सरकारी लपकों से मुक्ति कब मिलेगी?



Ram Gopal Jat

जब राजस्थान में नि:शुल्क दवा और जांच योजना नहीं थी, तब अक्सर सरकारी अस्पतालों में, खासकर एसएमएस अस्पताल में देखा जाता था कि मरीज और परिजन लपकों से परेशान रहते थे। डॉक्टर के चैम्बर से निकलते ही दवा व्यापारियों के लपके ग्राहकों को लपक लेते थे। यह सिलसिला जाने कब से चला आ रहा था, किंतु 2011 में नि:शुल्क दवा योजना के बाद अचानक से इसमें कमी आई। हालांकि, उसके दो साल में ही नया तंत्र विकसित हो गया। उस संक्रमण काल में लपका तंत्र ने अपना रुप बदला। अब नया तंत्र विकसित हो चुका है, जिसके सामने दवा योजना, जांच योजना से लेकर स्वास्थ्य बीमा योजना भी निष्प्रभा​वी हो चुकी है। 


खैर! ऐसा नहीं है कि लपकागिरी केवल अस्पतालों के बाहर दवा बेचने या जांच करने वालों तक सीमित है। सरकारी तंत्र में लपके हर जगह मौजूद है। जहां पर भी सरकारी माल लुट रहा है, वहां लपके मिल जाएंगे। पर्यटन स्थलों पर लपके मिलना आम बात है। लपकागिरी का सबसे बड़ा स्थान सरकारी परिसर होता है, जहां पर बड़े से बड़े अधिकारी और छोटा सा चपरासी भी लपका बनने का अवसर त​लाश रहा होता है। जैसे ही मौका मिलता है, वैसे ही टाई—बैल्ट लगाए सपाचट दाढी—मूंछ वाला अधिकारी भी लपका बन जाता है। पिछली सरकार में सीएम अशोक गहलोत कहते थे कि उनके कार्यालय में भ्रष्टाचार नहीं होगा, इसकी गारंटी वो नहीं ले सकते। 


पांच साल में गहलोत ने बार—बार कहा कि भ्रष्टाचार पर उनकी सरकार पूरे देश में सबसे अधिक कठोर है। सरकार जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही है। एसीबी ने दर्जनों अधिकारी रंगे हाथों दबोचे, लेकिन हुआ क्या? कुछ नहीं। भ्रष्टाचार के खिलाफ सबकुछ केवल दिखावा साबित हुआ। आईएएस—आईपीएस अधिकारियों को रिश्वत लेते या व्याभिचार करते पकड़ा गया, अखबारों की सुर्खियां बनीं, लेकिन एक भी भ्रष्ट अधिकारी को सजा नहीं हुई। एसीबी के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर, 2022 तक कार्मिक विभाग और विभागाध्यक्षों के पास कुल 538 अभियोजन स्वीकृति के मामले लंबित थे। इसमें से 196 तो आईएएस, आईपीएस, आरएएस, आरपीएस जैसे पदों पर बैठे उच्च अधिकारियों के खिलाफ लंबित थीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार भले ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दावा करती हो, किंतु वास्तविकता ऐसी नहीं है। अशोक गहलोत ऐसे दावे करते हुए पांच साल पूरे कर गए, किंतु एक भी उच्च अधिकारी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नहीं दी। इससे पता चलता है कि ये लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।


सोमवार को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कुछ विभागों के 11 कार्मिकों की पेंशन, प्रमोशन, वेतन वृद्धि रोकने और दण्डात्मक कार्यवाही करने का आदेश दिया है। इससे उम्मीद जगी है कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की बरसों से की जा रही प्रतीक्षा शीघ्र ही पूरी हो जाएगी। राज्य की नई भाजपा सरकार ने भी जीरो टॉलरेंस का दावा किया है। देखने वाली बात यह होगी कि क्या सरकार वास्तव में जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करेगी, या पिछली कांग्रेस सरकार की तरह केवल दावे ही करती रहेगी। जब कहीं पर भी सरकार बदलती है तो सबसे अधिक चिंतित आला अधिकारी होते हैं, जो काफी समय से एक जगह जमे हुए होते हैं और उन्होंने वहां पर संस्थागत भ्रष्टाचार विकसित कर लिया होता है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब सरकारों को पता होता है कि कितने अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच लंबित है, फिर भी उनको फील्ड पोस्टिंग देकर जनता को क्यों लुटाया जाता है? आखिर क्या वजह है कि रंगे हाथ पकड़े गए अधिकारी जेल से छूटते ही प्राइम पोस्टिंग पा लेते हैं?


दरअसल, ऐसे भ्रष्ट अधिकारयों का एक गिरोह होता है, जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से एक दूसरे का सहयोग करते हैं। ये गिरोह लपका गिरोह की तरह ही काम करता है, जो पूरी तरह से संं​गठित गिरोह होता है। वैसे तो राजस्थान में संगठित अपराध को रोकने के लिए एसओजी जैसी संस्था है, लेकिन एसओजी के अधिकारी भी इनमें से ही नियुक्ति होते हैं। राजस्थान का एक बड़ा अधिकारी बरसों तक व्याभिचार में लिप्त था, बाद में दिल्ली चला गया और अब बहुत बड़ा अधिकारी बनकर सरकार का अहम अंग बन गया है। पिछली सरकार के समय या उससे भी पिछली सरकार के समय रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़े गए अधिकारी आज फील्ड पोस्टिंग में हैं। उनको उस समय पकड़वाने में सहयोग करने वाले लोग आज बचकर रहते हैं। भ्रष्टचार करने वाले अधिकारी अधिक शक्तिशाली हो गए हैं, और उनको पकड़ने वाले कमजोर साबित हो रहे हैं। पिछले दिनों देखा गया कि जयपुर के जिस थाने में सीएम शर्मा ने आधी रात को दौरा किया, उस थानाधिकारी राजेंद्र सिंह शेखावत के विरुद्ध अवैध यातायात संचालन और बजरी वाहनों से बंधी लेने के मामले में एसीबी में जांच चल रही है, जबकि इस बात का कमिश्नरेट या सीएमओ में तैनात अधिकारियों को पता ही नहीं है।


भ्रष्टाचार का लपका गिरोह अब इतना भारी हो गया है कि उसके सामने सरकारें लाचार हो गई हैं। अशोक गहलोत सरकार की लाचारी दुनिया के सामने थी। खुद गहलोत ही कहते थे, कि वो भ्रष्टाचारियों को पकड़ सकते हैं, लेकिन उनको रोक नहीं सकते। हालांकि, गहलोत के खास मंत्री रहे शांति धारीवाल समेत उनकी सरकार के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, लेकिन जब तक इनके खिलाफ सख्त एक्शन नहीं होगा, तब तक आरोप लगाने से कुछ नहीं होने वाला है। जल जीवन मिशन में भाजपा 20 हजार करोड़ का भ्रष्टाचार होने का दावा करती है। इंदिरा रसोई में भ्रष्टाचार होने का खुद सीएम शर्मा ने आरोप लगाया है। पेपर लीक मामले में भी भाजपा नेताओं द्वारा खूब आरोप लगाए गए और आज तक भी लगाए जा रहे हैं, लेकिन किसी बड़ी मछली को नहीं पकड़ा गया है, यानी किसी आईएएस—आईपीएस या मंत्री तक जांच नहीं पहुंच पाई है, जबकि दावे यही थे कि इनको पकड़ा जाएगा। सरकार जिस तरह से सोच—समझकर काम कर रही है, उससे सकारात्मक भाव का अहसास तो हो रहा है, किंतु जब तक भ्रष्ट अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही नहीं होगी, तब तक सरकारी लपकागिरी बढ़ती जाएगी। 

वरिष्ठ पत्रकार

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