किसानों का सम्मूर्ण कर्जा माफ करेगी सरकार, कांग्रेस का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रॉक



राजस्थान में चुनावी मॉनसून शुरू हो चुका है। सियासी दल अपनी अपनी छतरी लेकर मॉनसून का मजा लूटने की तैयारी कर रहे हैं। किसे सत्ता मिलेगी और कौन अगले पांच साल तक विपक्ष में बैठेगा, यह तो अगले 5 महीने में तय हो जायेगा, किंतु कांग्रेस की सरकार एक बार फिर से किसानों के सहारे सत्ता पाने का मास्टर स्ट्रॉक खेलने की तैयारी में है। माना जाता है कि दिसंबर 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारें किसान कर्जमाफी के वादे के कारण ही बनी थीं।


उसके बाद दस दिन में कर्जमाफ करने का वादा करके सत्ता में आई कांग्रेस सरकारों ने किसानों का सहकारी बैंकों का 2 लाख रुपये तक का कर्जा तो माफ किया, किंतु ये कर्ज उंट के मुंह में जीरा जैसा साबित हुआ। कारण यह था कि राज्य के करीब 20 लाख किसानों को केवल 15 हजार करोड़ के आसपास ही लाभ मिला, जबकि राज्य के करीब 60 लाख किसानों पर एक लाख करोड़ का कर्जा था। सरकार से कर्जमाफी की उम्मीद में राज्य के हजारों किसानों ने कर्ज चुकाया ही नहीं। नतीजा यह हुआ कि करीब 20 हजार किसानों की जमीनें कुर्क हो चुकी हैं और हर दिन दर्जनों किसान अपनी जमीन खोते जा रहे हैं। सरकार के आखिरी दिन चल रहे हैं, जिसके कारण विपक्ष ने किसान कर्जमाफी को मुद्दा बना लिया है। सरकार के पास अब तक इसका कोई जवाब नहीं है, जबकि चार महीने में सरकार चुनाव का सामना करेगी। 

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अशोक गहलोत सत्ता रिपीट कराने का दावा कर रहे हैं, लेकिन उज्जवला वालों को 500 का गैस सिलेंडर, महिलाओं को मोबाइल, घरेलू उपभोक्ताओं को 100 यूनिट बिजली फ्री, किसानों को 2000 यूनिट तक बिजली माफ करने जैसे कदम उठाने के बाद भी हाल ही में जारी सर्वे में कांग्रेस की सत्ता रिपीट नहीं हो रही है। इसको देखते हुए गहलोत सरकार किसानों को लेकर बड़ा दांव खेलने जा रही है। राजस्थान सरकार मॉनसून सत्र में 'कर्ज राहत आयोग बिल' 2 अगस्त को विधानसभा में पेश करने जा रही है। इस बिल को गहलोत सरकार दो अगस्त को विधानसभा में पेश कर पारित करवाने की पूरी तैयारी कर रही है। बिल पारित होते ही किसान कर्ज राहत आयोग बनाने का रास्ता पूरी तरह से साफ हो जाएगा।


इस बिल के कानून बनने के बाद राजस्थान में लाखों किसानों के लिए एक कानून की व्यवस्था होगी। कर्ज राहत आयोग, किसानों को फसल खराब होने की स्थिति, कर्ज वसूली माफ का रास्ता, अभाव में होने पर किसानों को संकटग्रस्त किसान का दर्जा, बैंकों द्वारा किसानों पर सीधे दबाव नहीं बनाने जैसी शक्तियां होने के कारण कर्ज राहत आयोग किसानों की जमीनें नीलाम नहीं देगा। माना जा रहा है कि इस बिल में जिसमें कर्ज माफी, लोन री-शेड्यूल और कर्ज में फंसे किसानों का ब्याज कम के लिए नियम—कानून होंगे। राजस्थान में कर्ज राहत आयोग के लागू होने से सभी किसानों के मामले सिविल नियमों के तरह ही निपटाए जाएंगे। 


दरअसल, राजस्थान के लाखों किसानों को फसल खराब होने की हालत में कर्ज वसूली को लेकर हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं रिकवरी एजेंट्स उनके साथ बदसलूकी न करें, लेकिन इस बिल के कानून बनने के बाद बैंक भी दबाव नहीं बना सकेंगे। आयोग बनने के बाद बैंक या कोई भी फाइनेंशियल संस्था किसी भी कारण से अब किसानों को परेशान नहीं कर सकेगी। किसान फसल खराब होने पर कर्ज माफी की मांग करते हुए इस आयोग का दरवाजा खटखटा सकेंगे। कर्जमाफी के लिए बैंकों के चक्कर काटने के बजाए किसान सीधे यहां आवेदन कर इसका फायदा उठा सकेंगे।


एक तरह से देखा जाए तो आयोग किसानों के लिए मसीहा का काम करेगा। सरकार की इस योजना में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज शामिल होंगे। इस आयोग में अध्यक्ष राज्य अध्यक्ष सहित 5 मेंबर होंगे, जो किसानों के मामले को देखेंगे। आयोग में एसीएस या प्रमुख सचिव रैंक पर रहे रिटायर्ड आईएएस, जिला और सेशन कोर्ट से रिटायर्ड जज, बैंकिंग सेक्टर में काम कर चुके अधिकारी के अलावा एग्रीकल्चर एक्सपर्ट को मेंबर बनाया जाएगा।


किसान कर्ज राहत आयोग का कार्यकाल का समय सीमा 3 साल का होगा, जबकि आयोग के अध्यक्ष और इसमें शामिल मेंबर का कार्यकाल भी 3 साल का ही होगा। सरकार चाहे तो अपने स्तर पर आयोग की अवधि को बढ़ा सकती है और किसी भी मेंबर को हटा सकेगी। मतलब यह आयोग राजस्थान चयन आयोग की तरह नहीं होगा, जिसके मेंबर्स को राष्ट्रपति ही हटा सकता है।


कर्ज नहीं चुका पाने की हालत में किसान यदि आवेदन करता है या आयोग जांच पड़ताल कर समझता है कि किसान की हालत वाकई खराब है तो वह उसे संकटग्रस्त किसान घोषित कर सकता है। यदि किसान की फसल खराबे की वजह से कर्ज चुका पाने में सक्षम नहीं है तो संकटग्रस्त किसान कहलाएगा। इस कैटेगिरी में आने के हालत में किसान को बैंक या रिकवरी एजेंट्स उस किसान से जबरदस्ती कर्ज वसूली या परेशान नहीं कर सकता है। यानी भले ही बैंक संबंधित किसान को डिफॉल्ट तो कर सकेगा, किंतु उससे रिकवरी नहीं कर पायेगा।


ऐसा नहीं है कि किसान की बात सुनकर ही फैसला सुना देगा, यह आयोग किसानों के अलावा बैंकों प्रतिनिधियों की भी बात सुनेगा। इस बिल की खासियत होगी कि लोन को री-शेड्यूल करने और ब्याज कम करने जैसे अहम फैसले भी आयोग सुना सकेगा।


दरअसल, अपने आखिरी बजट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसानों को दिल खोल कर सौगातें देने का दावा किया था। जिससे किसानों के चेहरे खिल उठने का भी दावा किया गया। सरकार का कहना है कि अभी राजस्थान में 11 लाख किसानों को मुफ्त बिजली दी जा रही है, सभी किसानों को मुफ्त बीज वितरण किया जा रहा है, मुख्यमंत्री कामधेनु बीमा योजना जैसी कल्याणकारी योजना लागू की गई हैं। हालांकि, धरातल पर इसका असर नहीं के बराबर है। लंपी के दौरान राज्य में करीब 7.5 लाख गयों की मौत का दावा किया जाता है, लेकिन राज्य सरकार ने केवल 150 करोड़ का मुआवजा ​देकर इतिश्री कर ली है।


अशोक गहलोत कई बार ये बात कह चुके हैं कि कोई भी देश कृषि के बिना प्रगति नहीं कर सकता। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार ने अपने वादे के अनुसार सत्ता में आते ही फसली ऋण माफी का आदेश जारी किया था। सरकार ने दिसंबर-2022 में दावा किया था कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने बीते चार साल में 22 लाख किसानों के कर्ज माफ किए हैं। हालांकि, ये कर्ज केवल 20 हजार करोड़ तक ही सिमट गये। उससे पहले वसुंधरा सरकार ने 2018 के दौरान अपने आखिरी छह महीने में करीब 20 लाख किसानों के 7200 करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए थे। इस हिसाब से देखें तो भी राज्य में अभी करीब 40 लाख किसानों पर 80 हजार करोड़ से अधिक का कर्जा है, जिनमें से कई किसानों की जमीनें नीलाम हो रही हैं।


सरकार का दावा है कि राजस्थान में किसानों के खातों में सरकार की तरफ से हर माह एक हजार रुपए जमा भी कराए जाते हैं। हालांकि, दावे के विपरीत लाखों किसान आज भी इस सहायता से कोसों दूर हैं। अपने वादे को पूरा करने में नाकाम रहे सीएम गहलोत कई बार केंद्र सरकार से मांग कर चुके हैं कि वो पूरे देश में एक साथ किसानों का कर्जा माफ करे। इस विषय में सीएम गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिख चुके हैं। 


असल में राज्य सरकार सहकारी बैंकों का लोन तो माफ कर चुकी है, लेकिन मोटा ऋण राष्ट्रीयकृत ​बैंकों का है, जो केवल केंद्र सरकार ही चुका सकती है। वैसे भी राज्य सरकार के उपर करीब 6 लाख करोड़ का कर्जा है, ऐसे में सरकार राष्ट्रीयकृत बैंकों का लोन चुका पाने में सक्षम नहीं है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ने ही किसानों का सम्पूर्ण कर्जा माफ करने का झूठा वादा किया था, इसलिए उसे सभी किसानों का सम्पूर्ण कर्जा माफ करना चाहिए।


उल्लेखनीय बात यह है कि साल 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में राहुल गांधी, अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने 10 दिन में सभी किसानों की कर्ज माफी का वादा किया था, जिसे कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। कर्जमाफी के वादे को पूरा करने में नाकाम रही गहलोत सरकार चुनाव से पहले 2 अगस्त को विधानसभा में बिल पेश कर उसे पारित कराने की पूरी कोशिश करेगी। 


इसके बाद कांग्रेस चुनाव प्रचार में कहेगी कि हमने 'किसान राहत आयोग' बना दिया है, जो किसी भी किसान की जमीन कुर्क नहीं होने देगा और किसानों का कर्जा माफ करेगा। इसी को आधार बनाकर किसानों से फिर वोट की अपील की जायेगी और सत्ता रिपीट कराने का सपना देखा जायेगा। देखने वाली बात यह होगी कि अपने वादे के अनुसार सभी किसानों का कर्जा माफ करने में नाकाम रही गहलोत सरकार 'किसान राहत आयोग' बनाने के नाम पर किसानों के घावों पर लीपापोती कर फिर से सत्ता प्राप्त करने में सफल हो पाती है या है।

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