राजस्थान में सरकार बदल गई। भाजपा ने मुख्यमंत्री बिलकुल नया चेहरा पेश किया है। इसके साथ ही दो डिप्टी सीएम बनाकर समाजों को जोड़ने का संदेश भी दिया गया है, लेकिन 23 दिन बीतने के बाद भी मंत्री नहीं बन पा रहे हैं। वैसे संवेधानिक रूप से मंत्री कभी भी बनाए जा सकते हैं, मंत्रीमंडल को जल्द से जल्द बनाए, ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। संविधान में कहा गया है कि राज्य का राज्यपाल होगा, जो एक मुख्यमंत्री बनाए, वही सरकार चलाएगा। साथ ही मुख्यमंत्री अपने सहयोगियों के तौर पर मंत्री बनाएगा, जिनकी संख्या समस्त विधायकों की 15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए।
राजस्थान में 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम के सात दिन बाद 9 दिसंबर को सीएम भजनलाल शर्मा, डिप्टी सीएम दीया कुमारी और दूसरे डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने 17 दिन पहले पीएम मोदी की मौजूदगी में पद की शपथ ली थी। उसके बाद माना जा रहा था कि अधिकतम एक सप्ताह में मंत्रियों को शपथ दिला दी जाएगी, लेकिन 2 सप्ताह बीतने के बाद भी मंत्री नहीं बन पाए हैं। इसके कारण भाजपा की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मंत्रीमंडल बन चुका है। माना जा रहा है कि आज या कल में राजस्थान में मंत्रियों को शपथ दिला दी जाएगी।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर मंत्री बने क्यों नहीं? दरअसल, 9 दिसंबर को सीएम की शपथ के बाद कई गंभीर सवाल उठे थे। जिसमें जाट, गुर्जर, मीणा समाज की नाराजगी की बातें सामने आई थीं। परिणाम के बाद राज्य में एक दर्जन नेता सीएम की रेस में थे, लेकिन भाजपा ने पहली बार जीतकर आए विधायक भजनलाल शर्मा को सीएम बनाकर सबको चौंका दिया था। ब्राह्मण सीएम बनाया गया। एक डिप्टी सीएम राजूपत को बनाया और दूसरा एससी वर्ग से बनाया गया। सवाल यह उठा कि 75 साल से सीएम बनने का इंतजार कर रहे जाट, गुर्जर, मीणा समाज को एक भी पद क्यों नहीं दिया गया। सोशल मीडिया पर भाजपा को ट्रेड करवाया गया। कई तरह की बातें हुईं। सीएम की घोषणा के बाद सीएम नहीं बनाए जाने से नाराज डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के समर्थकों ने भाजपा के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
चुनाव परिणाम से पहले यह माना जा रहा था कि पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां को सीएम बनाया जाएगा। साथ ही डॉ. किरोड़ीलाल मीणा को भी सीएम बनाने की चर्चा थी, तो कई सांसदों समेत कई विधायक प्रत्याशी भी मैदान में थे। वसुंधरा राजे को दूर करना पहले ही तय था, जिसका दावा मैं चार साल से कर रहा था। राजनीति को समझने वाले मेरी तरह ही जानते थे कि वसुंधरा को किसी भी सूरत में सीएम नहीं बनाया जाएगा। हालांकि, उनके समर्थकों को 2008—09 की तरह चमत्कार का भरोसा था, जो नहीं हुआ।
भाजपा आलाकमान ने पहले राजस्थान में ओबीसी, मध्य प्रदेश में जनरल और छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज से सीएम बनाने की रणनीति बनाई थी। इसके साथ ही राजेंद्र राठौड़ को राजस्थान, रमन सिंह को छत्तीसगढ़ और नरेंद्र तौमर को मध्य प्रदेश विधानसभा का अध्यक्ष बनाने की प्लानिंग थी, लेकिन सतीश पूनियां और राजेंद्र राठौड़ के चुनाव हारने के बाद समीकरण अचानक से बदल गया। इसके राजस्थान और मध्य प्रदेश में प्लानिंग बदली गई। मध्य प्रदेश में ओबीसी से मोहन यादव को सीएम बनाया गया और राजस्थान में विवाद से निजात पाने के लिए पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया।
किंतु इसके बाद राजस्थान में मंत्रीमंडल में चेहरे तय करना कठिन हो गया। केंद्र और राज्य संगठन कई दौर की बैठकें कर चुका है, लेकिन तय नहीं हो पा रहा है कि किस नेता को बाहर रखा जाए और किसे मंत्री बनाया जाए। वसुंधरा के साथ के नेता भी मंत्री बनने की होड में, जबकि बरसों से इंतजार कर रहे कई विधायक अब मंत्रीमंडल में शामिल होने का सपना देख रहे हैं। भाजपा ने सात सांसद उतारे, जिनमें से चार जीते, वो भी मंत्री की रेस में सबसे आगे बताए जा रहे हैं। एक सांसद दीया कुमारी मंत्री बन चुकी हैं, तीन को भी इसी का इंतजार है। किरोड़ीलाल मीणा का मंत्री बनना तय है, जबकि राज्यवर्धन राठौड़ और बालकनाथ भी रेस में हैं।
अब सवाल जातिगत और क्षेत्रीये आधार पर टिका है। जाति के आधार पर बात की जाए तो भाजपा में सबसे अधिक 17 राजपूत विधायक हैं, जबकि दूसरे नंबर पर 15 जाट विधायक हैं। एससी—एसटी के मिलाकर 25 विधायक हैं। जाट समाज को कम से कम 4 मंत्री देने पड़ेंगे। जबकि एससी—एसटी को भी कम से कम 6 मंत्री बनाने होंगे। ब्राह्मण समाज से अभी सीएम बना है, लेकिन कम से कम दो मंत्री बनाने होंगे। इसी तरह से राजपूत समाज से एक डिप्टी सीएम बनाया जा चुका है, लेकिन अब भी 4 मंत्री बनाने हैं। ऐसे ही दूसरे समाज हैं, जो भी एक या दो—दो मंत्री चाहते हैं। ऐसे ही क्षेत्र को लेकर संतुलन बिठना होगा। यही वजह है कि भाजपा मंत्री बनाने में उलझ गई है। हालांकि, यह माना जा रहा है कि कभी भी केंद्र से मंत्रियों के नामों की सूची जारी हो सकती है। उसके बाद उनको राजभवन में राज्यपाल कलराज मिश्र द्वारा शपथ दिलाई जाएगी।
एक खबर यह भी है कि भाजपा आने वाले आम चुनाव में आधे सांसदों के टिकट बदलने की तैयारी कर रही है। भाजपा के पास अब 21 सांसद हैं। एक आरएलपी की सीट खाली है, तो तीन भाजपा के सांसद अब विधायक बन चुके हैं, जबकि तीन सांसद चुनाव हारे भी हैं। नागौर, जयपुर ग्रामीण, राजसमंद और अलवर की संसदीय सीट खाली हो चुकी हैं, लेकिन यहां पर उपचुनाव नहीं करवाया जाएगा। दरअसल, किसी भी सीट के रिक्त होने के बाद यदि अगले चुनाव में 6 महीने से अधिक समय शेष रहता है, तभी उपचुनाव की जरूरत होती है। लोकसभा चुनाव में अब केवल चार महीने का समय बचा है। देश में अप्रैल से चुनाव शुरू हो जाएंगे। इसलिए इन सीटों पर भी अब मुख्य चुनाव ही होगा।
भाजपा ने राजस्थान से तीन सांसदों को विधायक बना दिया है, इसलिए उनकी जगह नए उम्मीदवार आएंगे। जबकि कुल एक दर्जन, यानी आधी सीटों पर नए प्रत्याशी उतारने की योजना है। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह झालावाड़ से चार बार सांसद बन चुके हैं। सिरोही से देवजी पटेल लगातार तीन बार से सांसद हैं। बीकानेर से अर्जुनराम मेघवाल भी तीन बार से सांसद हैं। श्रीगंगानगर से निहालचंद मेघवाल भी लगातार दो बार से सांसद हैं, जबकि वो कुल 5 बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। अन्य कोई भी सांसद दो बार से अधिक का जीता हुआ नहीं है। ऐसे में भाजपा ने नॉन परफोर्मिंग सांसदों को घर बिठाने की योजना बनाई है। दुष्यंत सिंह के पास उनकी मां वसुंधरा राजे के नाम के अलावा कोई उपलब्धि नहीं है, इसलिए उनका टिकट कट सकता है। जयपुर शहर से रामचरण बोहरा का टिकट भी खटाई में है, जहां पर अरुण चतुर्वेदी, अशोक लाहोटी जैसे कई दावेदार हैं। टोंक से सुखबीर जौनापुरिया के टिकट पर भी संशय है। जबकि इसी तरह से मनोज राजोरिया, रंजीता कोली, भागीरथ चौधरी, सुमेधानंद सरस्वती, देवजी पटेल, पीपी चौधरी, सीपी जोशी, राहुल कस्वां समेत एक दर्जन सांसदों के टिकटों पर तलवार लटक रही है।
चूरू, अजमेर और जयपुर ग्रामीण में एक सीट सतीश पूनियां को मिलेगी, जबकि एक सीट राजेंद्र राठौड़ को मिलने की चर्चा है। इसी तरह से किसी एक सीट पर रामलाल शर्मा को भी टिकट मिल सकता है। सीकर सीट पर सुभाष महरिया को लडाने की संभावना है। जैसे सांसदों को विधायक बनाया गया है, ठीक वैसे ही कुछ विधायकों को भी सांसद का चुनाव लडाने की तैयारी चल रही है। वसुंधरा राजे को उनकी पुरानी सीट झालावाड से सांसद बनाकर केंद्र में ले जाने की तैयारी है। उनकी झालरापाटन सीट पर उनके बेटे दुष्यंत सिंह को विधायक का उपचुनाव लड़ाया जा सकता है। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की भी लोकसभा सीट बदली जा सकती है। उनके खिलाफ जोधपुर में अशोक गहलोत की लॉबी काफी माहौल बिगाड़ चुकी है। इसलिए गजेंद्र सिंह को राजसमंद या अजमेर जैसी सीट से उम्मीदवार बनाने की चर्चा चल रही है।
आपसी लड़ाई में सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस अपने बड़े नेताओं की सियासी पॉजिशन बदल रही है, जबकि सत्ता पाकर राज्य मंत्रीमंडल बनाने के साथ ही भाजपा ने आम चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। लोकसभा चुनाव में टिकट कटने, टिकट मिलने, जीतने और हारने की संभावनाओं के तमाम ऐसे ही वीडियो लेकर आता रहूंगा, आप देखते रहिए सियासी भारत।
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