राजस्थान की 25 सीटों का परिणाम ऐसा रहने वाला है. The result of 25 seats of Rajasthan is going to be like this



Ram Gopal Jat 

लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान 7 मई 11 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों की 93 सीटों पर होगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण गुजरात, छत्तीसगढ़ और आसाम भी है। राजस्थान की सभी 25 सीटों पर पहले दो चरण में मतदान का कार्य पूर्ण हो चुका है। पहले चरण में उत्तरी-पूर्वी राजस्थान की 12 सीटें और दूसरे चरण में पश्चिमी-दक्षिणी राजस्थान की 13 सीटों पर मतदान हुआ है। 

हालांकि, मतदान पिछले साल के मुकाबले 5.11 फीसदी कम हुआ है, जिसको लेकर सियासी दल अपने—अपने फायदे बता रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अंदरखाने सभी दल और प्रत्याशी आशंकित हैं। मोदी लहर के कारण पिछले दो चुनाव भाजपा ने सभी 25 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार भाजपा सोशल मीडिया कैंपेन में कांग्रेस से काफी पीछे रही है। इस आम चुनाव में कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दी है, जबकि भाजपा मोदी सरकार के विकास कार्यों, राम मंदिर, धारा 370, सीएए, तीन तलाक और भारत की विदेश में बढ़ती साख जैसे मुद्दों को आगे रखकर वोट मांगा है। 

4 जून को परिणाम चाहे जो रहे, लेकिन इस बार कांग्रेस चुनाव प्रचार में उतनी नीरश नहीं रही, जितनी बीते दो चुनाव में थी। सीकर, नागौर, बांसवाड़ा सीटों पर कांग्रेस ने गठबंधन कर आधी सीटों पर जीत हासिल करने का दावा किया है। भाजपा पूरी तरह से नरेंद्र मोदी के चेहरे और काम पर चुनाव प्रचार कर रही है, जबकि कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों के साथ प्रचार किया है। चुनाव के लिहाज से यदि राजस्थान के चार हिस्से करके चुनाव का विश्लेषण किया जाए तो साफ हो जाएगा कि परिणाम की तस्वीर क्या रहने वाली है। 

पूर्वी राजस्थान में ईआरसीपी हावी रही

पूर्वी राजस्थान की बात की जाए तो इसके 13 जिलों के लिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा की राज्य सरकार ने ईआरसीपी के लिए एमओयू करके जीत की बड़ी तैयारी की थी। अलवर, भरतपुर, धौलपुर—करौली, दौसा, टोंक—सवाईमाधोपुर, जयपुर, जयपुर ग्रामीण, अजमेर, सीकर जैसी सीटों पर भाजपा ने ईआरसीपी को लेकर प्रचार किया, लेकिन जिस दमखम के साथ इस परियोजना का एमओयू किया गया, भाजपा ने इतनी ताकत से इसका प्रचार कर फायदा नहीं उठा पाई। पूर्वी राजस्थान में भरतपुर—धौलपुर में अंत समय तक जाट आरक्षण का मुद्दा छाया रहा। राज्य सरकार ने जाट आरक्षण का वादा कर एक कमेटी भी बनाई और ओबीसी आयोग को पत्र लिखकर आरक्षण देने की पुरजोर शब्दों में वकालत भी की। जिसके कारण कुछ फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है। भरतपुर सीट पर पिछली बार भाजपा की रंजीता कोली ने कांग्रेस के अभिजीत सिंह जाटव को 319399 वोट से करारी मात दी थी। 

भरतपुर की पडोस वाली सीट करौली—धौलपुर सीट पर भाजपा प्रत्याशी इंदू देवी जाटव हैं, जबकि कांग्रेस ने पूर्व मंत्री भजनलाल जाटव को उतारा है। मुद्दे तो बहुत हैं, लेकिन यहां पर जातिगत आधार और उम्मीदवारों के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया है। भाजपा की प्रत्याशी कई वजह से कांग्रेस उम्मीदवार पर भारी पड़ रही हैं। यहां पर भाजपा के मनोज राजोरिया दो बार सांसद रहे हैं। उन्होंने पिछली बार कांग्रेस के संजय जाटव को करीब 98 हजार वोटों से हराया था। इसकी नजदीकी सीट दौसा में भाजपा द्वारा उम्मीदवार बदलकर कन्हैयालाल मीणा को चुनाव लड़ाया गया, लेकिन कांग्रेस ने विधायक मुरारीलाल मीणा को टिकट देकर गुर्जर—मीणा वोट का फायदा उठाने का भरपूर प्रयास किया है। सचिन पायलट ने यहां पर प्रचार भी खूब जमकर किया है। दौसा सीट पर 2019 में भाजपा की जसकौर मीणा ने कांग्रेस की सविता मीणा को करीब 78 हजार वोटों से हराया था। यह जीत भाजपा की सबसे छोटी जीती थी। ठीक इसी तरह से टोंक—सवाईमाधोपुर में भाजपा ने तीसरी बार सुखबीर जौनपुरिया को टिकट दिया, जिसको लेकर कुछ जगह पर भाजपा के ही लोगों में असंतोष दिखाई दिया। इसके चलते भाजपा के कई बड़े नेताओं ने कांग्रेस को लाभ पहुंचाने की कोशिश की है। कांग्रेस के हरीश मीणा को सचिन पायलट की वजह से गुर्जर वोट मिलने की भी पूरी संभावना है, जबकि मीणा वोट उनको मिल ही जाएंगे। पिछले चुनाव में सुखबीर जौनपुरिया ने कांग्रेस के नमोनारायण मीणा को करीब 1.11 लाख वोटों से हराया था। जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट की बात की जाए तो भाजपा राव राजेंद्र सिंह के सामने कांग्रेस के अनिल चौपड़ा उम्मीदवार रहे, जबकि सचिन पायलट के साथ ही जातिगत वातावरण भी बढ़त बनाने का काम किया है। यहां पर पायलट की वजह से गुर्जर वोट एकमुश्त अनिल चौपड़ा को मिले हैं। इस वजह से भाजपा का यह किला इस बार हिलता दिखाई दे रहा है। हालांकि, पूरा परिणाम शहरी मतदाताओं के ऊपर निर्भर करता है। पिछले चुनाव में भाजपा के राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कांग्रेस की कृष्णा पूनियां को करीब 3.90 लाख वोटों से हराया था।

सीकर में पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के कंधे पर सवार कॉमरेड अमराराम ने जीत का दावा तो किया है, लेकिन भाजपा के तीसरी बार प्रत्याशी सुमेधानंद स्वामी को लेकर भी लोगों में पॉजिटिव संदेश है। बड़े—बड़े दावे करने के कारण यह सीट डोटासरा के लिए मान सम्मान की सीट बन गई है, तो पिछली बार के चुनाव में मिले कांग्रेस—सीपीआईएम के वोट को जोड़ लेने के बाद भी जीत की संभावना भाजपा के लिए ही अधिक बन रही है। यहां पर भाजपा के वर्तमान सांसद ने कांग्रेस के सुभाष महरिया को करीब 3 लाख वोटों से हराया था। जयपुर शहर सीट पर भाजपा ने टिकट बदला तो कांग्रेस ने एक सप्ताह में ही सुनील शर्मा की जगह टिकट बदलकर प्रताप सिंह खाचरियावास को टिकट दिया। हालांकि, कांग्रेस के लिए यहां पर 'हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा' ही एकमात्र सहारा है। भाजपा ने इस बार मंजू शर्मा को उम्मीदवार बनाया, जबकि पिछले चुनाव में भाजपा के रामचरण बोहरा ने कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल को 4.30 लाख वोटों से हराया था।

अजमेर में भाजपा के भागीरथ चौधरी दूसरी बार उम्मीदवार थे, जिनका सामना कांग्रेस के रामचंद्र चौधरी से रहा है। भागीरथ भले ही किशनगढ़ से 2023 में विधानसभा चुनाव हारे हों, लेकिन इस आम चुनाव में रामचंद्र से 21 साबित हुए हैं। यहां पर कांग्रेस नेताओं ने भी प्रचार में उतरा प्रयास नहीं किया, जितना जयपुर ग्रामीण, दौसा, टोंक—सवाईमाधोपुर सीटों पर किया है। पिछले आम चुनाव में भागीरथ चौधरी ने कांग्रेस के रिजु झुनझुनवाला को 4.13 लाख वोटों से हराया था। अलवर सीट पर भाजपा ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने मण्डावर से विधायक ललित यादव को मौका दिया है। यहां पर भी सचिन पायलट ने ललित यादव को जिताने के लिए बहुत मेहनत की है। फिर भी इस सीट पर भी भाजपा का पलड़ा भारी है। पिछले लोकसभा चुनाव में अलवर में भाजपा के बाबा बालकनाथ ने कांग्रेस के भंवर जितेंद्र सिंह को 3.30 लाख वोटों से हराया था।

श्रीगंगानगर में दोनों ही दलों ने नये उम्मीदवारों को मौका दिया है। भाजपा ने अनूपगढ़ नगर परिषद की सभापति प्रियंका बालान को अवसर दिया, जबकि कांग्रेस ने जिला प्रमुख कुलदीप इंदौरा को उम्मीदवार बनाया। इस क्षेत्र में पंजाब से लगता होने के कारण किसानों का मुद्दा अहम रहा है। साथ ही सीमा पर होने के कारण देश की सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है। भाजपा को देशव्यापी मुद्दों के सहारे जीत का भरोसा है, तो कांग्रेस यहां किसान आंदोलन के सहारे अपने लिए अवसर देख रही है। श्रीगंगानगर में पिछली बार भाजपा के निहालचंद मेघवाल कांग्रेस के भरतराम मेघवाल को हराकर करीब 3 लाख वोटों से जीते थे। लगभग इसी तरह के मुद्दों के साथ बीकानेर में चुनाव हुआ है। यहां पर भाजपा लगातार चौथी बार अर्जुनराम मेघवाल को उतारा है, तो कांग्रेस ने पूर्व मंत्री गोविंद राम मेघवाल को मौका दिया है। इस सीट पर कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है, तो भाजपा के लिए लगातार मजबूत अवसर दिख रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में अर्जुनराम मेघवाल ने कांग्रेस के मदन गोपाल मेघवाल को करीब 3.65 लाख वोटों से हराया था।

नागौर वैसे तो पंचायती राज का जनक स्थल है, लेकिन पिछले 4 चुनाव से यहां पर 4 अलग—अलग प्रत्याशी सांसद बन चुके हैं, फिर भी जिस तरह से रुझान सामने आ रहे हैं, उससे लगता है कि लगातार नागौर में पांचवीं बार सांसद बदलने की तैयारी चल रही है। हनुमान बेनीवाल अभी खींवसर से विधायक हैं, और चार महीने पहले तक नागौर के सांसद थे। बेनीवाल ने पिछला चुनाव भाजपा के साथ मिलकर आरएलपी के टिकट पर लड़ा था, जबकि इस बार कांग्रेस से गठबंधन किया। हालांकि, भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर शामिल हुईं ज्योति मिर्धा को टिकट देकर उन्हें पांचवी बार मौका मिला है। ज्योति 2009 में यहीं से कांग्रेस की सांसद बनीं, उसके बाद 2014 और 2019 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव हार गई थीं। दिसंबर 2023 का विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ा, लेकिन फिर भी हार गईं। हनुमान बेनीवाल 2008 से लगातार विधायक रहे हैं, बीच में 2019 के उपचुनाव में उनके भाई ने लड़ा था। बेनीवाल 2014 में यहीं से सांसद का चुनाव हार भी चुके हैं। दोनों प्रत्याशियों के बीच कड़ी टक्कर है, लेकिन भाजपा मजबूत स्थिति में बताई जाती है। पिछले चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को 1.78 लाख वोटों से जीता था।

चूरू सीट भी इस बार सबसे हॉट सीट रही, जहां पर भाजपा ने पैरा ओलम्पिक विजेता देवेंद्र झाझडिया को टिकट दिया, जबकि भाजपा से टिकट कटने के कारण बागी हुए सांसद राहुल कस्वां को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। यहां पर जातिवाद हावी रहा है, जबकि राहुल कस्वां ने विक्टिम कार्ड खेलने का प्रयास किया है। उन्होंने राजेंद्र राठौड़ पर सामंतवाद करने का आरोप लगाया तो भाजपा ने देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ी को वोट देने की अपील की। राहुल कस्वां ने ही 2019 में भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के रफीक मंडेलिया को 3.34 लाख वोटों से हराया था। उन्होंने लगातार तीसरी बार सांसद का चुनाव लड़ा है, दो बार भाजपा के टिकट पर सांसद रहे हैं।

दूसरे चरण में बाड़मेर सबसे सीट चर्चित रही

राजस्थान की दूसरे चरण की 13 सीटों में बाड़मेर—जैसलमेर सीट सबसे हॉट सीट बनी। कारण यह है कि यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला रहा है। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को दूसरी बार उतारा है, तो कांग्रेस ने आरएलपी छोड़कर शामिल हुए उम्मेदाराम बेनीवाल को टिकट दिया। इधर, भाजपा से नाराज शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी ने भी चुनाव लड़ा है। कहने को तो भाटी के पास सबसे अधिक भीड़ रही है, लेकिन बाहरी युवाओं की काफी संशय पैदा करती है। कांग्रेस के पास आरएलपी के वोट का सहारा है। हालांकि, एक दिन पहले आरएलपी की जिला इकाई ने भाजपा को समर्थन देकर खेल को रोचक बना दिया था, लेकिन माना जा रहा है कि यहां पर कांग्रेस बहुत भारी पड़ रही है। अशोक गहलोत ने अपने खेमे के अमीन खान और मेवाराम जैन को कांग्रेस के बजाए रविंद्र भाटी के साथ जोड़कर कांग्रेस को परेशानी में डाला है। कैलाश चौधरी को दूसरी जीत के साथ केंद्र में मंत्री बनने का भरोसा है, जबकि भाजपा के नेता पूरे विश्वास से जीत का दावा नहीं कर पा रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कैलाश चौधरी ने कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह को 3.24 लाख वोटों से हराया था।

इसी से लगती जोधपुर सीट पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत तीसरी बार चुनाव लड़े हैं। उनके सामने कांग्रेस के पायलट कैंप से आने वाले करणी सिंह मैदान में थे, जो शुरू में बहुत आक्रामक थे। अंतिम दिनों में गजेंद्र सिंह ने फिर से अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। पिछली बार शेखावत को हनुमान बेनीवाल बहुत मदद की थी, जिसके कारण उन्होंने कांग्रेस के वैभव गहलोत को 2.74 लाख से अधिक वोटों से करारी शिकस्त दी थी। इस बार जीत का अंतर कम होने की पूरी संभावना है।

अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत इस बार जालोर—सिरोही सीट से चुनाव लड़े हैं, जिनका मुकाबला भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता लुंबाराम चौधरी से रहा है। गहलोत परिवार पूरी जान लगाकर चुनाव लड़ा है, लेकिन लुंबाराम की सादगी ने कांग्रेस की पूरी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। तय बात है कि गहलोत का वैभव दूसरी बार लुटने वाला है।पिछले चुनाव में भाजपा के देवजी पटेल ने कांग्रेस के रतन देवासी को 2.61 लाख वोटों से हराया था। भाजपा के देवजी पटेल यहां पर 2009 से लगातार सांसद रहे हैं। इसी तरह से पाली सीट पर कांग्रेस ने संगीता बेनीवाल को उतारा था, लेकिन भाजपा के तीसरी बार चुनाव लड़ रहे पीपी चौधरी काफी मजबूत दिखाई दे रहे थे। पीपी चौधरी अपने पहले कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे थे। 2019 में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी बद्रीराम जाखड़ को 4.81 लाख वोटों से हराया। इस बार फिर से पाली सीट भी भाजपा के पक्ष में रहने की पूरी संभावना है। 

कोटा लोकसभा सीट पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तीसरी बार उतरे हैं। उनके सामने कांग्रेस ने भाजपा छोड़कर आए प्रहलाद गुंजल को चुनाव लड़ाया है, जिनको सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस के ही कार्यकर्ताओं ने पहुंचाया है। गहलोत के सबसे खास शांति धारीवाल कतई नहीं चाहते हैं कि प्रहलाद गुंजल चुनाव जीतें। इसलिए यह माना जा रहा है कि धारीवाल ने अंदरखाने ओम बिरला को बहुत सपोर्ट किया है। यही कारण है कि सचिन पायलट और अशोक चांदना के तमाम प्रयासों के बाद भी प्रहलाद गुंजल काफी कमजोर साबित हुए हैं। ओम बिरला ने 2019 में कांग्रेस के रामनारायण मीणा को करीब 98 हजार वोटों से हराया था। 

झालावाड़ सीट भाजपा का गढ़ है। यहां पर कई दशकों से भाजपा को कब्जा है। 20 साल से वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं, जबकि उससे पहले लगातार 5 बार वसुंधरा राजे सांसद थीं। सामने उर्मिला जैन थीं, जिनके पास अपनी छवि के अलावा दूसरा चारा नहीं है। वसुंधरा ने यहां पर सबसे बड़ी जीत के साथ 5 लाख पार का नारा दिया है। भाजपा के लिए इस चुनाव में भी सबसे सुरक्षित सीट रहने वाली है। पिछले चुनाव में दुष्यंत सिंह ने कांग्रेस के प्रमोद शर्मा को 4.54 लाख वोटों से हराया था। 

राजसमंद में भाजपा ने इस बार महिमा सिंह को चुनाव लड़ाया है, जो नाथद्वारा से भाजपा विधायक विश्वराज सिंह की पत्नी हैं। पिछली बार यहां पर दीया कुमारी सांसद थींं। सीट भाजपा के पक्ष में है, जबकि सुदर्शन रावत के टिकट वापस देने के बाद कांग्रेस ने दामोदर गुर्जर को टिकट दिया था, जिनको पहले भीलवाड़ा से प्रत्याशी बनाया गया था। राजसमंद में पिछली बार दीया कुमारी ने कांग्रेस के देवकीनंदन गुर्जर को करीब 5.52 लाख वोटों से हराया था। भीलवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने सीपी जोशी को चुनाव लड़ाया है, जिनका मुकाबला भाजपा के दामोदर अग्रवाल से है। भीलवाड़ा सीट पर भाजपा के सुभाष बहेडिया ने कांग्रेस के रामपाल शर्मा को 6.12 लाख वोटों से हराया था, जो राजस्थान में सबसे बड़ी जीत थी। दोनों ही सीटों पर इस बार भी भाजपा बड़ी जीत की तरफ बढ़ रही है। इनसे जुड़ती चित्तौड़गढ़ सीट पर भाजपा के सीपी जोशी का मुकाबला कांग्रेस के उदयलाल आंजना से है। सीपी जोशी के लिए निर्दलीय विधायक चंद्रभान आक्या की चुनौती है, जिनको विधानसभा में भाजपा ने टिकट नहीं दिया था। चंद्रभान और सीपी जोशी के बीच कई बरसों से मुकाबला रहा है। जोशी ने 2019 में कांग्रेस के गोपाल सिंह शेखावत को 5.76 लाख वोटों से हराया था।

बासंवाड़ा—डूंगरपुर सीट तमाम समीकरण होने के बाद भी भाजपा के काफी पक्ष में है, लेकिन कांग्रेस ने यहां बहुत मेहनत की है। बांसवाड़ा सीट पर भाजपा ने पूर्व कांग्रेसी महेंद्रजीत सिंह मालवीया को चुनाव लड़ाया है। कांग्रेस ने आखिरी दिन अपने प्रत्याशी अरविंद डामोर को नाम वापस लेने के लिए कहकर भारत आदिवासी पार्टी को समर्थन दिया था। कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद डामोर ने नाम वापस नहीं लिया, जिसके कारण भाजपा मजबूत लग रही है। 'बाप' ने कांग्रेस के साथ आखिरी समय तक बात नहीं बनने के बाद राजकुमार रोत को टिकट दिया था, जो चौरासी से दूसरी बार विधायक हैं। आखिरी दिन कांग्रेस ने बाप को समर्थन दे दिया, लेकिन कांग्रेस और बाप मिलकर भी भाजपा के सामने कमजोर साबित रही हैं। बांसवाड़ा सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के कनकमल कटारा ने कांग्रेस के ताराचंद भगोरा को 3.05 लाख वोटों से हराया था।

उदयपुर सीट पर भाजपा ने पूर्व आरटीओ अधिकारी मन्नालाल रावत को चुनाव लड़ाया, जो काफी समय से संघ के घटक वनवासी परिषद में काम कर रहे थे। उनके सामने कांग्रेस ने ताराचंद मीणा को उतारा है। ताराचंद मीणा उदयपुर के जिला कलेक्टर भी रहे हैं। उदयपुर भाजपा का गढ़ माना जाता है, इसलिए कांग्रेस के प्रत्याशी को कमजोर माना जा रहा है। पिछले चुनाव में यहां पर भाजपा के अर्जुन लाल मीणा ने कांग्रेस के रघुवीर सिंह मीणा को 4.37 लाख वोटों से हराया था।

इस तरह से देखा जाए तो भाजपा करीब 22 सीटों पर मजबूत है, जबकि कांग्रेस 3 सीटों पर जीत की पूरी उम्मीद है। कांग्रेस को मानना है कि 8 सीटों पर जीत जाएंगे, जबकि भाजपा ने 25 की हैट्रिक का दावा किया है। भाजपा पूरी तरह से मोदी के चेहरे पर रही है, जबकि पार्टी अध्यक्ष सीपी जोशी अपनी सीट तक सिमटे रहे। सीएम भजनलाल शर्मा भले ही दर्जनों सभाएं कर जमकर प्रचार किया हो, लेकिन प्रदेश में उनकी पहचान आज भी बिलकुल नहीं के बराबर है। भाजपा ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को प्रचार में नहीं उतारकर अपना बड़ा नुकसान किया है। ठीक इसी तरह से पूर्व अध्यक्ष सतीश पूनियां को भी हरियाणा से आखिरी समय में बुलाकर भाजपा ने बड़ी गलती की है, जिसका परिणाम पार्टी को कुछ सीटें खोकर उठाना पड़ सकता है। भाजपा ने यदि शुरुआत से ही मोदी के चेहरे साथ वसुंधरा राजे और सतीश पूनियां को आगे करके चुनाव लड़ा होता तो परिणाम कुछ और हो सकता था। यदि सभी सीटों पर जीत हासिल नहीं की तो यह माना जाएगा कि पार्टी मोदी के चेहरे पर अति उत्साह में रहकर अपने दो बड़े चेहरों से परहेज के कारण नुकसान में रही है।

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