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कांग्रेस को यहां 25 साल से जीत का इंतजार है



चुनाव नजदीक आ रहे हैं, लेकिन अपने भाषणों के जरिए राजनेता दूर होते जा रहे हैं। न केवल दूसरे दलों के नेताओं में दूरियां दिखाई देने लगी है, वरन अपने ही दल के नेताओं से ही दूरी बनती देखी जा सकती है। भाजपा में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश चंद मेघवाल के बेबाक बयानों के बाद पार्टी से विदाई हो चुकी है, तो वसुंधरा खेमे के कुछ और नेता भी इसी फिराक में हैं। 


माना जा रहा है कि कैलाश मेघवाल कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं, या फिर सीधा विरोध होने की संभावना पर शाहपुरा से उनके निर्दलीय पर्चा दाखिल करने पर कांग्रेस बाहर से समर्थन दे सकती है। मेघवाल ने कहा दिया है कि वह चुनाव तो लड़ेंगे, चाहे निर्दलीय ही लड़ना पड़े। वैसे कैलाश मेघवाल ने अशोक गहलोत की सरकार बचाई थी और इसके बदले में अशोक गहलोत ने उनको शाहपुरा जिला बनाकर उपहार भी दिया था। 


आने वाले दिनों में सूबे की राजनीति में ऐसी उठापटक अब और तेज होगी। इस दौरान प्रदेश की कई विधानसभा सीटों पर समीकरण बनने और बिगड़ने वाले हैं। पिछली बार भाजपा को सत्ता बाहर बिठाने वाला मतदाता इस बार क्या राय देगा, ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही साफ होगा, लेकिन कांग्रेस सत्ता रिपीट कराने के लिए प्रयास कर रही है। यह बात और है कि पिछली बार कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा चेहरा रहने वाले सचिन पायलट कुछ दूर दूर से नजर आ रहे हैं, जो कई सीटों पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं। राजस्थान विधानसभा वार सीटों की चुनाव यात्रा में आज हम बात करेंगे रतनगढ़ विधानसभा सीट की, जहां अभी भाजपा के अभिनेष महर्षि विधायक हैं। उससे पहले 2013 में भी यह सीट भाजपा के पास ही थी। रतनगढ़ विधानसभा सीट राजस्थान के चुरू जिले में आती है। 2018 में रतनगढ़ में कुल 39 प्रतिशत वोट पड़े। 2018 में भारतीय जनता पार्टी से अभिनेष महर्षि ने कांग्रेस के भंवरलाल पुजारी को 49421 वोटों के मार्जिन से हराया था। रतनगढ़ विधानसभा सीट चूरू जिले के अंतर्गत आती है। इस संसदीय क्षेत्र से राहुल कस्वां लगातार दूसरी बार सांसद हैं, जो भारतीय जनता पार्टी से आते हैं। उन्होंने कांग्रेस के रफीक मंडेलिया को 334402 वोटों से हराया था।


यहां पर 1977 से लेकर अब तक कांग्रेस केवल दो बार चुनाव जीत पाई है। आखिरी बार 1998 में जयदेव प्रसाद इंदोरिया चुनाव जीते थे। उसके बाद राजकुमार रिणवा जीतते आ रहे हैं, किंतु पिछली बार भाजपा ने टिकट बदल दिया था। फिर भी भाजपा ही जीती थी।


रतनगढ़ से पिछली बार कांग्रेस ने भंवरलाल पुजारी को टिकट दिया था, लेकिन वह अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए, जबकि कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर दमदार कैंडिडेट पूसाराम गोदारा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, जो दूसरे स्थान पर रहे थे। इस बार गोदारा ने फिर से हुंकार भरी है। पूसराम गोदारा 2013 में कांग्रेस के उम्मीदवार रह चुके हैं। माना जा रहा है कि पिछली बार 60 हजार वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे गोदारा को टिकट देकर कांग्रेस इस सीट को जीतने का प्रयास करेगी, तो भाजपा फिर से अभिनेश महर्षि को टिकट देकर लगातार पांचवी बार जीतने का प्रयास करेगी। कांग्रेस के दावेदार पूसाराम गोदारा ने अपने सियासी सफर की शुरुआत साल 1988 में बाघसर आथुना ग्राम पंचायत का सरपंच बनकर की थी। साल 1995 में पंचायत समिति सुजानगढ़ से उप प्रधान बने। उसके बाद 1998 में यहीं से प्रधान बने। इसके दो साल बाद साल 2000 में उनकी पत्नी नानी देवी गोदारा प्रधान बनी और साल 2005 में गोदारा फिर से खुद प्रधान बन गए।

 

साल 2010 में इनकी पत्नी नानी देवी गोदारा प्रधान बनीं। इसी साल पूसाराम गोदारा ने चूरू जिला परिषद चुनाव लड़ा। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर रतनगढ़ से चुनाव लड़ा। उस समय देश में मोदी लहार का चल रही थी, लेकिन भाजपा प्रत्याशी राजकुमार रिणवा को कड़ी टक्कर दी। साल 2018 में कांग्रेस पार्टी से टिकट मांगा, लेकिन कहते हैं स्थानीय राजनीतिक षड़यंत्र के ज़रिये कांग्रेस आलाकमान को गुमराह कर पूसाराम गोदारा को टिकट दूर कर दिया गया। तब कांग्रेस ने भंवरलाल पुजारी को उम्मीदवार बनाया जो बुरी तरह से हारे।


उससे पहले साल 2013 में पूसाराम गोदारा कांग्रेस के उम्मीदवार थे और भाजपा की ओर से राजकुमार रिणवा थे। मोदी लहर पर सवार राजस्थान में भाजपा का हर प्रत्याशी जीत की दहलीज पर खड़ा था। पार्टी ने 200 में से 163 सीटों पर प्रचंड जीत हासिल की थी। इसके बाद साल 2018 में भाजपा ने मंत्री रहते राजकुमार रिणवा का टिकट काट दिया। इस चुनाव में संघ पृष्ठभूमि से आने वाले अभिनेष महर्षि को भाजपा का टिकट मिला। उधर, कांग्रेस ने पूसाराम की जगह भंवरलाल पुजारी को टिकट दे दिया। इससे नाराज होकर राजकुमार रिणवा और पूसाराम गोदारा ने निर्दलीय ताल ठोक दी। किंतु उस चुनाव के नतीजों को देखें तो काफी काफी चौंकाने वाले थे। 


कांग्रेस के उम्मीदवार भंवरलाल पुजारी और तत्कालीन विधायक राजकुमार रिणवा की ज़मानत ज़प्त हो गयी। पूसाराम गोदारा जो निर्दलीय लड़ रहे थे, वो सिर्फ कुछ ही वोटों के अंतर से हारे। पूसाराम ने लगभग 60 हजार वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे। भाजपा की ओर से जहां अभिनेष महर्षि का टिकट लगभग तय बताया जा रहा है तो पिछली बार दोनों ही दलों के अधिकृत उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर देने वाले पूसाराम गोदारा इस बार फिर से मैदान में होंगे।


वैसे तो हर विधानसभा सीट पर सभी दलों के कई दावेदार होते हैं, लेकिन टिकट जिसको मिलता है, उसके साथ पार्टी का सिंबल होने के कारण उसे कुछ वोटों का लाभ तो मिलता ही है। लेकिन पिछली बार कांग्रेस के भंवरलाल पुजारी की जो हार हुई, उसे देखते हुए कांग्रेस पार्टी इस बार दूसरे नंबर के प्रत्याशी रहे पूसाराम गोदारा को मैदान में उतार सकती। राजनीतिक समीकरण इस तरह के हैं कि भावनात्मक रूप से भी जनता पूसाराम के पक्ष में वोट कर सकती है। कारण यह है कि 2013 में वो मोदी लहर में हारे, लेकिन 2018 में उनका बेवजह टिकट काट दिया गया, फिर भी वो दूसरे नंबर पर रहे और बीते साढ़े चार साल से जनता के बीच में होने के कारण हर व्यक्ति के लिए सुलभ माने जाते हैं। 

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