श्रीलंका की तरह पाकिस्तान की इकोनॉमी तेजी से दिवालिया होने की तरफ बढ़ रही है। डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए की कीमत करीब 200 हो गई है। गुरुवार से एक डॉलर के बदले 200 पाकिस्तानी रुपए देने होंगे। इसके साथ ही डॉलर की ब्लैक मार्केटिंग भी तेजी से बढ़ी और सरकार इसे रोक पाने में नाकाम साबित हुई है। सरकार ने लग्जरी और गैर जरूरी आयटम्स के इम्पोर्ट पर सख्ती से बैन करने का ऐलान किया है।
फॉरेक्स एसोसिएशन ऑफ पाकिस्तान और बिजनेस रिकॉर्डर पाकिस्तान की बुधवार रात जारी रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को एक डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए 199 तक पहुंच गया। आशंका है कि गुरुवार को यह 200 रुपए से ज्यादा हो जाएगा, जबकि भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले 77 पर है।
11 अप्रैल को जब शाहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार सत्ता में आई थी, तब डॉलर के मुकाबले रुपए 182 रुपए था, इसके बाद इसमें तेजी से गिरावट हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक इमरान सरकार ने विदेशी कर्ज की किश्तें भी नहीं चुकाईं और नई सरकार के लिए यह बहुत बड़ी मुसीबत है। इसके अलावा अमीर तबका डॉलर्स की होर्डिंग कर रहा है, इसकी वजह से इसकी ब्लैक मार्केटिंग हो रही है। पाकिस्तान में कई जगह एक डॉलर के बदले 260 पाकिस्तानी रुपए देने पड़ रहे हैं।
इकोनॉमी तबाह होते देख सरकार के भी हाथ-पैर फूल गए। बुधवार दोपहर प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने एक इमरजेंसी बैठक बुलाई थी, जिसमें वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल के अलावा फाइनेंस सेक्रेटरी और कुछ फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स शामिल हुए।
मीटिंग के बाद एक लिखित बयान जारी किया गया, जिसके मुताबिक लग्जरी कारों और इसी तरह के दूसरे गैर जरूरी सामानों के साथ ही कॉस्मेटिक्स के इम्पोर्ट पर भी तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी गई। जिन आयटम्स के आयात पर रोक लगाई गई है, उनकी लिस्ट गुरुवार को जारी की जा सकती है। पाकिस्तान का अमीर तबका बड़े पैमाने पर विदेशी कारें इम्पोर्ट करता है। इसके अलावा विदेशी कॉस्मेटिक्स खासतौर पर क्रीम और महंगे परफ्यूम इम्पोर्ट किए जाते हैं।
पाकिस्तान का 19वां IMF प्रोग्राम इमरान सरकार गिरने के पहले ही अटक गया था। असल में IMF ने पाकिस्तान से कहा था कि वो अगर वो इकोनॉमी को दुरुस्त करना चाहता है तो तमाम तरह की सब्सिडी खत्म करे, फ्यूल की कीमतों को इंटरनेशनल मार्केट के लेवल पर लाए और बिजली महंगी करे।
इमरान को जब लगा कि सरकार गिरने वाली है तो उन्होंने फ्यूल महंगा करने के बजाए 10 रुपए प्रति लीटर तक सस्ता कर दिया, जवाब में IMF ने फंड रिलीज करने से इनकार कर दिया। अब शाहबाज शरीफ सरकार फिर दोहा में IMF की चौखट पर पहुंच गई है। हालांकि, राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए इस बात की कोई संभावना नहीं है कि IMF फंड रिलीज करेगा। विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो अमेरिका पहुंच गए हैं। अगर अमेरिका ने दखल दिया तो शायद ये उम्मीद की जा सकती है कि IMF कुछ सख्त शर्तों के साथ पाकिस्तान को थोड़ी राहत और मोहलत दे।
इसलिए संभावना जताई जा रही है कि पाकिस्तान में एक बार फिर बड़ा उलटफेर हो सकता है। पेट्रोलियम कीमतों को बढ़ाने का साहसिक फैसला होगा, जिसकी दूर-दूर तक उम्मीद नहीं दिखती। पिछले महीने ही प्रधानमंत्री बने शहबाज शरीफ संसद को भंग कर दोबारा आम चुनाव में जाने का फैसला ले सकते हैं।
आर्थिक संकट में जकड़े पाकिस्तान के लिए नए प्रधानमंत्री अगले चुनाव में खुद और अपनी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की छवि को बचाने के लिहाज से सरकार में शामिल गठबंधन के प्रमुख नेताओं से अलग-अलग मुलाकात कर किसी एक फैसले तक पहुंचने की कोशिश में हैं।
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी प्रमुख आसिफ अली जरदारी, जमात उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख मौलाना फजल-उर-रहमान और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के संयोजक खालिद मकबूल सिद्दीकी से इस्लामाबाद में अलग-अलग बैठक की। महंगाई और आर्थिक अस्थिरता को बैठक का मुद्दा बताया जा रहा है, हालांकि एक बात साफ तौर पर निकल कर आ रही है कि बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक दबाव के मद्देनजर PM शहबाज अपने मंत्रिमंडल को भंग कर सकते हैं।
आर्थिक अस्थिरता के कारण डेढ़ महीने के अंदर दूसरी बार पाकिस्तान बुरी तरह राजनीतिक अस्थिरता के चंगुल में है। सबसे बड़ा संकट अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, यानी IMF की शर्तों के मुताबिक पेट्रोलियम की कीमतें बढ़ाने के निर्णय को लेकर है। कीमत बढ़ाने से जनता में आक्रोश तय है, जिसका नुकसान सत्तारूढ़ गठबंधन को होना भी तय है। इसलिए सरकार यदि कीमतें बढ़ाती है, तो आईएएफ ऋण देने से इनकार कर देगा, तो पेट्रोलियम कीमतों को बढ़ाया जाता है तो जनता में आक्रोश होना तय है।
जिस नई कैबिनेट को अधिकतम 16 महीने तक देश पर शासन कर चुनाव में उतरना था, वह 40 दिनों में ही चुनाव को अंतिम विकल्प मान रही है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के अनुसार किसी भी फैसले के लिए PM राष्ट्र को संबोधित करेंगे और आम अवाम को विश्वास में लेकर ही कुछ करेंगे।
सेना के समर्थन के बिना गठबंधन सरकार के लिए पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि या इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड से आर्थिक मदद मांगने जैसा साहसिक कदम उठाना असंभव है। अब तक सेना ने सरकार को ऐसा कोई समर्थन नहीं दिया है, हालांकि जुलाई तक नए सिरे से चुनाव का संदेश जरूर आ चुका है।
इस हालत में अपनी छवि बचाने के लिए शहबाज शरीफ संसद को भंग करने का फैसला ज्यादा आसानी से ले सकते हैं। सच यह भी है कि शहबाज के प्रयासों के बावजूद चीन, सऊदी अरब, UAE, अमेरिका जैसे मित्र देश भी पाकिस्तान के लिए सहायता राशि की घोषणा नहीं कर रहे हैं, जबकि पाकिस्तान हाल ही में भारत के साथ बिना शर्त पौने तीन साल बाद फिर से कारोबार शुरू करने की अपील कर चुका है।
पाकिस्तान की आर्थिक अस्थिरता में पेट्रोलियम लेवी बड़ी वजह है। 2.56 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित नॉन-टैक्स रेवेन्यू के मुकाबले पेट्रोलियम लेवी में राहत के कारण सरकार केवल 426.8 करोड़ रुपए ही हासिल कर सकती है। इसके साथ ही साल के अंत तक इन्फ्लेशन दरों को भी 15% को पार कर सकता है। खाद्य कीमतों में और वृद्धि होने की आशंका भी साफ दिखाई दे रही है।
इमरान खान की पिछली सरकार पाकिस्तान को बिगड़ती आर्थिक स्थिति में छोड़ गई है। इमरान को हटाने के लिए जिन दलों ने एकता दिखाई, वह गठबंधन सरकार बनाने के बाद देश की आर्थिक हालत सुधारने के लिए एक साथ रहकर जरूरी फैसले नहीं ले सके हैं। गठबंधन के प्रमुख सहयोगियों के बीच इस समय गहरा मतभेद है, जो चुनाव के लिए अधिक मजबूर कर सकता है।
हैरत की बात देखिये, हर वक्त पाकिस्तान को साथ देने वाले अमेरिका व चीन भी इस मामले में पूरी तरह से चुप हैं। असल में चीन से जिन देशों ने कर्जा लिया है, उनकी हालत ऐसे ही खराब हुई है। इसका पिछला उदाहरण श्रीलंका है, जहां पर आपातकाल लगा हुआ है और ताजा उदाहरण पाकिस्तान है, जो आर्थिक तौर पर आखिरी सांसें गिन रहा है। देखना यह होगा कि पाकिस्तान की मदद करने कोई आगे आता है, या फिर वहां का शासन चुनाव जैसे नाटक कर अपने देश को कंगाली में धकेलने जैसे काम करेगा?
कंगाली के मुहाने पर खड़ा है पाकिस्तान, भारत से मांगी मदद
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