सचिन पायलट के करीबी दिग्गज जाट आरक्षण के कारण भाजपा के साथ!



भरतपुर को राजस्थान का प्रवेश द्वार कहा जाता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी इसी भरतपुर से आते हैं और यहीं से सचिन पायलट के करीबी कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे विश्वेंद्र सिंह भी यहीं से आते हैं। भरतपुर का किला हमेशा अभेद रहा है, इसलिए इसको लोहागढ़ का किला कहा जाता है। भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के सबसे बड़े सदस्य विश्वेंद्र सिंह आजकल कांग्रेस के बजाए भाजपा के अधिक करीब दिखाई दे रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है जाट आरक्षण का मुद्दा, जो करीब ढाई दशक का चल रहा है। सीएम भजनलाल शर्मा ने भरतपुर धौलपुर के जाट समाज को विश्वास दिलाया है कि वो आरक्षण के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। 

लोकसभा चुनाव विश्लेषण की कड़ी में आज हम राजस्थान के प्रवेश द्वार, यानी भरतपुर सीट के लोकसभा चुनाव इतिहास और वर्तमान हालात के बारे में विस्तार से बात करेंगे। लेकिन उससे पहले बात करेंगे सीएम भजनलाल शर्मा को इन दो जिलों के जाटों को आरक्षण दिलाने का वादा करने की जरूरत क्यों पड़ी?

राजस्थान में जाटों को केंद्र की नौकरियों में ओबीसी आरक्षण की शुरुआत तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1999 में की थी। तब भरतपुर-धौलपुर को छोड़कर बाकी जिलों के जाटों को केंद्र और राज्य दोनों जगह आरक्षण मिल गया था। इन दो जिलों के जाटों को उस समय यहां पर जाट राजाओं का शासन होने के आधार पर ओबीसी आरक्षण नहीं दिया गया। इन दोनों जिलों के जाटों को समपन्न मानकर केंद्र ने आरक्षण कोटे से अलग रख दिया था। इस पहल का बीजेपी को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में राजनीतिक फायदा भी मिला था। आरक्षण के बाद 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा पहली बार 120 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बना सकी, तो 2004 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 25 में से 21 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली।

साल 2000 में अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने भी भरतपुर-धौलपुर जिलों के जाटों को आरक्षण लागू कर दिया, लेकिन इसमें तकनीकी खामियां रह गईं, 10 अगस्त 2015 को कोर्ट ने वैधानिक प्रक्रिया नहीं अपनाए जाने का तर्क देकर कोर्ट ने भरतपुर-धौलपुर के जाटों का ओबीसी आरक्षण खत्म कर दिया। दोनों जिलों के जाटों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ापन साबित करने वाली रिपोर्ट नहीं थी, ओबीसी आयोग का भी कानून पेच था, जिसकी वजह से कोर्ट के द्वारा रोक लग गई थी।

मनमोहन सरकार ने लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले 4 मार्च 2014 को चुनावों से पहले आठ राज्यों के जाटों को केंद्र में आरक्षण देने का फैसला किया था। इसमें भरतपुर-धौलपुर के जाटों को भी शामिल किया गया था, लेकिन साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट की रोक के कारण धौलपुर-भरतपुर के जाटों को केंद्रीय सूची में आरक्षण आज भी अटका हुआ है। 2015 में कोर्ट की रोक के बाद 2016 में तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने फिर प्रक्रिया शुरू की। ओबीसी आयोग ने भरतपुर-धौलपुर के जाट परिवारों का सर्वे करवाया। सर्वे के आधार पर तैयार रिपोर्ट में दोनों जिलों के जाटों को सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा मानते हुए आरक्षण की सिफारिश की।

इसके बाद वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने 23 अगस्त 2017 को भरतपुर और धौलपुर के जाटों को राज्य में ओबीसी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की। राज्य की ओबीसी लिस्ट में 54वें नंबर पर भरतपुर-धौलपुर के जाटों को शामिल किया गया। गहलोत सरकार ने दिसंबर 2020 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से भरतपुर-धौलपुर के जाटों को केंद्र में आरक्षण देने की सिफारिशी चिट्ठी भेजी। राज्य ओबीसी आयोग की रिपोर्ट के साथ भेजी गई चिट्ठी में तर्क दिया गया कि राजस्थान में सभी जिलों के जाट ओबीसी में शामिल हैं। राज्य सरकार ओबीसी आरक्षण देने में भौगोलिक आधार पर कोई फर्क नहीं करती है, इसलिए इन्हें केंद्र में भी आरक्षण दिया जाए। हालांकि, भाजपा का आरोप है कि उस कांग्रेस सरकार द्वारा केवल चिट्ठी लिखकर इतिश्री कर ली, जबकि वर्तमान भाजपा की भजनलाल सरकार ने एक कमेटी का गठन कर केंद्र के समक्ष जाट आरक्षण की जोरदार पैरवी करने वादा किया है। भजनलाल ने भरतपुर की चुनावी सभा में वादा किया है कि उनकी सरकार जाटों को आरक्षण दिलाकर दम लेगी। इसी आधार पर विश्वेंद्र सिंह ने भजनलाल सरकार की प्रसंशा की है। 

अब बात भरतपुर के लोकसभा इतिहास की करें तो यह सीट सबसे अधिक 6—6 बार भाजपा—कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इसके अलावा 2 बार निर्दलीयों और एक—एक बार जनता पार्टी और जनता दल ने जीत हासिल की है। पिछले 10 साल से पूरे राजस्थान की तरह भरतपुर में भी भाजपा जीत रही है। भाजपा ने यहां पर लगातार तीसरी बार टिकट बदला है। भाजपा की 6 जीत में दो बार विश्वेंद्र सिंह भी जीते हैं।  हालांकि, बाद में वसुंधरा राजे से अनबन के कारण उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। अब एक बार फिर से विश्वेंद्र सिंह भाजपा की तरफ झुकते दिखाई दे रहे हैं। विश्वेंद्र सिंह भी जुलाई 2020 में सचिन पायलट की बगावत के समय हरियाणा के मानेसर में चले गए थे।

भरतपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर भाजपा का कब्जा है, जबकि एक पर आरएलडी, जो एनडीए का हिस्सा है बयाना सीट पर ऋतु बनावत निर्दलीय विधायक हैं, जिन्होंने भी भाजपा को समर्थन दे दिया है। क्षेत्र में कुल 21 लाख 14 हजार 916 मतदाता है। भरतपुर लोकसभा क्षेत्र जाट बाहुल्य है। भरतपुर लोकसभा क्षेत्र में 5 लाख जाट मतदाता बताए जाते हैं और जाटव मतदाता 4 लाख है। 3 लाख वोट मुस्लिम समाज के हैं। गुर्जर 2.50 लाख, ब्राह्मण 1 लाख, वैश्य 1 लाख, राजपूत 80 हजार, कोली 70 हजार, सैनी 1 लाख, सिंधी, पंजाबी, सिख लगभग 50 हजार के अलावा कुछ अन्य जातियों के मतदाता भी हैं। भाजपा की भजनलाल सरकार द्वारा जाटों को आरक्षण दिलाने, विश्वेंद्र सिंह द्वारा भाजपा में विश्वास दिलाने और अधिकांश सीटों पर भाजपा का कब्जा होने के कारण माहोल पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है, लेकिन अभेद किले लोहागढ़ का मतदाता किसे अपना आर्शीवाद देगा, यह देखने वाली बात होगी। 

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