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9250 करोड़ में बच्चियों का भविष्य बर्बाद कर रहे ही सरकार!



राजस्थान की कांग्रेस वाली अशोक गहलोत सरकार इन दिनों किसी भी तरह से सत्ता रिपीट कराने में लगी हुई है। इसके लिए सरकार ने पूरा राजकोष खाली कर दिया है। जो कोई भी कुछ मांगता है तो उसको खुलेहाथ से दिया जा रहा है। पहले सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना दी, फिर 100 यूनिट बिजली ​फ्री कर दी, इसके बाद बेवजह महिलाओं को 1.40 करोड़ स्मार्टफोन की योजना शुरू कर दी। अब एक करोड़ परिवारों को फूड पैकेट शुरू कर दिए हैं। 


जिस तरह से सरकार अब योजनाओं का भंडारा चला रहा है, उससे सवाल यह उठता है कि जब सरकार प्रदेश के एक करोड़ लोगों को फूड पैकेट नहीं दे रही थी, तब साढ़े चार साल से इन लोगों ने क्या खाया होगा? यह भी पता नहीं है कि 100 यूनिट बिल नहीं भर पाने वाला उपभोक्ता बिजली का जुगाड़ कहां से कर पाता होगा, और बिना बिजली के साढ़े चार साल निकाले होंगे? राज्य सरकार प्रत्येक महिला मुखिया को मोबाइल फोन दे रही है, तब प्रश्न यह उठता है कि प्रदेश की 1.40 करोड़ महिलाएं अब तक बिना फोन के कैसे जीवन का गुजर बसर कर रही होंगी?

वीडियो यहां देखें: बच्चों के लिए सबसे घातक स्कीम है निशुल्क मोबाइल फोन योजना

सरकार के अंतिम 6 महीने चल रहे हैं और हमेशा की तरह आखिरी 6 महीने में इतनी योजनाएं शुरू कर की गई हैं, जितनी साढ़े चार साल में नहीं की गईं। सरकारों का यह रवैया बीते 25 साल से बदस्तूर जारी है। खास बात यह है कि इन 25 सालों में प्रदेश में दो ही लोग सीएम रहे हैं और दोनों ने ही हर बार सत्ता मिलते ही पिछली सरकार द्वारा अंतिम 6 महीने में शुरू की जाने वाली योजनाओं को लेकर खूब आरोप लगाते हुए जेल भेजने, जुर्माना लगाने, जांच करवाने, भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने जैसे जाने क्या—क्या दावे और वादे किए, लेकिन इन 25 बरस में आज दिन तक एक भी व्यक्ति को सजा नहीं हुई। 


राजस्थान में 1993 से ही हर पांच साल में सत्ता बदलने का रिवाज चल रहा है। 2003 से लगातार सत्ता बदलते ही कहा जाता है कि सरकार के आखिरी 6 महीनों के कामकाज की समीक्षा होगी। इसके बाद हमेशा एक कमेटी बनती है, कुछ दिन मीडिया के द्वारा उसका प्रचार किया जाता है, सरकार द्वारा वाहवाही लूटी जाती है और अतंत: ढाक के तीन पात, यानी कुछ भी नहीं होता है। 


ये हर बार होता है। चाहे सीएम अशोक गहलोत हों, या वसुंधरा राजे, दोनों ही हर बार दावा करते हैं कि पिछली सरकार ने अपने आखिरी 6 महीने में सत्ता पाने के लिए गलत किया है, उसकी समीक्षा कर दोषियों को सजा दिलाई जाएगी। यही रटी रटाई लाइनें हम बीते 25 साल से सुन रहे हैं। अब सरकार की कोई योजना ऐसी नहीं है, जो साढ़े चार साल में शुरू हुई हो, लेकिन इन अंतिम 6 महीने में एक दर्जन योजनाएं शुरू हो चुकी हैं। सरकार बदलकर समीक्षा करेगी या पहले की तरह ही चलेता रहेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन हम इस सरकार द्वारा शुरू की गई इन घोषणाजीवी योजनाओं की समीक्षा जरूर करेंगे। आज हम इस कड़ी में अशोक गहलोत सरकार द्वारा शुरू की गई इंदिरा गांधी स्मार्टफोन योजना की समीक्षा करेंगे। 


अशोक गहलोत ने फरवरी 2022 में बजट के अंदर ही राज्य की 1.40 करोड़ महिलाओं को मोबाइल फोन देने की घोषणा की थी। एक साल बाद फिर बजट पेश किया, लेकिन उस योजना का जिक्र नहीं किया गया। बाद में बताया गया कि चिप आयात की कमी के कारण कोई भी कंपनी इतने फोन देने को तैयार नहीं है, जबकि बाजार में एक करोड़ नहीं, बल्कि 10 करोड़ फोन दुकानों में भरे पड़े हैं। इसके बाद सरकार ने योजना को थोड़ा बदला, उसमें परिवर्तन कर फोन देने के बजाए पैसे देने का वादा किया। बाद में उसके चुनावी प्रभाव को देखते हुए आखिरी महीनों में नगद पैसों के जरिए मौके पर ही फोन खरीदने की बाध्यता के साथ योजना को शुरू कर दिया गया है। 


पहले चरण में 40 लाख बच्चियों को मोबाइल फोन बांटे जा रहे हैं। अगले चरण में एक करोड़ महिलाओं को दिए जाएंगे। इस योजना के तहत लाभार्थी को पहले मोबाइल हैंडसेट और सिम सलेक्ट करनी होती है, उसके बाद उसके खाते में 6800 रुपये ट्रांसफर किए जाते हैं। इसमें 6125 हैंडसेट के और 675 रुपये रिचार्ज के होते हैं। यदि मोबाइल हैंडसेट महंगा चुना जाता है तो बाकी पैसे लाभार्थी को खुद की जेब से देने होते हैं। 


सवाल यह उठता है कि इससे किसको फायदा होगा? पहली बात तो आज जमाना वो नहीं जब कोई भी महिला या लड़की 6 हजार रुपये का कम फीचर्स वाला फोन रखकर खुश हो जाए। राज्य की सक्षम महिलाओं के पास पहले से ही महंगे स्मार्टफोन हैं। सक्षम श्रेणी की महिलाओं की संख्या लाखों में है। आज मध्यम वर्ग ही नहीं, बल्कि मजदूरी करने वाली, नरेगा में काम करने वाली, रेडी—ठेला लगाने वाली, सब्जी बेचने वाली महिलाओं के पास ही स्मार्टफोन हैं, जिनसे प्रतिदिन करोड़ों रुपयों का डिजिटल ट्रांजेक्शन हो रहा है। जुलाई 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान की 88 फीसदी महिलाओं के पास मोबाइल फोन है, जिनमें से भी अधिकांश के पास स्मार्टफोन है। एक बात यह भी है कि सरकार जो फोन दे रही है, वो कितना सक्षम है? कितना बच्चियों या महिलाओं के लिए उत्पादक साबित होगा? क्या सरकार इतने कम फीचर्स वाला स्मार्टफोन देकर राज्य में ई कचरा बढ़ाने का काम नहीं कर रही है?


जिनके पास आज भी मोबाइल नहीं है, उन 12 फीसदी में वो महिलाएं हैं जो या तो 9वीं से 12वीं कक्षा तक पढ़ती हैं, या फिर गृहणी हैं या फिर बिलकुल ही गरीब महिला है। पढ़ने वाली बच्चियां पहले से ही अपने माता—पिता के स्मार्ट फोन काम में लेती हैं, इसलिए कितनी बच्चियों को 6 हजार का फोन पसंद आएगा। यही वजह है कि इस योजना में भी वो अपनी जेब से पैसे देकर और महंगा फोन ले रही हैं। इससे मोबाइल हैंडसेट बेचने वाली कंपनियों के लिए सरकार ने खुद ही उपभोक्ता उपलब्ध करवा दिए हैं। 


सरकार फोन दे रही है तो यह भी तय है कि अधिकांश महिलाएं इस योजना के मोबाइल फोन लेंगी भी और यह बात भी सही है कि वो इतना सस्ता नहीं लेकर अपनी हैसियत के हिसाब से जेब से पैसे मिलाकर महंगा ही लेंगी। यानी जितना पैसा सरकार देगी, उससे अधिक इन 1.40 करोड़ महिलाओं द्वारा ही मोबाइल हैंडसेट कंपनियों को ​दे दिया जाएगा। इससे आप समझ लीजिए कि सरकार वास्तव में किसका भला कर रही है।


दूसरी बात, जिनके पास आज स्मार्टफोन नहीं है, वो महिलाएं किसान, मजदूर या मुश्किल से कोई गृहणी ही होंगी। इसके अलावा स्कूल की बच्चियां हैं। ये सभी बिना स्मार्ट फोन के अब तक अपने अपने काम में लगी रहती थीं। लेकिन क्या सरकार ने इस बात का कोई सर्वे करवाया है कि जब इनके हाथ में मोबाइल होगा, तब उसका कितना सकारात्मक या नकारात्मक असर होगा? क्या सरकार ने इस बात का आकलन किया कि जब प्रत्येक महिला के हाथ में इस तरह से अतिरिक्त मोबाइल फोन होगा तो उसके छोटे बच्चे काम में लेंगे, जिसके कारण इन छोटे बच्चों पर कितना नैगेटिव असर होगा?


जो महिलाएं अब तक बिना स्मार्ट फोन वाली हैं, उनमें से अधिकांश को उस श्रेणी में माना जाता है, जिसको स्मार्टफोन चलाना नहीं आता है। अब सरकार यदि उनको फोन देगी तो क्या काम आएगा? अधिकांश महिलाओं के इस फोन से उसको छोटे बच्चे गैम खेलने के काम करेंगे। मोबाइल हाथ में आने के बाद पहले ही खेल ग्राउंड खाली पड़े हैं, इस तरह से सरकार 1.40 करोड़ फोन और देगी तो सोचिए कितने बच्चे खेल के मैदान से बाहर हो जाएंगे? क्या सरकार ने कभी इस बात का आकलन किया कि वोटबैंक पाने की इस योजना के कारण भविष्य में तैयार होने वाले कितने खिलाड़ियों से प्रदेश महरुम रह जाएगा? 


कई रेस्टोरेंट, होटल्स, मॉल, कार्यालयों और कल्बों में स्मार्टफोन पर रोक लगाकर लोगों का सामाजिकरण करने का काम किया जा रहा है। क्या सरकार इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती है कि जब 1.40 करोड़ मोबाइल प्रदेश की जनता के हाथ में आएंगे तो उसका कितना विपरीत असर होगा? जो अबोध बच्चियां अब तक किताबों से पढ़ रही हैं, उनको ओनलाइन क्लासेज के नाम पर मोबाइल की लत लग जाएगी, जिससे ना केवल उनकी पढ़ाई बाधित होगी, बल्कि सोशल मीडिया पर बिना रोक टोक परोसा जाने वाला कचरा भी उनके दिमाग में भर जाएगा। 


जो बच्चियां अब तक पढ रही थीं, वो ओनलाइन कक्षा के नाम पर दिनभर मोबाइल देखने की छूट पा चुकी होंगी, जिनको पढ़ाई के नाम पर परिजन भी नहीं टोक पाएंगे। यह बात और है कि ये अबोध बच्चियां सोशल मीडिया पर क्या देखेंगी और इसका इनके कोमल मस्तिष्क पर कितना खतरनाक असर होगा। मोबाइल पर गैम खेलकर पाकिस्तान से भारत आने वाली सीमा हैदर और फेसबुक से फ्रेंड बनाकर पाकिस्तान जाने वाली अंजू रफाइल मोबाइल के कारण उपजी आंखें खोलने वाली दो बड़ी घटनाएं हैं। आज हजारों केस ऐसे हैं, जिनमें बच्चियां सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में आकर दरिंदगी का शिकार हो जाती हैं।  


यह बात सही है कि कोरोना काले में ओनलाइन क्लासेज के कारण बच्चों को घर बैठकर पढ़ने में काफी मदद मिली थी, लेकिन अब वो दौर जा चुका है। आज बच्चे स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग मे भरे हुए हैं। ऐसे में सरकार का यह कहना है कि बच्चियां इन मोबाइल फोन से ओनलाइन पढेंगी, यह बात अपने आप में सबसे बड़ा मजाक लगती है। मोटे तौर पर देखा जाए तो सरकार खुद ही अपने हाथ, अपने ही प्रदेश की बच्चियां और महिलाओं को भविष्य बर्बाद करने जा रही है। 


सरकार पर पड़ने वाले आर्थिक नुकसान की बात की जाए तो इस योजना से करीब 10 हजार करोड़ का भार सरकारी खजाने पर पडेगा। इतने पैसे से प्रदेश की सभी टूटी हुई सडकें ठीक हो सकती थीं, नए घोषित सरकार कॉलेजों के भवन बन सकते थे। सरकारी स्कूलों में एक हजार कमरों का निर्माण हो सकता था। इसी तरह से गरीब तबके को उपर उठाने के लिए एक नई योजना पूरा की जा सकती थी तो शहरों में हर सड़क पर नजर आने वाले सभी भिखारियों को विस्थापित कर उनको रोजगार दिया जा सकता था। किंतु संभवत: इस तरह विकास के काम से सरकार को वोट नहीं मिलता। 


राजस्थान के उपर आज करीब सवा 6 लाख करोड़ रुपये का कर्जा है, जबकि हर महिने करीब 40 हजार करोड़ रुपये बढ़ रहा है। सरकार ने विकास के सभी काम रोक रखे हैं, पैसे उधार लेकर काम चलाया जा रहा है, बॉण्ड के लिए हर बार रिजर्व बैंक को सरकार की संपत्तियां गिरवी रखी जा रही हैं, फिर भी वोटबैंक के कारण ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे ना केवल सरकारी खजाना खाली हो रहा है, बल्कि बच्चों के दिशा भ्रमित होने और परिवारों में झगड़े बढ़ने की संभावना पैदा की जा रही है। अशोक गहलोत की इस योजना से भले ही कांग्रेस को वोट मिल जाए और सत्ता भी रिपीट हो जाए, लेकिन इतना पक्का है कि इस योजना से एक तरफ जहां सरकार की माली हालत और खराब होगी तो साथ ही बिना वजह से स्मार्टफोन हाथ में आने के कारण अबोध बच्चियों का ​भविष्य खराब होने का खतरा उत्पन्न होगा, बल्कि छोटे बच्चों को मैदान पर जाने से रोक लगाने का काम करेगा।

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