क्वाड के जरिये भारत देगा चीन को करारा जवाब

इसी महीने की 24 तारीख को जापान में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भारत, जापान, ओस्ट्रेलिया के साथ अपने इरादे साफ कर दिए हैं। एक तरफ जहां रूस के यूक्रेन पर हमले तेज हो रहे हैं, तो इसी का फायदा उठाते हुए चीन भी अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने से नहीं चूक रहा है। ताजा खबर सामने आई कि चीन ने पैंगोग झील पर 1960 में भारत से हड़पी जमीन पर दो नये पुल बना रहा है। इसको लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि करते हुए चीन को साफ संदेश दिया है कि वह अपनी हरकतों से बाज आए, क्योंकि भारत इस गलती को कतई स्वीकार नहीं करता है और ना भूलने वाला है। मतलब मोदी सरकार का साफ संदेश है कि चीन जो कर रहा है, वह बिलकुल गलत है और समय रहते इस गलती को सुधारा नहीं गया तो परिणाम भुगतने होंगे। भारत की आपत्ति के बाद अभी तक चीन ने कोई जवाब नहीं दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि भारत की आपत्ति को इस बार चीन बहुत गंभीरता से लेगा, क्योंकि भारत पिछले कुछ समय से काफी आक्रामक दिखाई दे रहा है। भारत ने पिछले तीन माह से अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी आंख दिखाकर बात की है, तो इस तरह से चीन को भी भारत ने मैसेज दे दिया है कि वह भी अब पहले की तरह हल्के में ना ले तो ही बेहतर होगा। चीन की हमेशा यही नीति नहीं है, वह भारत या अन्य किसी भी देश के साथ सीमा विवाद करता है और फिर इस बहाने उसमें घुसने की कोशिश करता है। चीन किसी भी देश में चार कदम आगे बढ़ता है, फिर आपत्ति करने पर दो कदम पीछे हटकर दिखाता है कि वह अपने किए से पीछे हट गया है। यही उसकी चाल रहती है,​ जिसके कारण वह हमेशा दो कदम फायदे में रहता है। भारत की आपत्ति पर भले ही चीन पुल निर्माण रोक दे, लेकिन उसको हटाएगा नहीं, और फिर कभी मौका मिलते ही उसको पूरा कर लेगा। इस तरह से देखा जाए तो दो या तीन बार की हरकत में वह अपने मंसूबे पूरे कर लेता है। इस बीच चीन को घेरने के लिए बने क्वाड की बैठक को लेकर भारत समेत सभी देश तैयारी कर चुके हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 मई को जापान के टोक्यो जा रहे हैं, जहां पर जापान और अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संधी पर हस्ताक्षर भी होंगे। अमेरिका ने इंडो पेसेफिक रीजन को मजबूत करने का आव्हान किया है। जो बाइडन पांच दिन की एशिया यात्रा पर हैं। इस दौरान अमेरिकी की अगुवाई में इंडो पेसेफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क कार्यक्रम का भी उद्घाटन किया जाएगा। असल में ड्र्रेगन की बढ़ती ताकत से अमेरिका चिंतित है, इसलिए अक्टूबर 2021 से ही वह इंडो पैसेफिक रीजन के देशों के साथ मिलकर इंडो पैसेफिक इकॉनमी फ्रेमवर्क के जरिये चीन के पड़ौसी देशों के साथ कारोबार सहयोग बढ़ाने का आव्हान कर चुका है। क्वाड संगठन को लेकर सदस्य देशों भारत, अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया की चीन के खिलाफ साथ मिलकर प्रतिबद्धता बहुत तेजी से बढ़ रही है। अगले हफ्ते क्वाड की तीसरी शिखर बैठक टोक्यो में होने जा रही है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने इस बैठक को हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थायित्व को मजबूत करने के लिए बुलाई गई सबसे महत्वपूर्ण बैठक करार दिया है। इंडो पैसेफिक इकॉनकिक फ्रेमवर्क हिंद प्रशांत क्षेत्र में 21वीं सदी के लिए सबसे बड़े आर्थिक गठबंधन के तौर पर देखा जा रहा है। यह कोरोना महामारी और यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों का समाधान निकालने के साथ ही डिजिटल इकोनोमी के लिए नए नियम बनाने, सशक्त सप्लाई चेन को स्थापित करने, ऊर्जा उपभोग के मौजूदा तंत्र को बदलने और ढांचागत सुविधाओं को स्थापित करने का काम करेगा। यह फ्रेमवर्क पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में भारत के महत्व को बढ़ाएगा। इससे वैश्विक सप्लाई चेन में चीन के विकल्प के तौर पर भारत के स्थापित होने की संभावना मजबूत होगी। भारत को इस फ्रेमवर्क की भावी रणनीति के बारे में एक प्रस्ताव मिला है, जिस पर विचार किया जा रहा है। पीएम मोदी की जापान के प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय मुलाकात के साथ टोक्यो में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से मिलेंगे और कारोबारी समुदाय के साथ भी बैठक करेंगे। भारत इस संगठन को बहुत ज्यादा महत्व देता है। इस बैठक में क्वाड के उद्देश्यों के बारे में बात होगी और भारत समेत पडौसी देशों के खिलाफ चीन की बढ़ती चुनौतियों जैसे विषयों के बारे में भी विचार किया जाएगा। इस दौरान अगर सदस्य कोई दूसरा मुद्दा उठाना चाहते हैं तो उस पर भी बात होगी, मतलब खुले विचार से बातचीत की जाएगी। यूक्रेन पर रूस के हमले के कुछ ही दिनों बाद मार्च महीने में वर्चुअल तौर पर क्वाड देशों की एक बैठक हुई थी, जिसमें वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलावों और हिंद प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और सह अस्तित्व को लेकर भी चर्चा हुई थी। इसके पहले सितंबर 2021 में जब चारों देशों के शीर्ष नेताओं की वाशिंगटन में बैठक हुई थी, उसमें तकनीकी विकास, डिजाइन, गवर्नेंस व इसके इस्तेमाल का एजेंडा जारी किया गया था। तब यह भी बताया गया था कि क्वाड सदस्य 5जी तकनीकी से लेकर सभी अत्याधुनिक तकनीक बाजार में चीन के दबदबे को खत्म करेंगे। इस सम्मेलन के जरिये क्वाड के सदस्य देश पूरे विश्व को एक मजबूत संदेश देना चाहते हैं, जिसका संदेश चीन भी सुनना होगा। क्वाड देश अपने आर्थिक सहयोग के बारे में पहले ही कह चुके हैं कि वो किसी दूसरे देश की सार्वभौमिकता के लिए खतरा पैदा नहीं करेंगे। भारत की मजबूत होती अर्थव्यवस्था और अमेरिका की रुचि के चलते इंडो-पैसिफिक क्षेत्र इस शताब्दी की दिशा तय करेगा। पिछले पांच वर्षों में इंडो-पैसिफिक रीजन सबसे तेज़ी से विकास करने वाला आर्थिक क्षेत्र बन गया है। वैश्विक आर्थिक विकास में इंडो-पैसिफिक का हिस्सा दो-तिहाई है। इसके अलावा चीन की बढ़ती युद्ध स्थिति की वजह से इंडो-पैसिफिक सुरक्षा प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है। इसके बावजूद चीन अपनी हिमाकत से बाज नहीं आ रहा। लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील पर चीन के दूसरा पुल बनाने की खबर के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह भारतीय सेना से जुड़ा मुद्दा है, हम इसे चीन के कब्जे वाला क्षेत्र मानते हैं, पुल बनाना और बातचीत होना दो अलग-अलग मुद्दे हैं, सरकार इन पर नजर रख रही है, वो स्थिति की निगरानी कर रहे हैं। इसलिए भारत-चीन सीमा विवाद एक बार फिर चर्चा में है। पूर्वी लद्दाख के पैंगोग त्‍सो में चीन के दूसरा ब्रिज बनाने की खबरों को सरकार भी मान रही है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या इन पुलों का अवैध निर्माण समझौतों का उल्लंघन नहीं है? क्या यह निर्माण उस संघर्ष विराम का खुला उल्लंघन नहीं है, जिसके चलते भारत ने सामरिक दृष्टि वाले महत्वपूर्ण इलाकों से अपना कब्जा छोड़ दिया था? सरकार को जवाब देना चाहिए पर विदेश सचिव बागची ने इसे रक्षा मंत्रालय का विषय बता पल्ला झाड़ लिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक पैंगोंग झील पर जिस पुल का निर्माण हो रहा है, वो इतना चौड़ा है कि वहां से चीनी सेना के बड़े-बड़े वाहन व आर्टिलरी गुजर सकती है। पैंगोंग झील पर बने पुल के दोनों सिरों पर एक तरह से चीन ने अपना आधिपत्य जमा दिया है, वह उनका दुरुपयोग भारत के खिलाफ करेगा। ब्रिज की लोकेशन पैंगोग त्‍सो लेक के उत्तरी किनारे से फिंगर 8 से 20 किमी पूर्व में है। ये पहले ब्रिज के नजदीक ही बन रहा है। भारत मानता है कि ये LAC के गुजरने वाली जगह पर बन रहा है। ब्रिज की फिंगर 8 से सड़क मार्ग की दूरी तकरीबन 35 किमी है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि चीन अपनी सेना व सैन्य साजो सामान की आवाजाही के लिए ही इसका इस्तेमाल करेगा। दोनों पुलों की वजह से चीनी सेना की आवाजाही झील के उत्तरी व दक्षिणी किनारों पर होगी। पहले पुल के सैटेलाईट में जो तस्वीरें दिखी थीं, उनसे लगता था कि वो 400 मीटर लंबा और 8 मीटर चौड़ा था। दूसरा ब्रिज पहले वाले के बगल में ही है। ऐसा नहीं है कि चीन केवल भारत के खिलाफ ही इस तरह की गैर कानूनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है, वह अपने दूसरे पड़ौसी जापान से भी समुद्र में टकराव को बढ़ावा दे रहा है। चीन ने पूर्वी चीन सागर में अपनी हरकतों को बढ़ाया है, जिसके बाद जापान की सरकार ने राजनयिक माध्यमों से चीन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। पूर्वी चीन सागर में प्राकृतिक संसाधनों को विकसित करने के चीनी प्रयासों में वृद्धि की पुष्टि की, जिसमें जापान और चीन के बीच मध्य बिंदु के पश्चिम में शामिल क्षेत्र शामिल हैं। दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच स्थायी तनाव का सबसे बड़ा कारण पूर्वी चीन सागर में छोटे द्वीपों पर विवाद है, जिसे जापान नियंत्रित करता है, लेकिन चीन भी दावा करता है। इसी तरह से चीन का ओस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के साथ भी टकराव रहता है। यही कारण है कि भारत, अमेरिका, ओस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया मिलकर चीन के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बनाने पर जो दे रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि क्वाड में दक्षिण कोरिया को भी शामिल कर इसे और मजबूत किया जाए, ताकि भविष्य में चीन की गुस्ताखियों से मिलकर निपटा जा सके। ओस्ट्रेलिया में शनिवार को चुनाव है और सोमवार को नई सरकार गठन की संभावना है, इसलिए इस तीसरे शिखर सम्मेलन में ओस्ट्रेलिया की नई सरकार भागीदार होगी। इधर, भारत के प्रधानमंत्री एक महीने में दुबारा से अमेरिकी राष्ट्रपति से मिल रहे हैं। करीब एक माह पहले ही दोनों नेताओं की वर्चुवल ​बैठक हो चुकी है, जिसके बाद अमेरिका ने भारत को 500 मिलियन डॉलर के हथियार सहायता देने की घोषणा की है। इस क्षेत्र में चीन भी पाकिस्तान जैसे छोटे व गरीब देशों को आर्थिक सहायता देकर अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटा हुआ है। इसी क्रम में पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ अपने डूबते देश को बचाने के लिए एक बार फिर से चीन की शरण में जाने का फैसला किया है। शरीफ ने एक दिन पहले सीपीईसी का जिक्र करते हुए इस परियोजना में टर्की को शामिल करने की अपील की है। जबकि भारत द्वारा तीन साल पहले धारा 370 हटाने के बाद के इरादे भांपते हुए चीन इस परियोजना को इसलिए धीमी कर चुका है। वैसे भी जहां जहां चीन निवेश करता है, वह देश कंगाल हो जाते हैं। इसके ताजा उदाहरण श्रीलंका व पाकिस्तान हैं, जो आज बहदहाली से निकलने के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाने को मजबूर हो गये हैं। चीन ने वामपंथी प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के समय नेपाल को भी सहायता दी थी, लेकिन बाद में नेपाल ने फिर से भारत के साथ संबंध मजबूत कर लिए हैं।

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