निर्दलीयों के साथ वसुंधरा क्या खेल करने वाली हैं?



टीवी एग्जिट पोल के बाद अचानक से सियासी दलों के हलचल तेज हुई है। कांग्रेस की ओर से जहां अशोक गहलोत और गोविंद सिंह डोटासरा ने कमान संभाल ली है, तो भाजपा में चंद्रशेखर, अरूण सिंह और सीपी जोशी ने बाड़ेबंदी का काम शुरू कर दिया है। इस बीच वसुंधरा राजे ने भी अपना सियासी खेल शुरू कर दिया है। जीतने की तरफ आगे बढ़ रहे भाजपा से निकले निर्दलीयों को वसुंधरा राजे ने खुद संपर्क कर उनको अपने साथ लेने के लिए योजना भी बना ली है। इस बीच गहलोत और वसुंधरा ने राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात कर सियासत को गर्म कर दिया है। वसुंधरा समर्थकों का कहना है कि भाजपा आलाकमान ने ही मैडम को आगे कर दिया है, ताकि निर्दलीयों को साधकर उनके साथ मिलकर सरकार बनाई जा सके, दूसरी तरफ सचिन पायलट कांग्रेस के सीन से गायब हैं। भाजपा में राजेंद्र राठौड़ से लेकर सतीश पूनियां और किरोडीलाल मीणा से लेकर गजेंद्र सिंह शेखावत चुप बैठकर आलाकमान के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं का मानना है कि वसुंधरा राजे के पास यही एक विकल्प है कि भाजपा को बहुमत नहीं मिले और दो—चार सीटों की कमी रह जाए, ताकि वो अपना काम कर सकें। 

टीवी चैनल्स के अनुमानों में भाजपा—कांग्रेस को बहुमत से थोड़ा दूर दिखाया जा रहा है, जबकि अधिकांश एग्जिट पोल भाजपा को बहुमत के करीब दिखा रहे हैं। वसुंधरा राजे चाहती हैं कि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिले, गहलोत भी चाहते हैं कि कांग्रेस को 100 से ज्यादा सीटें नहीं मिलें। आप यदि गौर करेंगे तो गहलोत—वसुंधरा की राजनीतिक में 95 फीसदी समानता है। मोटे तौर पर फर्क केवल इतना ही है कि गहलोत तीन बार सीएम बन चुके हैं, लेकिन वसुंधरा दो बार ही बनी हैं। इस बार वसुंधरा तीसरी बार बनकर गहलोत के बराबर होना चाहती हैं। 

दोनों का राजनीतिक कॅरियर 80 के दशक में शुरू हुआ। छात्रसंघ चुनाव लड़ने के बाद गहलोत ने 1977 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इसके बाद 1980 में जीते और  बीच में एक बार विधानसभा का चुनाव हारने के अलावा अब तक जीत ही रहे हैं। वो 1998 तक सांसद रहे, केंद्र में मंत्री बने और कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। 25 साल पहले सीएम बनकर विधायक चुने गए, लेकिन पांच साल बाद सत्ता गवां बैठे। इसके बाद 2008 में तीसरी बार सीएम बने। पांच साल बाद फिर कांग्रेस को सत्ता से बाहर करवा बैठे। 2018 में फिर पायलट की मेहनत से सीएम बने, लेकिन इस बार कांग्रेस फिर सत्ता से दूर जा रही है। 

इसी तरह से अपनी मां के दम पर वसुंधरा राजे पहली बार 1984 में पहली बार भिंड से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। इसके बाद 1985 में धौलपुर से विधायक बनीं। 1989 में झालावाड़ से सांसद बनीं, जहां वो 2003 तक सांसद रहीं। इसके बाद 2003 में विधायक बनकर पहली बार सीएम बनीं। दो बार सीएम बनीं, एक बार और बनकर गहलोत से बराबर होना चाहती हैं। 

दोनों अब तक पांच बार सांसद और पांच बार विधायक बन चुके हैं। दोनों सातवीं बार विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं। गहलोत चौथी बार सीएम बनना चाहते हैं तो वसुंधरा तीसरी बार बनने का सपना देख रही हैं। रविवार को परिणाम के बाद तय होगा कि सीएम की कुर्सी पर कौन बैठेगा। हालांकि, भाजपा आलाकमान की गतिविधियां बता रही हैं कि बहुमत मिले या नहीं, लेकिन वसुंधरा राजे को सीएम नहीं बनाया जाएगा। किंतु वसुंधरा की सक्रियता ने साफ कर दिया है कि वो इतनी आसानी से मैदन छोड़ने वाली नहीं हैं। 

एग्जिट पोल के समीकरण ये हैं कि भाजपा में चंद्रभान आक्या, प्रियंका चौधरी, जीवाराम चौधरी, रविंद्र भाटी, आशा मीणा, युनूस खान, राजकरण चौधरी, ऋतु बनावत समेत करीब एक दर्जन निर्दलीय प्रत्याशी जीत की दहलीज पर ​बताए जा रहे हैं। वसुंधरा द्वारा जीतने की स्थिति में दिखाई दे रहे इन्हीं प्रत्याशियों से संपर्क किया गया है। परिणाम में यदि भाजपा 100 से कम रह जाती है, तो इन बागियों की भूमिका काफी अहम रहने वाली है। इसलिए वसुंधरा ने पहले ही अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया है। बागी प्रत्याशी जीवाराम चौधरी को वसुंधरा ने फोन कर जन्मदिन की बधाई दी है। इसी तरह से दूसरों से संपर्क बताया जा रहा है।

असल बात यह है कि परिणाम के बाद दोनों ही दलों में सीएम पद को लेकर काफी रस्साकसी चलने वाली है। इसलिए वसुंधरा ने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी है। गहलोत ने भी अपना जाल बिछा दिया है। पायलट को अब भी अपने आलाकमान से न्याय की उम्मीद है। जबकि गहलोत के आगे कांग्रेस आलाकमान बेबस है। दोनों ही दलों में अब दो बड़े नेताओं द्वारा अपने ही संगठन से लड़ता हुआ दिखाई देने वाला है। वसुंधरा के करीबी दो दर्जन को टिकट मिला है, जबकि गहलोत ने अपने अधिकांश को फिर से टिकट दिला दिया है। सचिन पायलट भी उनको टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं, जो पांच साल से उनके साथ थे। इस बार वसुंधरा राजे कमजोर जरूर रही हैं, लेकिन जब पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा, तो वसुंधरा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहने वाली है। 

देखने वाली बात यह होगी कि पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भी क्या भाजपा आलाकमान वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करेगा? साथ ही 25 साल से नए चेहरे का इंतजार कर रही जनता की उम्मीदें पूरी होंगी या नहीं? यदि भाजपा पूर्ण बहुमत से जीत जाती है तो पूरी संभावना है कि नया व्यक्ति सीएम होगा और यदि कांग्रेस रिपीट कर जाती है तो फिर यह तय है कि अशोक गहलोत चौथी बार सीएम बनने जा रहे हैं। रविवार का दिन राजस्थान की राजनीति में एक नया सवेरा लेकर आएगा, शाम होते होते तय हो जाएगा कि अगले पांच साल किस दल को राज करना है, साथ यह भी लगभग तय हो जाएगा कि कौन नेता मुख्यमंत्री बनेगा। जनता अगले पांच साल तक के लिए पूरी तरह से नेताओं के हस्ताक्षर में लॉक हो चुकी है।

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