घर-घर औषधि योजना में सम्मिलित तुलसी की बहुआयामी उपयोगिता का वैज्ञानिक विश्लेषण

Siyasibharat: राजस्थान सरकार की घर-घर औषधि योजना में वन विभाग की पौधशालाओं में उगाकर लोगों को वितरण हेतु अश्वगंधा, गुडूची, कालमेघ और तुलसी शामिल किये गये हैं। आज की चर्चा तुलसी के पक्ष में उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाणों पर है। तुलसी के पारंपरिक उपयोग का भारत में लम्बा इतिहास है| 

यह एक श्रेष्ठ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। तुलसी का औषधीय और औद्योगिक महत्व इसके रासायनिक और औषधीय गुणों के कारण है। तुलसी कई वैज्ञानिक अध्ययनों का विषय रहा है और इसके औषधीय और चिकित्सीय अनुप्रयोगों की विस्तृत श्रृंखला पिछले दो दशकों के दौरान प्रकाशित हुई है। 

विश्व भर में 12 जून 2021 तक 11,311 ऐसे शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें कहीं न कहीं तुलसी का नाम आया है| इनमें से 2100 से अधिक शोधपत्र ऐसे हैं जो मूलतः तुलसी पर हैं| तुलसी में पायी जाने वाले द्वितीयक चयापचयी द्रव्यों पर हुये प्रकाशनों को मिला लेने पर यह संख्या एक लाख से अधिक बैठती है|  

तुलसी (ओसिमम टेनुईफ्लोरम) पर वैज्ञानिक अध्ययनों में इम्यूनोमोड्यूलेटरी, कार्डियोप्रोटेक्टिव, रेडियोप्रोटेक्टिव, एंटीइन्फ्लेमेटरी, एंटीवायरल, एंटीकैंसर, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीस्ट्रेस, विकिरण संरक्षण, एंटीडायबिटिक, एंटिफंगल, एंटीमाइक्रोबियल, एडाप्टोजेनिक, हाइपोग्लाइकेमिक, एंटीस्पैस्मोडिक, एंटीआर्थराइटिक और एंटीलेशमैनिसाइडल गुण ज्ञात हैं। 

इस औषधीय पादप में 60 से अधिक रासायनिक यौगिक खोजे जा चुके हैं जिनमें फेनोलिक्स, फ्लेवोनोइड्स, फिनाइल प्रोपेनोइड्स, टेरपेनोइड्स, फैटीएसिड डेरिवेटिव, एसेंशियल आयल, फिक्स्ड आयल, बोर्निलसेटेट, कैडिनिन, यूजेनॉल, यूजेनॉल मिथाइल ईथर, मिथाइल चाविकोल, लिमोनेन और स्टेरॉयड शामिल हैं। तुलसी का औषधि और न्यूट्रास्युटिकल्स में विश्वव्यापी उपयोग होता है।

कालमेघ, गुडूची, और अश्वगंधा की तरह तुलसी भी ओसेल्टामिविर व जानामिविर जैसी न्यूरामिनीडेज इनहिबिटर होने से एंटीवायरल है, हालांकि इन द्रव्यों के कार्य करने की विधि वस्तुतः बहु-क्रियात्मक है। 

इसीलिये तुलसी अनेक वायरल रोगों के विरुद्ध उपयोगी द्रव्यों में शामिल हैं (देखें, एस. रस्तोगी, डी.एन. पाण्डेय व आर.एच, सिंह, जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 23 अप्रैल 2020)। जैसा कि पूर्व में बताया गया था कि उम्र-आधारित रोगजनन का एक प्रमुख कारण डी.एन.ए. रिपेयर मैकेनिज्म में गड़बड़ी होना माना जाता है। जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाये जाने वाले तंतुनुमा अणु को डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड या डी.एन.ए. कहा जाता है। 

इसी में अनुवांशिक कोड निहित रहता है। जैसे जैसे डी.एन.ए. डैमेज का बोझ बढ़ता जाता है, शरीर बुढ़ापे की ओर बढ़ता जाता है। शरीर की कोशिकाओं द्वारा डी.एन.ए. डैमेज के संकेत प्राप्त करने और टूट-फूट की मरम्मत करने की क्षमता उम्र के साथ घटती जाती है। 

इस कारण बुढ़ापे में अनेक समस्यायें जैसे कैंसर, न्येरोडीजेनरेशन जैसी व्याधियां विकसित होने की आशंका बढ़ जाती है। शोध से सिद्ध होता है कि तुलसी में रसायन के गुण होने से यह बढ़ती उम्र के लोगों में डी.एन.ए. रिपेयर मैकेनिज्म की गति को बढ़ा देती है व तोड़फोड़ की गति को कम कर देते हैं। 

बुढ़ापा आने का एक कारण ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और इनफ्लेमेशन का बढ़ना भी है। तुलसी के इम्यूनोमोड्यूलेटरी, एंटीइन्फ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीस्ट्रेस, व एडाप्टोजेनिक गुणों के कारण इसका उपयोग करते रहने से शरीर का व्याधिक्षमत्व बढ़ता है तथा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और इनफ्लेमेशन में कमी होती है।

तुलसी को आयुर्वेद की प्राचीन संहिताओं चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता और ऋग्वेद जिसका समय कम से कम 3500-1600 ईसा पूर्व माना जाता है, में खांसी, श्वसन संबंधी विकार, विषाक्तता, नपुंसकता और गठिया के इलाज के लिये औषधि के रूप में वर्णित किया गया है। 

आचार्य भावमिश्र ने भावप्रकाश के पुष्पवर्ग में तुलसी के गुणों का वर्णन किया है: तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमञ्जरी। अपेतराक्षसी गौरी भूतघ्नी देवदुन्दुभिः॥ तुलसी कटुका तिक्ता हृद्योष्णा दाहपित्तकृत्। दीपनी कुष्ठकृच्छ्रास्रपार्श्वरुक्कफवातजित्। शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणैस्तुल्या प्रकीर्तिता॥

गुण और क्रियात्मकता में तुलसी तीक्ष्ण, कटु, उष्ण है| औषधि के रूप में तुलसी के पत्ते, जड़, तना और बीज प्रयुक्त होते हैं| चिकित्सकीय उपयोग में तुलसी के पत्तों का ताजा रस 10 से 20 मिलीलीटर, जड़ का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर, और बीजों का पाउडर 3-6 ग्राम तक लिया जाता है| सूखे पत्तों का चूर्ण भी प्रयुक्त होता है| 

तुलसी के पत्ते को चाय की तरह उबालकर क्वाथ पीने के अनेक लाभ क्लिनिकल ट्रायल्स में मिले हैं| और हाल में दांतों और मसूढ़ों के स्वास्थ्य हेतु माउथवॉश के रूप में प्रयोग पर हुई शोध तुलसी में एंटीप्लाक, एंटी-गिंगिवाइटिस या मसूढ़ों की सूजन कम करने वाली और एंटीबैक्टीरियल गुण भी सिद्ध करती है।

कोविड-19 के विरुद्ध तुलसी की क्रियात्मकता के सन्दर्भ में अब तक 111 शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं| हालांकि तुलसी पर अनेक क्लिनिकल ट्रायल हो चुके हैं परन्तु कोविड-19 के सन्दर्भ में हाल ही में हुये एक क्लिनिकल ट्रायल में तुलसी, गुडूची, और अश्वगंधा भी महत्वपूर्ण औषधि के रूप में सम्मिलित रही हैं| यह क्लिनिकल ट्रायल कोविड-19 के 100 मरीजों पर हुआ| परिणामों में पाया गया कि तीसरे दिन जहाँ आयुर्वेद उपचार ग्रुप में 71.1 प्रतिशत मरीज ठीक हुये, वहीं प्लेसीबो समूह में 50 प्रतिशत रोगी ठीक हुये। 

आयुर्वेद उपचार समूह में 7 दिन के अन्दर 100 प्रतिशत रोगी ठीक हुये, जबकि प्लेसीबो समूह में यह 60 प्रतिशत था। उपचार के सातवें दिन प्लेसीबो समूह की तुलना में उपचार समूह में एचएस-सीआरपी, इंटरल्यूकिन-6 और टीएनएफ-अल्फा के सीरम स्तरों में औसतन क्रमशः 12.4, 2.5 और 20 गुना कमी थी। उपचार समूह में संक्रमण से उबरने के जोखिम में भी 40 प्रतिशत कमी पायी गयी (देखें, जी. देवपुरा इत्यादि, फाइटोमेडिसिन, 84: आर्ट. 153494, 2021)।

हाल ही में प्रकाशित एक अन्य क्लिनिकल केस-स्टडी के अनुसार कोल्डकैल, त्विषाअमृत, अश्वगंधा, गुडूची तथा संजीवनी वटी कोविड-19 के उपचार में पूर्ण प्रभावी पायी गयी हैं| कोल्डकैल में मूल द्रव्य तुलसी, गुडूची व कालमेघ हैं| त्विषाअमृत में 13 प्रजातियों के औषधीय पौधे शामिल हैं (देखें, संजीव रस्तोगी, रंजना रस्तोगी, अतुल खरबंदा, जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 25 फरवरी, 2021)|

वैश्विक रुग्णता और मृत्यु दर का प्रमुख कारण जीवनशैली से संबंधित जटिल बीमारियां हैं| इनसे निपटने में आयुर्वेद की स्वस्थ जीवनशैली के साथ ही रसायन या एडाप्टोजेनिक औषधियों का नियमित सेवन परम उपयोगी पाया गया है। आयुर्वेद की संहिताओं, समकालीन शोध और वैद्यों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आयुर्वेद के तमाम औषधीय पौधों के मध्य तुलसी एक श्रेष्ठ द्रव्य है जो शारीरिक और मानसिक समस्याओं से मुक्त रखने में बड़ा योगदान देती है| 

वैज्ञानिक प्रमाणों की बात करें तो तुलसी की औषधीय क्रियात्मकता शारीरिक, रासायनिक, चयापचय और मनोवैज्ञानिक तनाव आदि को दूर कर सकती है। विशेष रूप से आज के प्रदूषित वातावरण में निवास करने वाली शहरी जनसंख्या में औद्योगिक प्रदूषकों और भारी धातुओं से उत्पन्न तनाव, लंबे समय तक शारीरिक परिश्रम, इस्किमिया, शारीरिक असंयम, असमय ठंड और गरम माहौल, अत्यधिक शोर-शराबा आदि से निरंतर संपर्क अब शारीरिक और मानसिक तनाव का मूल कारण हो गया है| 

इनके दुष्प्रभावों से हमारे स्वास्थ्य को बचाने में तुलसी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। तुलसी रक्तशर्करा, रक्तचाप और लिपिड स्तर के सामान्यीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से चयापचय तनाव का मुकाबला करने में उपयोगी पायी गयी है| तुलसी के पक्ष में इस बात के ठोस प्रमाण है कि यह स्मृति और संज्ञानात्मक कार्य पर सकारात्मक प्रभाव के माध्यम से मनोवैज्ञानिक तनाव और इसके कारण उत्पन्न चिंता और अवसाद से निपटने में बहुत उपयोगी है। 

इसके साथ ही तुलसी की व्यापक-स्पेक्ट्रम रोगाणुरोधी गतिविधि, जिसमें मानव और पशु रोगजनकों की एक श्रृंखला के खिलाफ गतिविधि शामिल है, के कारण इसका उपयोग हाथ-सेनिटाइज़र, माउथवॉश और जल-शोधक के साथ-साथ घाव भरने, खाद्य पदार्थों के संरक्षण और हर्बल आहार सप्लीमेंट के रूप में किया जा रहा है। तुलसी के पौधों को घरों में उगाने या खेतों में कृषि के रूप में उगाने का आध्यात्मिक, चिकित्सकीय और व्यावहारिक महत्व है| दैनिक अनुष्ठानों के साथ-साथ तुलसी का आयुर्वेद तथा लोक-औषधि में उपयोग से सम्बंधित विशाल ज्ञान उपलब्ध है| तुलसी भले ही भारत में 8 से 10 हजार वर्ष पूर्व से उपयोग होती आ रही हो परन्तु आधुनिक समस्याओं के समाधान में भी तुलसी पर उपलब्ध प्राचीन ज्ञान यथावत प्रासंगिक है (देखें, एम.एम. कोहेन, जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 5(4): 251–259, 2014)।

आयुर्वेद की दृष्टि से तुलसी जीवनशैली से जुड़े पचड़ों का समाधान देने में सर्वोत्तम औषधियों में से एक है। उष्ण और कटु होने से यह ऊतकों में गहरे तक शीघ्र प्रवेश करती है| इसका शुष्क प्रभाव कफ और वात को सामान्य करता है। तुलसी का दैनिक सेवन अनेक संचारी और गैर-संचारी रोगों से बचाव करता है| चिंता, खांसी, अस्थमा, दस्त, बुखार, पेचिश, गठिया, नेत्र रोग, अपच, हिचकी, उल्टी, गैस्ट्रिक, हृदय और जननांग संबंधी विकार, पीठ दर्द, त्वचा रोग, दाद, कीट, सांप और बिच्छू के काटने और मलेरिया सहित कई स्थितियों के लिए तुलसी एक उपचार है (देखें, एम.एम. कोहेन, जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 5(4): 251–259, 2014; एम. जैमसिडी, एम.एम. कोहेन, एविडेंस-बेस्ड कॉम्प्लीमेंटरी एंड अल्टरनेटिव मेडिसिन, 2017, आर्टिकल 9217567)| 

घर-घर औषधि योजना में सम्मिलित अश्वगंधा, गुडूची, कालमेघ और तुलसी सहित आयुर्वेद के तमाम औषधीय पौधों पर भारत से अधिक रुचि दुनिया के अन्य देशों के वैज्ञानिक ले रहे हैं। उदाहरण के लिये तुलसी को जिन 11,311 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 5,478 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है। भारत के लिये यह चिंता का विषय होना चाहिये कि तुलसी पर उपलब्ध ज्ञान भारत में नहीं बल्कि भारत से बाहर धन-संपत्ति अर्जन को बढ़ावा दे रहा है|

निष्कर्ष रूप में संहिताओं, वैज्ञानिक शोध और अनुभव का निचोड़ यह है कि तमाम संचारी और गैर-संचारी रोगों को रोकने और उपचारित करने के साथ ही उम्र-आधारित रोगजनन रोकने व व्याधिक्षमत्व बढ़ाने हेतु तुलसी बहुत प्रभावी औषधि है। कोविड-19 की चिकित्सा व लॉन्ग-कोविड दोनों ही परिस्थितियों को प्रबंधित करने के लिये अश्वगंधा, कालमेघ और गुडूची के साथ ही तुलसी आयुर्वेद का श्रेष्ठ द्रव्य है। ऐसी स्थिति में अपने घरों में तुलसी सहित उपरोक्त चारों औषधीय पौधों को उगाइये| रात-विरात जरूरत पड़ने पर बाज़ार नहीं भागना पड़ेगा। यह सदैव ध्यान रखें कि आयुर्वेदिक औषधि वैद्यों के परामर्श से ही लेना उचित, लाभकारी और कल्याणकारी रहता है। 

डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं।)

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