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विधानसभा में फिर से 199 विधायक रह जाएंगे, कंवरलाल मीणा की विधायकी जानी तय

राजस्थान विधानसभा में एक बार फिर से 199 विधायक रह जाएंगे। बीते दो दशक में पिछले सत्र के दौरान पहला अवसर था, जब राज्य विधानसभा के सभी 200 सदस्य मौजूद थे। लेकिन यह सिलसिला अधिक नहीं चला, अब फिर से एक सदस्य कम हो जाएगा। बारां जिले के अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की विधायकी पर अब तलवार लटक गई है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज कर दी और उन्हें दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है।

दो सप्ताह में सरेंडर करने का आदेश

कंवरलाल मीणा को पूर्व में ही एसडीएम पर पिस्टल तानने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में तीन साल की सजा सुनाई जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद अब उनकी विधानसभा सदस्यता पर खतरा और बढ़ गया है।

तीन साल की सजा पहले ही हो चुकी है तय

यह मामला करीब 20 साल पुराना है। ट्रायल कोर्ट ने कंवरलाल को दोषमुक्त करार दिया था, लेकिन अपीलीय अदालत (एडीजे, अकलेरा, झालावाड़) ने उन्हें दोषी ठहराकर तीन साल की सजा सुनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।

सभी कानूनी दलीलें सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने सुनवाई के दौरान विधायक के वकील नमित सक्सेना की उन दलीलों को अस्वीकार कर दिया, जिनमें कहा गया था कि रिवॉल्वर की कोई बरामदगी नहीं हुई और वीडियो कैसेट भी पुलिस के पास नहीं है। कोर्ट ने इन दलीलों को अपर्याप्त मानते हुए याचिका खारिज कर दी।

हाईकोर्ट ने भी अपील ठुकराई, सजा को बताया उचित

एक मई को हाईकोर्ट ने विधायक की अपील को ठुकरा दिया था और अपीलीय अदालत के फैसले को सही ठहराया था। इसके बाद कंवरलाल मीणा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत सदस्यता संकट में

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत यदि किसी जनप्रतिनिधि को दो साल से अधिक की सजा हो जाती है तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। इसी प्रावधान के तहत कंवरलाल मीणा की सदस्यता पर संकट खड़ा हो गया है।

कांग्रेस ने की सदस्यता समाप्त करने की मांग

हाईकोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस ने विधानसभा सचिवालय से कंवरलाल मीणा की सदस्यता समाप्त करने की मांग की थी। सचिवालय ने भी विधायक को नोटिस जारी कर सुप्रीम कोर्ट के स्टे आदेश की जानकारी 7 मई तक मांगी थी। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है, सदस्यता समाप्त होना लगभग तय है।

एसडीएम पर पिस्टल तानने और रिकॉर्डिंग उपकरण जलाने का आरोप

3 फरवरी 2005 को झालावाड़ के दांगीपुरा-राजगढ़ मोड़ पर उपसरपंच चुनाव को लेकर ग्रामीणों ने रास्ता जाम किया था। इस दौरान मौके पर पहुंचे तत्कालीन एसडीएम रामनिवास मेहता, आईएएस प्रोबेशनर डॉक्टर प्रीतम और तहसीलदार रामकुमार लोगों को समझा रहे थे। तभी कंवरलाल मीणा अपने साथियों के साथ वहां पहुंचे और एसडीएम की कनपटी पर पिस्टल तानते हुए जान से मारने की धमकी दी। इसके बाद उन्होंने सरकारी फोटोग्राफर के कैमरे की कैसेट निकालकर तोड़ दी और जला दिया। डॉक्टर प्रीतम का डिजिटल कैमरा भी छीना, जिसे 20 मिनट बाद लौटाया गया।

राजनीतिक आचरण पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एक राजनीतिक व्यक्ति से कानून-व्यवस्था बनाए रखने की अपेक्षा होती है, लेकिन याचिकाकर्ता ने कानून को चुनौती दी और सरकारी अधिकारियों को धमकाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि कंवरलाल के खिलाफ पहले भी 15 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं, भले ही उनमें दोषमुक्त हुए हों, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 

राजनीतिक नुकसान की ओर बढ़ता भाजपा का एक और कदम

इस घटनाक्रम से भाजपा के लिए राजनीतिक संकट खड़ा हो सकता है, क्योंकि एक ओर भ्रष्टाचार और अपराध को लेकर पार्टी नैतिकता की बात करती है, वहीं दूसरी ओर उसके विधायक को कोर्ट से तीन साल की सजा मिलना विपक्ष को हमले का मौका देगा। अब देखना यह है कि भाजपा नेतृत्व इस मामले में क्या रुख अपनाता है और विधानसभा सचिवालय कब तक विधायकी समाप्ति की औपचारिक घोषणा करता है।

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