कांग्रेस-भाजपा दोनों को Hanuman Beniwal का सहारा चाहिए



राजस्थान में चुनाव सिर पर आ गये हैं, लेकिन राज्य के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों को भरोसा नहीं है कि उनकी सरकार बन जाएगी। सीएम अशोक गहलोत फ्री योजनाओं के सहारे सत्ता रिपीट कराने का दावा तो कर रहे हैं, किंतु खुद कांग्रेस पार्टी के अंदरुनी सर्वे बताते हैं कि उनकी सरकार कतई रिपीट नहीं हो रही है। पार्टी के हालात यह हैं कि खुद ही यह कहने का मजबूर हो चुकी है कि सरकार नहीं बना पाएंगे। दूसरी तरफ भाजपा के नेता भले ही मीडिया के सामने आकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा करते हों, लेकिन असल बात यह है कि भाजपा खुद के सर्वे में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने से पीछे दिखाई दे रही है।

वीडियो देखें: भाजपा-कांग्रेस चले ना हनुमान ​के बिना....

हालात यह हैं कि दोनों ही दल आज की तारीख में रालोपा का सहारा ढूंढ रहे हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा नेताओं की हनुमान बेनीवाल से इस बारे में बात चली रही है, दूसरी ओर कांग्रेस सूत्र दावा करते हैं कि खुद सीएम अशोक गहलोत ही आगे बढ़कर हनुमान बेनीवाल से बात कर गठबंधन करने का प्रयास कर रहे हैं। जिस तरह से पांच साल में रालोपा ने ग्रोथ की है, उसके बाद इन ​दोनों दलों के पसीने ला दिए हैं। रालोपा का इन दिनों सदस्यता अभियान चल रहा है, जिसमें उसको उम्मीद से अधिक सफलला मिल रही है, जो यह साबित करती है कि पार्टी का तेजी से जनाधार बढ़ रहा है।


कहा जाता है कि बेनीवाल से खुद अमित शाह संपर्क में हैं, जो आने वाले दिनों में कभी भी गठबंधन की बात को फाइनल कर सकते हैं। हालांकि, खुद हनुमान बेनीवाल फिर भी लगातार दावा कर रहे हैं कि वह इस विधानसभा चुनाव में भाजपा—कांग्रेस से अलाइंस नहीं करेंगे, लेकिन पॉलिटिक्स में कुछ भी स्थाई नहीं होता है। पल पल बदलते रिश्तों के बीच कभी भी भाजपा—रालोपा एक हो सकती है। जबकि कांग्रेस पार्टी भी बेनीवाल के आधे राज्य में गहरे प्रभाव से प्रभावित है। पार्टी को पता है कि उपचुनाव में यदि बेनीवाल के उम्मीदवार नहीं होते तो पार्टी जीत नहीं सकती थी। सभी 7 उपचुनाव में यदि भाजपा—रालोपा एक होती तो कांग्रेस से सभी सीटें छिटक सकती थीं।


इस बीच भाजपा ने अपने अंदरुनी सर्वे में पाया है कि पार्टी आज की तारीख में 100 से कुछ ही ज्यादा सीटें जीत रही है। हालांकि, यह भी पार्टी का दावा है, इसमें सीटें और भी कम हो सकती है। पार्टी ने सभी 200 विधानसभा सीटों को तीन वर्गों में बांटकर रणनीति बनाई है। पार्टी का मानना है कि अभी 100 सीटों पर जीत तय है, जिनको तीन वर्गों में बांटा गया है। पहले वर्ग में 29, दूसरे में 59 और तीसरे वर्ग में 12 सीटें हैं। बाकी 100 सीटों को भी तीन श्रेणी में बांटा गया है। जिसके तहत ए श्रेणी में 17, बी में 64 और सी श्रेणी में 19 सीट हैं। ये 19 सीट भाजपा लगातार तीन चार बार से हारती आ रही है। भाजपा ने पाया कि आज की तारीख में पाली, सिरोही और झालावाड़ की सभी 13 सीटों पर उसकी जीत पक्की है। जबकि करौली, दौसा और सवाई माधोपुर 13 में से जीत वाली 100 सीटों में एक भी नहीं है।


इसी तरह से कांग्रेस पार्टी ने माना है कि आज की स्थिति में 85 सीटों पर जीत तय है, जबकि लक्ष्य अभी 100 के पार करना है। भाजपा से इतर कांग्रेस ने सभी 200 सीटों को तीन वर्गों में विभाजित किया है। पहले वर्ग में 40, दूसरे में 60 और तीसरे वर्ग में बेहद कमजोर नजर आने वाली 100 सीटों को रखा गया है। पार्टी के अनुसार सरदारपुरा, टोंक, सरदारशहर, झुंझुनूं, लक्ष्मणगढ़, कोटपुतली, बानसूर, डीग—कुम्हेर, सपोटरा, बागीदौरा, हिंडोली, अंता, लालसोट, बाड़मेर, सांचौर, ओसियां, शिव, पीपल्दा, लोहावट, बाड़ी, राजाखेड़ा और निम्बाहेड़ा की सीटें आराम से जीत जाएंगे।


भाजपा जहां 19—20 सीटों को सबसे कमजोर मानती है, तो कंग्रेस के अनुसार 52—53 सीटों पर पिछले 3 चुनाव हारने के कारण इस बार भी राह आसान नहीं है। ऐसे में इन सीटों गैर राजनीतिक लोगों को उतारने पर विचार किया जा रहा है, ताकि सत्ता विरोधी लहर को कम किया जा सके। पार्टी ने वैसे तो साफ कर दिया है कि चाहे 100 साल का उम्मीदवार हो, लेकिन जिताउ होगा तो उसको भी टिकट दिया जाएगा। इसके कारण उन आधा दर्जन नेताओं को फिर से उम्मीद जगी है, जो अधिक उम्र होने के कारण खुद को टिकट की रेस से बाहर मान रहे थे। पार्टी के अंदर असली लड़ाई अभी पायलट—गहलोत कैंप में ​अधिक से अधिक टिकट लेने की लड़ाई चल रही है। हालांकि, यह लड़ाई सतह पर नहीं आई है, किंतु जैसे ही पहली सूची आएगी, वैसे ही सिर फुटव्वल शुरू हो जाएगा।


इस वजह से विधानसभा चुनाव में रालोपा की भूमिका बेहद खास रहने वाली है। आपको याद होगा जब पिछले लोकसभा चुनाव में नागौर से ज्योति मिर्धा के नामांकन पत्र के दिन रैली थी, जिसमें खुद अशोक गहलोत ने कहा था कि वो तो हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन बेनीवाल माने नहीं। इस बार बेनीवाल की रालोपा 3 विधायक और एक सांसद के साथ ज्यादा ताकत से चुनाव लड़ेगी। ऐसे में यह तय है कि दोनों ही प्रमुख दल रालोपा को अपने पाले में लेने का पूरा प्रयास करेंगे। वैचारिक रूप से देखा जाए तो भाजपा—रालोपा का गठबंधन नैसर्गिक है, जो पहले भी हो चुका है। अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के कारण वैसे भी बेनीवाल कांग्रेस के साथ अलाइंस करने से बचने का प्रयास करेंगे। ऐसे में भाजपा में यदि गुटबाजी खत्म होकर वसुंधरा राजे पूरी ताकत से प्रचार करेंगी, तो भाजपा—रालोपा मिलकर इस चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस की ऐतिहासिक हार का रिकॉर्ड बना सकते हैं। 


Post a Comment

Previous Post Next Post