पशुपालकों के 300 करोड़ रुपये दबाकर बैठी है भजनलाल सरकार

राजस्थान की भ्रष्ट हो चुकी राजनीति में एक और विडंबना उजागर हो रही है। ‘गांव, गरीब और गाय’ की सरकार बताने वाली पंडित भजनलाल शर्मा सरकार खुद उन्हीं पशुपालकों के हक का पैसा दबाकर बैठी है, जिनके नाम पर वो अपनी सियासत चमकाती है। 'मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना' के तहत राज्य दिए जाने वाले बोनस के पैसे का करीब 9-10 महीनों से भुगतान नहीं किया जा रहा है। इसके कारण राज्य के करीब साढ़े 9 लाख पशुपालकों के 300 करोड़ रुपये अटके हुए हैं। यह वही योजना है जिसे 2021 में अशोक गहलोत सरकार ने शुरू किया था और भाजपा ने सत्ता में आने के बाद विस्तार देने का वादा किया था, लेकिन हकीकत यह है कि यह योजना अब सिर्फ फाइलों और पंडित भजनलाल शर्मा के भाषणों में जिंदा है।

सरस डेयरी के तहत संचालित 24 जिला डेयरी संघों के माध्यम से प्रदेशभर में रोज़ करीब 30 लाख लीटर दूध एकत्र किया जाता है। मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना के मुताबिक, राज्य सरकार को प्रति लीटर 5 रुपये बोनस पशुपालकों को देना होता है। जयपुर डेयरी संघ अपने स्तर पर 2 रुपये का अतिरिक्त बोनस देती है, यानी कुल 7 रुपये प्रति लीटर बोनस के रुप में दिया जाता है। बाकी सभी 23 डेयरी संघ सरकार से मिलने वाले 5 रुपये बोनस पर निर्भर हैं, लेकिन पिछले एक साल से सरकार का पैसा नहीं आने के कारण डेयरियों पर भुगतान का संकट मंडराता रहा है, जिसका सीधा असर दुग्ध उत्पादक पशुपालकों पर पड़ रहा है। मिलावट की शिकायतों के बाद जयपुर डेयरी ने कुछ महीने पहले मिलावट के खिलाफ अभियान चलाया था। नतीजा यह हुआ कि प्रतिदिन करीब 1.5 लाख लीटर दूध की आपूर्ति घट गई, लेकिन जब इस अभियान से दूध की कमी होने लगी तो डेयरी प्रबंधन ने खुद ही मिशन रोक दिया। ये तस्वीर बताती है कि सरकार और डेयरी संस्थान दोनों ही ‘पवित्र दूध’ की राजनीति से जूझ रहे हैं, जहां पशुपालकों के लिए दुग्ध उत्पादन घाटे का सौदा साबित हो रही है। डेयरी संघ में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि जोधपुर डेयरी संघ के एमडी पर 10 टन घी और 375 कट्टे दूध पाउडर गायब करने का आरोप डेयरी संघ के चेयरमैन रामलाल विश्नोई ने लगाया, लेकिन उसकी जांच नहीं की जा रही है। चेयरमैन का कहना है कि कोर्ट के स्टे का फायदा उठाते हुए जोधपुर डेयरी एमडी एलसी बलाई पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। 

दिलचस्प बात ये है कि राजस्थान की सीमाओं से सटा हरियाणा और यूपी अब यहां के बाजार में दूध ‘निर्यात’ कर रहे हैं। जैसे हरियाणा और यूपी की सीमाओं पर संचालित पेट्रोल पंप राजस्थान में सस्ता डीजल—पेट्रोल बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं, वैसे ही अब यूपी से करीब 10 रुपये लीटर के हिसाब से दूध राजस्थान में आ रहा है, जो ठंडा होता है और मिलावट की संभावना अधिक रहती है, लेकिन राज्य की सरकार इस पर आंखें मूंदे बैठी है। दीपावली नजदीक है और इस समय दूध और उससे बने उत्पादों की मांग चरम पर होती है। मिठाई उद्योग पहले से ही कम दूध और घटती गुणवत्ता से परेशान है। ऐसे में सरकारी बोनस के बकाए ने आग में घी का काम किया है। पशुपालकों का कहना है कि सरकार के बकाए के कारण उनका पूरा परिवार त्योहार से पहले आर्थिक तंगी में फंस गया है। इसके चलते कई जगह तो पशुपालक अब सरस डेयरी छोड़कर प्राइवेट डेयरियों की ओर जा रहे हैं। राज्य में फिलहाल कई निजी डेयरियां सक्रिय हैं। वे बोनस नहीं देती हैं, लेकिन इनसे दुग्ध उत्पादकों को समय पर भुगतान और फेट का पूरा पैसा मिलता है। इसलिए हजारों पशुपालक अब सरस डेयरी से मुंह मोड़ने को मजबूर हैं। इससे दुग्ध उत्पादन का पूरा ‘सहकारी ढांचा’ कमजोर हो रहा है। राज्यभर में संचालित डेयरी संघों के चेयरमैन बोनस भुगतान के लिए लगातार सरकार को याद दिला रहे हैं, लेकिन न तो मंत्री सुन रहे हैं, न ही मुख्यमंत्री सुनने को तैयार हैं। दूध संघों ने कई बार पशुपालन मंत्री को पत्र लिखे हैं, पर कोई जवाब नहीं मिला। उधर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सोशल मीडिया पर रील्स बनाकर “मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना” का ढिंढोरा पीट रहे हैं, जबकि जमीन पर हालत यह है कि पशुपालकों के खाते खाली हैं और उनकी मेहनत का दूध सरकारी फाइलों में सूख गया है।

सरकार की संवेदनहीनता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पशुपालकों को बकाया देने की कोई समयसीमा तक तय नहीं की गई। जब भी कोई सवाल उठाता है, सरकार ‘वित्तीय पुनर्संतुलन’ और ‘ऑडिट’ जैसे तकनीकी बहाने बना देती है। सवाल ये है कि जब सार्वजनिक मंचों पर मुख्यमंत्री पंडित भजनलाल शर्मा खुद को ‘गांव का बेटा’ बताते हैं, तो क्या वो इन लाखों पशुपालकों को अपना परिवार नहीं मानते? कृषि की तरह ही दुग्ध उद्योग राजस्थान की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है। प्रदेश में सरकारी डेयरी द्वारा हर दिन 30 लाख लीटर दूध की खरीद की जाती है, जिससे सीधे या परोक्ष रूप से करीब 25 लाख परिवार जुड़े हैं। जब इतने बड़े वर्ग को महीनों तक भुगतान नहीं मिलता, तो यह सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक संकट भी बन जाता है। इसके कारण गांवों में नकदी का प्रवाह रुक जाता है, छोटे दुकानदारों की बिक्री घटती है, और अंततः पूरा ग्रामीण बाजार प्रभावित होता है।

सरकार का रवैया यह बताता है कि ‘गांव और किसान’ अब सिर्फ प्रचार की चीज बन गए हैं। मुख्यमंत्री पंडित भजनलाल शर्मा की प्राथमिकता रील्स और फोटोशूट हैं, न कि खेत, खलिहान और पशुपालक किसान। अगर भजनलाल शर्मा वाकई ग्रामीण समाज के हितैषी हैं, तो उन्हें तत्काल 300 करोड़ रुपये का भुगतान सुनिश्चित करना चाहिए और यह वादा भी करना चाहिए कि भविष्य में कोई पशुपालक अपने बोनस के लिए महीनों इंतजार नहीं करेगा। दीपावली आने से पहले अगर यह पैसा जारी नहीं हुआ तो यह न सिर्फ सरकार की साख पर प्रश्नचिन्ह लगाएगा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव भी हिला देगा। आज जरूरत है कि सत्ता की रील्स से निकलकर मुख्यमंत्री पंडित भजनलाल शर्मा जमीनी हकीकत देखें, जहां दूध की हर बूंद में पशुपालक का पसीना और सरकार की बेपरवाही घुली है।


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