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सचिन पायलट और राजेश पायलट को कांग्रेस ने दंडित क्यों किया?


Ram Gopal Jat

राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट के साथ अन्याय करने का मुद्दा उछाल कर कांग्रेस की पैरों तले से जमीन खिसका दी है। पीएम मोदी ने न केवल राजेश पायलट के साथ किए गए अन्याय का मामला उठाया, बल्कि उनके स्वर्गवासी होने के बाद उनके बेटे सचिन पायलट के साथ भी अन्याय करने का कांग्रेस पर आरोप लगाया है। 


हालांकि, कांग्रेस ने इसको आधारहीन बनाया है, जबकि खुद सचिन पायलट ने एक बयान जारी कर कहा है कि उनके परिवार के गांधी परिवार से दशकों पुराने रिश्ते हैं, जो दिल के रिश्ते हैं, जबकि उनके पिता राजेश पायलट को वायुसेना से वीआरएस लेकर राजनीति में लाने का काम खुद इंदिरा गांधी ने किया था। पायलट ने हालांकि, इस बात का जिक्र नहीं किया कि उनके पिता राजेश पायलट के साथ जिस अन्याय की बात पीएम मोदी ने कही है, वो हुआ था या नहीं। 

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यानी सचिन पायलट ने न तो उस घटना का खंडन किया और न ही उसके होने का उल्लेख किया। दोनों तरफ से इस मामले को लेकर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है, लेकिन इस बीच यह जानना जरूरी है कि वास्तव में राजेश पायलट के साथ क्या हुआ था और आज सचिन पायलट के साथ जिस दंड का जिक्र खुद पीएम मोदी ने किया है, उसका सच क्या है?

दरअसल, राजेश पायलट का असली नाम राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी था। वो 29 अक्टूबर 1966 को वायुसेना में पायलट बने थे, उसके ठीक एक साल बाद 1967 में उनको फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नति मिली थी। अक्टूबर 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने बमवर्षक विमान से बम बरसाए थे। इसके बाद 1977 में स्क्वाड्रन लीडर बने थे। दो साल बाद इंदिरा गांधी के प्रस्ताव पर राजस्थान के जैसलमेर तैनात रहते वीआरएस ले लिया था। साल 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी की जगह राजेश पायलट के नाम से भरतपुर से चुनाव लड़ा और जीते। अगला चुनाव उन्होंने दौसा से लड़ा और इसके बाद 1999 तक लगातार दौसा से सांसद चुने गए। 55 साल की उम्र में राजेश पायलट का दौसा से जयपुर जाते समय सड़क हादसे में निधन हो गया। 

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इसके बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी रमा पायलट दौसा से ही सांसद बनीं। साल 2004 के चुनाव में 26 साल की युवा अवस्था में दौसा से ही सचिन पायलट ने अपने जीवन का पहला चुनाव जीता। इसके बाद 2009 में अजमेर से दूसरी बार सांसद बने और केंद्र में राज्यमंत्री बनाए गए। हालांकि, 2014 का चुनाव इसी सीट से हार गए। इसके बाद 2018 में टोंक से विधायक बनकर डेढ़ साल तक डिप्टी सीएम बने। बाद में उन्होंने गहलोत सरकार से बगावत कर दी और उनको डिप्टी सीएम और पीसीसी चीफ के पद से बर्खास्त कर दिया गया। इस बार पायलट टोंक से दूसरी बार विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं। 

अब सवाल यह उठता है कि पीएम मोदी ने उनके पिता राजेश पायलट और खुद सचिन पायलट को कांग्रेस द्वारा दंडित करने का आरोप क्यों लगाया है? दरअसल, जब 1997 के दौरान सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में लाया गया, तब राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया और जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे। 

जनवरी 1997 को सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था। वो दो साल तक अध्यक्ष रहे, इसके बाद उनसे जबरन इस्तीफा ले लिया गया और सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद साल 2000 में सोनिया गांधी को चुनाव के द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की बारी आई तो जितेंद्र प्रसाद ने उनके खिलाफ नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। 

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दरअसल, साल 1997 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ली थी और एक साल बाद ही उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था, इससे कई दिग्गज कांग्रेस नेता खुश नहीं थे। इससे पहले सीताराम केसरी 1996 से कांग्रेस के अध्यक्ष थे। फिर 1998 में सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। सोनिया गांधी से नाखुश नेताओं में जितेंद्र प्रसाद के अलावा शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर भी थे, जो कांग्रेस बाहर हुए और उन्होंने एनसीपी बनाई थी।

इन नेताओं के साथ ही राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद ने भी सोनिया गांधी का विरोध किया। कहा जाता है कि राजेश पायलट भी 1998 में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सोनिया गुट के नेताओं द्वारा दबाव बनाने के कारण ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद जब सोनिया गांधी ने नवंबर 2000 में दूसरी बार चुनाव लड़ा तो राजेश पायलट के मित्र जितेंद्र प्रसाद ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। उससे पहले 11 जून को राजेश पायलट का निधन हो गया था। जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को चुनौती दी। 

जितेंद्र प्रसाद सोनिया गांधी के मुकाबले कांग्रेस अध्यक्ष पद के इस चुनाव में उनकी काफी बुरी हार हुई। चुनाव में कुल 7,542 वोट पड़े, जिसमें से जितेंद्र प्रसाद को सिर्फ 94 वोट ही मिले और सोनिया गांधी लंबे अंतर से जीत गईं। इस चुनाव में माधवराव सिंधिया भी जितेंद्र प्रसाद के साथ थे, उनकी मृत्यु 30 सितंबर 2001 को एक रैली को संबोधित करने के लिए दिल्ली से कानपुर जाते वक्त यूपी के मैनपुरी में एक हवाई जहाज दुर्घटना में हुई थी। उससे पहले 16 जनवरी 2001 को जितेंद्र प्रसाद की कथित तौर पर ब्रेन में रक्तस्राव के कारण मृत्यु हो गई। यानी तीनों दोस्तों का करीब एक साल के दौरान रहस्यमयी तरीके से तीन अलग—अलग दुर्घटनाओं में निधन हो गया।

जब सोनिया गांधी के खिलाफ राजेश पायलट ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, उसके बाद से सोनिया गांधी के साथ उनके रिश्ते खराब हो गये थे। बाद में जब सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं, तब राजेश पायलट जैसे दिग्गज नेता को कांग्रेस ने तवज्जो देना बंद कर दिया था। इसी तरह सोनिया गांधी ने उनके मित्र माधवराव सिंधिया और जितेंद्र प्रसाद के साथ भी अछूत जैसा बर्ताव किया। पीएम मोदी सोनिया गांधी के इस दोहरे बर्ताव के बारे में जिक्र कर रहे हैं। 

इसी तरह से पीएम मोदी ने सचिन पायलट को भी कांग्रेस द्वारा दंडित करने का आरोप लगाया है। सच बात यह है कि जब जनवरी 2014 में सचिन पायलट को पीसीसी चीफ बनाया गया था, उससे पहले दिसंबर 2013 में अशोक गहलोत की लीडरशिप में कांग्रेस इतिहास की सबसे कम 21 सीटों पर सिमट गई थी। पायलट ने अध्यक्ष बनकर कांग्रेस में युवा नेताओं को आगे बढ़ाने का काम किया। 

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पहले उपचुनाव में और उसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट की मेहनत के कारण कांग्रेस 100 सीटों तक पहुंच पाई। पायलट की मेहनत और अशोक गहलोत की दो बार असफलता के कारण सबको भरोसा था कि कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट को ही सीएम बनाया जाएगा, लेकिन सोनिया गांधी ने एक बार फिर पायलट परिवार के साथ दोहरा बर्ताव किया और विफल हो चुके अशोक गहलोत को राजस्थान की जनता पर फिर से थौप दिया। 

यानी जो फसल सचिन पायलट ने बोई थी, उसको अशोक गहलोत ने काटा। तब पायलट को इस विश्वास के साथ डिप्टी सीएम बनाया गया कि मई 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 25 में से 13 सीट कांग्रेस जीतेगी, ऐसा नहीं होने पर गहलोत खुद ही सीएम की कुर्सी छोड़ देंगे और फिर पायलट को सीएम बनाया जाएगा, लेकिन डेढ़ साल बाद भी ऐसा नहीं हुआ तो पायलट ने गहलोत सरकार से हाथ खींच लिए। 

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दोनों के बीच एक महीने तक लड़ाई चली, लेकिन गांधी परिवार के आश्वासन के बाद पायलट ने फिर से गहलोत सरकार को समर्थन दे दिया। इसके बाद जब कुछ नहीं हुआ तो मई 2022 में पायलट ने पांच दिन की यात्रा निकालकर गहलोत सरकार की पोल खोली, लेकिन फिर भी कांग्रेस कोई एक्शन नहीं ले पाई। 

बल्कि 25 सितंबर 2022 को जब गहलोत हटाकर पायलट को सीएम बनाने की बारी आई तो गहलोत ने अपने समर्थक मंत्रियों से बगावत करवा दी। उसके बाद कुछ नहीं हुआ और आज सचिन पायलट पांच साल बाद ठगे होने के बाद भी कांग्रेस की सरकार रिपीट करवाने के लिए प्रचार कर रहे हैं। 

इस सारे घटनाक्रम को देखकर आप खुद तय कीजिए कि कांग्रेस ने पायलट परिवार को दंडित करने जैसा काम नहीं किया है या नहीं? 

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