऐसे विधायक हैं, जो दो बाद बसपा के टिकट पर जीतकर आये और दोनों ही बार अशोक गहलोत की सरकारों में मंत्री बने। गुढ़ा को कभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का करीबी माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय से गुढ़ा पायलट गुट में शामिल हो गए थे। इसके बाद से उन्होंने गहलोत सरकार के खिलाफ बयानबाजी का सिलसिला शुरू कर दिया। राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने विधानसभा में शुक्रवार को न्यूनतम आय गारंटी बिल पर बहस के दौरान अपनी ही सरकार पर महिला सुरक्षा में विफल होने का आरोप लगाते हुए कहा कि 'राजस्थान में इस बात में सच्चाई है कि हम महिलाओं की सुरक्षा में विफल हो गए हैं। राजस्थान में जिस तरह से महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। ऐसे में हमें मणिपुर की बजाय अपने गिरेबां में झांकना चाहिए।'
साल 2003 में पहली बार राजनीति का हिस्सा बनने मैदान में उतरे राजेंद्र सिंह गुढ़ा झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी से दूसरी बार विधायक हैं। उन्होंने बसपा के टिकट पर 2008 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा था। जीतने के बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से करीबी के चलते उन्हें गहलोत सरकार में मंत्री पद से नवाजा गया था। इसी तरह से 2018 में भी वह बसपा के टिकट पर जीते और फिर से अशोक गहलोत से हाथ मिलाकर कांग्रेस में शामिल हो गये। साल 2020 में गहलोत सरकार बचाने में राजेंद्र सिंह गुढ़ा सहित बसपा से कांग्रेस में आए विधायकों की भी अहम भूमिका रही है।
पिछले कुछ दिनों से राजेंद्र सिंह गुढ़ा अपनी ही सरकार के खिलाफ बयानबाजी करने लगे थे। कुछ समय से गुढ़ा गहलोत कैंप छोड़कर पायलट गुट में शामिल हो गए थे। इसके बाद उनका गहलोत सरकार के खिलाफ बयानबाजी का सिलसिला तेज हो गया था। 15 मई को पायलट की एक जनसभा में गुढ़ा ने खुले मंच से कहा था कि उनकी सरकार 100 फीसदी भ्रष्ट है, सरकार का अलाइमेंट पूरी तरह से खरब हो चुका है, जिसको पायलट ठीक कर सकते हैं।
राजस्‍थान सरकार में राज्‍यमंत्री रहते हुए राजस्‍थान सरकार के ही खिलाफ बोलने वाले विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा का राजनीतिक कॅरियर काफी दिलचस्‍प है। राजस्‍थान में वो एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो बसपा की टिकट पर चुनाव जीतकर दो बार विधानसभा पहुंचे हैं और दोनों ही बार बसपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थामकर गहलोत सरकार में मंत्री भी बने हैं। राजस्‍थान के झुंझुनूं जिले में उदयपुरवाटी विधानसभा क्षेत्र के गांव गुढ़ा के रहने वाले राजेंद्र सिंह गुढ़ा व उनके परिवार की राजनीतिक यात्रा साल 2003 से शुरू हुई थी,जब राजेंद्र सिंह के छोटे भाई रणवीर सिंह गुढ़ा राजनीति में सक्रिय थे।
राजस्‍थान विश्‍वविद्यालय के छात्रसंघ अध्‍यक्ष रहे रणवीर सिंह गुढ़ा लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर उदयपुरवाटी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर 2003 में राजस्‍थान विधानसभा पहुंचे। वह पांच साल तक विधायक रहे। इसी दौरान राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने अपनी सियासी जमीन तैयार की। राजस्‍थान विधानसभा चुनाव 2008 में राजेंद्र सिंह गुढ़ा बसपा से टिकट पाने में सफल रहे और कांग्रेस उम्‍मीदवार विजेन्‍द्र सिंह को 7837 वोटों से हराया। पहली बार विधायक बने गुढ़ा ने 28478 और विजेंद्र सिंह ने 20641 वोट हासिल किए थे। तब राजस्‍थान में कांग्रेस जीती थी, मगर 200 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी।
राजस्‍थान विधानसभा चुनाव 2008 में कांग्रेस को 96, भाजपा को 78, निर्दलीय 14, बसपा को 6, माकपा, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और जनता दल को एक-एक सीट मिली थी। सियासी जादूगरी दिखाते हुए गहलोत ने बसपा के राजेंद्र सिंह गुढ़ा समेत सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया था। बसपा के छह विधायक कांग्रेस में शामिल होने पर अशोक गहलोत सरकार के पास विधायकों का आंकड़ा 102 हो गया था। तब साल 2009 में राजेंद्र सिंह गुढ़ा को अशोक गहलोत सरकार में पहली बार राजस्‍थान सरकार में आयोजना स्‍वतन्‍त्र प्रभार, पर्यटन, कला साहित्‍य एवं संस्‍कृति, पुरातत्‍व तथा मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग का मंत्री बनाया गया था।
2013 में कांग्रेस की टिकट पर लड़ा चुनाव पांच साल तक विधायक व मंत्री रहते हुए राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने कांग्रेस का विश्‍वास जीत लिया और राजस्‍थान विधानसभा चुनाव 2013 में उदयपुरवाटी सीट से कांग्रेस की टिकट पाने में सफल रहे। राजेंद्र सिंह गुढ़ा साल 2013 का चुनाव भाजपा के शुभकरण चौधरी से 11,871 वोटों से चुनाव हार गए। विधानसभा चुनाव 2013 में कांग्रेस उम्‍मीदवार राजेंद्र सिंह गुढ़ा को कुल 4689 वोट मिले थे, जबकि भाजपा उम्‍मीदवार शुभकरण चौधरी 57960 वोट पाकर विजेता बने। चुनाव हारने के बाद भी राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने अपनी सियासी जमीन नहीं छोड़ी, हालांकि कांग्रेस का उनमें विश्‍वास खोता गया।
फिर बसपा से लड़ा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने राजेंद्र सिंह गुढ़ा का टिकट काटकर भगवानाराम सैनी को मैदान में उतारा। भाजपा ने शुभकरण चौधरी पर दांव लगाया। कांग्रेस की टिकट नहीं मिलने पर राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने फिर बसपा के सामने हाथ फैलाया। एक बार धोखा करने के बावजूद फिर टिकट पाने में सफल रहे। 2018 में 59362 वोट पाकर राजेंद्र सिंह गुढ़ा उदयपुरवाटी से दूसरी बार विधानसभा में पहुंचे। कांग्रेस के भगवाना राम को 52633 और भाजपा के शुभकरण चौधरी को 53828 वोट हासिल हुए। इस बार भी जीतने के बाद राजेंद्र सिंह गुढ़ा कांग्रेस में मिल गए और अशोक गहलोत सरकार में राज्‍यमंत्री बन गए।
राजेंद्र सिंह गुढ़ा राज्‍यमंत्री बनाए जाने के बावजूद राजेंद्र सिंह गुढ़ा सचिन पायलट का खुलकर समर्थन करते रहे। सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी मनमुटाव जगजाहिर हैं। अब राजस्‍थान विधानसभा चुनाव 2023 से चार माह पहले राजस्‍थान सरकार के खिलाफ बोलने पर राजेंद्र सिंह गुढ़ा को राज्‍यमंत्री पद गंवाना पड़ा है। गुढ़ा ने इसी सरकार में मंत्री बनने के बाद अपने विधानसभा क्षेत्र में एक सभा में कहा था कि 'मंत्री बनने के समय आता है तो कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं और जब कांग्रेस में दरी उठाने का समय आता है तो वह फिर से बसपा में चले जाते हैं। और जब कांग्रेस की सरकार आती है तो वह फिर से मंत्री बन जाते हैं।' उससे पहले विधानसभा में एक सेमिनार के दौरान कहा था कि उनकी पार्टी बसपा उनको टिकट देती है, जो सबसे अधिक पैसे देते हैं। तब वह कांग्रेस में शामिल हो चुके थे।
पिछले दिनों माता सीता को लेकर भी विवादित बयान दिया था। तब उन्होंने कहा था कि सीता माता सुंदर थीं, इसलिए राम और रावण दोनों उनके पीछे पड़े हुए थे इसी तरह से उनमें गुण होने के कारण पायलट और गहलोत उनके पीछे पड़ हुए हैं। गुढ़ा इसी तरह से विवादित बयान देकर हमेशा सुखिर्यों में बने रहते हैं। उससे पहले कहा था कि कांग्रेस सरकार की हालत बिलकुल खराब है, इस बार कांग्रेस उतनी ही सीटें जीत पायेगी, जो फॉर्चूनर में सवारी कर लेंगी। इस बार मंत्री बनाने के बाद कहा था कि उनसे छोटे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, जबकि उनको केवल राज्यमंत्री बनाकर संतुष्ट नहीं किया जा सक​ता है। इस वजह से उन्होंने कई दिनों तक गाड़ी और सरकारी कार्यालय नहीं लिया था। अब सवाल यह उठता है कि ऐसा क्या काम था जो सचिन पायलट बीते तीन साल में नहीं कर पाये, वो राजेंद्र गुढ़ा ने तीन महीने में कर दिखाया?
दरअसल, सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाये जाने से वो नाराज थे, जिसके कारण जुलाई 2020 में बगावत की थी। उसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने उनको न्याय का भरोसा दिलाकर तीन साल केवल आश्वासन दिया। अप्रैल में एक दिन का अनशन और मई में पांच दिन की यात्रा के बाद लगने लगा था कि अब पायलट कभी भी गहलोत सरकार के साथ समझौता नहीं कर पायेंगे, लेकिन पिछले दिनों उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए। यह माना जा रहा था कि पायलट को कांग्रेस निकालेगी नहीं, लेकिन वह अपने बयानों से पार्टी को इतना मजबूर कर देंगे कि उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये और वह इससे सियासी शहीद का दर्जा पा जायेंगे। जिसके बाद जनता की सिंपैथी उनके साथ होगी और इसका फायदा उनको चुनाव में मिलेगी, लेकिन पालयट ऐसा नहीं कर पाये। अलबत्ता पायलट के मंच से गहलोत को ललकारने वाले गुढ़ा ने जरूर यह दिखाया।
इस बार ऐसा लग रहा था कि गुढ़ा कमजोर पड़ रहे हैं, और इसके कारण वह चुनाव हार जायेंगे, लेकिन मंत्री पद से बर्खास्त करने के कारण उनको सियासी शहीद का दर्जा मिल गया है, जिसको वह चुनाव में वोट लेने के लिए भुनाने का प्रयास करेंगे। अब यह देखने वाली बात होगी कि वह इससे फायदा ले पाते हैं, या 2013 की तरह फिर से चुनाव हार जाते हैं।

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