इन सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के चुनाव से पहले ही पसीने छूट रहे हैं



राजस्थान भाजपा ने अब तक 124 टिकट दिए हैं, तो कांग्रेस ने भी 76 टिकट जारी कर दिए हैं। यानी देखा जाए तो अब भाजपा को 76 टिकट देने हैं और कांग्रेस को 124 प्रत्याशी घोषित करने हैं। बचे हुए टिकटों की घोषणा कभी भी हो सकती है, क्योंकि दोनों ही दलों ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने सभी उम्मीदवार तय कर दिए हैं। देश के पांच राज्यों में चुनाव की आचार संहिता लगी हुई है, सभी जगह मतदान के बाद 3 दिसंबर को परिणाम आएगा। इन तीन राज्यों के अलावा तेलंगाना और मिजोरम में भी चुनाव हैं। इन सबके बीच राजस्थान की कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां पर भाजपा-कांग्रेस, दोनों ही अपने उम्मीदवार उतारने से डर रही हैं। आज हम उन्हीं कुछ प्रमुख सीटों की बात करेंगे कि आखिर क्या डर हैं, जो दोनों ही दल प्रत्याशी घोषित करने से पहले कई कई बार मंथन कर रहे हैं। 


सबसे पहले बात राज्य के वर्तमान सीएम अशोक गहलोत की सरदारपुरा सीट की, जहां पर गहलोत पांच बार से जीत रहे हैं। उन्होंने पहली बार 1999 का उप चुनाव लड़ा था, तब से लगातार जीत ही रहे हैं। पार्टी ने उनको 6ठी बार टिकट दिया है और बिना घोषणा करे गहलोत कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार भी हैं। जोधपुर की इस सीट पर अशोक गहलोत के आने के बाद भाजपा समेत किसी दल का या निर्दलीय उम्मीदवार ठहर ही नहीं पाया है। अशोक गहलोत ने जनसंपर्क शुरू कर दिया है, लेकिन भाजपा यहां पर अपना उम्मीदवार तय करने से डरी हुई है। पिछले दिनों जब अमित शाह जयपुर में आए थे, तब उन्होंने पार्टी के बड़े नेताओं की मीटिंग में साफ कहा था कि जो सीएम बनने की चाहत रखता है, वो एक बार अशोक गहलोत के सामने सरदारपुरा से चुनाव लड़कर दिखाएं। हालांकि, उसके बाद उस मीटिंग में मौजूद अधिकांश नेताओं का टिकट मिल चुका है, लेकिन तीन केंद्रीय मंत्रियों को भी टिकट की चर्चा चल रही थी, जिनको अभी तक टिकट नहीं दिया है। इनमें जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत की चर्चा सबसे अधिक हो रही है। कारण यह है कि वो जोधपुर से दो बार सांसद का चुनाव तो जीत चुके हैं, लेकिन विधानसभा का चुनाव लड़ने से बचने का प्रयास कर रहे हैं। चर्चा यहां तक हो रही है कि शेखावत की इच्छा सूरसागर या पोकरण से चुनाव लड़ने की थी, लेकिन सूरसागर में जहां पार्टी ने सूर्यकांता व्यास की जगह देवेंद्र जोशी को टिकट दिया है, तो पोकरण सीट पर पिछली बार के प्रत्याशी महंत प्रतापपुरी महाराज को फिर से उम्मीदवार बना दिया है। इसके साथ ही गजेंद्र सिंह का इन सीटों से चुनाव लड़ने का सपना भी टूट गया है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि उनके लिए जोधपुर में सीट ही नहीं बची है। 


जोधपुर की 10 विधानसभा सीटों में से पार्टी ने अब तक 8 सीटों पर टिकट दिए हैं, जबकि जोधपुर शहर और अशोक गहलोत के सामने सरदारपुरा सीट पर उम्मीदवार तय नहीं किए हैं। यही वजह है कि गजेंद्र सिंह शेखावत को अशोक गहलोत के सामने टिकट दिए जाने की संभावना है। जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को यदि पार्टी ने अशोक गहलोत के सामने टिकट दिया तो यह सीट प्रदेश की सबसे हॉट सीट बन जाएगी, साथ ही इस बात की चर्चा भी तेज हो जाएगी कि यदि चुनाव जीते तो गजेंद्र सिंह को सीएम बनाया जा सकता है। पार्टी के लोगों का दावा तो यह है कि गजेंद्र सिंह सरदारपुरा से चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं, लेकिन पार्टी ने टिकट दे दिया तो फिर उनको मैदान में उतरना ही होगा। वैसे अशोक गहलोत सीटिंग एमएलए हैं, यदि गजेंद्र सिंह उनको हरा देते हैं तो फिर उनका कद बहुत बढ़ जाएगा। लोगों को उम्मीद है कि भाजपा सरदारपुरा से गजेंद्र सिंह शेखावत को ही उम्मीदवार बनाएगी, ताकि रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा।


इसी तरह से से दूसरी सीट कांग्रेस के लिए खौफ पैदा कर रही है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की झालरापाटन से कांग्रेस अभी तक भी उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है। पिछली बार कांग्रेस ने यहां पर पूर्व भाजपाई मानवेंद्र सिंह को चुनाव लड़ाया था, लेकिन वो टिक ही नहीं पाए। मानवेंद्र सिंह इस बार पहले से ही जैसलमेर से तैयारी कर रहे हैं, जबकि उनको अभी टिकट मिला भी नहीं है। वसुंधरा राजे यहां पर 2003 से लगातार चुनाव लड़ रही हैं। वसुंधरा चार बार विधायक बन चुकी हैं, जबकि उनको पांचवी बार टिकट मिल चुका है। कांग्रेस को ऐसा उम्मीदवार ही नहीं मिल रहा है, जो वसुंधरा से मुकाबला कर पाए। कहा जा रहा है कि वसुंधरा के सामने पार्टी फिर किसी ऐसे व्यक्ति को टिकट देगी, जो जीत जाए तो उसकी किस्मत, अन्यथा हारना तो है ही। वसुंधरा यहां से चुनाव जीतकर दो बार सीएम बनी हैं, और तीसरी बार सीएम बनने की तैयारी कर रही हैं। 


तीसरी सीट भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष डॉ. सतीश पूनियां की आमेर है। जहां पर पिछली बार कांग्रेस के प्रशांत शर्मा मैदान में थे। कांग्रेस ने यहां पर भी अभी उम्मीदवार तय नहीं किया है। यह सीट इसलिए हॉट बनी हुई है, क्योंकि भाजपा को करीब साढे तीन साल तक नेतृत्व देने वाले सतीश पूनियां भी इस बार सीएम की रेस में हैं। उनको पार्टी के सबसे वफादार नेताओं में गिना जाता है। बीते पांच साल में सतीश पूनियां जितने सक्रिय आमेर में रहे हैं, उतना सक्रिय दूसरे नेता अपने क्षेत्र में नहीं रहे हैं। पार्टी उनमें संभावनाएं तलाश रही है, तो कांग्रेस उनके सामने उम्मीदवार नहीं तलाश पाई है। प्रशांत शर्मा सचिन पायलट खेमे से हैं, जबकि उनका टिकट काटने के लिए अशोक गहलोत पूरा प्रयास कर रहे हैं। माना जा रहा है कि न केवल गहलोत, बल्कि भाजपा के भी कई नेता यहां कांग्रेस का ऐसा उम्मीदवार चाहते हैं, जो सतीश पूनियां को हरा सके। हालांकि, सतीश पूनियां की क्षेत्र में पकड़ बताती है कि कांग्रेस का कोई भी नेता उनके सामने टिक नहीं पाएगा। 


इसी तरह से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की टोंक सीट भी सुर्खियों में है। यहां पायलट को दूसरी बार मैदान में उतारा गया है। पिछली बार टोंक से भाजपा ने वसुंधरा राजे के करीबी यूनुस खान को टिकट दिया था, लेकिन वो बुरी तरह से हार गए थे। उससे पहले यूनुस खान डीडवाना से चुनाव लड़कर मंत्री बने थे। यूनुस खान इस बार फिर डीडवाना से टिकट मांग रहे हैं, लेकिन उनको डर है कि कहीं पार्टी टोंक से चुनाव लड़ाकर उनकी राजनीतिक हत्या नहीं कर दे। वैसे भी भाजपा का कोई दिग्गज सचिन पायलट के सामने आ जाए, उसको चुनाव जीतने में खून पसीना एक करना होगा। ऐसा नहीं है कि पायलट को कोई हरा ही नहीं सकता, लेकिन भाजपा के किसी बड़े नेता ने यदि पांच साल तक यहां मेहनत की होती, तो संभवत जीत सकता था।


नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ अपनी सीट छोड़कर भाग गए हैं। पिछली बार उन्होंने चूरू से चुनाव लड़ा था, लेकिन उनको इसी सीट पर इस बार हारने का डर सता रहा था। इसी वजह से तारानगर चले गए हैं। हालांकि, तारानगर में भी उनकी राह आसान नहीं है, जहां पर कांग्रेस के नरेंद्र बुढ़ानियासाढ़े 12 हजार से अधिक वोटों से जीते थे। राठौड़ खुद इसी सीट से 2008 में विधायक रह चुके हैं, लेकिन उनको पता है कि नरेंद्र बुढ़ानिया को पार्टी ने टिकट दिया तो राजेंद्र राठौड़ की राह बेहद कठिन हो जाएगी। इस तरह से देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल एक दूजे के दिग्गजों के सामने उम्मीदवार तय करने से डर रहे हैं। 


कांग्रेस ने अभी तक जहां 76 टिकट दिए हैं, 124 टिकट देने हैं, तो भाजपा ने 124 टिकट दिए हैं और 76 टिकट बांटने बाकी हैं। इसके साथ ही दोनों दल अभी तक 43 जगह पर आमने सामने आ चुके हैं। बसपा, जेजेपी जैसे दलों ने काफी टिकट बांट दिए हैं, जबकि अभी भी सबकी निगाहें आरएलपी पर टिकी हुई है, जो आधे राजस्थान की अधिकांश सीटों पर जीत हार तय करेगी। 

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