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जेडीए, यानी जयपुर 'विनाश' प्राधिकरण!



जयपुर विकास प्राधिकरण की स्थापना इस सोच के साथ की गई होगी कि यह निकाय जयपुर की नवीन बसावट को बेतरतीब होने से बचाएगी। विश्व धरोहर में शामिल हो चुके पुराने जयपुर की तरह सम्पूर्ण सुविधाओं और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप नया जयपुर विकसित करने का काम करेगी। सोचा गया होगा कि यह निकाय नगरीय विकास में भागीदार बनेगी, किंतु यही निकाय अब नगरीय विनाश की सबसे बड़ी भागीदार बन चुकी है। 

जेडीए का नाम जुबां पर आते ही शहर के बच्चे—बच्चे के मुंह से जो शब्द निकलते हैं, उनको यदि जेडीए को स्थापित करने वाले स्वर्गवासी सुन लें तो दूसरी बार प्राण त्याग देंगे। किसी संस्था को कैसे बर्बाद किया जाता है, किसी संस्था को कैसे नगर को लूटने का अड्डा बनाया जाता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखना हो तो जेडीए की यात्रा कीजिए। नाम से लगता है यह संस्था जयपुर का विकास कर रही होगी, लेकिन हकीकत में जेडीए आज जयपुर का सर्वाधिक विनाश करने वाली संस्था बन गया है।

इसके पास न विजन है, न विकास का मॉडल है, न नागरिकों के हितों का ब्लूप्रिंट है, न भविष्य की योजना है और न ही जयपुर को इसकी ऐतिहासिक सुंदरता के साथ बसाने की स्कीम है। जो काम जेडीए को करने थे, उनसे कोसों दूर यह संस्था आज भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा गढ़ बन चुकी है। यदि कोई जयपुर में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा स्पॉट पूछे तो जेडीए पहले नंबर पर आएगा। 

जयपुर कितना बड़ा है, कितना बड़ा होना चाहिए, कहां पर क्या बनना चाहिए, शहर कहां तक बसना चाहिए, कितने दिनों में निर्माण होना चाहिए, सड़क की चौड़ाई कितनी होनी चाहिए, भवन कैसे बनाना चाहिए, रंग कैसा होना चाहिए, किस तरह से शहर बसना चाहिए कि आने वाली 5—10 पीढ़ियों तक सोचने की आवश्यकता ही नहीं पड़े, नगर के लोगों को सुविधाएं कैसे मिले, भविष्य को देखते हुए क्या बदलाव किये जाने चाहिए, इन तमाम योजनाओं से जेडीए का लेना देना ही नहीं है। कहने को तो जेडीए का क्षेत्र टोंक, अजमेर, दौसा, सीकर की सीमाओं तक पहुंच गया है, लेकिन जो शहर बस चुका है, उसमें ही जेडीए का कोई विजन नहीं है, बाकी क्षेत्र का तो सोचना भी पाप है। 

जयपुर में गिनती की चार बड़ी कॉलोनियां हैं, लेकिन उनमें से एक भी कॉलोनी में जेडीए आज दिन तक सक्सेज नहीं है। किसी भी कॉलोनी में सड़क बनाने, पट्टे जारी करने, भवन निर्माण की मूलभूत सुविधा नहीं मिल पाई हैं। जेडीए आज दावे के साथ यह नहीं कह सकता है कि फलां कॉलोनी को सम्पूर्ण विकसित कर विश्व स्तरीय नगर बना दिया गया है। आप जयपुर की किसी भी कॉलोनी में चले जाइए, निवासी यही कहेंगे कि आज दिन तक जेडीए ने सुविधाएं नहीं दी हैं। 

अनुमोदित कर पट्टा जारी करते समय नागरिकों से तमाम तरह के शुल्क के रूप में मोटा धन वसूल लिया जाता है, लेकिन 20—25 साल बाद भी कॉलोनियों में पक्की सड़क नहीं हैं। बरसात के दिनों में बड़ी मुश्किल से लोग अपने घर से निकल पाते हैं। किसी भी कॉलोनी में ऐसी सड़क नहीं है कि बरसात होते ही पानी नालियों से होता हुआ नदी में चला जाए और कॉलोनी की सड़क का पानी आधे या एक घंटे में खाली हो जाए। 

आप नए बस रहे पृथ्वीराज नगर में चले जाइए, यहां पर आवासीय भूखंडों को अनुमोदित कर पट्टा जारी करने के बदले 2000 से 3000 रुपये वर्गमीटर तक वसूले हैं, कमर्शियल पट्टों के 4500 से 5500 रुपये प्रति वर्ग मीटर तक वसूले हैं, लेकिन इस कॉलोनी का एक भी बाशिंदा यह नहीं कहता है कि जेडीए ने सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं दे दी हैं। सुविधाओं के लिए पीएनआर के लोग आए दिन प्रदर्शन करते हैं। 

कैंप लगाकर धन वसूली कर ली गई, लेकिन सुविधा के नाम पर जेडीए उधर झांकता तक नहीं। जेडीए अधिकारियों ने वसूली के कई तरीके इजाद कर रखे हैं, लेकिन विकास का एक भी मार्ग पता नहीं है। मानसरोवर, वैशाली नगर, प्रताप नगर जैसे क्षेत्र बरसों बाद आज भी मूलभूत सुविधाओं का इंतजार कर रहे हैं। वैध और अवैध रूप से प्रतिदिन जेडीए में नोटों की बोरियां खुलती हैं, लेकिन सुविधा और प्लानिंग के नाम पर जीरो है। 

पिछले दिनों मानसरोवर क्षेत्र में दो सड़कों पर बड़े पैमाने पर निर्माण तोड़े गए। बहाना तो कोर्ट के आदेश का लिया गया, लेकिन वास्तव में देखा जाए तो इसके पीछे 'बड़े' लोगों के हित जुड़े हुए हैं। 'बड़े लोगों' ने पीएनआर और आसपास की कॉलोनियों में हजारों वर्गमीटर से लेकर कई बीघा जमीन तक का जुगाड़ कर लिया है, और जेडीए की विवादित जमीनों को अपने गुर्गों के द्वारा खुर्दबुर्द करने का खेल किया जा रहा है, कोई पूछने वाला नहीं है। बड़े लोगों को सत्ता ने तमाम अधिकार दे दिए हैं। 

जनता इन चीजों को जानती है, लेकिन इसके हाथ में कुछ नहीं है। लोकतंत्र के नाम से जो तानाशाही सरकारी अधिकारी करते हैं, वो अकल्पीनय है। सरकार की नाकामी के कारण अधिकारी बेलगाम हैं, बेतहाशा मनमर्जी की जाती है। किसी दोषी अधिकारी को सजा नहीं होती। कोई भ्रष्टाचार करते रंगे हाथों पकड़ा भी जाता है तो भी सरकार उसके खिलाफ आभियोजन स्वीकृति तक नहीं देती, सजा मिलना तो बहुत दूर की कौड़ी है। आखिर क्यों सरकार भ्रष्ट अधिकारियों को बचाती है? इसका जवाब आज तक किसी ने नहीं दिया। 

अधिकारी अवैध बताकर किसी भी निर्माण को तोड़ देते हैं, किसी निर्माण को सील कर देते हैं या जुर्माना लगा देते हैं, लेकिन इन्हीं सबसे मुक्ति पाने के लिए जब इन अधिकारियों की जेब भर दी जाती है तो बिना किसी रुकावट के सब ठीक कर दिया जाता है। वो सबकुछ वैध घोषित हो जाता है, जो खाली जेब तक अवैध था। 

प्राइवेट कॉलोनाइजर बेतहाशा और बेतरतीब कॉलोनियां काट रहे हैं, लोगों से मनमर्जी के भाव का पैसा लिया जा रहा है, लेकिन सरकार या जेडीए को इससे एक प्रतिशत भी मतलब नहीं है। कहां कॉलोनी काटी जा रही है, कौन काट रहा है, कितनी सड़क छोड़ी जा रही है, क्या सुविधा दी जा रही है, कितने बड़े भूखंडों के पट्टे दिए जा रहे हैं, इन चीजों से जेडीए को कोई सरोकार नहीं है। 

जेडीए मास्टर प्लान बनाता है, सेक्टर प्लान बनाता है, लेकिन इनका किसी को पता नहीं। प्राइवेट कॉलोनाइजर सेक्टर प्लान की सड़कों में धड़ल्ले से प्लाट बेच जाते हैं, लेकिन जेडीए को इससे कोई लेना देना नहीं है। मास्टर प्लान की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती हैं, लेकिन जेडीए को इससे कोई मतलब नहीं है। 

एक गरीब जीवनभर मजदूरी करके जयपुर में प्लॉट क्रय करता है, पेट काटकर मकान बनाता है और एक दिन पता चलता है कि उसका भूखंड तो सेक्टर प्लान या मास्टर प्लान के अंदर है। फिर उसकी जीवनभर की गाढ़ी कमाई पर एक दिन जेडीए का पीला पंजा चल जाता है। न कोई उसके आंसू पोंछने वाला है, न उसका दर्द बांटने वाला है, न जेडीए या सरकार उसको मुआवजा देती है।

आज सब कुछ इंटरनेट पर मौजूद है। जेडीए की वेबसाइट भी है, जिस पर बहुत कुछ डाला जाता है, लेकिन इसपर मास्टर प्लान या सेक्टर प्लान का नक्शा नहीं होता। क्या जानबूझकर लोगों को बर्बाद होने के लिए ऐसा किया जाता है या फिर अनदेखा कर अवैध निर्माण होने दिया जाता है? होना यह चाहिए कि जेडीए अपनी वेबसाइट पर मास्टर प्लान और सेक्टर प्लान का नक्शा अपलोड करे, उसको समय पर अपडेट करे और जागरूकता के लिए अभियान चलाए। 

संबंधित अधिकारी अपने क्षेत्र में मासिक या त्रैमासिक विजिट करें, देखें कि कहीं पर अवैध कॉलोनी तो नहीं काटी जा रही है या अवैध निर्माण तो नहीं किया जा रहा है। जहां तक जेडीए मास्टर प्लान और सेक्टर प्लान बना चुका है, वहां पर तुरंत सड़के बने और यदि सड़क नहीं बनाई जा सकती है तो कम से कम पक्का डिमार्केशन किया जाना चाहिए, ताकी प्राइवेट कॉलोनाइजर लोगों को मास्टर प्लान, सेक्टर प्लान में भूखंड़ बेचकर बर्बाद नहीं करे। 

जहां पर प्लानिंग नहीं हुई है, वहां पर भूखंड़ काटने या कॉलोनी डवलेप करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। जेडीए की सार्थकता तभी है, जब यह स्वहित छोड़कर जनहित में काम करे, अन्यथा सरकार को चाहिए कि इस संस्था को अविलंब बंद करे। जेडीए के होते भी यदि जयपुर में अवैध बसावट हो ही रही है तो फिर इसकी जरूरत ही क्या है? जेडीए द्वारा मोटा शुल्क लेने के बाद भी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं तो फिर इसका अर्थ ही क्या रहा जाता है?

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