वसुंधरा की साख, गहलोत की प्रतिष्ठा, नरेश मीणा और भजनलाल की कुर्सी भविष्य दांव पर!

राजस्थान की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज है। विधानसभा उपचुनावों की सुगबुगाहट के बीच अब सबकी निगाहें बारां जिले की ऐतिहासिक अन्ता विधानसभा सीट पर टिक गई हैं, जहां पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की साख दांव पर लगी है तो एक अन्य पूर्व सीएम अशोक गहलोत की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। इसके साथ ही युवा और जोशीले नौजवान नेता नरेश मीणा का पूरा सियासी करियर भी दांव पर लग गया है, जो दो साल से भी कम समय में तीसरा चुनाव लड़ रहे हैं। अंता सीट पर 11 नवम्बर को उपचुनाव के लिए मतदान होना है, हालांकि यह मुकाबला महज़ एक उपचुनाव नहीं, बल्कि पंडित भजनलाल शर्मा की सत्ता, बीजेपी के संगठन और कांग्रेस पार्टी की साख का इम्तिहान है। यहां भाजपा ने पूर्व कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी को सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा है। भाजपा ने अभी तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, लेकिन कांग्रेस ने एक बार फिर प्रमोद जैन भाया पर भरोसा जताते हुए मैदान में उतार दिया है, जो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सबसे करीबी और भरोसेमंद नेताओं में से एक हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस द्वारा टिकट नहीं मिलने से नाराज नरेश मीणा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोक दी है, जो दिसंबर 2023 में छबड़ा से और उपचुनाव में देवली-उनियारा से लड़ चुके हैं। कांग्रेस के प्रमोद जैन पर भ्रष्टाचार के आरोप इसी पार्टी के नेता स्व. भरतसिंह कुंदनपुर लगाते रहे हैं, जिनका पिछले दिनों निधन हो गया है, जबकि गहलोत सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र गुढ़ा प्रमोद जैन भाया को भ्रष्टाचार का बादशाह बताते हैं। राजेंद्र गुढ़ा अब खुलकर नरेश मीणा का समर्थन कर रहे हैं और क्षेत्र में प्रमोद जैन भाया के खिलाफ भ्रष्टाचार के पोस्टर लग चुके हैं।

एतिहासिक रूप से बात करें तो अन्ता विधानसभा सीट बारां जिले में आती है, जो झालावाड़ लोकसभा सीट का पार्ट है। लगातार चार चुनाव से अन्ता सीट सत्ता के साथ रही है। राज्य में जिस दल की सरकार होती है, अंता सीट पर उसी दल का उम्मीदवार जीतता है। प्रमोद जैन भाया से लेकर प्रभुलाल सैनी और फिर प्रमोद जैन से लेकर कंवरलाल मीणा इसके सबूत हैं। यही कारण है कि इसे राजस्थान की सेमी-पॉलिटिकल बैरोमीटर सीट कहा जाता है। यहां से कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया ने 2 बार जीत दर्ज की, जबकि एक बार भाजपा के प्रभुलाल सैनी और एक बार कंवरलाल मीणा जीत दर्ज कर अपनी पैठ बनाई है। यह इलाका जातीय रूप से भी बेहद संवेदनशील है। यहाँ मीणा, जैन, सैनी, धाकड़ा, गुर्जर, राजपूत और ब्राह्मण समुदायों की भूमिका चुनावी समीकरण तय करती है। मुस्लिम वोट नतीजों को तय करने में काफी योगदान रहता है।

भाजपा के लिए यह चुनाव केवल एक सीट जीतने का नहीं, बल्कि पंडित भजनलाल शर्मा की परीक्षा तो वसुंधरा राजे के पास एक बार फिर से अपनी सियासी ताकत दिखाने का मौका है। प्रभुलाल सैनी कभी वसुंधरा राजे के करीबी रहे हैं, अब दोनों में दूरियां हो चुकी हैं। प्रभुलाल सैनी को एक कर्मठ, ग्रामीण और किसान हितैषी नेता की रही है। राज्य में इस समय भाजपा 118 सीटों के साथ सत्ता में है। शुक्रवार को सीएम पंडित भजनलाल शर्मा और पार्टी अध्यक्ष मदन राठौड़ ने वसुंधरा राजे से मुलाकात कर सहमति बनाने का प्रयास किया है। सूत्र बताते हैं कि वसुंधरा राजे ने साफतौर पर टिकट कंवरलाल मीणा के परिवार को देने का वीटो कर दिया है। भाजपा का टिकट राजे गुट को सौंपना यह संकेत देगा कि पार्टी नेतृत्व कभी भी वसुंधरा के प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। टिकट से पहले नरेश मीणा की लगातार चेतावनी के बावजूद कांग्रेस ने कोई जोखिम नहीं लिया है। पार्टी ने फिर से प्रमोद जैन भाया पर दांव लगाया है। गहलोत सरकार के दौरान भाया को ‘हाड़ौती बेल्ट का चेहरा’ माना गया था। यहां के इलेक्शन कैंपेन की रणनीति स्थानीय विकास, किसानों की समस्याएं, भ्रष्टाचार और युवाओं की बेरोजगारी जैसे ठोस मुद्दों पर केंद्रित है। कांग्रेस यह उपचुनाव इस उम्मीद में लड़ रही है कि सत्ता विरोधी रुझान और स्थानीय असंतोष उसे एक बार फिर जनता का भरोसा दिला सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाया की हार या जीत का प्रभाव केवल कांग्रेस संगठन पर नहीं, बल्कि गहलोत कैंप की ताकत पर भी असर डालेगा।

अन्ता के चुनाव में तीसरा कोण जोशीले युवा नेता नरेश मीणा हैं, जो भले ही दो साल में दो चुनाव हार चुके हैं, लेकिन उनकी जमीनी पकड़ मजबूत होती जा रही है। एसडीएम को थप्पड़ मारने के बाद करीब 8 महीनों तक जेल में रहने के कारण नरेश मीणा के प्रति लोगों का सेंटीमेंट जुड़ गया है। अंता सीट पर करीब 30 प्रतिशत मीणा वोट के चलते उनकी मौजूदगी भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती बन सकती है। यहां पर प्रमोद जैन के समाज से 1 फीसदी से भी कम वोट है। नरेश मीणा भाजपा और कांग्रेस दोनों पर यह आरोप लगा रहे हैं कि दोनों ने वर्षों से इस इलाके को सिर्फ़ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया, विकास की तरह नहीं देखा। यहां मीणा समाज करीब 30% है, जबकि धाकड़ा और सैनी समुदाय 20%, ब्राह्मण और जनरल कास्ट मतदाता 25% है, जबकि अन्य वर्ग 25% बताया जाता है। यहां पर कृषि पर संकट, सिंचाई समस्या, युवाओं की बेरोजगारी, टूटी सड़कें, पेयजल योजनाओं की अधूरी स्थिति और चंबल लिंक परियोजनाओं का ठहराव खास मुद्दे हैं। प्रमोद जैन भाया इन मुद्दों को “गहलोत सरकार के अधूरे विज़न” के बजाय “जनता से जुड़े वादों की निरंतरता” के रूप में पेश कर रहे हैं। जबकि भाजपा इन योजनाओं को वसुंधरा राजे के शासनकाल की विरासत बताते हुए भाजपा की “डबल इंजन सरकार” के तहत विकास का वादा करेगी।

भाजपा के लिए यह चुनाव मुख्यमंत्री पंडित भजनलाल शर्मा के नेतृत्व की बड़ी परीक्षा है। भाजपा की जीत न केवल उपचुनावी बढ़त देगी, बल्कि संगठन के भीतर वसुंधरा राजे की स्वीकार्यता भी जोरदार तरीके से स्थापित करेगी। कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव गहलोत बनाम पायलट गुट की जमीनी पकड़ का शक्ति परीक्षण भी है। प्रमोद जैन अगर जीतते हैं तो यह गहलोत खेमे की साख को मजबूत करेगा; जबकि हार की स्थिति में पायलट कैंप मजबूत होगा और कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी फिर उभर सकती है। अभी यह कहना मुश्किल है कि ताज किसके सिर सजेगा, पर इतना तय है कि अन्ता की यह लड़ाई राजस्थान की सियासत में कई समीकरण बदल देगी। यह उपचुनाव एक सीट का मुकाबला नहीं, बल्कि दो दिग्गज नेताओं, वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के राजनीतिक प्रभाव की सीधी परीक्षा है, जबकि पहले ही बड़ी जीत का दावा कर रहे नरेशा मीणा दोनों प्रमुख दलों की परीक्षा लेंगे, जिनका भविष्य दांव पर लगा हुआ है। कांग्रेस—भाजपा में गुटबाजी, नरेश मीणा के आंदोलन और जेल जाने के कारण उनके प्रति लोगों झुकाव होने से उनकी जीत की संभावना सबसे अधिक बन रही है। फिर भी भाजपा के टिकट और गुटबाजी से बाहर निकलकर मजबूती से चुनाव लड़ने पर निर्भर करेगा।

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